शिवाजी और उनकी अष्टप्रधान परिषद

मराठा शिवाजी का जन्म 10 अप्रैल 1627 ई. को पूना के ‘शिवनेर किले’ में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘शाहजी भोसले’ और माता का नाम ‘जीजाबाई’ था। इनकी माता देवगिरि के यादवों के वंश से थीं। शाहजी के मित्र ‘दादा कोंडदेव’ शिवाजी के संरक्षक बने। तुकोबाई मोहिते शिवाजी की सौतेली माँ थीं, जिनका एक पुत्र व्यंकोजी (एकोजी) था। 1654 ई. में पोलीगर मे अप्पाजी से हुए युद्ध में शिवाजी के बड़े भाई शंभाजी की मृत्यु हो गई। 1640 ई. में मात्र 13 वर्ष की अवस्था में शिवाजी का विवाह साईबाई के साथ हुआ।

शिवाजी के अभियान –

शिवाजी ने अपना पहला अभियान बीजापुर के आदिलशाही राज्य के विरुद्ध प्रारंभ किया। सर्वप्रथम 1643 ई. में इन्होंने सिंहगढ़ का किला जीता। इसके बाद 1646 ई. में तोरण व रायगढ़ के किले अपने अधिकार में ले लिए। 1647 ई. में इन्होंने कोंडाना के किले को जीता। इस विजय के उपरांत बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी भोसले को बंदी बना लिया। 1647 ई. में ही इन्होंने ‘चाकर की जीत’ हासिल की। 1648 ई. में इन्होंने शाहजी को मुक्त कराने के लिए कोंडाना के किले को छोड़ दिया। 1654 ई. में बीजापुर से पुरंदर के किले को जीत लिया। 1656 ई. में जावली को एक मराठा सरदार चंद्रराव मोरे से जीता। इसी साल जुन्नार किले को जीता। यहाँ से इन्हें बेहद धन की प्राप्ति हुई।

साल 1657 ई. में पहली बार इनकी मुलाकात मुगल शासक औरंगजेब से हुई। इसी साल इन्होंने कोंकण क्षेत्र के भिवण्डी, कल्याण व माहुली किलों को जीत लिया। जनवरी 1664 ई. की सूरत की प्रथम लूट में शिवाजी को 1 करोड़ रुपये के धन की प्राप्ति हुई। सूरत की दूसरी लूट (1670 ई.) में शिवाजी को 66 लाख रुपये की संपत्ति प्राप्त हुई। 1671 ई. में इन्होंने फतेह उल्ला खां से सल्हेर के दुर्ग को जीता। 1673 ई. में बाबू खां से पन्हाला दुर्ग को जीता।

अफजल खाँ से संघर्ष –

  • साल 1659 ई. में बीजापुर ने अफजल खाँ को शिवाजी का खात्मा करने के लिए भेजा।
  • इसने शिवाजी से मिलने हेतु वार्ता करने अपने दूत को भेजा।
  • प्रतागढ़ के जंगल में दोनों के मिलने का समय निर्धारित किया गया।
  • मिलने पर अफजल खाँ ने गले लगने के बहाने इन्हें मारना चाहा।
  • परंतु अफने बघनख से इन्होंने उसे ही मार डाला।
  • इसके बाद दोनों ओर के सैनिकों में लड़ाई शुरु हो गयी औऱ मारकाट मच गई।

शाइस्ता खाँ से संघर्ष –

दक्षिण में इनके दमन हेतु औरंगजेब ने अपने मामा शाइश्ता खाँ को नियुक्त किया। इसने बीजापुर के साथ मिलकर शिवाजी के विरुद्ध कुछ सफलता पाई। इसने शिवाजी से कई स्थलों को जीत लिया। अप्रैल 1663 ई. में शिवाजी ने पूना पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में शाइस्ता खाँ ने अपना अंगूठा व एक पुत्र खो दिया। इस हार के बाद औरंगजेब से शाइस्ता खाँ को बापस बुला लिया। औरंगजेब ने अब इसकी जगह अपने पुत्र मुअज्जम को दक्षिण भेजा।

राजा जयसिंह –

मुअज्जम के बाद औरंगजेब ने जयसिंह को असीम अधिकार देकर दक्षिण भेजा।

इसने शिवाजी को संधि करने पर मजबूर कर दिया।

पुरंदर की संधि (22 जून 1665 ई.)

पुरंदर की संधि शिवाजी और राजा जयसिंह के बीच हुई।

इस संधि के समय मनूची भी वहीं पर उपस्थित था। पुरंदर की संधि की शर्तें –

  1. शिवाजी के 35 किलों में से 23 मुगलों को देने होंगे।
  2. शिवाजी को मुगलों की ओर से युद्ध व सेवा करेंगे।
  3. इनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में 5000 का मनसब प्रदान किया जाएगा।

12 मई 1966 ई. को शिवाजी मुगल दरबार में पहुंचे। इनकी सुरक्षा की गारंटी जयसिंह के पुत्र रामसिंह ने ली।

दरबार ने इन्हें 5000 के मनसबदारों के बीच खड़ा किया गया। इससे ये क्रद्ध हो गए और नाराजगी जताई।

फलस्वरूप इन्हें जयपुर के किले में नजरबंद कर लिया गया। यहाँ ये बीमार पड़ गए।

इसी दौरान अपने हमशक्ल हीरोजी फर्जंद को बिस्तर पर लिटा दिया। स्वयं मिठाई की टोकरियों में छिपकर भाग गए।

12 सितंबर 1666 को ये रायगढ़ किले पर बापस पहुंच गए।

वाणी डिंडोरी का युद्ध (कंचन मंचन का दर्रा) –

1670 ई. में सूरत की दूसरी लूट से बापस आ रहे शिवाजी का सामना मुगल सेना से हुआ। दाउद खाँ व इखलास खाँ मुगल सेना के नेतृत्वकर्ता थे। इस युद्ध में इन्होंने लूट के माल को मुगलों से बचा लिया।

शिवाजी का राज्याभिषेक (6 जून 1674 ई.)

शिवाजी का राज्याभिषेक 6 जून 1674 ई. को रायगढ़ में हुआ। इनका राज्याभिषेक काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगा भट्ट (विश्वेश्वर भट्ट) ने किया। हेनरी ऑक्साइडन इस मौके पर उपस्थित था। इस दौरान शिवाजी ने सोने व ताँबे कि सिक्के जारी किए। राज्याभिषेक के 11 दिन बाद 17 जून 1674 ई. को इनकी माता जीजाबाई का देहांत हो गया। इसके बाद 24 सितंबर 1674 ई. को पुनः इन्होंने राज्याभिषेक कराया। इसे निश्चलपुरी गोसाईं नामक तांत्रिक ने संपन्न कराया।

कर्नाटक अभियान (1676-78 ई.)-

यह शिवाजी का आखिरी अभियान सिद्ध हुआ। साल 1677 ई. में हुसैन खां भियाड़ा से येलबर्गा जीता। 1678 ई. में ‘जिजीं का किला’ जीता गया। जिंजी विजय शिवाजी की आखरी विजय थी।

शिवाजी के अंतिम वर्ष –

इनके अंतिम दो वर्ष बड़ी परेशानी के गुजरे। इनका पुत्र शम्भाजी पत्नी येशुबाई के साथ निकल भागा। वह दक्कन के सूबेदार दिलेरखाँ से जा मिला। एक वर्ष बाद वह मराठा साम्राज्य में बापस लौट आया। इन कारणों का शिवाजी पर बुरा असर पड़ा और वे बीमार पड़ गए। 3 अप्रैल 1680 ई. को शिवाजी की मृत्यु हो गई। इनका अंतिम संस्कार पुत्र राजाराम ने किया। इस वक्त सम्भाजी पन्हाला के किले में कैद थे। इनकी सात पत्नियों में से एक पुतलीबाई इनकी मृत्यु के साथ सती हुई थीं।

शिवाजी की सात पत्नियां –
  1. साईबाई निम्बालकर
  2. सोयराबाई
  3. पुतलीबाई
  4. लक्ष्मीबाई
  5. गुनवन्ता बाई
  6. सगुनाबाई
  7. सकवारबाई

शिवाजी की ‘अष्टप्रधान परिषद’

शिवाजी ने अपनी प्रशासनिक व्यवस्था में सहायतार्थ आठ मंत्रियों की एक परिषद गठित की थी। आठ मंत्रियों की इस परिषद को ‘अष्टप्रधान परिषद’ के रूप में जाना जाता है। इसके सभी मंत्रियों को विभाग प्रदान किये गए थे। यह मंत्री अपने विभाग का प्रमुख होता था। परंतु इस परिषद का कोई भी पद वंशानुगत नहीं था।

  1. पेशवा (मुख्य प्रधान) – संपूर्ण राज्य के शासन की देखभाल करना इसका प्रमुख कार्य था। यह राजा की अनुपस्थिति में उसके कार्य भी करता था। सरकारी दस्तावेजों पर राजा हस्ताक्षर के बाद पेशवा के हस्ताक्षर व मोहर आवश्यक थी।
  2. मंत्री (वाकयानवीस) – दरबारी लेखक के रूप में राजा के कार्यों को लिपिबद्ध करता था। राजा की सुरक्ष व्यवस्था इसी का कार्य था। इसके अतिरिक्त गुप्तचर व सूचना विभाग की देखरेख भी यही करता था।
  3. सुमंत (दबीर) – यह साम्राज्य का विदेश मंत्री हुआ करता था।
  4. अमात्य (पंत) – यह राज्य का वित्त मंत्री था। यह राज्य की आय व व्यय से राजा को अवगत कराता था। शिवाजी के आमात्य रामचंद्र थे।
  5. सचिव – पत्राचार से संबंधित विभाग था। इसका मुख्य कार्य सरकारी दस्तावेजों को तैयार करना था।
  6. सेनापति (सर ए नौबत) – सेना संबंधी कार्य जैसे – भर्ती, संगठन व संख्याबल इत्यादि की व्यवस्था करना।
  7. न्यायाधीश – यह राजा के बाद न्याय का सर्वोच्च अधिकारी होता था। दीवानी व फौजदारी दोनो ही मामलों का न्याय हिंदू कानूनों के आधार पर किया जाता था।
  8. पंडितराव (सद्र) – यह धार्मिक मामलों में राजा का प्रमुख सलाहकार था। दान व धर्म के कार्य यही सुनिश्चित करता था।

कांग्रेस के अधिवेशन, स्थान व अध्यक्ष

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 ई. को हुई थी। पहले इसका नाम ‘भारतीय राष्ट्रीय संघ’ था। बाद में दादाभाई नौरोजी के कहने पर इसका नाम बदलकर ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ कर दिया गया। पहले इसका अधिवेशन पूना(पुणे) में होना तय हुआ था। परंतु वहाँ प्लेग फैल गया। तो इसका अधिवेशन बम्बई में किया गया। स्थापना के बाद इसके अधिवेशन हर साल होने लगे। कांग्रेस का पहला अधिवेशन 1885 में और अंतिम अधिवेशन 1950 में हुआ था।

कांग्रेस का पहला अधिवेशन

  • वर्ष – 1885 ई.
  • स्थान – बम्बई
  • अध्यक्ष – व्योमेश चंद्र बनर्जी

यह बम्बई के ग्वालिया टैंक स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में 28 से 31 दिसंबर 1885 के बीच हुआ था। इसकी अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी ने की थी। कांग्रेस के पहले अधिवेशन में 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इनमें से 38 बम्बई प्रेसीडेंसी से, 21 मद्रास प्रेसीडेंसी से, 3 बंगाल से, 7 प्रतिनिधि उत्तर प्रदेश व अवध से, 3 प्रतिनिधि पंजाब से शामिल हुए थे। इनमें अधिकतर प्रतिनिधि पेशे से वकील व पत्रकार थे।

कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन

  • वर्ष – 1886 ई.
  • स्थान – कलकत्ता
  • अध्यक्ष – दादाभाई नौरोजी

कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन 28 दिसंबर 1886 ई. को कलकत्ता में हुआ था। कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की थी। इस अधिवेशन में 434 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। कांग्रेस में ‘नेशनल कांफ्रेंस’ का विलय इसी अधिवेशन में हुआ था। सभी प्रमुख केंद्रों में कांग्रेस स्टैण्डिंग कमेटी के गठन का निर्णय इसी अधिवेशन में लिया गया। सम्मेलन में आए हुए व्यक्तियों को वायसराय डफरिन ने व्यक्तिगत रूप से ‘उद्यान भोज’ दिया। सुरेंद्रनाथ बनर्जी को निमंत्रण नहीं दिया गया था।

कांग्रेस का तीसरा अधिवेशन

  • वर्ष – 1887 ई.
  • स्थान – मद्रास
  • अध्यक्ष – बदरुद्दीन तैयबजी

कांग्रेस का तीसरा अधिवेशन 27 से 28 दिसंबर 1887 ई. के मद्रास में हुआ। कांग्रेस के तीसरे अधिवेश की अध्यक्षता बदरुद्दीन तैयबजी ने की थी। ये कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाले प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष बने। इस अधिवेशन में कुल 607 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन के कार्य के संचालन का भार एक कमेटी को सौंपा गया। आगे चलकर यह ‘विषय निर्धारिणी समिति’ कहलाई। पहली बार डफरिन ने कांग्रेस की आलोचना की। बदरुद्दीन तैयबजी ने ‘कांग्रेसी बनो’ का नारा दिया। इसी अधिवेशन में पहली बार आम जनता से कांग्रेस में शामिल होने की अपील की गई। साथ ही सरकारी अधिकारियों की आलोचना की गई। महादेव गोविंद राणाडे ने इसी समय से कांग्रेस के ही मंच से ‘सोशल कांफ्रेंस’ के आयोजन की शुरुवात की।

इस अधिवेशन मे भाषण भारतीय भाषाओं में भी दिये गए। तंजौर के म्युनसिपल कमिश्नर ‘मूकनासरी’ ने तमिल भाषा में भाषण दिया। ए. ओ. ह्मयूम के विरोध के बावजूद इस अधिवेशन में आर्म्स एक्ट के खिलाफ प्रस्ताव पास हुआ।

कांग्रेस का चौथा अधिवेशन

  • वर्ष – 1888 ई.
  • स्थान – इलाहाबाद
  • अध्यक्ष – जॉर्ज यूले

कांग्रेस का चौथा अधिवेशन 28 से 29 दिसंबर 1888 ई. को इलाहाबाद में हुआ। तब इलाहाबाद उत्तर पश्चिम प्रांत की राजधानी थी। यहाँ के गवर्नर ऑकलैंड कालविन ने पूरी कोशिश की कि ये अधिवेशन यहाँ पर न हो सके। लेकिन राजा दरभंगा ने यहाँ ‘लोथर कौंसिल’ खरीदकर कांग्रेस को दे दी। इस अधिवेश की अध्यक्षता जॉर्ज यूले ने की। कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाले प्रथम अंग्रेज बने। इन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा ‘कांग्रेस जन का नारा है कि हम पहले भारतीय हैं, तदोपरांत हिंदू, मुस्लिम, सिख व ईसाई’। सर सैय्यद अहमद खाँ और वाराणसी के राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद ने इलाहाबाद अधिवेशन का विरोध किया था।

इस अधिवेशन में 1248 सहस्यों ने भाग लिया था। लाला लाजपतराय पहली बार कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए और हिंदी में भाषण दिया। इसी अधिवेशन मे कांग्रेस का संविधान तय किया गया। यह भी निर्णय किया गया कि यदि किसी प्रस्ताव से मुस्लिमों के एक बड़े तबके को आपत्ति है, तो वह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जाएगा। डफरिन ने कांग्रेस का मजाक उड़ाया और इसे जनता के सूक्ष्म भाग का प्रतिनिधि बताया।

कांग्रेस का पांचवां अधिवेशन

  • वर्ष – 1889 ई.
  • स्थान – बम्बई
  • अध्यक्ष – सर विलियम वेडबर्न

कांग्रेस का 5वां अधिवेशन बम्बई में विलियम बेडवर्न की अध्यक्षता में हुआ। पहली बार महिलाओं ने कांग्रेस के इसी अधिवेशन में भाग लिया। 21 वर्षीय मताधिकार का प्रस्ताव कांग्रेस के इसी अधिवेशन में पारित हुआ। लंदन में कांग्रेस की एक ‘ब्रिटिश समिति’ का गठन किया गया।

कांग्रेस का छठा अधिवेशन –

  • वर्ष – 1890 ई.
  • स्थान – कलकत्ता
  • अध्यक्ष – फिरोजशाह मेहता

कांग्रेस का 6वां अधिवेशन 1890 ई. में कलकत्ता में फीरोजशाह मेहता की अध्यक्षता में हुआ। कलकत्ता विश्वविद्यालय की पहली महिला स्नातक कादम्बिनी गांगुली ने इस अधिवेशन को संबोधित किया।

सातवां अधिवेशन
  • वर्ष – 1891 ई.
  • स्थान – नागपुर
  • अध्यक्ष – पी. आनंद चार्लू

कांग्रेस का 7वां अधिवेशन 26 से 27 दिसंबर 1891 ई. के बीच नागपुर में पी. आनन्द चार्लू की अध्यक्षता में हुआ। इसमें अध्यक्ष आनन्द चार्लू ने भाषण में कहा कि कांग्रेस का दूसरा नाम राष्ट्रीयता है।

कांग्रेस का आठवां अधिवेशन –

  • वर्ष – 1892 ई.
  • स्थान – इलाहाबाद
  • अध्यक्ष – व्योमेश चंद्र बनर्जी

कांग्रेस का 8वां अधिवेशन 28 से 29 दिसंबर 1892 ई. को इलाहाबाद में W. C. बनर्जी की अध्यक्षता में हुआ। पहले यह अधिवेशन इंग्लैंड में किया जाना था। परंतु शर्तें पूरी न हो पाने के कारण यह न हो सका।

कांग्रेस का नौवां अधिवेशन

  • वर्ष – 1893 ई.
  • स्थान – लाहौर
  • अध्यक्ष – दादाभाई नौरोजी

कांग्रेस का नौवां अधिवेशन 27 से 28 दिसंबर 1893 ई. को लाहौर में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में हुआ। इसमें सिविल सेवा परीक्षा को भारत में कराने की मांग की गई।

कांग्रेस का दसवां अधिवेशन
  • वर्ष – 1894 ई.
  • स्थान – मद्रास
  • अध्यक्ष – अल्फ्रेट वेब

इसके अध्यक्ष अल्फ्रेड वेब ब्रिटिश संसद के एक आयरिश सदस्य थे।

ग्यारहवां अधिवेशन
  • वर्ष – 1895 ई.
  • स्थान – पूना
  • अध्यक्ष – सुरेंद्रनाथ बनर्जी

विशेष – बालगंगाधर तिलक ने महादेव गोविंद राणाडे द्वारा शुरु की गई ‘सोशल कांफ्रेंस’ को कांग्रेस के मंच से बंद करवा दिया।

बारहवां अधिवेशन
  • वर्ष – 1896 ई.
  • स्थान – रहीमतुल्ला सयानी
  • अध्यक्ष – कलकत्ता

विशेष – कांग्रेस के मंच से पहली बार वंदेमातरम् गाया गया।

तेरहवां अधिवेशन

वर्ष – 1897 ई.

स्थान – अमरावती

अध्यक्ष – सी. शकरन नायर

चौदहवां अधिवेशन

वर्ष – 1898 ई.

स्थान – मद्रास

अध्यक्ष – आनंदमोहन दास

पन्द्रहवां अधिवेशन

वर्ष – 1899 ई.

स्थान – लखनऊ

अध्यक्ष – रमेशचंद्र दत्त

सोलहवां अधिवेशन

वर्ष – 1900 ई.

स्थान – लाहौर

अध्यक्ष – एन. जी. चंद्रावरकर

सत्रहवां अधिवेशन

वर्ष – 1901 ई.

स्थान – कलकत्ता

अध्यक्ष – दिनशा इदुलजी वाचा

अठारहवां अधिवेशन

वर्ष – 1902 ई.

स्थान – अहमदाबाद

अध्यक्ष – सुरेंद्रनाथ बनर्जी

उन्नीसवां अधिवेशन

वर्ष – 1903 ई.

स्थान – मद्रास

अध्यक्ष – मद्रास लालमोहन घोष

बीसवां अधिवेशन

वर्ष – 1904 ई.

स्थान – बम्बई

अध्यक्ष – सर हेनरी काटन

कांग्रेस का इक्कीसवां अधिवेशन

  • वर्ष – 1905 ई.
  • स्थान – बनारस
  • अध्यक्ष – गोपालकृष्ण गोखले

कांग्रेस का 27वें अधिवेशन का आयोजन बनारस में गोखले की अध्यक्षता में 27 से 30 दिसंबर 1905 को हुआ। इसमें गोपाल कृष्ण गोखले को विपक्ष के नेता की उपाधि दी गई।

कांग्रेस का बाईसवां अधिवेशन

  • वर्ष – 1906 ई.
  • स्थान – कलकत्ता
  • अध्यक्ष – दादाभाई नौरोजी

कांग्रेस के मंच से स्वराज शब्द का प्रयोग पहली बार इसी अधिवेशन में किया गया।

कांग्रेस का तेईसवां अधिवेशन

  • वर्ष – 1907 ई.
  • स्थान – सूरत
  • अध्यक्ष – डॉ. रासबिहारी घोष

पहले यह अधिवेशन नागपुर में होना था। कांग्रेस के 23वें अधिवेशन का आयोजन 1907 ई. में सूरत में रासबिहारी बोस की अध्यक्षता में किया गया। कांग्रेस का पहला विभाजन (सूरत की फूट) इसी अधिवेशन में हुआ। कांग्रेस का विभाजन स्वराज्य शब्द की व्याख्या को लेकर हुआ। कांग्रेस अब गरम दल और नरम दल में बंट गई। इसी कारण सूरत अधिवेशन की कार्यवाही पूरी नहीं हो सकी। इसी अधिवेशन को पुनः मद्रास में आयोजित किया गया। इस विभाजन के बाद कांग्रेस पर नरमपंथियों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

तेईसवां अधिवेशन

वर्ष – 1908 ई.

स्थान – मद्रास

अध्यक्ष – डॉ. रासबिहारी घोष

विशेष – कांग्रेस संविधान का निर्माण।

चौबीसवां अधिवेशन

वर्ष – 1909 ई.

स्थान – लहौर

अध्यक्ष – मदनमोहन मालवीय

पच्चीसवां अधिवेशन

वर्ष – 1910 ई.

स्थान – इलाहाबाद

अध्यक्ष – विलियम वेडबर्न

छब्बीसवां अधिवेशन

वर्ष – 1911 ई.

स्थान – कलकत्ता

अध्यक्ष – बिशन नारायण धर

विशेष – जन गण मन पहली बार गाया गया।

सत्ताईसवां अधिवेशन
  • वर्ष – 1912 ई.
  • स्थान – बांकीपुरा
  • अध्यक्ष – आर. एन. माधोपुरा

विशेष – इसी अधिवेशन में ए. ओ. ह्यूम को कांग्रेस का पिता कहा गया।

28वां अधिवेशन

वर्ष – 1913 ई.

स्थान – करांची

अध्यक्ष – नवाब सैयद मु. बहादुर

29वां अधिवेशन

वर्ष – 1914 ई.

स्थान – मद्रास

अध्यक्ष – भूपेंद्र नाथ बसु

30वां अधिवेशन

वर्ष – 1915 ई.

स्थान – बम्बई

अध्यक्ष – सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा

विशेष – लार्ड वेलिंगटन ने भाग लिया।

कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन –

  • वर्ष – 1916 ई.
  • स्थान – लखनऊ
  • अध्यक्ष – अंबिकाचरण मजूमदार

कांग्रेस का इकतीसवां अधिवेशन 26 से 30 दिसंबर 1916 को लखनऊ में हुआ। इसकी अध्यक्षता ए. सी. मजूमदार ने की। तिलक और एनी बेसेंट के प्रयासों से कांग्रेस व मुस्लिम लीग में समझौता हुआ। इस समझौते को ‘लखनऊ समझौता’ के नाम से जाना गया। इस समझौते का विरोद मदन मोहन मालवीय ने किया था। मुस्लिम लीग की पृथक निर्वाचन की मांग को इस अधिनेशन में स्वीकार कर लिया गया। इसी अधिवेशन में गरम दल व नरम दल भी एक हो गए। इसी अधिवेशन में तिलक ने नारा दिया ‘स्वाज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा’।

32वां अधिवेशन

वर्ष – 1917 ई.

स्थान – कलकत्ता

अध्यक्ष – श्रीमती एनीबेसेंट

विशेष – पहली बार महिला अध्यक्ष बनीं। ये एक आयरिश महिला थीं।

1918 का विशेष अधिवेशन

  • वर्ष – 1918 ई.
  • स्थान – बम्बई
  • अध्यक्ष – हसन इमाम

यह अधिवेशन रौलेट एक्ट पर विचार-विमर्श करने के लिए बुलाया गया था। इसी अधिवेशन में पहली बार मौलिक अधिकारों की मांग की गई।

कांग्रेस का दिल्ली अधिवेशन

  • वर्ष – 1918 ई.
  • स्थान – दिल्ली
  • अध्यक्ष – मदनमोहन मालवीय

इस अधिवेशन में बालगंगाधर तिलक को अध्यक्ष चुना जाना था। परंतु शिरोल केस में वे लंदन चले गए थे। इस कारण महनमोहन मालवीय को अध्यक्ष चुना गया।

34वां अधिवेशन
  • वर्ष – 1919 ई.
  • स्थान – अमृतसर
  • अध्यक्ष – मोतीलाल नेहरु

कांग्रेस का कलकत्ता विशेष अधिवेशन –

  • वर्ष – 1920 ई.
  • स्थान – कलकत्ता
  • अध्यक्ष – लाला लाजपतराय

सितंबर 1920 ई. में कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता लाला लाजपतराय ने की। इसमें असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव को स्वीकार किया गया।

कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन –

  • वर्ष – 1920 ई.
  • स्थान – नागपुर
  • अध्यक्ष – वी राघवाचारियर
  • विशेष – असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया।

1920 में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में हुआ। इसकी अध्यक्षता वीर राघवाचारी ने की। इस अधिवेशन में कांग्रेस के संविधान में संशोधन किया गया। इसमें कहा गया 25 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति 25 पैसे देकर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर सकता है। भाषायी आधार पर प्रांतों के विभाजन की बात पहली बार इसी अधिवेशन में कही गई। हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में प्रयोग करने पर जोर दिया गया। कांग्रेस ने रियासतों के प्रति अपनी नीति की घोषणा पहली बार इसी अधिेशन में की। इसमें असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव को पारित कर दिया गया।

कांग्रेस का अहमदाबाद अधिवेशन –

  • वर्ष – 1921 ई.
  • स्थान – अहमदाबाद
  • अध्यक्ष – हकीम अजमल खां

इस अधिवेशन के लिए चितरंजन दास को अध्यक्ष पद के लिए चुना गया था। परंतु उनके जेल में होने के कारण हकीम अजमल खाँ ने इसकी अध्यक्षता की।

कांग्रेस का गया अधिवेशन

वर्ष – 1922 ई.

स्थान – गया

अध्यक्ष – देशबंधु चितरंजन दास

कांग्रेस का दिल्ली अधिवेशन (विशेष अधिवेशन) –

  • वर्ष – 1923 ई.
  • स्थान – दिल्ली
  • अध्यक्ष – अबुल कलाम आजाद

अबुल कलाम आजाद कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने। इस समय अबुल कलाम आजाद की आयु 35 वर्ष थी।

कांग्रेस का काकीनाड़ा अधिवेशन

  • वर्ष – 1923 ई.
  • स्थान – काकीनाड़ा
  • अध्यक्ष – अबुल कलाम आजाद

बंगाल के काकीनाड़ा में कांग्रेस का 38वीं अधिवेशन मौलाना मुहम्मद अली की अध्यक्षता में 28 से 31 दिसंबर 1923 को हुआ।

कांग्रेस का बेलगाँव अधिवेशन –

  • वर्ष – 1924 ई.
  • स्थान – बेलगांव
  • अध्यक्ष – महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी ने कांग्रेस के सिर्फ एक ही अधिवेशन (बेलगाँव) की अध्यक्षता की थी। इसमें कांग्रेस व मुस्लिम लीग अलग हो गए।

कांग्रेस का कानपुर अधिवेशन

  • वर्ष – 1925 ई.
  • स्थान – कानपुर
  • अध्यक्ष – सरोजिनी नायडू

26 से 28 दिसंबर 1925 के बीच कांग्रेस का अधिवेशन कानपुर में हुआ। इसकी अध्यक्षता सरोजिनी नायडू ने की। कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन में पहली बार कोई भारतीय महिला अध्यक्ष बनीं। इस अधिवेशन में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में इस्तेमाल किया गया। पहली बार हसन मोहानी ने पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव रखा। परंतु यह पारित न हो सका।

कांग्रेस का गुवाहाटी अधिवेशन

  • वर्ष – 1926 ई.
  • स्थान – गुवाहाटी
  • अध्यक्ष – एस. श्रीनिवास आयंगर

कांग्रेस के गुवाहाटी अधिवेशन की अध्यक्षता श्रीनिवास आयंगर ने की थी।  गुवाहाटी अधिवेशन में काग्रेस के नेताओं के लिए खादी पहनना अनिवार्य कर दिया।

कांग्रेस का मद्रास अधिवेशन

  • वर्ष – 1927 ई.
  • स्थान – मद्रास
  • अध्यक्ष – एम. ए. अंसारी

सुभाषचंद्र बोस व जवाहरलाल नेहरू के प्रयासों से कांग्रेस के मंच से पूर्ण स्वाधीनता की मांग रखी गई। परंतु इसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया।

कांग्रेस का 43वां अधिवेशन

  • वर्ष – 1928 ई.
  • स्थान – कलकत्ता
  • अध्यक्ष – मोतीलाल नेहरु

1928 ई. में हुए कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में कांग्रेस का एक विदेश विभाग गठित किया गया।

कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन – 1929

  • वर्ष – 1929 ई.
  • स्थान – लाहौर
  • अध्यक्ष – प. जवाहलाल नेहरु

1929 में हुए कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में हुआ। इसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव को पारित कर दिया गया। 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की गई। इसी आधार पर अगले साल 26 जनवरी 1930 को पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।

नोट – 1930 ई. में कांग्रेस का अधिवेशन नहीं हुआ। क्योंकि कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन में व्यस्त थी।

कांग्रेस का करांची अधिवेशन – 1931

  • वर्ष – 1931 ई.
  • स्थान – करांची
  • अध्यक्ष – सरदार बल्लभभाई पटेल

इस अधिवेशन में मौलिक अधिकार का प्रस्ताव पारित किया गया। इसी अधिवेशन में गाँधी जी ने कहा ‘गाँधी मर सकता है, परंतु गाँधीवाद जिन्दा रहेगा’।

46वां अधिवेशन

वर्ष – 1932 ई.

स्थान – दिल्ली

अध्यक्ष – अमृत रणछोंड़ दास

47वां अधिवेशन
  • वर्ष – 1933 ई.
  • स्थान – कलकत्ता
  • अध्यक्ष – श्रीमती नेल्ली सेनगुप्ता

1933 में हुए कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में कांग्रेस की पहली महिला अंग्रेज अध्यक्ष बनीं।

48वां अधिवेशन

वर्ष – 1934 ई.

स्थान – बम्बई

अध्यक्ष – डॉ. राजेंद्र प्रसाद

नोट – 1935 ई. में कांग्रेस का अधिवेशन नहीं हुआ।

कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन – 1936

  • वर्ष – 1936 ई.
  • स्थान – लखनऊ
  • अध्यक्ष – जवाहरलाल नेहरु

1936 ई. के लखनऊ अधिवेशन में ‘कांग्रेस पार्लियामेण्ट बोर्ड’ की स्थापना की गई। ‘समाजवाद’ को कांग्रेस का लक्ष्य निर्धारित किया गया। नेहरू ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा ‘मैं समाजवादी हूँ, मेरा लक्ष्य समाजवाद की स्थापना करना है’।

कांग्रेस का फैजपुर अधिवेशन – 1937

  • वर्ष – 1937 ई.
  • स्थान – फैजपुर
  • अध्यक्ष – जवाहरलाल नेहरु

1937 में हुए कांग्रेस के फैजपुर अधिवेशन की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की। किसी गाँव में आयोजित यह पहला अधिवेशन था। फैजपुर गांव बंगाल में स्थित था। इस अधिवेशन में 13 सूत्री अस्थाई कृषि कार्यक्रम की घोषणा की गई।

कांग्रेस का हरिपुरा अधिवेशन – 1938

  • वर्ष – 1938 ई.
  • स्थान – हरिपुरा
  • अध्यक्ष – सुभाषचंद्र बोस

यह अधिवेशन में एक गाँव में आयोजित हुआ था, यह गाँव गुजरात में स्थित था। हरिपुरा अधिवेशन में ‘राष्ट्रीय नियोजन समिति’ का गठन किया गया। जवाहरलाल नेहरू के इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया। भारत की स्वतंत्रता में रजवाड़ों को शामिल किया जाना इस अधिवेशन में ही किया गया।

कांग्रेस का त्रिपुरा अधिवेशन –

  • वर्ष – 1939 ई.
  • स्थान – त्रिपुरा
  • अध्यक्ष – सुभाषचंद्र बोस

कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए पहली बार चुनाव किया गया। इसमें सुभाष चंद्र बोस और गाँधी समर्थित पट्टाभि सीतारमैया के बीच चुनाव हुआ। सुभाषचंद्र बोस ने पट्टाभि सीतारमैया को 1377 के मुकाबले 1580 मतों से हरा दिया। परंतु अपनी कार्यकारिणी के गठन को लेकर इनका महात्मा गाँधी से विवाद हो गया। अतः इन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इस घटना को इतिहास में त्रिपुरी संकट के नाम से जाना गया। कांग्रेस में अजातशत्रु के नाम से जाने जाने वाले डॉ राजेंद्र प्रसाद को इनके बाद कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया।

कांग्रेस का रामगढ़ अधिवेशन – 1940

  • वर्ष – 1940 ई.
  • स्थान – रामगढ़
  • अध्यक्ष – अबुल कलाम आजाद

भारत छोड़ों आंदोलन के समय कांग्रेस के अध्यक्ष अबुल कलाम आजाद ही थे।

नोट – भारत छोड़ो आंदोलन के बाद कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर सभी कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इसके बाद 1941 से 1945 के बीच कांग्रेस का कोई अधिवेशन नहीं हुआ। इस बीच कांग्रेस के अध्यक्ष अबुल कलाम आजाद ही रहे, जिनको 1940 में अध्यक्ष बनाया गया था। इस प्रकार सबसे लम्बे समय तक कांग्रेस के अध्यक्ष अबुल कलाम आजाद ही रहे।

कांग्रेस का मेरठ अधिवेशन

  • वर्ष – 1946 ई.
  • स्थान – मेरठ
  • अध्यक्ष – जे. बी. कृपलानी

नवंबर में नेहरु ने इस्तीफा दे दिया इसके बाद जे. बी. कृपलानी को अध्यक्ष बनाया गया। भारत की आजादी के समय अध्यक्ष दे. बी. कृपलानी ही थे। इन्होंने नवंबर 1947 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अध्यक्ष बनाया गया।

विशेष अधिवेशन
  • वर्ष – 1947 ई.
  • स्थान – दिल्ली
  • अध्यक्ष – डॉ. राजेंद्र प्रसाद

यह आजाद भारत का पहला अधिवेशन था। इसका आयोजन दिल्ली में राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में किया गया।

कांग्रेस का जयपुर अधिवेशन

वर्ष – 1948 ई.

स्थान – जयपुर

अध्यक्ष – पट्टाभि सीमारमैया

कांग्रेस का नासिक अधिवेशन

  • वर्ष – 1950 ई.
  • स्थान – नासिक
  • अध्यक्ष – पुरुषोत्तम दास टंडन

कांग्रेस के नासिक अधिवेशन में अध्यक्ष पद के तीन उम्मीदवार खड़े हुए। ये दावेदार थे पी. डी. टण्डन (पटेल समर्थित), जे. बी. कृपलानी (नेहरू समर्थित), शंकर राव देव। इसमें पटेल समर्थित पी. डी. टण्डन को जीत मिली। लेकिन नेहरू के दबाव के चलते इन्होंने 8 सितंबर 1951 को पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष बने।

1950 के बाद के अधिवेशन, स्थान व अध्यक्ष –

  • 1951 – नई दिल्ली – जवाहरलाल नेहरू
  • 1953 – हैदराबाद – जवाहर लाल नेहरू
  • 1954 – कल्याणी – जवाहरलाल नेहरू
  • 1955 – अवाडी – उच्छंगराय नवलराय ढेबर
  • 1956 – अमृतसर – उच्छंगराय नवलराय ढेबर
  • 1958 – गोहाटी – उच्छंगराय नवलराय ढेबर
  • 1959 – नागपुर – इंदिरा गाँधी
  • 1960 – बंग्लौर – नीलम संजीव रेड्डी (आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री का पद छोड़कर कांग्रेस के अध्यक्ष बने)
  • 1961 – गुजरात – नीलम संजीव रेड्डी
  • 1962 – भुवनेश्वर – दामोदरन संजीवैया
  • 1963 – पटना – दामोदरन संजीवैया
  • 1964 – भुवनेश्वर – के. कामराज
  • 1965 –  पटना – के. कामराज

कांग्रेस के अधिवेशनों से संबंधित तथ्य –

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सर्वाधिक अधिवेश किस स्थान पर हुए – कलकत्ता (कोलकाता)
  • कांग्रेस के पहले अधिवेश के अध्यक्ष कौन थे – व्योमेश चंद्र बनर्जी (डब्ल्यू. सी. बनर्जी)
  • भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का एकमात्र स्थल जहां कांग्रेस का अधिवेशन हुआ – गुवाहाटी
  • कांग्रेस का पहला अधिवेशन किस वर्ष हुआ – 1885 ई.
  • कांग्रेस का पहला अधिवेशन किस स्थान पर हुआ – बम्बई
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अधिवेशन में कितने प्रतिनिधियों ने भाग लिया – 72
  • कांग्रेस के अधिवेशनों की अध्यक्षता करने वाले प्रथम मुस्लिम व्यक्ति – बदरुद्दीन तैयबजी
  • कांग्रेस के अधिवेशनों की अध्यक्षता करने वाले प्रथम अंग्रेज – जॉर्ज यूले
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष कौन थीं – श्रीमती एनी बेसेंट
  • कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष कौन थीं – सरोजिनी नायडू
  • कांग्रेस के किस अधिवेशन में पहली बार वंदेमातरम गाया गया – 1896 का कलकत्ता अधिवेशन
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला विभाजन किस वर्ष हुआ – 1907 ई. में
  • पहली बार ‘जन गण मन‘ कब गाया गया – 1911 के कलकत्ता अधिवेशन में
  • कांग्रेस का सबसे युवा अध्यक्ष कौन बना – अबुल कलाम आजाद
  • कांग्रेस के सबसे अधिक समय तक अध्यक्ष कौन रहे – अबुल कलाम आजाद
  • आजादी के समय कांग्रेस का अध्यक्ष कौन था – जे. बी. कृपलानी
  • वे वर्ष जब कांग्रेस का अधिवेशन नहीं हुआ – 1930, 1935, 1941-45
  • गाँव में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन – फैजपुर, हरिपुरा
  • कांग्रेस के किस अधिवेशन में अध्यक्ष पद के तीन दावेदार खड़े हुए – नासिक अधिवेशन
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