अवध के नवाब

अवध का क्षेत्र पूरब में कर्मनाशा नदी से पश्चिम में कन्नौज तक विस्तृत था। इसे बफर स्टेट के रूप में जाना जाता था। स्वतंत्र अवध का संस्थापक सआदत खाँ था। नवाब वाजिद अली शाह अवध के अंतिम नवाब थे। लॉर्ड डलहौजी ने कुशासन का आरोप लगाकर 1856 ई. में अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।

  • सफदरजंग (1739-54 ई.)
  • शुजाउद्दौला (1754-75 ई.)
  • आसफ उद्दौला (1775-97 ई.)
  • वजीर अली (1797-98 ई.)
  • सआदत अली खाँ (1798-1814 ई.)
  • गाजीउद्दीन हैदरअली खाँ (1814-27 ई.)
  • नासिरुद्दीन मुहम्मद अली (1827-42 ई.)
  • अमजद अली (1842-47 ई.)
  • वाजिद अली शाह (1847-56 ई.)

सआदत खां (1722-39 ई.)

1720 ई. में अआदतखाँ को बयाना का फौजदार नियुक्त किया गया था। इसके बाद इसे आगरा का गवर्नर नियुक्त किया गया। मुगल बादशाह मुहम्मदशाह ने 1722 ई. में सआदतखाँ (बुरहान मुल्क) को अवध का सूबेदार नियुक्त किया। ये निशापुर के सैय्यदों का वंशज एक शिया मुस्लिम था। इसी सआदत खां ने अवध की स्वतंत्रता की घोषणा की। फैजाबाद को इसने अपनी राजधानी बनाया। 1723 ई. में इसने अवध में नया राजस्व बंदोबस्त लागू किया। इसने हिंदू मुस्लिमों में भेदभाव न कर कई हिंदुओं को उच्च पद दिए। इसने नादिरशाह को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। अपनी इसी भूल से शर्मिंदा होकर 1739 ई. में इसने विष खाकर आत्महत्या कर ली।

सफदरजंग (1739-54 ई.)

सफदरजंग सआदत खाँ का भतीजा व दामाद था। सआदत खाँ का कोई पुत्र न होने के कारण उसका सफदरजंग ही उसका उत्तराधिकारी बना। मुगल बादशाह मुहम्मदशाह ने एक फरमान जारी कर इसे अवध का नवाब नियुक्त किया। 1748 ई. में अगले मुगल बादशाह अहमदशाह ने इसे इलाहाबाद देकर अपना वजीर नियुक्त किया। 1753 ई. में इससे वजीर का पद बापस ले लिया। इसने भी हिंदू व मुस्लिमों के साथ निष्पक्ष व्यवहार किया। इसने शांति कायम रखने के लिए मराठा सरदारों से मित्रता कर ली। परंतु बाद में पेशवा इसके दुश्मनों से जा मिला। 1754 ई. में सफदरजंग की मृत्यु हो गई।

शुजाउद्दौला (1754-75 ई.)

शुजाउद्दौला सफदरजंग का पुत्र था जो उसके बाद अवध का नवाब बना। जब मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय को 1759 ई. में दिल्ली छोड़नी पड़ी तो इसी ने उनका स्वागत किया। पानीपत की तीसरी लड़ाई में शुजाउद्दौला ने अब्दाली का साथ दिया। अंग्रेजों के विरुद्ध बक्सर की लड़ाई में ये मुगलों और मीर कासिम के साथ था। परंतु बक्सर के युद्ध में इनकी हार हुई। 1765 ई. में क्लाइव ने शुजाउद्दौला से कड़ा व इलाहाबाद लेकर शाहआलम को दे दिये। 1773 ई. में शुजा ने वारेन हेंस्टिंग्स से बनारस की संधि कर ली।

आसफ उद्दौला (1775-97 ई.)

आसफुद्दौला ने अवध की राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानांतरित की। इसने वारेन हेंस्टिंग्स से फैजाबाद की संधि की। इसने लखनऊ में इमामबाड़े का निर्माण कराया।

इसके बाद वजीर अली (1797-98 ई.) अवध का नवाब बना।

सआदत अलीखाँ (1798-1814 ई.)

इसने इलाहाबाद का जिला अंग्रेजों को दे दिया। इसने 1801 ई. में वेलेजली की सहायक संधि स्वीकार कर ली।

गाजीउद्दीन हैदरअली खाँ (1814-27 ई.)

वारेन हेंस्टिंग्स ने 1815 ई. में इसे बादशाह की उपाधि दी। इसके बाद नासिरुद्दीन मुहम्मद अली (1827-42 ई.) नवाब बना। उसके बाद अमजद अली (1842-47 ई.) अवध का नवाब बना।

वाजिद अली शाह (1847-56 ई.)

यह अवध का अंतिम नवाब था। इसी के समय 1754 ई. में लार्ड डलहौजी ने आउट्रम की रिपोर्ट के आधार पर अवध पर कुशासन का आरोप लगाया।  इसके बाद 1756 ई. में अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। वाजिद अली को नजमबंद कर कलकत्ता में रख लिया गया।

बंगाल में द्वैध शासन (1765-72 ई.)

रॉबर्ट क्लाइव को बंगाल में द्वैध शासन का जनक कहा जाता है। बंगाल के नवाब मीरजाफर के बाद उसका पुत्र नजमुद्दौला नवाब बना। फरवरी 1765 ई. में नवाब से हुई एक संधि के तहत कलकत्ता काउंसिल ने बंगाल की सुरक्षा अपने हाथों में ली। अंग्रेजों द्वारा बंगाल में एक नायब सूबेदार (मोहम्मद रजाखाँ) की नियुक्ति की गई। संधि के तहत बंगाल की सेना, वित्त व्यवस्था व बाहरी संबंध कंपनी को प्राप्त हो गए। इस तरह बंगाल में नवाब की स्वायत्त सत्ता समाप्त हो गई। नबाव को 53 लाख वार्षिक देने का निर्णय किया गया। इसके बाद समस्त भूराजस्व कंपनी का होगा। अगस्त 1765 ई. की इलाहाबाद की संधि के तहत कंपनी को बंगाल, बिहार व उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई।

बंगाल में द्वैध शासन –

रॉबर्ट क्लाइव ने 1765 ई. में बंगाल में द्वैध शासन की शुरुवात की। इस व्यवस्था के तहत क्लाइव ने राजस्व वसूली, प्रशासन, व दीवानी न्याय अपने पास रख लिए। फौजदारी मामले, आंतरिक शांति व्यवस्था व अन्य सभी प्रशासनिक कर्तव्य नवाब को दे दिए। अर्थात क्लाइव ने प्रशासन तो अपने हाथ में ले लिया परंतु उत्तरदायित्व नवाब को दे दिया। इस व्यवस्था के तहत क्लाइव ने अधिकार व उत्तरदायित्व को अलग-अलग कर दिया। क्लाइव की इसी व्यवस्था को द्वैध शासन की संज्ञा दी गई। 1772 ई. में वारेन हेंस्टिंग्स ने द्वैध शासन को समाप्त कर दिया।

द्वैध शासन के दुष्परिणाम –

नवाब की व्यवस्था समाप्त करने से कानून व्यवस्था में ह्रास हुआ। क्योंकि कंपनी अपने उत्तरदायित्वों को स्वीकार नहीं करती थी। इस व्यवस्था में भूराजस्व का ठेका अधिक बोली लगाने वालों को दिया जाने लगा। फलस्वरूप वे किसानों का अधिक शोषण करने लगे। 1770 ई. में बंगाल में भयानक अकाल पड़ा। इसमें बंगाल की बहुत बड़ी आबादी भूख और बीमारी से मर गई। फिर भी भूराजस्व में किसी प्रकार की छूट नहीं दी गई। बल्कि अगले वर्ष ही लगान 10 प्रतिशत और बढ़ा दिया गया। जुलाहों का भी इस दौरान खूब शोषण किया गया। कम्पनी के मुक्त व्यापार के कारण भारतीय व्यापार चौपट हो गया। बंगाल अकाल के समय बंगाल का गवर्नर कार्टियर (1769-72 ई.) था।

error: Content is protected !!