जातिवाद पर निबंध ( An Essay On Casteism )

जातिवाद पर निबंध ( An Essay On Casteism )

जातिवाद पर निबंध ( An Essay On Casteism ) :- भारतीय समाज में जातिवाद सालों, दशकों या सदियों नहीं बल्कि हजारों सालों से पनप रहा है।

भारत में जातिवाद संबंधी कुछ तथ्य व उसकी सार्थकता –

प्रारंभ में व्यक्ति की जाति जन्म के स्थान पर उसके कर्म के आधार पर हुआ करती थी। पिता से पुत्र उसी पेशे को अपनाता था तो वही सर नेम उसे भी प्राप्त होता था। यह प्रक्रिया सदियों तक चलती रही और इस तरह जातियों का विकास हुआ। लेकिन वर्तमान स्थिति उसके बिल्कुल विपरीत है। आज कोई भी व्यक्ति अपनी जाति से इतर पेशे को अपना रहा है। कोई अपनी जाति के आधार पर पेशा चुनने के लिए बाध्य नहीं है।

पण्डित

पण्डित संस्कृत भाषा का शब्द है। इसका अर्थ होता है – ‘ज्ञानी, विद्वान या ज्ञानवान’। प्रारंभ में वेदों, पुराणों, उपनिषद् व अन्य ब्राह्मण ग्रंथों का अध्ययन करने वालों को पण्डित कहा जाता था। अर्थात ‘पण्डित कोई जाति नहीं‘ बल्कि विद्वानों की एक श्रेणी है। वह व्यक्ति जो अपने ज्ञान के आधार पर स्वयंसिद्धि प्राप्त करता था, पण्डित कहलाता था।

तब ज्ञान के मूल स्त्रोत वेद हुआ करते थे। अर्थात् जो चारो वेदों का अध्ययन कर लेता था वह चतुर्वेदी कहलाता था। आगे चलकर ये शब्द विकृत होकर चौबे हो गया। तीन वेदों का ज्ञान प्राप्त करने वाला त्रिवेदी या त्रिपाठी कहलाता था। दो वेदों का अध्ययन करने वाला द्विवेदी कहलाता था। जो वक्त से साथ विखंडित होकर दुबे कहलाने लगा। वे लोग जो सिर्फ एक वेद का ही ज्ञान प्राप्त कर सके वेदी कहलाए।

इसे भी पढ़ें  अगर मैं प्रधानमंत्री होता

इन सभी में समानता ये थी कि ये सभी वेदों का ज्ञान प्राप्त कर पंडित कहलाए। प्रारंभ में वे लोग ही ये उपाधि धारण किया करते थे जिन्होंने स्वयं ज्ञान की प्राप्ति की। परंतु यह उपाधि पीढ़ी दर पीढ़ी कबसे प्रचलन में आने लगी इसकी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। अतः तब पण्डित होने के लिए चतुर्वेदी/त्रिवेदी/द्विवेदी/वेदी होना आवश्यक था। परंतु बिना वेदों के ज्ञान के पिता से मिली चतुर्वेदी/त्रिवेदी/द्विवेदी/वेदी की उपाधि आपको चतुर्वेदी/त्रिवेदी/द्विवेदी/वेदी तो बना देगी परंतु ‘पण्डित’ नहीं।

उपाध्याय –

आजीविका के लिए अध्यापन का कार्य करने वाले को ऋग्वेद में उपाध्याय कहा गया है। यदि वर्तमान समय में इस तथ्य की सार्थकता पर विचार करें। तो पायेंगे कि वर्तमान में हर शिक्षक आजीविका हेतु ही अध्यापन के कार्य में संलग्न है। क्या आप किसी अध्यापक को जानते हैं जो शिक्षक की सरकारी नौकरी करके सरकार से वेतन न लेता हो ? क्या ऋग्वेद के आधार पर हर जाति के शिक्षक को आज उपाध्याय की संज्ञा दी जाएगी ?

चमार –

ये एक तद्भव शब्द है, इसका तत्सम शब्द ‘चर्मकार’ है। चर्म अर्थात चमड़ा एवं चर्मकार अर्थात् चमड़े का कार्य करने वाला। अर्थात् प्रारंभ में उन लोगों को चर्मकार कहा जाता था। जो चमड़े का कार्य जैसे – जूता बनाना, बेल्ट बनाना, ढोलक मढ़ना, चमड़े का कवच बनाना इत्यादि करते थे। प्रारंभ में प्रायः पिता का पेशा ही पुत्र भी चुनता था। अतः वह भी चमार ही कहलाता था। परंतु वर्तमान में इसकी सार्थकता पर विचार करें। वह व्यक्ति जिसकी साल पुष्तों ने चर्म का कार्य नहीं किया, वह भी आज चमार ही कहलाता है। वर्तमान में यदि वह शिक्षक का भी कार्य कर रहा हो, तो उपाध्याय नहीं चर्मकार ही कहलाएगा। आखिर क्यों ?

इसे भी पढ़ें  काव्य सौंदर्य के रस (Ras)

कुम्हार –

तत्सम शब्द कुम्भकार जो आगे चलकर कुम्हार हो गया। कुंभ अर्थात घड़ा और कुंभकार अर्थाक घड़े बनाने वाला। वर्तमान में स्टील, शीशे, प्लास्टिक के ग्लास व कटोरी आने के बाद कुम्हारों का कार्य ही खत्म होने की कगार पर है। जातिवाद पर निबंध ।

राजपूत –

राजपूत शब्द संस्कृत के शब्द राजपुत्र का तद्भव है। राजपूत अर्थात राजा का पुत्र, प्रारंभ में राजशी जीवन में रहने वाले राजा के पुत्रों को राजपूत कहा जाता था। परंतु वर्तमान में भारत से राजवंश की समाप्ति हो चुकी है। यहाँ तक कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 के तहत किसी भी राजशाही उपाधि को धारण करने तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

ये तो सिर्फ कुछ उदारहण थे। इसी प्रकार से आज बहुत सी जातियां हैं जिन्होंने सालों से जाति आधारित पेशा नहीं अपनाया। फिर भी वे सभी किसी न किसी विशेष जाति का प्रतिनिधित्व करती हैं। जब्कि संविधान में धर्म, जाति, लिंग, मूलवंश व जन्मस्थान के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न करने का नियम बनाया गया है। जातिवाद पर निबंध ।

(Visited 318 times, 1 visits today)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!