कवियों की जीवनी ( Kaviyo Ki Jeevani )

कवियों की जीवनी ( Kaviyo Ki Jeevani ) के अंतर्गत भारत के महान कवियों और लेखकों की जीवनी संकलित की गई है ।

  • तुलसीदास
  • सूरदास
  • कबीर दास
  • रसखान
  • बिहारीलाल
  • सुमित्रानन्दन पंत
  • महादेवी वर्मा
  • मैथिलीशरण गुप्त
  • सुभद्राकुमारी चौहान
  • माखनलाल चतुर्वेदी
  • प. रामनरेश त्रिपाठी
  • मीरा बाई
  • मुंशी प्रेमचन्द
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल
  • भारतेंदु हरिश्चंद्र
  • रामधारी सिंह ‘दिनकर’
  • सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
  • सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
  • जयशंकर प्रसाद
  • अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

सूरदास : एक नजर में

सूरदास

  • नाम – सूरदास
  • जन्म –  1478 ई.
  • जन्म स्थान – रुनकता गाँव
  • पिता का नाम – प. रामदास
  • गुरु –बल्लभाचार्य
  • भाषा – ब्रजभाषा
  • शैली – सरल व प्रभावपूर्ण
  • मृत्यु – 1583 ई.
  • प्रमुख रचनाएं – सूरसागर, सूरसावली, साहित्य लहरी।

सूरदास की जीवनी

भारत के महान कवि सूरदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के रुनकता नामक गाँव में 1478 ई. में हुआ था। कुछ विद्वान ‘सीही’ नामक स्थान को सूरदास जी का जन्म स्थान मानते हैं। इनके पिता का नाम प. रामदास था, जो कि एक सारस्वत ब्राह्मण थे। सूरदास जन्मांध थे या नहीं इस बारे में भी मतभेद है। उन्होंने कृष्ण की बाल-मनोवृत्ति और बाल स्वभाव का जिस बारीकी से वर्णन किया है। ऐसा कोई जन्मांध व्यक्ति कर ही नहीं सकता। वह व्यक्ति जो जन्म से अंधा हो वह रंगों तक में फर्क नहीं कर सकता। उनके द्वारा रचनाओं में किया गया वर्णन उनके जन्मांध होने पर पश्न खड़ा करता है। संभवतः वे बाद में अंधे हुए होंगे। इनके गुरु बल्लभाचार्य मथुरा के गऊघाट के श्रीनाथ मंदिर में रहते थे। इन्हीं के संपर्क में आने के बाद सूरदास जी कृष्णभक्ति मे रम गए।

मथुरा में ही सूरदास जी की भेंट तुलसीदास से हुई। इनकी मृत्यु 1583 ई. में गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में हुई। इनकी मृत्यु के समय वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ वहाँ पर उपस्थित थे। अपने अंतिम समय में इन्होंने यह पद लिखा था –

“भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो।

श्रीबल्लभ नख-छन्द-छटा-बिनु सब जग माँझ अँधेरा।।”

सूरसागर –

यह एक गीतिकाव्य है। यह सूरदास जी की एकमात्र प्रामाणिक कृति है। इस मूल रचना में कुल सवा लाख पद थे। परंतु उनमें से 8-10 हजार पद ही उपलब्ध हैं।

साहित्यलहरी –

सूरदास के इस ग्रंथ में 118 दृष्टकूट पद हैं। इसमें मुख्यतः अलंकारों व नायिकाओं की विवेचना की गई है।

सूरसावली –

सूरसावली में 1107 छन्द हैं। यह ग्रंथ अभी भी विवादास्पद स्थिति में है।

तुलसीदास : एक नजर में

  • नाम – गोस्वामी तुसलीदास
  • जन्म – 1532 ई.
  • जन्म स्थान – राजापुर ग्राम
  • पिता का नाम – आत्माराम दुबे
  • माता – हुलसी
  • गुरु – नरहरिदास
  • भाषा – अवधी , ब्रज
  • शैली – गीत, दोहा, चौपाई, छप्पय, कवित्त-सवैया
  • मृत्यु – 1623 ई. (91 वर्ष की अवस्था में)
  • प्रमुख रचनाएं – रामचरितमानस, दोहावली, गीतावली, कवितावली, विनयपत्रिका इत्यादि।

तुलसीदास की जीवनी –

तुलसीदास

तुलसी के जन्म के समय और जन्म स्थान के विषय में सभी विद्वान एकमत नहीं है। परंतु अधिकांश विद्वानों द्वारा इनके जन्म की तिथि 1532 ई. बताई गई है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। परंतु कुछ विद्वान इनका जन्म एटा जिले के सोरों नामक स्थान को मानते हैं। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। इनका जन्म ऐसे अशुभ नक्षत्र में हुआ था कि शिशुकाल में ही इनके माता पिता ने इन्हें त्याग दिया। इनका पालन पोषण नरहरिदास ने किया। इन्होंने संत बाबा नरहरिदास से भक्ति की शिक्षा ग्रहण की। इसके साथ ही इन्होंने वेद, वेदांग, पुराण, दर्शन व इतिहास की भी शिक्षा प्राप्त की।

इनका विवाह दीनबन्धु पाठक की कन्या हुलसी से हुआ। ये अपनी पत्नी से अत्यंत प्रेम करते थे। एक दिन वे अपने मायके चली गईं। तब उनसे मिलते के लिए तुलसीदास रात में आँधी, बरसात में नदी पार कर उनसे मिलने उनके मायके पहुँचे। इस पर उनकी पत्नी ने इनसे कहा ‘जितना प्रेम तुम मुझसे करते हो, उतना श्रीराम से करो’ तो जीवन का उद्धार होगा। इससे वे विरक्त हो गए और काशी चले गए। इसके बाद इन्होंने कई तीर्थ यात्राएं कीं। अयोध्या आकर इन्होंने रामचरित मानस की रचना प्रारंभ की। जिसे पूर्ण करने में इन्हें 2 वर्ष 7 माह का समय लगा। वर्ष 1623 में असी घाट पर इनका देहांद हो गया। इनकी मृत्यु के बारे में एक दोहा प्रसिद्ध है –

“संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।

श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी जत्यो शरीर।।”

तुलसीदास की कृतियाँ –

रामचरितमानस, गीतावली, दोहावली, कवितावली, विनयपत्रिका, जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल, श्रीकृष्ण गीतावली, रामलला-नहछू, वैराग्य-संदीपनी, रामाज्ञा प्रश्न, बरवै-रामायण। रामचरितमानस अवधी में है।

कबीरदास : एक नजर में

  • नाम – कबीर दास
  • जन्म – 1398 ई.
  • जन्म स्थान – काशी
  • गुरु – रामानन्द
  • भाषा – सधुक्कड़ी
  • शैली – उपदेशात्मक
  • मृत्यु – 1518 ई.
  • प्रमुख रचनाएं – साखी, सबद, रमैनी इत्यादि।

कबीरदास की जीवनी –

कबीरदास का जीवन परिचय

महान कवि व समाज सुधारक कबीरदास का जन्म 1398 ई. में काशी में हुआ था। एक किंवदंति के अनुसार इनका जन्म एक विधवा ब्राह्मण स्त्री के गर्भ से हुआ था। अतः लोकलाज के कारण उसने इन्हें वाराणसी की लहरतारा नामक जगह पर एक लाताब के निकट रख आयी। वहीं से इन्हें नीमा और नीरू नामक एक मुस्लिम जुलाहा दम्पति ने उठा लिया। इसी मुस्लिम दम्पति ने कबीरदास जी का पालन पोषण किया। इनका बचपन मगहर में व्यतीत हुआ। बाद में ये काशी में जाकर बस गए। इनका विवाह लोई से हुआ। इनकी कमाल और कमाली नामक दो संतान हुईं। ये  मूलतः एक संत कवि थे। धर्म के दिखावटी बाहरी आचार-विचार व कर्मकाण्डों में इनकी जरा भी रुचि नहीं थी। तात्कालिक समाज और धर्म में व्याप्त संकीर्णताओं से इनका मन अत्यंत व्याकुल हुआ। इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदू और मुस्लिम दोनों ही के आडम्बरों पर गहरी चोट की।

जीवन के अंतिम समय में ये पुनः मगरह आ गए। मगहर में ही सन् 1518 में इनका देहांत हो गया। इनकी मृत्यु की तिथि के बारे में विद्वानों में मतभदे है। अधिकांश विद्वान 1518 ई. को इनकी मृत्यु की तिथि मानते हैं। इनका अंतिम संस्कार किस धर्मानुसार हो इस बारे में हिंदू व मुस्लिमों में विवाद हुआ। हिंदू इनका दाह संस्कार करना चाहते थे। मुस्लिम इन्हें दफनाना चाहते थे।

रसखान : एक नजर में

  • नाम – रसखान
  • मूल नाम – सय्यद इब्राहीम
  • जन्म – 1533 ई.
  • जन्म स्थान – दिल्ली
  • गुरु – गोस्वामी विट्ठलदास
  • भाषा – ब्रज भाषा
  • शैली – गीत, दोहा, छन्द, सवैया, कवित्त इत्यादि।
  • मृत्यु – 1618 ई.
  • रचनाएं – प्रेमवाटिका, सुजान रसखान।

रसखान की जीवनी –

रसखान

रीतिकाल के इस कवि का मूल नाम सय्यद इब्राहीम था। इनका जन्म 1533 ई. में दिल्ली के एक पठान परिवार में हुआ था। युवावस्था में इनका चाल-चलन ठीक नहीं था। परंतु विट्ठलदास के संपर्क में आने के बाद इनके जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन हुए। ये गोस्वामी विट्ठलदास के शिष्य बन गए। उन्ही के प्रभाव में इनका झुकाव वैष्णव धर्म की ओर हो गया और ये सच्चे कृष्णभक्त बन गए। इनका अधिकतम जीवन ब्रजक्षेत्र में व्यतीत हुआ। जिससे इनकी कृष्णभक्ति और भी निखर गई। 1618 ई. में इनका देहांत हो गया। कृष्णभक्त कवियों में रसखान का विशिष्ट स्थान है। रसखान द्वारा रचित सिर्फ दो ग्रंथ प्रेमवाटिका और सुजान रसखान ही उपलब्ध हैं।

बिहारीलाल : एक नजर में

  • नाम – बिहारीलाल
  • जन्म – 1603 ई.
  • जन्म स्थान – बसुआ
  • पिता का नाम – प. केशवराय चौबे
  • गुरु – बाबा नरहरि सिंह
  • भाषा – प्रौढ़ परिमार्जित ब्रज
  • शैली – शैली
  • मृत्यु – 1663 ई.
  • प्रमुख रचना – बिहारी सतसई

बिहारीलाल की जीवनी –

कवि बिहारीलाल का जन्म 1603 ई. में ग्वालियर के समीप ‘बसुआ गोविंदपुर’ गाँव में हुआ था। इनका जन्म एक चतुर्वेदी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम केशवराय था। ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे। कहा जाता है कि इनके गुरु नरहरिसिंह ने इनका परिचय मुगल शासक जहाँगीर से कराया था। इसके बाद बिहारी को जहाँगीर का आश्रय प्राप्त हुआ। ये युवावस्था में अपनी ससुराल मथुरा में आकर रहने लगे। इसके बाद यह जयपुर के शासक जयसिंह के पास गए। वहाँ इन्होंने राजा को रानी के प्रेम में विभोर पाया। जिस कारण सब राजकाज चौपट हो रहा था। तब कवि बिहारी ने एक दोहा लिखकर राजा के पास पहुँचाया –

“नहिं पराग, नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल।

अलि कलि ही सौ बिंध्यौं, आगे कौन हवाल।।”

इसे पढ़ने के बाद राजा की आँखें खुल गई और अपने उत्तरदायित्वों का एहसास हुआ। साथ ही वे कवि बिहारी की विलक्षण प्रतिभा से भी बहुत प्रभावित हुए। राजा ने कवि बिहारी को प्रत्येक सुन्दर दोहे पर 1 स्वर्ण मुद्रा देने का वचन दिया। बिहारी सतसई की रचना पूर्ण करने के कुछ समय बाद ही इनकी पत्नी का देहांत हो गया। इस घटना ने इनके मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया। अपने अंतिम दिनों में ये वृंदावन आ गए। यहीं पर 1663 ई. में इनकी मृत्यु हो गई।

सुमित्रानंदन पंत : एक नजर में

  • नाम – सुमित्रानंदन पंत
  • मूल नाम – गुसाईं दत्त
  • जन्म – 1900 ई.
  • जन्म स्थान – कौसानी ग्राम
  • पिता का नाम – प. गंगादत्त पंत
  • माता – सरस्वती देवी
  • भाषा – खड़ीबोली
  • शैली – चित्रमय व संगीतात्मक
  • मृत्यु – 1977 ई.
  • प्रमुख रचनाएं – वीणा, पल्लव, युगवाणी, लोकायतन, शिल्पी, कला और बूढ़ा चाँद इत्यादि

सुमित्रानंदन पंत का जीवनी –

सुमित्रानंदन पंत

इनका जन्म 1900 ई. में उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के ‘कौसानी’ गाँव में हुआ था। इनका मूल नाम गुसाईं दत्त था। इनके पिता का नाम गंगाधर पंत और माता का नाम सरस्वती देवी था। इनके जन्म के कुछ घंटों बाद ही इनकी माँ की मृत्यु हो गई। इन्होंने मात्र 7 वर्ष की आयु में अपनी एक कविता लिखी। गाँव की पाठशाला में प्रारंभिक शिक्षा पाने के बाद 12 वर्ष की अवस्था में इन्होंने अल्मोड़ा के राजकीय हाई स्कूल में प्रवेश लिया। यहाँ से 9वीं कक्षा पास की। इसके बाद ये काशी चले गए। हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा इन्होंने काशी से पास की।

1921 ई. में असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने के बाद इन्होंने कॉलेज छोड़ दिया। 1931 ई. में ये कालाकांकर चले गए। यहाँ पर इन्होंने मार्क्सवाद का अध्ययन किया। स्वर्णधूलि, स्वर्णकिरण, और उत्तरा नामक काव्य संकलनों की रचना इन्होंने अरविंद दर्शन से प्रभावित होकर की थी। 1950 ई. में ये आकाशवाणी से जुड़े। 1977 ई. में प्रकृति के इस कवि का देहांत हो गया। इन्हें भारत के महान प्रकृति कवि के रूप में जाना जाता है। इन्हें भारत का विलियम वर्ड्रवर्थ भी कहा जाता है।

महादेवी वर्मा – एक नजर में

  • नाम – महादेवी वर्मा
  • जन्म – 1907 ई.
  • जन्म स्थान – फर्रुखाबाद
  • पिता का नाम – गोविंद वर्मा
  • माता – हेमरानी देवी
  • भाषा – ब्रजभाषा, खड़ीबोली
  • शैली – मुक्तक, चित्र, प्रगीत, सम्बोधन, प्रश्न इत्यादि।
  • सम्पादन – चाँद (पत्र)
  • मृत्यु – 1987 ई.
  • प्रमुख रचनाएं – यामा, हिमालय, नीरजा, दीपशिखा, नीहार, रश्मि, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं इत्यादि

महादेवी वर्मा की जीवनी –

महदेवी वर्मा

इनका जन्म 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक शिक्षित परिवार में हुआ था। इनके पिता गोविंद वर्मा बिहार के भागलपुर के एक कॉलेज के प्रधानाचार्य थे। इनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। इनकी माता की हिंदी साहित्य में गहरी रुचि थी। जिस कारण वे कभी-कभी कविताएं भी लिखा करती थीं। अतः इन्हें यह साहित्यिक अनुराग पैतृक रूप से प्राप्त हुआ। इन्हेंने 1933 ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में संस्कृत विषय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसी साल ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्य नियुक्त की गईं। इस पद पर रहते हुए ही इन्होंने कुछ समय तक चाँद नामक पत्र का  सम्पादन भी किया। इन पर महात्मा गाँधी और रविंद्रनाथ टैगोर का गहरा प्रभाव पड़ा। 1987 ई. में इनका निधन हो गया।

भारत सरकार ने महादेवी वर्मा को पद्म भूषण से सम्मानित किया। 1983 ई. में महादेवी वर्मा को इनके काव्य ग्रंथ यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1983 ई. में ही उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें 1 लाख रुपये का भारत भारतीय पुरस्कार प्रदान किया।

मैथिलीशरण गुप्त : एक नजर में

  • नाम – मैथिली शरण गुप्त
  • जन्म – 1886 ई.
  • जन्म स्थान – चिरगाँव (झाँसी, उत्तर प्रदेश)
  • पिता का नाम – रामचरण गुप्त
  • भाषा – खड़ीबोली
  • शैली – प्रबंधात्मक, उपदेशात्मक, विवरणात्मक, अलंकृत, मिश्र।
  • मृत्यु – 1964 ई.
  • प्रमुख रचनाएं – भारत भारती, साकेत, यशोधरा, पंचवटी, विष्णुप्रिया, जयभारत इत्यादि।
  • साहित्य में स्थान – राष्ट्रकवि

मैथिलीशरण गुप्त का जीवनी –

मैथिलीशरण गुप्त

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 1886 ई. में उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के चिरगाँव में हुआ था। इनके पिता सेठ रामचरण एक वैश्य थे। इनके पिता स्वंय काव्य प्रेमी थे और कविताएँ भी लिखा करते थे। मैथिलीशरण गुप्त को कविताएं लिखने की प्रेरणा अपने पिता से ही मिली। बचपन में इन्होंने अपने पिता की कॉपी पर एक छप्पय लिख दिया था। जिससे खुश होकर इनके पिता ने आशीर्वाद दिया ‘तुम सफल सिद्ध कवि हो’। भविष्य में उनका आशीर्वाद सफल सिद्ध हुआ। प्रारंभ से ही इनकी रुचि शिक्षा में नहीं थी। प्रारंभिक शिक्षा के बाद अंग्रेजी की शिक्षा के लिए इन्हें झाँसी भेजा गया। परंतु वहाँ पर इनका मन नहीं लगा और ये बापस लौट आये। इसके बाद इन्होंने घर पर ही अध्ययन किया। इसके कुछ समय बाद ही ये काव्य रचना करने लगे।

इनकी रचनाएं हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होने लगीं। ये अपना गुरु आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को मानते थे। इनके छोटे भाई सियाराम शरण गुप्त भी अच्छे कवि व लेखक थे। मैथिलीशरण की कविताओं में राष्ट्रप्रेम की भावना झलकती थी। जिस कारण ये कई बार जेल भी गए। इनकी काव्य साधना और राष्ट्रप्रेम से  प्रभावित होकर आगरा विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट्. की उपाधि से सम्मानित किया। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने इन्हें साहित्य वाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया। साहित्य जगत में इनकी देन के लिए राष्ट्रपति ने इन्हें दो बार राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया। 12 दिसंबर 1964 को इनकी मृत्यु हो गई।

सुभद्राकुमारी चौहान : एक नजर में

  • नाम – सुभद्रा कुमारी चौहान
  • जन्म – 1904 ई.
  • जन्म स्थान – निहालपुर (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश)
  • पिता का नाम – रामदास सिंह
  • पति – लक्ष्मण सिंह चौहान
  • भाषा – साहित्यिक खड़ीबोली
  • शैली – ओजयुक्त व्यावहारिक
  • मृत्यु – 1948 ई.
  • प्रमुख रचनाएं – बिखरे मोती, सीधे-सादे चित्र, उन्मादिनी।

सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी –

सुभद्रा कुमारी चौहान

राष्ट्रीय चेतना की अमर गायिका और वीर रस की एकमात्र भारतीय कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। इनका जन्म 1904 ई. में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के निहालपुर गाँव में हुआ था। इनका जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रामदास सिंह था। इन्होंने इलाहाबाद के क्रॉस्थवेट महिला विद्यालय से शिक्षा ग्रहण की। मात्र 15 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह मध्यप्रदेश के अण्डवा के रहने वाले ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से कर दिया गया। इन्होंने अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़ दी। महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर ये देश सेवा में जुट गईं और राष्ट्रीय कार्यो में भाग लेने लगीं। इन्होंने राष्ट्रप्रेम संबंधी कविताएं लिखना प्रारंभ किया। इस कारण इन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। इन्हें साहित्यिक व राजनीतिक कार्यों में माखनलाल चतुर्वेदी से विशेष प्रोत्साहन मिला। 1948 ई. में एक मोटर दुर्घटना में इनकी मृत्यु हो गई।

माखनलाल चतुर्वेदी : एक नजर में

  • नाम – माखनलाल चतुर्वेदी
  • जन्म – 1889 ई.
  • जन्म स्थान – बावई (मध्यप्रदेश)
  • पिता का नाम – नन्दलाल चतुर्वेदी
  • भाषा – सरल व प्रभावपूर्ण
  • शैली – मुक्तक
  • मृत्यु – 1968 ई.
  • प्रमुख रचनाएं – हिमतरंगिनी, माता, समर्पण, रामनवमी, युगचरण, साहित्य-देवता इत्यादि।

माखनलाल चतुर्वेदी की जीवनी –

माखनलाल चतुर्वेदी

इनका जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बावई गाँव में 1889 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. नन्दलाल चतुर्वेदी था। इनके पिता एक अध्यापक थे। उन्हीं की देखरेख में माखनलाल चतुर्वेदी की शिक्षा दीक्षा हुई। घर पर ही इन्होंने हिदी, संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला व गुजराती भाषाओं का अध्ययन किया। पहले इन्होंने अध्यापन का कार्य प्रारंभ किया। उसके बाद त्यागपत्र देकर ये पत्रकारिता करने लगे। इन्होने कर्मवीर पत्र का सम्पादन किया। इन्होंने कानपुर के प्रभा पत्र का भी सम्पादन किया। इन्होंने राष्ट्रीय आंदोलनों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इसके लिए ये कई बार जेल भी गए। 1943 ई. में इन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। इनकी विद्वत्ता के लिए सागर विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट् की उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। 1968 ई. में इनकी मृत्यु हो गई।

प. रामनरेश त्रिपाठी : एक नजर में

  • नाम – रामनरेश त्रिपाठी
  • जन्म – 1889 ई.
  • जन्म स्थान – कौइरीपुर
  • पिता का नाम – रामदत्त त्रिपाठी
  • भाषा – खड़ीबोली
  • शैली – गीतात्मक
  • मृत्यु – 1962 ई.
  • प्रमुख रचनाएं – पथिक, मानसी, मिलन, प्रेमलोक, महात्मा बुद्ध इत्यादि।

रामनरेश त्रिपाठी की जीवनी –

रामनरेश त्रिपाठी

पं. रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 1889 ई. में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के ‘कौइरीपुर’ गाँव में हुआ था। इनके पिता पं. रामदत्त त्रिपाठी एक साधारण कृषक थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। इसके बाद अंग्रेजी की शिक्षा के लिए ये जौनपुर आ गए। आर्थिक स्थित ठीक न होने के कारण इन्हें अपनी शिक्षा मध्य में ही छोड़कर बापस आना पड़ा। इस प्रकार ये 9वीं तक ही शिक्षा ग्रहण कर सके। 1962 ई. में इनका निधन हो गया। साहित्य जगत में इन्हें स्वच्छंदवादी काव्यधारा के कवियों में स्थान प्राप्त है। इनकी कविताएं देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत हैं।

मीराबाई : एक नजर में

  • नाम – मीराबाई
  • जन्म – 1498 ई.
  • जन्म स्थान – चौकड़ी ग्राम (राजस्थान)
  • पिता का नाम – राव रत्नसिंह
  • पति – भोजराज
  • मृत्यु – 1546 ई.
  • भाषा – ब्रजभाषा
  • शैली – मुक्तक अथवा भावपूर्ण शैली
  • प्रमुख रचनाएं – नरसीजी का मायरा, गीत गोविन्द की टीका, गरबा गीत, मीरा की मल्हार, राग-गोविंद, राग सोरठ के पद, राग विहाग, फुटकर पद।

मीराबाई की जीवनी –

मीराबाई

इनका जन्म 1498 ई. में राजस्थान के चौकड़ी ग्राम में राव रत्नसिंह के घर हुआ। ये राव रत्नसिंह की एकलौती पुत्री थीं। भारत की महान कवयित्री मीरा बाई भगवान कृष्ण की अनन्य उपासिका थीं। इनकी भक्ति साधना ही इनकी काव्य साधना है। इनका विवाह मेवाड़ के राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज से हुआ। परंतु मात्र 20 वर्ष की अवस्था में ही ये विधवा हो गईं। कृष्ण आराधना के लिए इन्होंने अपना राजसी वैभव त्याग दिया और इसके बाद ये वृंदावन चली आयीं। 1546 ई. में इनका देहांत हो गया। इनकी प्रसिद्धि का आधार इनकी महत्वपूर्ण रचना ‘मीरा पदावली’ है। इनकी रचनाएं करुणा से परिपूर्ण हैं। इन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना नरसीजी का मायरा में गुजरात के प्रसिद्ध भक्ति कवि नरसी मेहता की प्रशंसा की है।

मुंशी प्रेमचन्द : एक नजर में

  • जन्म – 1880 ई.
  • जन्म स्थान – लमही गाँ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
  • पिता – अजायब राय
  • माता – आनन्दी देवी
  • पत्नी – शिवरानी देवी
  • मृत्यु – 1936 ई.

प्रेमचन्द की जीवनी –

मुंशी प्रेमचंद

‘उपन्यास सम्राट’ के नाम से जाने जाने वाले मुंशी प्रेमचंद का जन्म 1880 ई. में उत्तरप्रदेश के वाराणसी के लमही गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम अजायब राय और माता का नाम आनन्दी देवी था। ये भारत के महान उपन्यासकार व कहानीकार थे। साहित्यकार डॉ. द्वारिकाप्रसाद ने इनके बार में लिखा है ‘हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचन्द का आगमन एक ऐतिहासिक घटना थी।’ इनका प्रारंभिक जीवन अभाव में गुजरा। हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद इन्होंने 20 रुपये माह पर एक स्कूल में पढ़ाना शुरु किया। इण्टरमीडिएट में एडमिशन लिया, परंतु असफल होने के कारण पढ़ाई छोड़ दी। बाद में इन्होंने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

वैवाहिक जीवन –

इनका पहला विवाह विद्यार्थी जीवन में ही हो गया। परंतु यह अनुकूल नहीं रहा। बाद में इन्होंने दूसरा विवाह शिवरानी देवी से किया।

शिक्षक व सम्पादक के रूप में –

असहयोग आंदोलन के दौरान इन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। कुछ समय इनका जीवन बड़े कष्टों में बीता। बाद में 1931 ई. में इन्हें कानपुर के मारवाड़ी विद्यालय में अध्यापक की नौकरी मिल गई। कुछ समय बाद ये यहाँ के प्रधानाध्यापक हो गए। परंतु प्रबंधकों से मतभेद हो जाने के कारण इन्होंने त्यागपत्र दे दिया।

साहित्यिक जीवन में प्रवेश करने के बाद सबसे पहले इन्होंने ‘मर्यादा’ पत्रिका का सम्पादन किया। यह कार्य इन्होंने डेढ़ साल तक किया। इसके बाद काशी विद्यापीठ चले गए और प्रधान अध्यापक नियुक्त हुए। इस पद पर भी ज्यादा समय नहीं रह सके। इसके बाद इन्होंने ‘माधुरी’ पत्रिका का सम्पादन किया। इसी का सम्पादन करने के दौरान ये भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गए। इसके बाद काशी में अपना प्रेस खोला और ‘हंस’ व ‘जागरण’ नामक दो पत्र निकालना शुरु किए। इनके प्रकाशन में इन्हें बहुत आर्थिक क्षति उठानी पड़ी। इसलिए ये आठ हजार रुपये के वार्षिक वेतन पर एक फिल्म कंपनी में नौकरी करने लगे। बम्बई रहने के दौरान इनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। तब के काशी आकर अपने गाँव में रहने लगे। लम्बी बीमारी के बाद 1936 ई. में इनका निधन हो गया। जीवनी ।

प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन –

प्रेमचन्द को विश्व के महान कहानीकार व अपन्यासकारों में गिना जाता है। आधुनिक कथा साहित्य का तो इन्हें जनक ही कहा जाता है। ये प्रारंभ में ‘नवाबराय’ के नाम से उर्दू में कहानियाँ व उपन्यास लिखा करते थे। उर्दू में इनकी कुछ राजनीतिक कहानियां ‘धनपतराय’ के नाम से प्रकाशित हुईं। ‘सोजे वतन’ इनकी एक क्रांतिकारी रचना है। जिसने स्वाधीनता संग्राम के दौरान ऐसी हलचल मचाई कि अंग्रेजों को यह कृति जब्त करनी पड़ी। महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा पर इन्होंने 1915 ई. में प्रेमचन्द नाम धारण कर हिन्दी साहित्य जगत में पदार्पण किया। अपने साहित्यिक जीवन में इन्होंने एक दर्जन उपन्यास और 300 कहानियां लिखीं। कहानी व उपन्यास के अतिरिक्त नाटक, निबन्ध, व जीवन-चरित की भी रचना की। जीवनी ।

प्रेमचन्द की रचनाएं –

उपन्यास – गोदान, गबन, कर्मभूमि, रंगभूमि, निर्मला, वरदान, प्रेमाश्रय, कायाकल्प, प्रतिज्ञा, सेवासदन, मंगलसूत्र (अपूर्ण रचना)।

कहानी संग्रह – प्रेम पचीसी, प्रेम चतुर्थी, प्रेम गंगा, कफन, प्रेरणा, प्रेम प्रसून, सप्त सुमन, ग्राम्य जीवन की कहानियाँ, कुत्ते की कहानी, अग्नि समाधि, नवनिधि, सप्त सरोज, मानसरोवर (10 भाग), मनमोदक, समर यात्रा।

नाटक – कर्बला, प्रेम की वेदी, रूठी रानी, संग्राम।

निबंध संग्रह – कुछ विचार।

जीवन चरित – कलम, दुर्गादास, तलवार और त्याग, राम चर्चा, महात्मा शेखसादी।

सम्पादित – गल्प-रत्न, गल्प-समुच्चय।

अनूदित – चाँदी की डिबिया, अहंकार, टॉलस्टाय की कहानियाँ, आजाद-कथा, सृष्टि का आरम्भ, सुखदास।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : एक नजर में

  • नाम – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
  • जन्म तिथि – 1884 ई.
  • जन्म स्थान – अनोगा ग्राम जिला बस्ती (उत्तर प्रदेश)
  • पिता का नाम – पं. चन्द्रबली शुक्ल
  • शिक्षा – हाई स्कूल
  • मृत्यु – 1941 ई.
  • सम्पादन – नागरी प्रचारिणी पत्रिका, हिन्दी शब्द सागर, आनन्द कादम्बिनी
  • विधा – निबन्ध, नाटक, इतिहास, काव्य, आलोचना, पत्रिका।
  • भाषा शैली – शुद्ध साहित्यिक, सरल व व्यावहारिक भाषा।
  • प्रमुख रचनाएं – चिन्तामणि, रसमीमांसा, अभिमन्यु वध, हिन्दी साहित्य का इतिहास

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की जीवनी –

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

इनका जन्म 1884 ई. में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अनोगा ग्राम में आश्विन पूर्णिमा के दिन हुआ था। इनके पिता का नाम चन्द्रबली शुक्ल था। इनकी माता अत्यंत विदुषी और धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। शुक्ल जी ने मिर्जापुर के मिशन स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इण्टरमीडिएट में आने पर इनकी शिक्षा बीच में ही छूट गई। बाद में इन्होंने मिर्जापुर न्यायालय में नौकरी कर ली। बाद में यह नौकरी छोड़ दी और मिर्जापुर के एक स्कूल में शिक्षक बन गए। इसी दौरान इन्होंने स्वाध्याय से हिन्दी, अंग्रेजी, बांग्ला, संस्कृत, उर्दू, फारसी का ज्ञान प्राप्त किया। काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने इन्हें हिन्दी शब्द सागर का सम्पादन करने के लिए आमंत्रित किया। बाद में ये काशी विश्वविद्यालय में हिन्दी के अध्यापक बने। यहाँ डॉ. श्यामसुंदर दास के अवकाश ग्रहण करने के बाद शुक्ल जी को हिन्दी विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

रामचन्द्र शुक्ल की रचनाएं –

  • निबन्ध संग्रह – चिन्तामणि (भााग 1 और 2), विचारवीथी।
  • काव्य – अभिमनुय वध, ग्यारह वर्ष का समय।
  • आलोचना – रसमीमांसा, त्रिवेणी।
  • इतिहास – हिन्दी साहित्य का इतिहास।
  • सम्पादन – काशी नागरी प्रचारिणी सभा, आनन्द कादम्बिनी, भ्रमरगीत सार, जायसी ग्रंथावली, तुलसी ग्रन्थावली।

भारतेंदु हरिश्चंद्र –

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय ( Bharatendu Harishchandra ka Jivan Parichay )

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850 ई. में काशी में हुआ था। इनके पिता का नाम गोपालचंद्र गिरिधरदास था। इनकी 5 वर्ष की अवस्था में इनकी माता का देहांत हो गया। जब भारतेंदु 10 वर्ष के थे तब इनके पिता का भी देहांत हो गया। मात्र 9 वर्ष की अवस्था से ही इन्होंने रचनाएं करना शुरु कर दिया था…Read More

रामधारी सिंह दिनकर –

रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी ( Ramdhari Singh Dinkar ki Jivani )

रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी ( Ramdhari Singh Dinkar ki Jivani ) : भारत के महान कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 1908 ई. में सिमरिया, बेगूसराय (बिहार) में हुआ था। इनके पिता अत्यंत साधारण किसान थे। जब दिनकर मात्र 2 पर्ष के थे तभी इनके पिता का देहांत हो गया। इनकी शिक्षा का प्रबंध इनकी माता ने किया। इन्होंने पटना विश्वविद्यालय से 1932 ई. में बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद इन्होंने एक माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य के रूप में कार्य किया। बाद में इन्होंने भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार के रूप में भी कार्य किया। ये भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। ये राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे। 24 अप्रैल 1974 को रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु हो गई। भारत सरका ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया…Read More

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की जीवनी –

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (Suryakant Tripathi Nirala)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Suryakant Tripathi Nirala) : मुक्त छन्द के प्रवर्तक एवं छायावादी कविता के मुख्य आधार स्तंभ माने जाने वाले निराला जी का जन्म 1897 ई. में  बंगाल के मेदिनीपुर मे हुआ था। इनके पिता का नाम प. रामसहाय त्रिपाठी था, जो महिषादल राज्य कोष के संरक्षक थे। इन्हें बचपन से ही घुड़सवारी, कुश्ती व खेती करने का शौक था…Read More

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय की जीवनी –

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय (Agyeya ka Jeevan Parichay) : प्रयोगवादी विचारधारा के प्रवर्तक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जन्म मार्च 1911 ई. में हुआ था। इनके पिता भी विद्वान थे। अज्ञेय जी का बचपन अपने पिता के साथ कश्मीर, बिहार और मद्रास में व्यतीत हुआ। इन्होंने अपनी शिक्षा मद्रास व लाहौर में प्राप्त की। इन्होंने बी.एस.सी. पास करने के बाद अंग्रेजी से एम.ए. किया। इसी दौरान क्रांतिकारी आंदोलन में सहयोगी होने के कारण ये फरार हो गए। अज्ञेय जी ने अपने जीवन काल में कई बार विदेश की यात्रा की। 4 अप्रैल 1987 ई. में अज्ञेय जी का निधन हो गया…Read More

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय –

जयशंकरप्रसाद का जीवन परिचय

जयशंकरप्रसाद का जीवन परिचय (Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay) : छायावादी युग के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 1890 ई. में काशी के गोवर्धन सराय मुहल्ले में एक संपन्न वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पूर्वज कानपुर या जौनपुर के निवासी थे। लेकिन गाजीपुर के सैदपुर गाँव में आकर बस गए थे। वहाँ उनका व्यापार चीनी का था। जब चीनी के व्यापार में घाटा हुआ तो इनके पूर्वज जगन साहू सैदपुर छोड़कर काशी चले आए…Read More

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जीवन परिचय –

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जीवन परिचय, Ayodhya Singh Upadhyay Harioudh : द्विवेदी युग के प्रमुख कवि एवं कवि सम्राट और साहित्य वाचस्पति की उपाधियों से विभूषित हरिऔध का जन्म आजमगढ़ के निजामाबाद गाँव में 1865 ई. में हुआ। इनके पिता का नाम प. भोलासिंह और माता का नाम रुक्मिणी देवी था। इनके पूर्वज ब्राह्मण थे जो बाद में सिख हो गए…Read More

जीवनी : कवियों व लेखकों की जन्म तिथि, जन्म स्थान व मृत्यु –

नामजन्मजन्म स्थानमृत्यु
कबीरदास1398 ई.काशी1518 ई.
संत रैदास1399 ई.काशी1527 ई.
सूरदास1478 ई.रुनकता ग्राम1583 ई.
मीराबाई1498 ई.चौकड़ी ग्राम1546 ई.
तुलसीदास1532 ई.राजापुर ग्राम1623 ई.
रसखान1533 ई.दिल्ली1618 ई.
रहीम दास1556 ई.लाहौर1627 ई.
बिहारीलाल1603 ई.बसुआ1663 ई.
भारतेंदु हरिश्चंद्र1850 ई.काशी1885 ई.
मुंशी प्रेमचंद1880 ई.लमही गाँव1936 ई.
रामचंद्र शुक्ल1884 ई.अनोगा ग्राम1941 ई.
मैथिलीशरण गुप्त1886 ई.चिरगाँव1964 ई.
पं. रामनरेश त्रिपाठी1889 ई.कौइरीपुर1962 ई.
माखनलाल चतुर्वेदी1889 ई.बावई1968 ई.
जयशंकर प्रसाद1890 ई. काशी1937 ई.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला1897 ई.मेदिनीपुर1961 ई.
सुमित्रानंदन पंत1900 ई.कौसानी ग्राम1977 ई.
सुभद्राकुमारी चौहान1904 ई.निहालपुर1948 ई.
सोहनलाल द्विवेदी1906 ई.बिन्दकी1988 ई.
महादेवी वर्मा1907 ई.फर्रुखाबाद1987 ई.
श्यामनारायण पाण्डेय1907 ई.डुमराँवमऊ1991 ई.
हरिवंशराय बच्चन1907 ई.प्रयाग2003 ई.
नागार्जुन1911 ई.सतलखा ग्राम1998 ई.
केदारनाथ अग्रवाल1911 ई.कमासिन ग्राम2000 ई.
शिवमंगल सिंह सुमन1916 ई.झगरपुर2002 ई.
केदारनाथ सिंह1934 ई.चकिया गाँव2018 ई.
अशोक वाजपेयी1941 ई.दुर्ग (सागर)-

वैदिक सभ्यता (Vedic Period Age Civilization)

हड़प्पा सभ्यता के बाद वैदिक संस्कृति का उत्थान हुआ। इसकी जानकारी हमें वेदों से प्राप्त होती है। वैदिक काल को मुख्यतः दो भागों पूर्व वैदिक (ऋग्वेदिक) काल और उत्तरवैदिक काल में बाँटा गया है। इस काल में मुद्रा प्रणाली की शुरुवात नहीं हुई थी। अर्थात राजा को दिये जाने वाले कर वस्तुओं के रूप में दिये जाते थे।

वेद और वेदांग –

वेद चार हैं – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, व अथर्ववेद। छन्द, कल्प, निरुक्त, ज्योतिष, शिक्षा, व्याकरण 6 वेदांग हैं। ऋग्वेद का पाठ करने वाला ‘होतृ’ कहलाता था। सामवेद का पाठ करने वाला ‘उद्गाता’ और यजुर्वेद का पाठ करने वाला ‘उध्वर्यु’ कहलाता था।

आर्य व वैदिक सभ्यता –

आर्यों का प्रारंभिक जीवन मुख्य रूप से पशुचारण का था। प्रारंभ के आर्य कोई स्थाई निवासी नहीं थे। ये भारत में सर्वप्रथम पंजाब एवं अफगानिस्तान में बसे। जर्मन विद्वान मैक्समूलर ने आर्यों का मूल-निवास मध्य एशिया बताया। इनके द्वारा विकसित सभ्यता वैदिक सभ्यता कहलाई। सिंधु घाटी सभ्यता से विपरीत यह ग्रामीण सभ्यता थी। आर्यों की भाषा संस्कृत थी। आर्यों की प्रशासनिक इकाई पाँच भागों राष्ट्र, जन, विश, ग्राम, कुल में विभक्त थी। आर्यों का समाज पितृप्रधान था। पुरुषसूक्त के अनुसार ब्राह्मण ब्राह्मा के मुख से, क्षत्रिय भुजाओं से, वैश्य जाँघों से और शूद्र पैरों से उत्पन्न हुए। आर्य तीन प्रकार के वस्त्र ‘वास, अधिवास, उष्णीव’ पहनते थे। उत्तरवैदिक काल में पक्की ईंटों का प्रयोग पहली बार कौशाम्बी नगर में किया गया। गोत्र नामक संस्था का जन्म उत्तरवैदिक काल में हुआ।

ऋग्वेद में उल्लिखित शब्द –

  • पिता – 335 बार
  • जन – 275 बार
  • इन्द्र – 250 बार
  • माता – 234 बार
  • अग्नि – 200 बार
  • गाय – 176 बार
  • विश – 175 बार
  • सोम – 144 बार
  • विदथ – 122 बार
  • गण – 46 बार
  • कृषि – 33 बार
  • वरुण – 30 बार
  • वर्ण – 23 बार
  • ब्राह्मण – 15 बार
  • ग्राम – 13 बार
  • राष्ट्र – 10 बार
  • क्षत्रिय – 9 बार
  • समिति – 9 बार
  • सभा – 8 बार
  • यमुना – 3 बार
  • गंगा – 1 बार
  • राजा – 1 बार
  • पृथ्वी – 1 बार

वैदिक शब्दावली –

  • अमाजू – आजीवन अविवाहित करने वाली स्त्री।
  • ग्रामिणी – ग्राम का मुखिया
  • विशपति – विश का प्रधान
  • राजन – जन का शासक
  • वेकनॉट(सूदखोर) – ब्याज लेकर ऋण देने वाला व्यक्ति
  • पुरप – दर्गपति
  • उर्वरा – जुते हुए खेत
  • पणि – व्यापार हेतु दूर-दूर तक जाने वाला व्यक्ति
  • पणि – मवेशी चोर
  • बृबु – पणियों का राजा
  • सोमरस – आर्यों का प्रमुख पेय पदार्थ
  • नीवि – अंदर पहने जाने वाले वस्त्र
  • वाजपति – गोचर भूमि का अधिकारी
  • लांगल – हल
  • कृत्तिवासा – चर्म धारण करने वाला
  • उग्र – अपराधियों के पकड़ने वाला
  • रयि – सम्पत्ति
  • पर्जन्य – बादल
  • अघ्न्या – न मारे जाने योग्य (गाय)
  • सभा – श्रेष्ठ व संभ्रांत लोगों की संस्था
  • समिति – सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व करती थी
  • बृक – बैल
  • ऊर्दर – अनाज नापने के पात्र
  • निष्क – सोने का सिक्का या आभूषण
  • हिरण्य – सोना
  • शतमान – चाँदी का सिक्का
  • कीवाश – हलवाहा
  • गविष्टि – युद्ध के लिए प्रयुक्त शब्द
  • कुलप – परिवार या कुल का मुखिया (पिता)
  • मोमपाल – सोम का पालन करने वाला
  • पथी-कृत – अग्निदेव
  • करीष, शकृत – गोबर की खाद
  • भीषज – वैद्य
  • सिरा – उत्तरवैदिक काल में हल
  • पुरन्दर – शत्रुओं को पुरों (किलों) को ध्वस्त करने वाला
  • सीता – उत्तरवैदिक काल में हल की रेखा
  • निष्क व सतमान – उत्तरवैदिक काल में मुद्रा की इकाइयां
  • अवत – कूप (कुआँ)
  • रथेष्ट – कुशल रथ योद्धा
  • कल्प – वेद के हाथ
  • छन्द – वेद के पाद
  • ज्योतिष – वेद की आँखें
  • शिक्षा – वेद की नासिका
  • व्याकरण – वेद के मुख
  • निरुक्त – वेद के कान

प्रमुख दर्शन व उनके प्रवर्तक –

  • सांख्य दर्शन (सबसे प्राचीन) – कपिल मुनि
  • चार्वाक दर्शन – चार्वाक
  • न्याय दर्शन – गौतम ऋषि
  • योग दर्शन – पतंजलि
  • वैशेषिक दर्शन – कणाद या उलूक
  • पूर्व मीमांसा – जैमिनी
  • उत्तर मीमांसा – बादरायण

ऋग्वैदिक नदियों के प्राचीन व नवीन नाम –

  • कुंभा – काबुल
  • शतुद्रि – सतलज
  • पुरुषणी – रावी
  • विपाशा – व्यास
  • सदानीरा – गंडक
  • क्रुभ – कुर्रम
  • वितस्ता – झेलम
  • आस्किनी – चिनाव
  • गोमती – गोमल
  • सुवस्तु – स्वात्
  • दृसद्धती – घग्घर

वैदिक कालीन देवी देवता –

  • इन्द्र – युद्ध व वर्षा के देवता।
  • विष्णु – विश्व के संरक्षक व पालनकर्ता।
  • अग्नि – मनुष्य व देवताओं के बीच की कड़ी, देवताओं का मुख।
  • द्यौ – आकाश के देवता (सबसे प्राचीन)।
  • मरुत – आँधी व तूफान के देवता।
  • पूषन – पशुओं के देवता।
  • आश्विन – विपत्तियों को हरने वाले देवता।
  • सोम – वनस्पति के देवता।
  • उषा – प्रगति व उत्थान के देवता।
  • सरस्वती – प्रारंभ में नदी देवी, बाद में विद्या की देवी।
  • अरण्यानी – जंगल की देवी।

वैदिक सभ्यता संबंधी तथ्य -1

  • ऋग्वैदिक समाज चार वर्णों – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र में बँटा हुआ था।
  • ऋग्वैदिक काल में वर्ण विभाजन व्यवसाय पर आधारित था।
  • ऋग्वेद के 10वें मण्डल के पुरुष सूक्त में चारो वर्णों का उल्लेख मिलता है।
  • ऋग्वेद में किसी प्रकार के न्यायाधिकारी का उल्लेख नहीं है।
  • संगीत, रथदौड़, घुड़दौड़, द्यूतक्रीड़ा आर्यों के प्रमुख मनोरंजन थे।
  • स्त्रियां पति के साथ यज्ञ कार्य में हिस्सा ले सकती थीं।
  • विधवा अपने देवर से विवाह कर सकती थी।
  • देवताओं की उपासना का मुख्य तरीका स्तुतिपाठ करना व यज्ञ बलि अर्पित करना था।
  • स्तुतिपाठ पर अधिक बल था।

 

  • दासों के बारे में स्पष्ट जानकारी सर्वप्रथम ऋग्वेद से ही मिलती है।
  • ऋग्वेद में वर्णित सभी नदियों में सरस्वती सबसे महत्वपूर्ण व पवित्र नदी मानी जाती थी।
  • ऋग्वेदिक नदियों में सर्वाधिक बार जिक्र सिंधु नदी का हुआ है।
  • गौहत्या करने वाले को मृत्युदण्ड या देशनिकाला देने का प्रावधान था।
  • सभा और समिति राजा को परामर्श देने वाली संस्थाएं थीं।
  • स्त्रियां भी सभा व समिति में भाग ले सकती थीं।
  • युद्ध में कबीले का नेतृत्व राजा करता था।
  • बलि अथवा आहूत में शाक, जौं इत्यादि वस्तुएं दी जाती थीं।
  • लेन-देन में वस्तु विनिमय की प्रणाली प्रचलित थी।
  • ऋग्वेद के 7वें मण्डल में दसराज्ञ युद्ध का उल्लेख मिलता है।

2 वैदिक काल वैदिक सभ्यता संबंधी तथ्य

  • आर्यों द्वारा खोजी गई धातु लोहा (श्याम अयस्) थी।
  • ताँबे को लोहित अयस् कहा जाता था।
  • इस समय राजा की कोई संगठित सेना नहीं थी।
  • युद्ध के समय संगठित की गई सेना को नागरिक सेना कहा जाता था।
  • दसराज्ञ युद्ध पौरुषणी(रावी) नदी के तट पर सुदास(विजयी) और 10 जनों के बीच हुआ था।
  • बाल विवाह व पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था।
  • ऋग्वेद में लोपामुद्रा, घोषा, आपला, सिकता जैसी विदुषी स्त्रियों का वर्णन मिलता है।
  • पशुपालन व कृषि आर्यों का मुख्य व्यवसाय था।
  • आर्यों का सर्वाधिक प्रिय पशु घोड़ था।
  • प्रारंभ में ऋग्वैदिक कबीलाई समाज तीन वर्गों योद्धा, पुरोहित, सामान्य लोगों में विभक्त था।
  • चौथ वर्ग शूद्र का जिक्र पहली बार ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में मिलता है।
  • आर्यों के सर्वाधिक प्रिय देवता इन्द्र थे।
  • अग्नि को देवताओं का मुख कहा जाता था। अग्निदेव को मनुष्य व देवताओं के बीच की कड़ी कहा जाता था।
  • उत्तरवैदिक काल में इन्द्र का स्थान प्रजापति ने ले लिया।
  • उत्तरवैदिक काल में राज्याभिषेक के दौरान राजसूय यज्ञ किया जाता था।
  • उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था व्यवसाय की जगह जन्म से निर्धारित होने लगी।
  • ‘सत्यमेव जयते’ मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
ऋग्वैदिक देवता –

ऋग्वेद में देवताओं की कुल तीन श्रेणियां थीं।

  • पृथ्वी के देवता – पृथ्वी, सोम, अग्नि, वरस्वती, वृहस्पति आदि।
  • आकाश के देवता – सूर्य, मित्र, वरुण, द्यौस, उषा, अश्विन, आदित्य, पूषन, विष्णु, सवितृ आदि।
  • अंतरिक्ष के देवता – इंद्र, वायु, मरुत, रुद्र, पर्जन्य, आपः मातरिश्वन आदि।

वैदिक काल वैदिक सभ्यता से संबंधित प्रश्न उत्तर –

प्रश्न 1 – हल की जुताई से संबंधित अनुष्ठानों की विस्तृत जानकारी किस ब्राह्मण से प्राप्त होती है ?

उत्तर – शतपथ ब्राह्मण

प्रश्न 2 – एक स्थान पर विश द्वारा राजा के चुनाव का वर्णन किस वेद में मिलता है ?

उत्तर – अथर्ववेद

प्रश्न 3 – शतपथ ब्राह्मण में कितने प्रकार के रत्नियों का वर्णन मिलता है ?

उत्तर – 12 प्रकार के

प्रश्न 4 – किस ब्राह्मण के अनुसार ब्राह्मण सूत का, क्षत्रिय सन का और वैश्य ऊन का यज्ञोपवीत (जनूऊ) धारण किया करते थे ?

उत्तर – तैत्तरीय ब्राह्मण

प्रश्न 5 – चारो वर्णों के कर्तव्यों का वर्णन सर्वप्रथम किस ब्राह्मण ग्रंथ मे मिलता है ?

उत्तर – ऐतरेय ब्राह्मण

प्रश्न 6 – श्वेताश्व उपनिषद किस देवता को समर्पित है ?

उत्तर – रुद्र देवता

प्रश्न 7 – किस उपनिषद् में स्पष्ट रूप से ‘इतिहास-पुराण’ को पंचम वेद कहा गया है ?

उत्तर – छांदोग्य उपनिषद्

प्रश्न 8 – ”राजा वही होता है, जिसे प्रजा का अनुमोदन प्राप्त हो” यह किस ब्राह्मण ग्रंथ का कथन है ?

उत्तर – शतपथ ब्राह्मण

प्रश्न 9 – राजकीय यज्ञों में सबसे प्रसिद्ध व महत्वपूर्ण कौनसा यज्ञ है ?

उत्तर – अश्वमेद्य यज्ञ

प्रश्न 10 – याज्ञवल्क्य-गार्गी संवाद का वर्णन किस उपनिषद् में मिलता है ?

उत्तर – वृहदारण्यक उपनिषद्

प्रश्न 11 – वैदिक ऋचाओं की रचयिका लोपामुद्रा किस ऋषि की पत्नी थीं ?

उत्तर – अगस्त्य ऋषि

प्रश्न 12 – ऋग्वैदिक शिक्षा पद्यति की झलक किस सूक्त से मिलती है ?

उत्तर – मण्डूक सूक्त

प्रश्न 13 – पुनर्जन्म का सिद्धांत सर्वप्रथम किस ग्रंथ में देखने को मिलता है ?

उत्तर – शतपथ ब्राह्मण

प्रश्न 14 – वैश्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस संहिता में मिलता है ?

उत्तर – वाजसनेयी संहिता

प्रश्न 15 – तीन आश्रमों का वर्णन सर्वप्रथम किस ग्रंथ में मिलता है ?

उत्तर – छांदोग्य उपनिषद

प्रश्न 16 – चार आश्रमों का वर्णन सर्वप्रथम किस ग्रंथ में मिलता है ?

उत्तर – जबालोपनिषद्

प्रश्न 17 – कृषि संबंधी प्रक्रिया का उल्लेख ऋग्वेद के किस मंडल में मिलता है ?

उत्तर – चतुर्थ मण्डल

वैदिक काल वैदिक सभ्यता से संबंधित प्रश्न उत्तर –

प्रश्न 18 – आरुणि उद्दालक और श्वेत केतु के बीच संवाद का वर्णन किस उपनिषद में है ?

उत्तर – छान्दोग्य उपिषद्

प्रश्न 19 – सबसे विस्तृत उपनिषद कौनसा है ?

उत्तर – वृहदारण्यक उपनिषद्

प्रश्न 20 – वृहदकारण्यक उपनिषद के प्रधान प्रवक्ता कौन हैं ?

उत्तर – याज्ञवल्क्य

प्रश्न 21 – मवेशियों की वृद्धि के लिए किस वेद में प्रार्थना की गई है ?

उत्तर – अथर्ववेद

प्रश्न 22 – मैत्रेयी व कात्यायनी किसकी पत्नियां थीं ?

उत्तर – याज्ञवल्क्य

प्रश्न 23 – ‘यज्ञ ऐसी नौका है जिसपर भरोसा नहीं किया जा सकता’ किस उपनिषद् में वर्णित है ?

उत्तर – मुण्डक उपनिषद्

प्रश्न 24 – यम और नचिकेता संवाद किस उपनिषद में वर्णित है ?

उत्तर – कठोपनिषद्

प्रश्न 25 – निष्काम कर्म सिद्धांत का प्रथम प्रतिपादन किस उपनिषद में हुआ ?

उत्तर – एषोपनिषद्

प्रश्न 26 – मूर्तिपूजा का प्रारंभ किस काल में हुआ ?

उत्तर – उत्तरवैदिक काल

प्रश्न 27 – कौनसे मृदभाण्ड उत्तरवैदिक काल में सर्वाधिक प्रचलित थे ?

उत्तर – लाल मृदभाण्ड

प्रश्न 28 – ऋग्वेद के अनुसार कृषि हेतु खेत जोतने की शिक्षा सर्वप्रथम किसने द्वारा दी गई ?

उत्तर – अश्विनियों द्वारा

प्रश्न 29 – ऋग्वेद में किस एकमात्र अनाज का वर्णन मिलता है ?

उत्तर – यव

प्रश्न 30 – ऋग्वेद में कृषि संबंधी प्रक्रिया का उल्लेख किस मण्डल में मिलता है ?

उत्तर – चौथे मण्डल में

प्रश्न 31 – ऋग्वैदिक लोग किस प्रकार की सार्वभौम सत्ता में विश्वास रखते थे ?

उत्तर – एकेश्वरवाद (आगे चलकर बहुलवाद)

प्रश्न 32 – आर्यो के देवताओं की कितनी श्रेणियां थीं ?

उत्तर – तीन (आकाश के, अंतरिक्ष के, पृथ्वी के देवता)

प्रश्न 33 – ऋग्वेद के सबसे महत्वपूर्ण देवता को किस अन्य नाम से जाना गया ?

उत्तर – पुरंदर

प्रश्न 34 – वैदिक काल के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण देवता कौनसे हैं ?

उत्तर – अग्नि

प्रश्न 35 – वैदिक काल के तीसरे सबसे महत्वपूर्ण देवता कौन हैं ?

उत्तर – वरुण

प्रश्न 36 – ऋग्वेद में किस देवता को ऋतस्य गोपा और असुर भी कहा गया है ?

उत्तर – वरुण

प्रश्न 37 – ऋग्वेद में पेय पदार्थों का देवता किसे माना गया है ?

उत्तर – सोम

वैदिक काल वैदिक सभ्यता से संबंधित प्रश्न उत्तर –

प्रश्न 38 – ऋग्वेद का कौनसा मंडल सोम देवता को समर्पित है ?

उत्तर – 9वां मण्डल

प्रश्न 39 – ऋग्वेद में कौन कौनसी देवियों का जिक्र हुआ है ?

उत्तर – उषा, अदिति, सूर्या आदि।

प्रश्न 40 – ऋग्वेद के एक मंत्र में किसे त्रयम्बक कहा गया है ?

उत्तर – रुद्र शिव

प्रश्न 41 – कौनसे देवता वैदिक काल में पशुओं के और उत्तरवैदिक काल में शूद्रों के देवता हो गए ?

उत्तर – पूषन

प्रश्न 42 – आर्यों की सर्वप्रमुख नदी कौनसी थी ?

उत्तर – सिन्धु

प्रश्न 43 – ऋग्वेद की रचना कब हुई ?

उत्तर – 1700 ई. पू. के आस पास

प्रश्न 44 – किस वेद में सभा व समिति को प्रजापति की पुत्रियां कहा गया है ?

उत्त – अथर्ववेद

प्रश्न 45 – ऋग्वेद में प्रारंभिक कबीलाई समाज कितने वर्गों में बँटा था ?

उत्तर – तीन

प्रश्न 46 – ऋग्वेद में शर्ध, व्रात, गण क्या थे ?

उत्तर – सैन्य इकाइयाँ

प्रश्न 47 – वैदिक काल में सामाजिक विभाजन का प्रमुख कारण क्या था ?

उत्तर – स्थानीय निवासियों पर आर्यों की विजय

प्रश्न 48 – दशराज्ञ युद्ध में किसकी जीत हुई ?

उत्तर – सुदास

प्रश्न 49 – भारत में आर्य सर्वप्रथम कहाँ पर आकर बसे ?

उत्तर – सप्तसैंधव प्रदेश

प्रश्न 50 – ऋग्वैदिक काल में विवाह की आयु लगभग कितनी थी ?

उत्तर – 16-17 वर्ष

उत्तरवैदिक काल

ऋग्वैदिक काल के बाद उत्तरवैदिक काल आता है। इसी काल में सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्य व उपनिषदों की रचना हुई। इस युग में सभ्यता का क्षेत्र सप्त सैंधव से कुरुक्षेत्र तक पहुँच गया। इस संस्कृति का प्रमुख केंद्र मध्यदेश था। भरत एवं पुरु मिलकर कुरु कहलाए। चतुर्वश और क्रिवि मिलकर पांचाल कहलाए। इस काल में अंग व मगध आर्यों के क्षेत्र से बाहर थे।

उत्तरवैदिक काल से संबंधित प्रश्न उत्तर –

प्रश्न – उत्तरवैदिक संस्कृति का प्रमुख केंद्र कहाँ पर था ?

उत्तर – मध्यदेश

प्रश्न – कौनसे क्षेत्र उत्तरवैदिक काल में आर्यों के अंतर्गत नहीं आते थे ?

उत्तर – अंग व मगध

प्रश्न – उत्तरवैदिक कालीन ग्रंथों में किस एक पर्वत श्रंखला का जिक्र मिलता है ?

उत्तर – त्रिककुद

प्रश्न – मैनाक पर्वत का वर्णन किस ग्रंथ में मिलता है ?

उत्तर – तैत्तरीय अरण्यक

प्रश्न – दक्षिण के एक पर्वत का उल्लेख किस उपनिषद में मिलता है ?

उत्तर – कौशीतकी उपनिषद

प्रश्न – उत्तरवैदिक कालीन नदियों रेवा और सदानीरा का उल्लेख किस ब्राह्मण ग्रंथ में मिलता है ?

उत्तर – शतपथ ब्राह्मण

प्रश्न – अथर्ववेद में मगध को लोगों को क्या कहा गया है ?

उत्तर – व्रात्य

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