सौरमंडल : सूर्य, ग्रह, उपग्रह

‘सौरमंडल : सूर्य, ग्रह, उपग्रह’ शीर्षक के लेख में सौरमंडल, सूर्य, ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह, इत्यादि की जानकारी को साझा किया है।

सौरमण्डल –

सूर्य के चारो ओर परिक्रमा करने वाले ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु व अन्य आकाशीय पिंडों को संयुक्त रूप से सौरमंडल कहा जाता है। सूर्य सौरमंडल का केंद्र बिंदु है। यही हमारे सौरमण्डल की ऊर्जा का स्त्रोत है।

सूर्य

यह एक तारा है जो सौरमंडल का प्रमुख है। सौरमंडल की समस्त ऊर्जा का केंद्र सूर्य है। सूर्य की ऊर्जा का प्रमुख श्रोत उसके केंद्र में होने वाली नाभिकीय संलयन क्रिया है। इससे अपार ऊर्जा विमुक्त होती है। यह हमारी आकाशगंगा दुग्धमेखला के केंद्र से लगभग 32000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर है। यह हमारी आकाशगंगा के केंद्र का 250 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से परिक्रमण कर रहा है। हमारे सूर्य का परिक्रमण काल 25 करोड़ वर्ष है। अर्थात इसे हमारी आकाशगंगा के केंद्र का एक चक्कर लगाने में 25 करोड़ वर्ष का समय लगता है। सूर्य की कुल आयु लगभग 10 अरब वर्ष है। अर्थात यह अपने जीवनकाल में आकाशगंगा के 40 चक्कर लगा लेगा। सूर्य का व्यास 13 लाख 92 हजार किलोमीटर है। जो कि पृथ्वी के व्यास से करीब 109 गुना है।

सूर्य की संरचना –

यह एक गैसीय पिण्ड है। इसका ध्रुवीय भाग 35 दिन में और मध्य भाग 25 दिन में परिभ्रमण करता है। सूर्य समस्त सौरमंडल के द्रव्य का 99.999 प्रतिशत है। इसका सबसे आंतरिक व केंद्रीय भाग क्रोड़ कहलाता है, जिसका तापमान 1 करोड़ 50 लाग डिग्री सेल्सियस है। सूर्य के केंद्र में ही नाभिकीय संलयन क्रिया होती है। इसमें हाइड्रोजन के नाभिक मिलकर हीलियम के नाभिक बनाते हैं। इससे अपार ऊर्जा निकलती है। यही ऊर्जा सौरमंडल की ऊर्जा का स्त्रोत है। किरीट का तापमान 27 लाख डिग्री सेल्सियस है। इसके वर्णमंडल का ताप 32400 डिग्री सेल्सियस है। प्रकाशमंडल का ताप 6000 डिग्री सेल्सियस है। सूर्य का घनत्व 1.41 ग्राम प्रति घन सेमी. है। सूर्य की रासायनिक बनावट में 71% हाइड्रोजन, 26.5% हीलियम, तथा 2.5% अन्य तत्व हैं।

परिक्रमण काल –

सूर्य का परिक्रमण काल 25 करोड़ वर्ष है। यह 250 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से परिक्रमा करता है। किसी निश्चित केंद्र के परितः घूमना परिक्रमा कहलाता है।

सूर्य का घूर्णन –

हमारा सूर्य ठोस न होकर एक गैसीय पिण्ड है। इसी कारण इसकी गति में असमानता पायी जाती है। सूर्य अपने अक्ष पर पूरब से पश्चिम की ओर घूमता है। इसका मध्य भाग 25 दिनों में परिभ्रमण करता है। इसके ध्रुवीय भाग का घूर्णन काल 35 दिन है। ध्यान रहे ये 25 और 35 दिन पृथ्वी के दिन के आधार पर हैं। वरना किसी ग्रह व उपग्रह के दिन की गणना उसका घूर्णन काल ही होता है। स्वयं के परितः घूमना परिभ्रमण या घूर्णन कहलाता है।

नाभिकीय संलयन –

हैंस बेथ के अनुसार सूर्य के केंद्र में 10000000°C ताप पर नाभिकीय संलयन क्रिया होती है। इसमें हाइड्रोजन के चार नाभिक मिलकर हीलियम का एक नाभिक बनाते हैं। इससे अपार ऊर्ज विमुक्त होती है। अर्थात नाभिकीय संलयन क्रिया सूर्य की ऊर्जा का स्त्रोत है।

सूर्य का आकार –

हमारे तारे अर्थात सूर्य का व्यास 13 लाख 92 हजार किलोमीटर है। पृथ्वी के व्यास की तुलना में 110 गुना अधिक है। सूर्य हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है। पृथ्वी को सूर्यतप का दो अरबवां भाग मिलता है।

क्रोड़ या कोर –

सूर्य के क्रोड़ या कोर का तापमान 1 करोड़ 50 लाख डिग्री सेल्सियस है।

रासायनिक बनावट –

सूर्य एक गैसीय गोला है। इसके कुल द्रव्यमान का 71% भाग हाइड्रोजन का है। सूर्य के कुल द्रव्यमान का 26.5% हिस्सा हीलियम का है। इसके अतिरिक्त बचा 2.5% हिस्सा अन्य तत्वों का है।

सूर्य का जीवनकाल –

हमारे तारे अर्थात सूर्य का कुल जीवनकाल 10 अरब वर्ष है।

वर्तमान में यह 5 अरब वर्ष पूर्ण कर चुका है।

सूर्य ग्रहण –

जब सूर्य व पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाता है। तब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के कुछ हिस्सों तक नहीं पहुंच पाता। इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहते हैं। सूर्य ग्रहण के समय सूर्य के दिखाई देने वाले भाग को सूर्य किरीट (Corona) कहते हैं। सूर्य किरीट एक्स-किरणों को उत्सर्जित करती है। पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय सूर्य किरीट से ही प्रकाश प्राप्त होता है।

सौर ज्वाला –

कभी-कभी प्रकाशमण्डल से परमाणुओं का तूफान इतना तेजी से निकलता है कि सूर्य की आकर्षण शक्ति को पार कर, आकाश में चला जाता है। इसे सौर ज्वाला (Solar Flares) कहते हैं। जब यह पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करता है, तो हवा के कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश उत्पन्न करता है। जिसे उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव पर देखा जा सकता है। उत्तरी ध्रुव पर इसे ‘अरोरा बोरियालिस’ और दक्षिणी ध्रुव पर इसे ‘अरौरा आस्ट्रेलिस’ कहते हैं।

सौर ज्वाला जहाँ से निकलती है, वहाँ पर काले धब्बे दिखाई पड़ते हैं। इन्हें ‘सौर कलंक (Sun Spots)’ कहा जाता है। ये सूर्य के अपेक्षाकृत ठण्डे भाग हैं। जिनका तापमान 1500 डिग्री सेल्सियस होता है। सौर कलंक से प्रबल चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित होता है। यह विकिरण पृथ्वी पर बेतार संचार व्यवस्था को बाधित करता है। इनके बनने बिगड़ने की प्रक्रिया औसत 11 वर्षों में पूरी होती है। इस प्रक्रिया को सौर कलंक चक्र कहा जाता है।

आदित्य –

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो-ISRO) ने इस उपग्रह का विकास किया था। इसका उद्देश्य सूर्य के कोरोना व उससे होने वाले उत्सर्जन के रहस्यों को सुलझाना था।

सूर्य का तापमान कितना है ?

  • सूर्य की सतह का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस है।
  • सौर कलंक का तापमान 1500 डिग्री सेल्सियस होता है।
  • सूर्य के केंद्र का तापमान 1.5 करोड़ डिग्री सेल्सियस होता है।

पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी –

  • सूर्य की पृथ्वी से न्यूनतम दूरी कितनी है – 14.7 करोड़ किलोमीटर
  • पृथ्वी की सूर्य से अधिकतम दूरी कितनी है – 15.21 करोड़ किलोमीटर
  • सूर्य की पृथ्वी से औसत दूरी कितनी है – 14.98 किलोमीटर

सूर्य संबंधी प्रश्न उत्तर –

सौर ज्वाला को सूर्य के उत्तरी ध्रुव पर औरोरा बोरियालिस और दक्षिणी ध्रुव पर औरोरा आस्ट्रेलिस कहते हैं।

सूर्य का केंद्रीय दबाव कितना है – 1 करोड़ एटमास्फेयर

इसरो ने सूर्य के कोरोना अध्ययन हेतु ‘आदित्य’ उपग्रह को स्थापित किया था।

सूर्य का व्यास कितना है – 13,92,000 किलोमीटर

सूर्य पृथ्वी से कितना बड़ा है – 13 लाख गुना बड़ा

21वीं सदी का सबसे लम्बा पूर्ण सूर्य ग्रहण 22 जुलाई 2009 को पड़ा था।

सूर्य का द्रव्यमान कितना है – पृथ्वी से 3,32,000 गुना

सूर्य का तलीय गुरुत्व कितना है – पृथ्वी से 28 गुना

पृथ्वी पर आने वाले ज्वार भाटे में सूर्य व चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का अनुपात 11:5 है।

सूर्य का केंद्रीय घनत्व कितना है – 100 ग्राम प्रति घन सेमी.

पृथ्वी तक सूर्य का प्रकाश पहुंचने में 498 सेकेंड (8 मिनट 18 सेकेंड) का समय लगता है।

सूर्य की आयु कितनी है – लगभग 50 करोड़ वर्ष

सामान्यतः तारे का संभावित जीवनकाल कितना होता है – 100 करोड़ वर्ष

सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक आने में कितना समय लगता है – 8 मिनट 18 सेकेण्ड

सूरज का जो भाग हमें आँखों से नजर आता है उसे प्रकाशमण्डल कहते हैं।

सूर्यग्रहण के समय दिखने वाला सूर्य का बाह्यतम भाग कोरोना (Corona) कहलाता है।

चन्द्रमा

‘चंद्रमा (Moon)’ पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। चंद्रमा को जीवश्म ग्रह भी कहा जाता है। पृथ्वी से चंद्रमा की औसत दूरी 3,84,365 किलोमीटर है। इसका परिभ्रमण पथ दीर्घ वृत्ताकार है। पृथ्वी के अक्ष के साथ चंद्रमा का अक्ष तल 58.48 डिग्री का अक्ष कोण बनाता है। चंद्रमा भी पृथ्वी के ही समान 460 करोड़ वर्ष पुराना है।

सेलेनोलॉजी –

चंद्रमा (Moon) की सतह व उसकी आंतरिक स्थिति का अध्ययन करने वाला विज्ञान ‘सेलेनोलॉजी’ कहलाता है।

चन्द्रमा का परिक्रमण व घूर्णन –

चंद्रमा पृथ्वी की एक परिक्रमा करीब 27 दिन, 8 घंटे में पूरी कर लेता है। अर्थात चंद्रमा को अपनी पूर्व स्थिति में आने में 27 दिन, 7 घंटे, 43 मिनट, 11.6 सेकंड का समय लगता है। इतना ही समय चंद्रमा को अपने अक्ष पर घूमने (घूर्णन) में लगता है। यही कारण है कि पृथ्वी से चंद्रमा का सदैव एक ही भाग नजर आता है। पृथ्वी से चंद्रमा के 57 प्रतिशत भाग को देखा जा सकता है।

लीबनिट्ज पर्वत –

लीबनिट्ज पर्वत चंद्रमा का सर्वोच्च (11668 मीटर) पर्वत है। यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अवस्थित है।

शांति सागर –

चंद्रमा (Moon) पर धूल के मैदान को शांति सागर के नाम से जाना जाता है। यह चंद्रमा का पिछला भाग है जो अंधकारमय रहता है।

व्यास व द्रव्यमान –

चंद्रमा का व्यास 3480 किलोमीटर है। चंद्रमा का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का 1/81 है।

सुपर मून –

चंद्रमा का पृथ्वी के सबसे निकट होने की स्थिति को सुपरमून कहा जाता है। इसे ‘पेरिजी फुल मून‘ के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थिति में चांद अन्य दिनों की अपेक्षा 14 प्रतिशत अधिक बड़ा नजर आता है। साथ ही यह 30 प्रतिशत अधिक चमकीला भी दिखता है।

ब्लू मून –

जब एक ही महीनें में दो पूर्णमासी पड़ती हैं तो दूसरी पूर्णिमा का चांद ब्लू मून कहा जाता है। दो पूर्णमासी के बीच 31 दिन से कम समय होने पर यह स्थिति बनती है। ऐसी स्थिति 2-3 साल में बनती है।

ब्लू मून ईयर –

साल में दो ब्लू मून होने की स्थिति में वह साल ब्लू मून ईयर कहलाता है।

ग्रह –

सौरमंडल में कुल आठ ग्रह हैं। बृहस्पति और शनि इन आठों ग्रहों के कुल द्रव्यमान का 92 प्रतिशत हैं। सूर्य से दूरी के क्रम में – बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरु, शनि, अरुण, वरुण। बड़े से छोटे क्रम में – बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण, पृथ्वी, शुक्र, मंगल, बुध।

ग्रह की परिभाषा –

  • ग्रहों के पास स्वयं का प्रकाश नहीं होता। ये अपने तारे के प्रकाश को परावर्तित करके प्रकाशित होते हैं।
  • कालानुक्रम में लगभग गोलाकार प्राप्त कर चुका हो।
  • किसी अन्य ग्रह के पथ को न काटता हो।
  • इसकी कक्षा वृत्ताकार होनी चाहिए।
  • सूर्य के अतिरिक्त अन्य किसी ग्रह की परिक्रमा न करता हो।
  • अपना गुरुत्वाकर्षण हो।

उपग्रह –

ये ग्रहों का चक्कर लगाने वाले आकाशीय पिंड हैं। बुध व शुक्र ग्रह का कोई उपग्रह नहीं है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा है।

बौने ग्रह –

प्लूटो एक बौना ग्रह है। 2006 से पहले प्लूटो को भी ग्रह माना जाता था। परंतु 24 अगस्त 2006 को अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ (आई. ए. यू.) की बैठक में इसका ग्रह का दर्जा खत्म कर दिया गया। यह बैठक प्राग (चेक गणराज्य) में हुई थी। प्लूटो का नया नाम ‘134340‘ रखा गया है। क्योंकि प्लूटो की कक्षा वृत्ताकार नहीं है। साथ ही यह वरुण ग्रह के परिक्रमण पथ से होकर गुजरता है। प्लूटो की खोज 1930 ई. में  ‘क्लाड टामवो’ ने की थी। सेरस एक अन्य बौना ग्रह है। इसकी खोज इटली के खगोलशास्त्री पियाजी ने की थी। इनके अतिरिक्त चेरॉन, व 2003 UB 313 (इरिस) अन्य बौने ग्रह हैं।

क्षुद्र ग्रह –

ये मंगल व बृहस्पति (गुरु) ग्रह के बीच परिक्रमा कर रहे आकाशीय पिंड हैं। इनका निर्माण ग्रहों के विस्फोट के फलतः हुआ है। क्षुद्र ग्रह के किसी ग्रह से टकराने से विशाल गर्त का निर्माण होता है। पृथ्वी पर महाराष्ट्र में क्षुद्र ग्रह के टकराने से लोनार झील का निर्माण हुआ।

धूमकेतु –

ये गैस व धूल कड़ों का संग्रह मात्र हैं। इन्हें धूमकेतु या पुच्छल तारे कहा जाता है।

जब यह सूर्य की ओर अग्रसर होता है तो चमकने लगता है।

उल्का –

ये प्रकाश की चमकीली धारियां हैं जो क्षणभर के लिए आकाश में नजर आती हैं।

ये उल्काओं व धूमकेतुओं द्वारा पीछे छोड़े गए धूल कण हैं।

सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों का क्रम (निकट से दूर) –

बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरु, शनि, अरुण, वरुण।

आकार के अनुसार ग्रह (बड़े से छोटे) –

बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण, पृथ्वी, शुक्र, मंगल, बुध।

घनत्व के अनुसार ग्रहों का क्रम (अधिक से कम) –

शुक्र, मंगल, वरुण, गुरु, अरुण, शनि।

द्रव्यमान के अनुसार ग्रहों का क्रम (ज्यादा से कम) –

गुरु, शनि, वरुण, अरुण, पृथ्वी, शुक्र, मंगल, बुध।

परिक्रमण वेग के अनुसार ग्रहों का क्रम (ज्यादा से कम) –

वरुण, अरुण, शनि, बृहस्पति, मंगल, पृथ्वी, शुक्र, बुध।

परिभ्रमण वेग के अनुसार ग्रहों का क्रम (ज्यादा से कम) –

शुक्र, बुध, मंगल, पृथ्वी, वरुण, अरुण, शनि, गुरु।

अक्ष पर झुकाव के आधार पर ग्रहों का क्रम (बढ़ते क्रम में)

शुक्र, बृहस्पति, बुध, पृथ्वी, मंगल, शनि, वरुण, अरुण।

अपने अक्ष पर सर्वाधिक झुकाव के कारण अरुण को लेटा हुआ ग्रह कहा जाता है।

सौरमंडल के ग्रह

सौरमण्डल में कुल 8 ग्रह ‘बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण‘ हैं। इन सभी की विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है –

बुध (Mercury)-

यह सूर्य का सबसे निकटतम ग्रह है। यह सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। इसका अपना कोई उपग्रह नहीं है। इसमें चुम्बकीय क्षेत्र का होना इसका विशिष्ट गुण है। यह सबसे कम समय में सूर्य का चक्कर लगा लेता है। इसका दिन व रात का तापांतर सर्वाधिक (600° C) है। यहां दिन अत्यधिक गर्म व रातें बर्फीली होती हैं। इसका दिन का तापमान 427° C और रात का -173° C हो जाता है।

शुक्र (Venus) –

यह पृथ्वी का निकटतम ग्रह है। इसका भी अपना कोई उपग्रह नहीं है। यह सौरमंडल का सबसे गर्म व चमकीला ग्रह है। धनत्व, आकार, व व्यास में समानता के कारण इसे पृथ्वी की बहन की संज्ञा दी गई है। इसे ‘साँझ का तारा’ या ‘भोर का तारा’ भी कहा जाता है। अन्य ग्रहों के विपरीत यह अपने अक्ष पर पूरब से पश्चिम की ओर परिभ्रमण करता है। अर्थात इस ग्रह पर सूर्योदय पश्चिम में और सूर्यास्त पूरब में होता है।

पृथ्वी

सौरमण्डल में सूर्य से दूरी के क्रम में पृथ्वी तीसरे स्थान पर है। यह सौरमण्डल का एकमात्र ग्रह है, जिसपर जीवन है।

परिक्रमण काल (Revolution)-

पृथ्वी द्वारा सूर्य का एक चक्कर लगाने में लगे समय को पृथ्वी का परिक्रमण काल कहा जाता है। इसे ही पृथ्वी का सौर वर्ष या साल कहते हैं। पृथ्वी सूर्य का एक परिक्रमा 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट व 45.51 सेकेंड में लगाती है। साल में 365 दिन होते हैं। बचे हुए 5 घंटे, 48 मिनट व 45.51 सेकेंड को चार साल बाद मिलाकर लीप ईयर बना दिया जाता है। अर्थात हर चार साल बाद ‘29 फरवरी‘ की तिथि बढ़ा के इसे पूरा किया जाता है। 107160 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से पृथ्वी सूर्य का परिक्रमा करती है।

पृथ्वी का घूर्णन काल (Rotation) –

जब पृथ्वी अपने अक्ष के परितः चक्कर लगाती है। इसे पृथ्वी का घूर्णन या दैनिक गति कहते हैं। पृथ्वी को अपने अक्ष पर एक चक्कर लगाने में 23 घंटे, 56 मिनट 4.091 सेकेंड का समय लगता है। जिसे सामान्यतः 24 घंटे मानकर प्रयोग किया जाता है। पृथ्वी 1610 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से अपने अक्ष पर घूमती है। पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। इसी कारण हमें सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर जाता नजर आता है।

अपसौर (Aphelion)-

पृथ्वी (Earth) की सूर्य से सर्वाधिक दूरी को अपसौर कहा जाता है। यह स्थिति 4 जुलाई को होती है। प्रत्येक वर्ष 4 जुलाई को पृथ्वी सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर होती है।

उपसौर (Perihelion)-

पृथ्वी (Earth) का सूर्य के सबसे निकट होने की स्थित को उपसौर कहा जाता है। यह स्थिति 3 जनवरी को बनती है। हर साल 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के सबसे निकट होती है।

सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की स्थिति –

  • 21 मार्च को सूर्य की किरणें सीधी विषुपत रेखा पर पड़ती हैं।
  • 21 जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं। इस स्थिति को ग्रीष्म अयनांत कहते हैं।
  • 23 सितंबर को फिर सूर्य की किरणें सीधी विषुपत रेखा पर पड़ती हैं।
  • 22 दिसंबर को सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी पड़ती हैं। इस स्थिति को शीत अयनांत कहते हैं।

पृथ्वी का व्यास –

हमारी पृथ्वी का ध्रुवीय व्यास 12714 किलोमीटर है। इसका विषुवतीय व्यास 12756 किलोमीटर है। पृथ्वी आकार में सौरमंडल का पांचवां सबसे बड़ा ग्रह है।

पृथ्वी का वायुमंडल –

हमारी पृथ्वी के वायुमंडल की कुल 5 परतें हैं। नीचे से ऊपर की ओर – क्षोभंडल, समतापमंडल, मध्यमंडल, आयनमंडल, व बाह्यमंडल।

वायुमंडल में गैसें-

पृथ्वी (Earth) के वायुमंडल में विभिन्न गैसों का भंडार पाया जाता है। परंतु इसके वायुमंडल का 99 प्रतिशत भाग सिर्फ दो गैसों नाइट्रोजन व ऑक्सीजन का ही बना है। पृथ्वी के वायुमंडल में 78.03 प्रतिशत नाइट्रजोन गैस है। इसके वायुमंडल में 20.99 प्रतिशत ऑक्सीजन है। आर्गन गैस 0.93 प्रतिशत, कार्बन डाईआक्साइड 0.03 प्रतिशत। इनके अतिरिक्त हीलियम, निऑन, क्रिप्टन, जेनन जैसी अक्रिय गैसें भी हैं।

ऋतु परिवर्तन –

पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन का कारण इसका अक्ष पर झुकाव व सूर्य के सापेक्ष स्थिति है।

पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है।

वार्षिक गति के कारण पृथ्वी पर दिन रात छोटे-बड़े होते हैं।

ज्वार भाटा –

समुद्र के जल का ऊपर की ओर उठकर आगे बढ़ना ज्वार कहलाता है। समुद्र के जल का नीचे की ओर गिरकर पीछे हटना भाटा कहलाता है। यह सूर्य व चंद्रमा की आकर्षण शक्ति के फलतः बनता है। इससे उत्पन्न तरंगों को ज्वारीय तरंगें कहा जाता है। हर 24 घंटे में हर स्थान पर दो बार ज्वार भाटा आता है। अर्थात हर स्थान पर 12 घंटे बाद ज्वार भाटा आता है। सूर्य, पृथ्वी व चंद्रमा के एक सीध में होने पर तीव्र ज्वार आता है। इस स्थिति को सिजिगी (Syzygy) कहा जाता है। यह स्थिति अमावस्या व पूर्णमासी के दिन बनती है। इसके विपरीत सूर्य, चंद्रमा व पृथ्वी के समकोण पर होने पर निम्न ज्वार उत्पन्न होता है।

पृथ्वी से संबंधित तथ्य –
  • पृथ्वी की सूर्य से औसत दूरी 14 करोड़, 95 लाख, 98 हजार, 500 किलोमीटर है।
  • सूर्य के बाद पृथ्वी का निकटतम तारा प्राक्सिमा सेंचुरी है।
  • पृथ्वी पर देशांतरों के बीच की दूरी को गोरे कहा जाता है।
  • पृथ्वी पर कुल 24 टाइम जोन हैं।
  • चंद्रमा का सूर्य व पृथ्वी के बीच आ जाना सूर्य ग्रहण कहलाता है।
  • पृथ्वी का सूर्य व चंद्रमा के बीच आ जाना चंद्र ग्रहण कहलाता है।
  • पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा है।

मंगल (Mars)-

मंगल ग्रह को लाल ग्रह के नाम से भी जाना जाता है। इसके लाल रंग का कारण आयरन ऑक्साइड के कण हैं। इसके दो उपग्रह फोबोसडीमोस हैं। इसके दिन का मान व अक्ष का झुकाव पृथ्वी के समान है। यह भी 24 घंटे में अपने अक्ष पर एक चक्कर लगा लेता है। इस ग्रह पर पृथ्वी के समान ऋतु परिवर्तन होता है। यह 687 दिनों में सूर्य की परिक्रमा कर लेता है। सौरमंडल का सबसे ऊँचा पर्वत निक्स ओलम्पिया मंगल ग्रह पर ही है। इसकी ऊँचाई माउंट एवरेस्ट से लगभग तीन गुनी है। पृथ्वी के अतिरिक्त यही एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसपर जीवन की प्रत्याशा की जा रही है।

बृहस्पति (गुरु/Jupiter) –

यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका घूर्णनकाल सबसे कम है। यह अपनी धुरी पर मात्र 10 घंटे में एक चक्कर लगा लेता है। परंतु सूर्य का परिक्रमा करने में इसे 12 वर्ष लग जाते हैं। गैनिमीड इसका उपग्रह है। गैनिमीड सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह है।

शनि (Saturn)-

यह सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। इसकी प्रमुख विशेषता इसके सतह के चारो ओर वलय (मोटी प्रकाश की पट्टी) का होना है। शनि का घनत्व सारे ग्रहों से कम है। टाइटन इसका सबसे बड़ा उपग्रह है। यह सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह है। आकार में टाइटन बुध ग्रह के बराबर है। डेनमार्क के खगोलशास्त्री क्रिश्चियन हाइजोन ने साल 1665 ई. में टाइटन को खोजा था। यह सौरमंडल का एकमात्र ऐसा उपग्रह है जिसका पृथ्वी के समान अपना सघन वायुमंडल है।

अरुण (Uranus)-

यह सौरमंडल का तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है। इसकी खोज साल 1781 ई. में विलियम हर्शेल ने की थी। टाइटेनिया इसका सबसे बड़ा उपग्रह है। अरुण अत्यधिक ठंडा ग्रह है। इसका तापमान -215° C है। यह अपनी धुरी पर सूर्य की ओर इतना अधिक झुका है कि इसे लेटा हुआ ग्रह कहा जाता है। यह अपनी धुरी पर पूरब से पश्चिम की ओर परिभ्रमण करता है। अर्थात यहां सूर्योदय पश्चिम में और सूर्यास्त पूरब में होता है। इसके सभी उपग्रह भी पृथ्वी के विपरीत दिशा में परिभ्रमण करते हैं।

वरुण (Neptune)-

यह सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर अवस्थित ग्रह है। यह हरे रंग का ग्रह है। इसके चारो ओर बहुत ठंडी मेथेन गैस के बादल छाये हुए हैं। ट्रिटॉन इसका प्रमुख उपग्रह है। इसकी खोज जर्मन खगोलशास्त्री जोहॉन गाले ने साल 1846 ई. में की थी।

सौरमंडल संबंधी तथ्य –

  • तारे के प्रकाश का परावर्तन पिंड के वातावरण की मात्रा व प्रकृति पर निर्भर करता है।
  • शुक्र व अरुण दो ऐसे ग्रह हैं जो पूर्व से पश्चिम की ओर परिभ्रमण करते हैं। अर्थात इन पर सूर्योदय पश्चिम में और सूर्यास्त पूरब में होता है।
  • तारे व ग्रहों के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल इन्हें परिक्रमण करने देता है।
  • अपने अक्ष पर घूमना परिभ्रमण कहलाता है।
  • अपने तारे या ग्रह के चारो ओर परिक्रमा करना परिक्रमण कहलाता है।
  • प्रकाशमंडल से सूर्य का व्यास निर्धारित होता है।

ब्लैक होल (Black Hole)

‘ब्लैक होल (Black Hole)’ या कृष्ण विविर अंतरिक्ष की वह घटना है जिससे किसी तारे का अंत होता है। आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं ब्लैकहोल के बारे में विस्तार से –

ब्लैक होल (Black Hole) की संकल्पना –

जॉन माइकल ने साल 1784 ई. में ब्लैक होल का आईडिया दिया।

ब्लैक होल शब्द का पहली बार प्रयोग 1967 ई. में अमेरिका के खलोलशास्त्री जॉन व्हीलर ने किया।

दो या दो से अधिक ब्लैक होल्स के समूह को रॉग ब्लैकहोल कहा जाता है।

ब्लैक होल (Black Hole) क्या है ?

ब्लैकहोल अंतरिक्ष का वो स्थान है जहाँ से जाकर कुछ भी बापस नहीं आता। ये बेहद शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण का क्षेत्र है जिस पर भौतिक विज्ञान का कोई नियम लागू नहीं होता। प्रकाश भी यहाँ से बापस नहीं आ सकता। ब्लैक होल के चारो तरफ एक सीमा होती है जिसे ‘क्षितिज’ कहा जाता है। जब किसी तारे पर अवस्थित सारा हाइड्रोजन समाप्त (हीलियम में परिवर्तित) हो जाता है तो वह तारा ब्लैकहोल में परिवर्तित हो जाता है। ब्लैकहोल को देखा नहीं जा सकता। क्योंकि किसी वस्तु को देखने के लिए उस पर प्रकाश तरंगों का टकराकर बापस आना अनिवार्य है।

तारे का जीवनचक्र –

आकाशगंगा के संचरण से ब्रह्माण में फैली गैसें प्रभावित होती हैं। गुरुत्वाकर्षण के कारण वे परस्पर एकत्रित होने लगती हैं। कुछ समय बाद उनके केंद्र में विद्यमान हाइड्रोजन का हीलियम में परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाना है। इस क्रिया को नाभिकीय संलयन क्रिया कहा जाता है। यही अवस्था है जब तारे का निर्माण हो जाता है। हाइड्रोजन के हीलियम में निरंतर परिवर्तित होने के कारण एक दिन तारे के केंद्र का हाइड्रोजन समाप्त हो जाता है। अब केंद्र में अवस्थित हीलिमय कार्बन व अन्य भारी पदार्थों में बदलने लगता है।

इसके फलतः तारे में भयानक विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा कहा जाता है।

अंत में तारा ब्लैकहोल में परिवर्तित होकर समाप्त हो जाता है।

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