बंगाल में द्वैध शासन (1765-72 ई.)

बंगाल में द्वैध शासन

रॉबर्ट क्लाइव को बंगाल में द्वैध शासन का जनक कहा जाता है। बंगाल के नवाब मीरजाफर के बाद उसका पुत्र नजमुद्दौला नवाब बना। फरवरी 1765 ई. में नवाब से हुई एक संधि के तहत कलकत्ता काउंसिल ने बंगाल की सुरक्षा अपने हाथों में ली। अंग्रेजों द्वारा बंगाल में एक नायब सूबेदार (मोहम्मद रजाखाँ) की नियुक्ति की गई। संधि के तहत बंगाल की सेना, वित्त व्यवस्था व बाहरी संबंध कंपनी को प्राप्त हो गए। इस तरह बंगाल में नवाब की स्वायत्त सत्ता समाप्त हो गई। नबाव को 53 लाख वार्षिक देने का निर्णय किया गया। इसके बाद समस्त भूराजस्व कंपनी का होगा। अगस्त 1765 ई. की इलाहाबाद की संधि के तहत कंपनी को बंगाल, बिहार व उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई।

बंगाल में द्वैध शासन –

रॉबर्ट क्लाइव ने 1765 ई. में बंगाल में द्वैध शासन की शुरुवात की। इस व्यवस्था के तहत क्लाइव ने राजस्व वसूली, प्रशासन, व दीवानी न्याय अपने पास रख लिए। फौजदारी मामले, आंतरिक शांति व्यवस्था व अन्य सभी प्रशासनिक कर्तव्य नवाब को दे दिए। अर्थात क्लाइव ने प्रशासन तो अपने हाथ में ले लिया परंतु उत्तरदायित्व नवाब को दे दिया। इस व्यवस्था के तहत क्लाइव ने अधिकार व उत्तरदायित्व को अलग-अलग कर दिया। क्लाइव की इसी व्यवस्था को द्वैध शासन की संज्ञा दी गई। 1772 ई. में वारेन हेंस्टिंग्स ने द्वैध शासन को समाप्त कर दिया।

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द्वैध शासन के दुष्परिणाम –

नवाब की व्यवस्था समाप्त करने से कानून व्यवस्था में ह्रास हुआ। क्योंकि कंपनी अपने उत्तरदायित्वों को स्वीकार नहीं करती थी। इस व्यवस्था में भूराजस्व का ठेका अधिक बोली लगाने वालों को दिया जाने लगा। फलस्वरूप वे किसानों का अधिक शोषण करने लगे। 1770 ई. में बंगाल में भयानक अकाल पड़ा। इसमें बंगाल की बहुत बड़ी आबादी भूख और बीमारी से मर गई। फिर भी भूराजस्व में किसी प्रकार की छूट नहीं दी गई। बल्कि अगले वर्ष ही लगान 10 प्रतिशत और बढ़ा दिया गया। जुलाहों का भी इस दौरान खूब शोषण किया गया। कम्पनी के मुक्त व्यापार के कारण भारतीय व्यापार चौपट हो गया। बंगाल अकाल के समय बंगाल का गवर्नर कार्टियर (1769-72 ई.) था।

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