ब्रटिश शासन के दौरान भारत की शासन व्यवस्था हेतु समय समय पर कई अधिनियम पारित किये गए। इसकी शुरुवात 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट से हुई। 1935 का अधिनियम ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों के लिए प्रस्तावित अंतिम अधिनियम था। यह जुलाई 1936 में लागू हुआ। यह सबसे बड़ा और जटिल था। इसमें 14 भाग, 10 अनुसूचियां व 321 धाराएं थीं। परंतु इसमें प्रस्तावना का अभाव है। इसलिए 1919 के अधिनियम की प्रस्तावना को इसके साथ जोड़ दिया गया।
भारतीय संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 तो सीधे 1935 के इसी अधिनियम से लिए गए थे।
अखिल भारतीय संघ की व्यवस्था –
इस अधिनियम के तहत अखिल भारतीय संघ की व्यवस्था की गई। जिसमें 11 ब्रिटिश प्रांत, 6 चीफ कमिश्नरी क्षेत्रों के साथ देशी रियासतों को सम्मिलित किया गया। देशी रियासतों का इस संघ में सम्मिलित होना उनकी इच्छा पर आधारित था। कुछ कारणों से भारतीय संघ योजना का क्रियान्वयन नहीं किया जा सका।
1935 के अधिनियम से पहले के एक्ट –
- रेग्युलेटिंग एक्ट – 1773
- पिट्स इंडिया एक्ट 1784
- 1786 का अधिनियम
- चार्टर एक्ट – 1793
- चार्टर एक्ट – 1813
- 1833 का चार्टर एक्ट
- चार्टर एक्ट – 1853
- 1858 का अधिनियम
- भारत परिषद् अधिनियम – 1861
- भारत परिषद् अधिनियम – 1892
- 1909 का भारत परिषद् अधिनियम (मिंटो मार्ले सुधार)
- भारत शासन अधिनियम – 1919 (मांटफोर्ड सुधार)
भारत शासन अधिनियम 1935 के प्रावधान –
- इसके तहत सर्वप्रथम भारत में संघात्मक सरकार की शुरुवात की गई।
- केंद्र सरकार की कार्यकारिणी शक्ति गवर्नर जनरल में निहित थी।
- भारतीय रिजर्ब बैंक की स्थापना।
- राजधानी दिल्ली में एक संघीय न्यायालय की स्थापना की व्यवस्था की गई।
- परंतु यह न्यायालय सर्वोच्च नहीं था।
- इसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीशों के अतिरिक्त दो सहायक न्यायाधीश होंगे।
- यह न्यायालय 1 अक्टूबर 1937 ई. से कार्यरत हो गया।
- फेडरल न्यायालय के निर्णयों को प्रिवी कौंसिल में चुनौती दी जा सकेगी।
- केंद्रीय न्यायालय को प्रारंभिक, अपीलीय, व परामर्शदात्री अधिकार प्राप्त थे।
- संघीय न्यायालय को सिविल और फौजदारी मामलों में अपीलीय अधिकार नहीं दिए गए थे।
- सभी विषयों को तीन सूचियों संघ सूची, प्रांतीय सूची, व समवर्ती सूची में विभक्त किया गया।
- संघ सूची में 59 विषय थे। अखिल भारतीय हितों से संबंधित विषय इसी सूची में आते थे।
- प्रांतीय सूची में कुल 54 विषय थे। स्थानीय महत्व के मुद्दों को इस सूची में शामिल किया गया।
- संवर्ती सूची में कुल 36 विषयों को रखा गया। इसमें मुख्य रूप से प्रांतीय हित के विषयों को रखा गया।
- अपशिष्ट विषयों पर कानून कौन बनाएगा इसका निर्णय गवर्नर जनरल करेगा।
- संघीय सूची के विषयों को दो भागों ‘हस्तांतरित व रक्षित’ में विभाजित किया गया।
- रक्षित विषयों में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, धार्मिक विषय, व जनजातीय क्षेत्रों को सम्मिलित किया गया।
- इनके अतिरिक्त अन्य सभी मामलों को हस्तांतरित के अंतर्गत रखा गया।
- प्रांतों में द्वैध शासन को समाप्त कर प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान की गई।
- प्रांतीय विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्रांतों को दिया गया।
- प्रांतों की कार्यपालिका शक्ति गवर्नर में निहित की गई।
- इंडिया कौंसिल को समाप्त कर दिया गया।
- केंद्र में द्वैध शासन लगाया गया।
- केंद्रीय विधान मण्डल में दो सदन विधानसभा और राज्यपरिषद् थे।
- विधानसभा में 375 सदस्य थे। इनमें 250 ब्रिटिश भारतीय प्रांतों थे और 125 भारतीय रियासतों से थे।
विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा।
- राज्यपरिषद् में 260 सदस्य होंगे। इनमें से 104 ब्रिटिश भारत से होंगे।
- गवर्नर जनरल को विधानसभा भंग करने का अधिकार था।
- गवर्नर जनरल के सभी कार्य मंत्रिपरिषद की सलाह से होते थे।
- बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया।
- दो नए प्रांतों सिंध व उड़ीसा का निर्माण हुआ।
- गवर्नर जनरल को विधेयक पर मतदान करने का अधिकार मिला।
- धन विधेयक पर विधान सभा को अधिक शक्ति प्रदान की गई।
- गवर्नर जनरल को विधानमंडल का संयुक्त अधिवेशन बुलाने का अधिकार प्राप्त हुआ।
- कुछ प्रांतों में भी द्विसदनीय विधानमंडल की व्यवस्था की गई।
- प्रांतों की कार्यपालिका गवर्नर व मंत्रिपरिषद के द्वारा गठित होती थी।
- प्रांतीय सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्रांतीय विधानमंडलों को प्रदान थी।
- प्रांत के विधान मंडल संवर्ती विषयों पर भी कानून बना सकते थे।
- धन विधेयक को गवर्नर की पूर्व अनुमति से ही पेश किया जा सकता था।
- गवर्नर की अनुमति के बिना कोई भी विधेयक कानून का रूप धारण नहीं कर सकता।
- परंतु गवर्नर की अनुमति प्राप्त विधेयक को सम्राट अस्वीकृत कर सकता था।
- केंद्रीय व प्रांतीय विधियों में असंगति होने पर प्रांतीय विधि प्रभावी होगी।