भारत के शासक

भारत के शासक शीर्षक के इस लेख में भारत के लगभग सभी प्रमुख शासकों का जिक्र किया गया है। प्राचीनकाल के मौर्य व गुप्त वंश, मध्यकाल के दिल्ली सल्तनत के वंश और मगलकाल। इनमें चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, हर्षवर्धन, गुलाम, खिलजी, तुगलक, लोदी, व मुगल सम्मिलित हैं।

बिम्बिसार (544 – 492 ई. पू.)

बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना की। इसने 15 वर्ष की अवस्था में शासन की सत्ता संभाल ली और 52 वर्ष तक शासन किया। इसने साम्राज्य की राजधानी राजगृह या गिरिब्रज को बनाया। जैन साहित्य में इसे श्रेणक के नाम से जाना जाता है। 492 ई. पू. इसके पुत्र अजातशत्रु ने इसकी हत्या कर दी।

अजातशत्रु (492-460 ई. पू.)

पिता की हत्या कर यह मगध का शासक बना। इसने कोशल नरेश प्रसेनजित को पराजित किया और मित्रता कर ली। इसे कुणिक के नाम से जाना जाता है।

उदायिन (460-444 ई. पू.)

इसने पाटलिपुत्र नगर की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी बनाया।

शिशुनाग (412 -394 ई. पू.)

इसने अपने नाम से ही शिशिनाग वंश की स्थापना की। इसने वैशाली को अपनी राजधानी बनाया। वत्स व अवंति राज्य पर अधिकार कर मगध साम्राज्य में मिला लिया।

कालाशोक (394-366 ई. पू.)

पुराण व दिव्यावदान में इनका नाम काकवर्ण मिलता है। इसने राजधानी को वैशाली से पुनः पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया। इसी के काल में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में हुआ। बौद्ध धर्म दो भागों स्थविर व महासांघिक में बंट गया।

महापद्म नंद

इसे नंद वंश का संस्थापक माना जाता है।

धनानंद

यूनानी शासक सिकंदर महान 326 ई. पू. इसी के शासनकाल के दौरान भारत आया। आचार्य चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त ने इसी हत्या कर दी।

चंद्रगुप्त मौर्य (322-298 ई. पू.)

धनानंद को पराजित कर चंद्रगुप्त 322 ई. पू. मगध का शासक बना। इस तरह मगध की गद्दी पर एक नए राजवंश मौर्य  वंश का उदय हुआ। इसने चाणक्य को अपना प्रधानमंत्री बनाया। इसने सेल्युकस निकेटर को पराजित किया। सेल्युकस ने अपनी पुत्री हेनेला का विवाह चंद्रगुप्त से किया। सेल्युकस ने अपने राजदूत मेगस्थनीज को मौर्य दरबार में भेजा। मेगस्थनीज ने यहां रहकर इंडिका नामक अपनी पुस्तक लिखी।

बिंदुसार (298-273 ई. पू.)

इसे अमित्रघात, भद्रसार, व सिंहसेन इत्यादि नामों से जाना जाता है। सीरिया के शासक एंटियोकस प्रथम ने अपने राजदूत डाइमेकस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा। बिंदुसार ने एंटियोकस से सूखा अंजीर, अंगूरी मदिरा, व एक दार्शनिक की मांग की।

अशोक महान (273-232 ई. पू.)

273 ई. पू. बिंदुसार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अशोक राजा बना। अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक 269 ई. पू. हुआ। अशोक का नामोल्लेख मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर व उदेगोलम अभिलेखों में मिलता है। राज्याभिषेक के 8वें वर्ष इसने कलिंग पर आक्रमण किया। प्रारंभ में यह ब्राह्मण धर्म का था। बाद में बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक का काल मुख्य रूप से अपने अभिलोखीय साक्ष्यों के लिए माना जाता है।

श्रीगुप्त

श्रीगुप्त को गुप्त वंश का संस्थापक माना जाता है। इसने महाराज की उपाधि धारण की थी, जो कि सामंतो की होती थी। इससे अनुमान लगाया गया कि वह स्वतंत्र शासक नहीं था।

चंद्रगुप्त प्रथम (319-50 ई .)

चंद्रगुप्त प्रथम को गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। इसने अपने राज्याभिषेक की तिथि 319 ई. से एक नई संवत् गुप्त संवत् की शुरुवात की। समुद्रगुप्त को अपनी उत्तराधिकारी बनाकर इसने संन्यास ग्रहण कर लिया।

समुद्रगुप्त (350-75 ई.)

समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है। ये एक महान विजेता था। इसने आर्यावर्त तथा दक्षिणावर्त के 12-12 शासकों को पराजित किया। इसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त की विजयों की जानकारी प्राप्त होती है। इसने गरुणप्रकार, धनर्धारी प्रकार, अश्वमेघ प्रकार, वीणावादन प्रकार की मुद्राएं चलवाईं।

चंद्रगुप्त द्वितीय/विक्रमादित्य (375-415 ई.)

इसने शकों को पराजित किया। विक्रमादित्य, विक्रमांक, व परमभागवत की उपाधि धारण की। इसके दरबार में 9 विद्वानों का समूह रहता था। इनमें महाकवि कालिदास, धनवंतरि, क्षपणक व वराहमिहिर शामिल थे। इसका काल ब्राह्मण धर्म का स्वर्ण युग था। इसने नागवंश की कन्या कुबेरनागा से विवाह किया। अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय से किया। इसके शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान (399-414 ई.) भारत आया।

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कुमारगुप्त प्रथम/महेंद्रादित्य (415-55 ई.)

इसके शासन की जानकारी वत्सभट्टि के मंदसौर अभिलेख से मिलती है। इसने नालंदा विश्वविद्यालय (ऑक्सफार्ड ऑफ महायान) की स्थापना की।

स्कंदगुप्त (455-67 ई.)

भारत पर प्रथम हूण आक्रमण शुखनवाज के नेतृत्व में स्कंदगुप्त के ही शासनकाल में हुआ। स्कंदगुप्त ने हूणों (मलेच्छों) के आक्रमण को विफल कर दिया। इसके काल में सुदर्शन झील का पुनरुद्धार हुआ चक्रपालि के नेतृत्व में हुआ।

हर्ष वर्धन ( 606-47 ई.)

साल 606 ई. 16 वर्ष की अवस्था में हर्षवर्धन थानेश्वर की गद्दी पर बैठा। चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा के तट पर हर्ष को पराजित किया। इसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। अतः इसकी मृत्यु के बाद राज्य फिर विघटित हो गया।

कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-10 ई.)

भारत में तुर्की साम्राज्य का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक को माना जाता है। यह मुहम्मद गोरी का गुलाम था। 1206 ई. में इसने भारत में एक नए राजवंश गुलाम वंश की नींव डाली। इसने अपनी राजधानी लाहौर को बनाया। चौगान खेलते हुए घोड़े से गिरने के कारण इसकी मौत हो गई।

इल्तुतमिश (1210-36 ई.)

इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का दास व दामाद था। इसने दिल्ली को सल्तनत की राजधानी बनाया। इसने सुल्तान के पद को वंशानुगत बनाया। इसने एक संगठन तुर्कान ए चहलगानी का गठन किया। इसने चाँदी का टंका व ताँबे का जीतल चलाया। इसने इक्ता व्यवस्था की शुरुवात की।

रजिया सुल्तान (1236-40 ई.)

इल्तुतमिश ने अपने जीवनकाल में ही रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। फिर भी उस वक्त के अमीर एक स्त्री का शासन वर्दास्त न कर सके। वे रजिया के विरुद्ध षणयंत्र रचने लगे। 13 अक्टूबर 1240 को डाकुओं द्वारा रजिया की हत्या कर दी गई। इसके बाद नासिरुद्दी महमूद शासक बना।

बलबन (1266-87 ई.)

बलबन इल्तुतमिश द्वारा बनाए गए संगठन तुर्क ए चहलगानी का सदस्य था। अतः इसने सबसे पहले इसी दल का दमन किया। इसने रक्त व लौह की नीति को अपनाया। इसने कहा राजत्व का निरंकुश होना आवश्यक है। इसने सुल्तान के पद को दैवीय बताया। इसने खुद को अफरासियाब का वंशज बताया। सिजदा (सर झुकाना) व पाबोस (पैस चूमना) की प्रथा की शुरुवात की। ईरानी त्योहार नौरोज की शुरुवात की। बलबन के बाद उसका पौत्र कैकुबाद शासक बना।

जलालुद्दीन खिलजी (1290-96 ई.)

जलालुद्दीन ने 1290 ई. में सुल्तान बनकर एक नए राजवंश खिलजी वंश की नींव डाली। कैकुबाद द्वारा बनवाए गए किलोखरी महल में इसका राज्यारोहण हुआ। अलाउद्दीन के नेतृत्व में दक्षिण भारत पर पहला आक्रमण इसी के काल में हुआ। अलाउद्दीन खिलनी ने देवगिरि के शासक रामचंद्र देव पर आक्रमण किया। इसी काल में 2000 मंगोल इस्लाम अपनाकर मंगोलपुरी में बस गए। 19 जुलाई 1296 को भतीजे अलाउद्दीन द्वारा जलालुद्दीन की हत्या करवा दी गई।

अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.)

इसने शासक बनते ही सबसे पहले जलालुद्दीन के पूरे परिवार का कत्ल करवा दिया। दिल्ली में बलबन के लालमहल में इसने अपना राज्याभिषेक कराया। यह एक साम्राज्यवादी शासक था। सर्वाधिक मंगोल आक्रमण इसी के काल में हुए। दीवान ए रियासत विभाग की स्थापना की। दाग और चेहरा प्रथा की शुरुवात की। इसे मुख्य रूप से इसकी सुदृढ़ बाजार व्यवस्था के लिए जाना जाता है।

मुबारकशाह खिलजी (1316-20 ई.)

यह हिंदू धर्म से परिवर्तित मुसलमान था। इसने स्वयं को खलीफा घोषित किया।

गयासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.)

सिंचाई हेतु नहर का निर्माण कराने वाला पहला सुल्तान था। इसी के काल में सर्वप्रथम दक्षिण के राज्यों को सल्तनत में मिलाया गया। निजामुद्दीन औलिया ने इसी के बारे में कहा था ‘दिल्ली अभी दूर है‘।

मुहम्मद बिन तुगलक (1325-51 ई.)

यह सल्तनत काल का सबसे विद्वान व शिक्षित शासक था। ये अरबी, फारसी, दर्शनशास्त्र, खगोल विज्ञान, गणित, तर्कशास्त्र व चिकित्सा विज्ञान में निपुण था। 1333 ई. में इसी के काल में अफ्रीकी देश मोरक्को का निवासी इब्नबतूता भारत आया था। मु. तुगलक ने सल्तनत की राजधानी दिल्ली से दौलताबाद(देवगिरि) स्थानांतरित की। शासक ने कुछ प्रयोग किये जो विफल रहे। राजधानी परिवर्तन, सांकोतिक मुद्रा, खुरासान पर आक्रमण, कराचिल अभियान, दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि।

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फिरोज तुगलक (1351-88 ई.)

यह मुहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई था। इसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगाया। इसने 23 करों को समाप्त कर शरियत के अनुसार जजिया, जकात, खुम्स, खराज को जारी रखा। इसने जौनपर, फिरोजाबाद, व हिसारफिरोजा नगरों को बसाया। इसने अपने उत्तराधिकारी पुत्र फतह खाँ का नाम सिक्कों पर खुदवाया। इसने एक दान विभाग दीवान ए खैरात की स्थापना की। एलफिंस्टन व हेनरी इलियट ने इसे ‘सल्तनत युग का अकबर’ कहा।

खिज्र खाँ (1414-21 ई.)

सैय्यद वंश के संस्थापक खिज्र खां ने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। वह खुद को तैमूर का सेवक समझता था और ‘रैयत ए आला’ की उपाधि से ही संतुष्ट रहा। इसने सिक्कों पर तुगलक शासकों का ही नाम रहने दिया।

मुबारक शाह (1421-39 ई.)-

याहिया बिन सरहिंदी अहमद ने इसी के संरक्षण में ‘तारीख ए मुबारकशाही‘ लिखी। इसने अपने नाम का खुतबा पढ़वाया और सिक्के चलवाए।

बहलोल लोदी (1451-89 ई.)

इसने दिल्ली सल्तनत पर प्रथम अफगान साम्राज्य की नींव डाली। यह अफगानों की शाहूखेल शाखा से संबंधित था। 1484 ई. में इसने जौनपुर रियासत को सल्तनत में मिला लिया। यह कभी सिंहासन पर नहीं बैठा।

सिकंदर लोदी (1489-1517 ई.)

1504 ई. में सिकंदर लोदी ने आगरा नगर की स्थापना की। 1506 ई. में आगरा को सल्तनत की राजधानी बनाया। इसने गज ए सिकंदरी की शुरुवात की। यह गुलरुखी नाम से कविताएं लिखता था। इसने मुहर्रम व ताजिये निकलना बंद कर दिया। इसने हिंदुओं पर पुनः जजिया कर लगा दिया। इसने फरहंगे सिकंदरी नाम से एक आयुर्वेदिक ग्रंथ का अनुवाद फारसी में कराया।

इब्राहीम लोदी (1517-26 ई.)

1517-18 ई. में यह राणा सांगा से घटोली के युद्ध में पराजित हुआ। 1526 ई में बाबर से हुई पानीपत की प्रथम लड़ाई में यह हारा और मारा गया। इसकी मृत्यु के साथ लोदी वंश और दिल्ली सल्तनत दोनों का अन्त हो गया। युद्ध भूमि में मरने वाला यह दिल्ली सल्तनत का पहला व एकमात्र शासक था।

बाबर (1526-30 ई.)

पिता की मृत्यु के बाद मात्र 11 वर्ष की अवस्था में बाबर फरगना की गद्दी पर बैठा। पानीपत की पहली लड़ाई में विजय प्राप्त कर इसने भारत में एक नए राजवंश मुगल वंश की नींव रखी। इसके बाद खानवा, चंदेरी और घाघरा की लड़ाई लड़ी। मंगोलों की ही एक शाखा से संबंधित होने के कारण ये मुगल कहलाए। 26 दिसंबर 1530 को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गई। पहले उसे आगरा के आरामबाग में तत्पश्चात् काबुल में दफनाया गया। इसने तुर्की में अपनी आत्मकथा ‘तुजुक ए बाबरी’ लिखी।

हुमायूँ (1530-40 ई.) (1555-56 ई.)

यह बाबर का सबसे बड़ा पुत्र था। इसने अपने भाइयों में साम्राज्य का बंटवारा कर दिया। जून 1539 ई. में यह चौसा के युद्ध में शेरखाँ से बुरी तरह पराजित हुआ। हुमाय़ूं गंगा नदी में कूद गया, भिश्ती ने इसकी जान बचाई। मई 1540 में हुमायूं पुनः शेरखां से पराजित हुआ। इसके बाद ये निर्वासित जीवन जीने पर विवश हो गया। जून 1555 ई. में सरहिंद के युद्ध में हुमायूं ने अफगानों को बुरी तरह पराजित कर दिया। इस तरह एक बार फिर सत्ता मुगलों के हाथ में आ गई। इसके बाद जनवरी 1556 ई. में हुमायूं की मौत हो गई।

शेरशाह सूरी (1540-45 ई.)

शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था। इसने तलबार से एक शेर मार दिया था। बिहार के सूबेदार बहार खाँ लोहानी ने इसे शेरखाँ की उपाधि दी। चौसा के युद्ध में हुमायूं को हराने के बाद शेरशाह की उपाधि धारण की। हुमायूं को कन्नौज के युद्ध में पराजित कर दिल्ली की गद्दी हासिल की। इस तरह इसने सूर वंश के साथ द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की। 1542 ई. में इसने मालवा पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। एक रायसीन अभियान शेरशाह के चरित्र पर कलंक है। इसने कुरान की कसम खाने के बाद भी राजा पूरनमल के साथ छल किया। इसके प्रत्यक्षदर्शी कुतुबखाँ ने शर्म से आत्महत्या कर ली। मारवाड़ अभियान (1544 ई.) के दौरान शेरशाह ने कहा ‘मैं मुठ्ठी भर बाजरे के लिए लगभग आधे हिंदुस्तान का साम्राज्य खो चुका था।’ कालिंजर अभियान (1545 ई.) शेरशाह का अंतिम अभियान था। इसी अभियान में शेरशाह की मृत्यु हो गई।

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अकबर (1556 – 1605 ई.)

15 अक्टूबर 1542 ई. को अकबर का जन्म अमरकोट में राजा वीरसाल के महल में हुआ था। पिता हुमायूं की मृत्यु के दौरान ये पंजाब के सिकंदर सूर से युद्ध कर रहा था। 14 फरवरी 1556 को अकबर का राज्याभिषेक बैरम खां की देखरेख में हुआ। 1556 से 1560 के बीच अकबर बैरम खां के संरक्षण में रहा। अकबर ने 1562 ई. में दास प्रथा को समाप्त किया। 1564 ई. में जजिया कर समाप्त किया। गुजरात विजय की स्मृति में बुलंद दरबाजा बनवाया। अकबर के समय पहला विद्रोह 1564 में उजबेगों ने किया। 1576 ई. में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को हराया। 1601 ई. में असीरगढ़ पर आक्रमण अकबर की अंतिम विजय थी। 25 अक्टूबर 1605 को पेचिश के कारण अकबर की मृत्यु हो गई।

जहांगीर (1605-27 ई.)

जहांगीर के बचपन का नाम सलीम था। इसका जन्म सलीम चिश्ती की कुटिया में 30 अगस्त 1569 ई. को हुआ था। अकबर की मृत्यु के बाद 3 नवंबर 1605 को आगरा किले में सलीम का राज्याभिषेक हुआ। यह जहाँगीर के नाम से भारत का शासक बना। शासक बनने के बाद इसने न्याय की जंजीर स्थापित की। 1623 ई. में शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) ने विद्रोह कर दिया। महावत खाँ ने इस विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिक निभाई। बाद में 1626 ई. में महाबात खाँ ने विद्रोह कर दिया। 28 अक्टूबर 1627 को जहाँगीर की मृत्यु हो गई। इसे रावी नदी के तट पर शाहदरा (लाहौर) में दफनाया गया।

शाहजहाँ (1727-58 ई.)

शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 ई. को लाहौर में हुआ था। इसके बचपन का नाम खुर्रम था। 1612 ई. में इसका विवाह आसफखाँ की बेटी अर्जुमंद बानो बेगम (मुमताज महल। से हुआ। मुमताज महल से शाहजहाँ की 14 संतानें पैदा हुई। परंतु इन 14 में से 7 ही जीवित बची। पिता जहाँगीर की मृत्यु के समय यह दक्षिण में था।

24 जनवरी 1628 को शहजादा खुर्रम शाहजहां के नाम से भारत का शासक बना। 1630-32 में दक्कन व गुजरात में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। शाहजहाँ ने 1633 ई. में अहमदनगर पर आक्रमण कर साम्राज्य में मिला लिया। सितंबर 1657 ई. में शाहजहाँ के बीमार पड़ते ही पुत्रों में उत्तराधिकार की लड़ाई शुरु हो गई। शासक के जीवित रहते उत्तराधिकार के लिए हुआ यह पहला युद्ध था। इस युद्ध में औरंगजेब को जीत हासिल हुई। 1658 ई. में औरंगजेब ने शाहजहाँ से सिंहासन हड़प लिया और इन्हें कैद कर लिया। 1666 ई. में शाहजहाँ की मृत्यु हो गई। सबसे बड़ी पुत्री जहाँआरा ने इनकी मृत्यु तक सेवा की।

औरंगजेब (1658-1707 ई.)

औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 ई. को दोहद (उज्जैन) में हुआ था। पिता शाहजहाँ को गद्दी से उतार कर जुलाई 1658 ई. में भारत का शासक बना। इसके बाद दाराशिकोह व शाहशुजा को परास्त कर जून 1659 ई. में पुनः राज्याभिषेक कराया। शासन के 11वें वर्ष झरोखा दर्शन की प्रथा को बंद कर दिया। 12वें वर्ष तुलादान की प्रथा को बंद कर दिया। 1679 ई. में जजिया कर लगाया। 1682 ई. में यह शहजादे अकबर का पीछा करता हुआ दक्षिण पहुँचा। इसके बाद इसे उत्तर में आने का मौका ही नहीं मिला। सितंबर 1686 ई. में बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। अक्टूबर 1687 ई. में गोलकुण्डा को मगुल साम्राज्य में मिला लिया। 3 मार्च 1707 ई. को अहमदनगर के निकट औरंगजेब की मृत्यु हो गई।

बहादुरशाह प्रथम (1707-12 ई.)

औरंगजेब के बाद बहादुरशाह 65 वर्ष की अवस्था में भारत का शासक बना। इसने जजिया कर को समाप्त कर दिया। 27 फरवरी 1712 ई. को बहादुरशाह की मृत्यु हो गई। सिडनी ओवन के अनुसार ‘यह अंतिम मुगल शासक था जिसके बारे में कुछ अच्छा कहा जा सकता है।’ इसके बाद के मुगल वंश लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक चला। परंतु पूर्व मुगलों की अपेक्षा प्रतिष्ठा में तेजी से कमी आती गई।

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