‘जीव विज्ञान सामान्य ज्ञान’ शीर्षक के इस लेख में जीव विज्ञान संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी को साझा किया गया है। विज्ञान की जिस शाखा के अंतर्गत जीवधारियों का अध्ययन किया जाता है उसे ‘जीव विज्ञान’ कहते हैं। जीव विज्ञान शब्द का प्रयोग पहली बार लैमार्क (फ्रांस) व ट्रेविरेनस (जर्मनी) ने किया था। ‘अरस्तु’ को जीव विज्ञान का जनक व जंतु विज्ञान का जनक कहा जाता है। अरस्तु ने ही समस्त जीवों को दो समूहों जंतु समूह एवं वनस्पति समूह में विभाजित किया। ‘थियोफ्रेस्टस’ को वनस्पति विज्ञान का जनक कहा जाता है।
जीवधारियों का वर्गीकरण –
‘कैरोलस लीनियस’ ने अपनी पुस्तक ‘‘Systema Naturae‘‘ में समस्त जीवधारियों को दो जगतों पादप जगत व जंतु जगत में विभाजित किया है। लीनियस ने वर्गीकरण की जो शुरुवात की उसी से आधुनिक वर्गीकरण की नींव पड़ी, इसी कारण लीनियस को आधुनिक वर्गीकरण का पिता कहा जाता है। बाद में सन् 1969 में ‘व्हिटकर’ द्वारा जीवों की 5 जगत प्रणाली दी गई – (1)- पादप, (2)- जंतु, (3)- कवक, (4)- मोनेरा, (5)- प्रोटिस्टा।
विज्ञान की प्रमुख शाखाएं
एपीकल्चर | मधुमक्खी पालन का अध्ययन |
सेरीकल्चर | रेशम कीट पालन का अध्ययन |
पीसीकल्चर | मत्स्यपालन का अध्ययन |
इक्थ्योलॉजी | मछलियों का अध्ययन |
ऑर्निथोलॉजी | पक्षियों का अध्ययन |
माइकोलॉजी | कवकों का अध्ययन |
एंटोमोलॉजी | कीटों का अध्ययन |
ओफियोलॉजी | सर्पों का अध्ययन |
फाइकोलॉजी | शैवालों का अध्ययन |
पॉमोलाजी | फलों का अध्ययन |
एंथोलॉजी | पुष्पों का अध्ययन |
डेंड्रोलॉजी | वृक्षों व झाड़ियों का अध्ययन |
सारोलॉजी | छिपकलियों का अध्ययन |
सिल्विकल्चर | काष्ठी पेड़ों का संवर्धन |
कास्मोलॉजी | ब्रह्माण का अध्ययन |
एस्ट्रोनॉमी | खगोलीय पिण्डों का अध्ययन |
सिरेमिक्स | चीनी मिट्टी के वर्तन तैयार करना |
कीमोथेरेपी | रासायनिक यौगिकों से उपचार करना |
एंटोमोलॉजी | कीट पतंगों का व्यापक अध्ययन |
जिरोंटोलॉजी | वृद्धावस्था से संबंधित तथ्यों का अध्ययन |
हाइड्रोपैथी | पानी से रोगों का इलाज करना |
होरोलॉजी | समय मापने वाला विज्ञान |
ओडोन्टोग्राफी | दांतों का अध्ययन |
ऑस्टियोलॉजी | हड्डियों का अध्ययन |
सिस्मोलॉजी | भूकंप विज्ञान |
एरोनॉटिक्स | वायुयान संबंधी तथ्यों का अध्ययन |
ऑर्कियोलॉजी | पुरातत्व विज्ञान |
कान्कोलॉजी | शंखों का अध्ययन |
कॉस्मोगोनी | ब्रह्माण की उत्पत्ति के सिद्धांतों का अध्ययन |
क्रिप्टोग्राफी | गूढ़लेखन या बीजलेखन संबंधी अध्ययन |
एपीग्राफी | शिलालेखों संबंधी ज्ञान का अध्ययन |
एथनोग्राफी | मानव जाति का अध्ययन |
लेक्सिकोग्राफी | शब्दकोश संकलन व लेखन करना |
न्यूमेरोलॉजी | अंको का अध्ययन |
न्यूमिस्मेटिक्स | पुराने सिक्कों का अध्ययन |
हिप्नोलॉजी | नींद का अध्ययन |
जीवों के वैज्ञानिक नाम –
लीनियस ने जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्यति की शुरुवात की। इसके तहत हर जीवधारी का वैज्ञानिक नाम लैटिन भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना होता है। इसमें पहला शब्द उस जीव के वंश का और दूसरा शब्द उस जीव की जाति का होता है।
- मुनष्य – Homo Sapiens
- कुत्ता – Canis Familiaris
- बिल्ली – Felis Domestica
- गाय – Bos Indicus
- मेढक – Rana Tigrina
- मक्खी – Musca Domestica
- गेहूँ – Triticum Aestivum
- धान – Oryza Sativa
- चना – Cicer Arietinum
- मटर – Pisum Sativum
- सरसों – Brassica Campestris
- आम – Mangifera Indica
जीवद्रव्य –
- जीव द्रव्य को जीवन का भौतिक आधार कहा जाता है।
- इसका 99% भाग चार तत्वों ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन व नाइट्रोजन का बना होता है।
- इसका 80% भाग जल होता है।
- इसमें कार्बनिक व अकार्बनिक यौगिकों का अनुपात 19 : 81 होता है।
कोशिका –
कोशिका जीवन की सबसे छोटी कार्यात्मक व संरचनात्मक इकाई है। कोशिका शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग रॉबर्ट हुक ने 1665 में किया था। सबसे लंबी कोशिका ‘तंत्रिका तंत्र’ की और सबसे बड़ी कोशिका शुतुर्मुर्ग के अंडे की होती है। कोशिका के अध्ययन को ‘Cytology’ कहते हैं। कोशिका दो प्रकार की होती हैं – प्रोकैरियोटिक कोशिका व यूकैरियोटिक कोशिका। जीवाणुओं व नील हरित शैवालों में प्रोकैरियोटिक कोशिका होती हैं। माइटोकांड्रिया, कोशिका भित्ति, कोशिका झिल्ली, लाइसोसोम, केंद्रक, लवक, रसधानी, राइबोसोम, अन्तः प्रदव्य जालिका व गाल्जीकाय कोशिका के भाग हैं। कोशिका सिद्धांत का प्रतिपादन श्लाइडेन व श्वान ने 1838-39 ई. में किया था। कोशिका सिद्धांत की प्रमुख बातें निम्न हैं। प्रत्येक जीव की उत्पत्ति एक कोशिका से होती है। प्रत्येक जीव का शरीर एक कोशिका या अनेक कोशिकाओं का बना होता है। जिस क्रिया से कोशिका का निर्माण होता है, उसमें मुख्य अभिकर्ता केंद्रक होता है।
प्रोकैरियोटिक कोशिका –
इस प्रकार की कोशिकाएं जीवाणुओं व नील हरित शैवालों में पायी जाती हैं। इन कोशिकाओं में हिस्टोरिन प्रोटीन नहीं पाया जाता है। जिसके कारण क्रोमैटिन नहीं बन पाता। सिर्फ डीएनए का सूत्र ही गुणसूत्र के रूप में पड़ा रहता है। अन्य कोई आवरण इसे घेरे हुए नहीं होता है। केंद्रक नामक कोई विकसित कोशिकांग इसमें नहीं पाया जाता।
यूकैरियोटिक कोशिका –
इनमें दोहरी झिल्ली के आवरण पाए जाते हैं।
सुस्पष्ट केंद्र पाया जाता है, जो केन्द्रक आवरण से घिरा रहता है।
केंद्रक में DNA व हिस्टोन प्रोटीन के संयुक्त होने से बना क्रोमैटिन पाया जाता है।
इसके अलावा केंद्रिका भी पायी जाती है।
आनुवांशिकी –
वे लक्षण जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों में संचरित होते रहते हैं, आनुवांशिक लक्षण कहलाते हैं और इसके अध्ययन को आनुवांशिकी कहा जाता है। आनुवांशिकता की जानकारी सर्वप्रथम ग्रेगर जोहान मेंडल (आस्ट्रिया) ने दी। इसी कारण इन्हें आनुवांशिकी का पिता कहा जाता है। आनुवांशिकी के प्रयोग के लिए इन्होंने मटर के पौधे को चुना था।
मानव आनुवांशिकी में गुणसूत्र (Chromosomes) का नामकरण W. वाल्टेयर ने सन् 1888 में किया था। पैदा होने वाली संतान का लिंग निर्धारण सिर्फ पुरुष के गुणसूत्र के आधार पर होता है।
आनुवांशिक रोग –
मनुष्यों में होने वाले आनुवांशिक रोग निम्नलिखित हैं –
वर्णांधता –
- इससे पीड़ित व्यक्ति लाल व हरे रंग में फर्क नहीं कर पाता।
- इस रोग से मुख्यतः पुरुष प्रभावित होते हैं।
- स्त्रियां इस रोग की वाहक होती हैं।
- स्त्रियों में यह रोग तभी होता है, जब उनके दोनों गुणसूत्र इससे प्रभिवित हों।
हीमोफीलिया –
- यह मुख्यतः पुरुषों में होता है।
- स्त्रइयों में यह तभी होगा जब उनके दोनों गुणसूत्र प्रभावित हों।
- परंतु इस रोग की वाहक स्त्रियां हैं।
- इस रोग में व्यक्ति का खून बहने पर रक्त का थक्का आधे घण्टे से 24 घण्टे तक नहीं बनता।
- हेल्डेन ने कहा इस रोग की शुरुवात ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया से हुई।
टर्नर सिण्ड्रोम –
- यह रोग स्त्रियों में पाया जाता है।
- इससे ग्रसित स्त्री में गुणसूत्रों की संख्या 45 हो जाती है।
- इसमें शरीर अल्पविकसित, कद छोटा व वक्ष चपटे होते हैं।
- प्रायः जननांग अविकसित होता है। जिसके कारण वे बाँझ होती हैं।
पटाऊ सिण्ड्रोम –
- इसमें रोगी का ऊपरी होंठ बीच में से कट जाता है।
- तालु में दरार हो जाती है।
- रोगी मन्द बुद्धि के साथ नेत्र रोग से प्रभावित होता है।
डाउंस सिण्ड्रोम –
- इसे मंगोलिज्म के नाम से भी जाना जाता है।
- इसमें रोगी मन्द बुद्धि, टेढ़ी आँखें, मोटी जीभ, व अनियमित ढाचें से प्रभावित होता है।
क्लीनेफेल्टर सिण्ड्रोम –
- यह पुरुषों में पाया जाता है।
- इस रोग से ग्रसित पुरुष नपुंसक हो जाता है।
- पुरुषों में गुणसूत्रों की संख्या 47 हो जाती है।
- पुरुष का वृषण अल्पविकसित व स्तन स्त्रियों जैसे हो जाते हैं।
फफूंद के द्वारा होने वाली बीमारियां –
- दमा (Asthma) – यह एक संक्रामक रोग है।
- गंजापन – यह रोग टिनिया केपिटिस नामक कवक के कारण होता है। इसमें सिर के बाल झड़ने लगते हैं।
- एथलीट फुट – यह टीनिया पेडिस नामक कवक से होता है।
- दाद – इस रोग का कारण ट्राइकोफायटान लेरुकोसम कवक है। यह एक संक्रामक रोग है। इसमें त्वचा में लाल रंग के गोले पड़ जाते हैं।
- खाज – यह एकेरस स्केबीज नामक कवक से होता है। इसमें त्वचा में खुजली होती है। सफेद दाग पड़ जाते हैं।
चिकनगुनिया –
इसका कारण चिकनगुनिया वायरस है। यह मादा एडिस मच्छर मुख्यतः एडिस एजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है। यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति से किसी और को नहीं फैल सकती। बल्कि मच्छर संक्रमित व्यक्ति को काटकर अन्य को काटते हैं, उससे यह बीमारी फैलती है।
विभिन्न जीवों व जातियों में गुणसूत्रों की संख्या
जीव/जाति | गुणसूत्र |
---|---|
एस्केरिस | 2 |
मच्छर | 6 |
घरेलू मक्खी | 12 |
मटर | 14 |
प्याज | 16 |
मक्का | 20 |
टमाटर | 24 |
मेंढक | 26 |
नींबू | 18, 36 |
बिल्ली | 38 |
चूहा | 40 |
गेहूँ | 42 |
खरगोश | 44 |
मनुष्य | 46 |
चिम्पैंजी, आलू, तम्बाकू | 48 |
घोड़ा | 64 |
कुत्ता | 78 |
कबूतर | 80 |
टेरिडोकाइट्स | 1300-1600 |
जीवाणु –
जीवाणु की खोज नीदरलैंड/हॉलैंड के वैज्ञानिक एंटोनीवाल ल्यूवेनहॉक ने सन् 1683 ई. में की थी। ल्यूवेनहॉक को जीवाणु विज्ञान का पिता कहा जाता है। परंतु जीवाणु का नामकरण सन् 1829 में एहरेनबर्ग द्वारा किया गया।
प्रकाश संश्लेषण –
प्रकाश, जल, कार्बन डाईऑक्साइड व पर्णहरित की उपस्थिति में पौधों द्वारा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करना प्रकाश संश्लेषण कहलाता है।
इस क्रिया के होने के लिए सूर्य का प्रकाश, जल, क्लोरोफिल व कार्बन डाईऑक्साइड आवश्यक हैं।
ब्रायोफाइटा –
- इस समूह को वनस्पति जगत का एम्फीबिया भी कहा जाता है।
- यह सबसे सरल स्थलीय पौधों का समूह है।
- इसमें पौधों की लगभग 25000 जातियों को सम्मिलित किया गया है।
- इनमें संवहनी ऊतकों फ्लोयम व जाइलम का पूर्णतः अभाव होता है।
- ये पौधे मृदा अपरदन को रोकने में सहायक हैं।
स्फेगनम – यह अपने वजन से 18 गुना अधिक जल सोखने की क्षमता रखता है।
इसका प्रयोग ईंधन व एंटिसेप्टिक के रूप में भी किया जाता है।
ऊतकों के प्रकार – विभाज्योतकी ऊतक, शीर्षस्थ विभाज्योतक, पार्श्व विभाज्योतक, अन्तर्वेशी विभाज्योतक।
विज्ञान की प्रमुख खोजें व अविष्कार
आविष्कार या खोज | आविष्कारक या खोजकर्ता | आविष्कार या खोज | आविष्कारक या खोजकर्ता |
---|---|---|---|
विटामिन | फंक | विटामिन A | मैकुलन |
विटामिन B | मैकुलन | विटामिन C | होल्कट |
विटामिन D | हॉपकिन्स | टेरामाइसिन | फिनेल |
होम्योपैथी | हैनीमैन | एंटीजन | लैंडस्टीनर |
डायबिटीज | बेंटिंग | इंसुलिन | बेंटिंग |
बैक्टीरिया | ल्युवेनहाक | वायरस | इवानविस्की |
TB बैक्टीरिया | राबर्ट कोच | सल्फा ड्रग्स | डागमैंक |
हृदय प्रत्यारोपण | क्रिश्चियन बर्नार्ड | ओपन हार्ट सर्जरी | वाल्टल लिलेहल |
पेनिसिलीन | एलेक्जेंडर फ्लेमिंग | रक्त परिवर्तन | कार्ल लैंडस्टीनर |
चेचक का टीका | एडवर्ड जेनर | पेचिश व प्लेग चिकित्सा | किटाजाटोज |
गर्भनिरोधक गोलियां | पिनकस | इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ | आयन्योवन |
DNA | जेम्स वाटसन व क्रिक | RNA | जेम्स वाटसन व आर्थर अर्ग |
लिंग हार्मोन | स्टेनच | पहला परखनली शिशु | एडवर्ड्स व स्टेप्टो |
क्लोरोफॉर्म | हैरिसन व सिम्पसन | पोलियो वैक्सीन | जोन साल्क |
पादप हार्मोन –
ऑक्सिन्स – इसकी खोज चार्ल्स डार्विन ने सन् 1880 ई. में की। यह हार्मोन पौधों की वृद्धि को नियंत्रित करता है।
जिबरेलिंस – इसकी खोज जापानी वैज्ञानिक कुरोसावा द्वारा सन् 1926 में की गई थी। यह पौधीं की वृद्धि करने में सहायक है।
साइटोकाइनिन– इसकी खोज मिलर द्वारा सन् 1955 में की गई थी। बाद में इसका नामकरण लिथाम द्वारा किया गया। RNA व प्रोटीन बनाने में सहायक यह जीर्णता को रोकने का कार्य करता है।
एबसिसिक अम्ल – इसकी खोज सन् 1961-62 में कार्नंस व एडिकोट द्वारा बाद में वेयरिंग द्वारा की गई। पुष्पन में बाधक यह हार्मोन बीजों को सुषुप्त अवस्था में रखता है।
एथिलीन – गैसीय रूप में पाया जाने वाला यह एकमात्र हार्मोन है। यह फलों को पकाने में सहायक है। इसे हार्मोन के रूप में बर्ग द्वारा साल 1962 में प्रमाणित किया गया।
फ्लोरिजेंस – इसे फूलों को खिलाने वाले हार्मोन के रूप में जाना जाता है।
प्रमुख पौधों के कुल का नाम
कुल | प्रमुख पौधे |
---|---|
लिलिएसी | लहसुन, प्याज |
पाल्मी | खजूर, नारियल, ताड़, सुपारी |
ग्रेमिनेसी | गेहूँ, चावल, जौ, जई, ज्वार, बाजरा, मक्का, गन्ना, बाँस। |
क्रूसीफेरी | सरसों, शलजम, मूली |
मालवेसी | भिंडी, कपास, गुड़हल |
लेग्यूमिनोसी | इमली, अशोक, बबूल, कत्था, गुलमोहर, कचनार, छुईमुई, सभी दलहन |
कम्पोजिट | गेंदा, डहेलिया, सूरजमुखी, कुसुम, भृंगराज, सलाद |
रुटेसी | नींबू, संतरा, मुसम्मी, चकोतरा, बेल, |
कुकुरबिटेसी | तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, खीरा, करेला, लौकी, कद्दू, टिण्डे, परवल |
सोलेनेसी | आलू, टमाटर, मिर्च, बैंगन, मकोय, धतूरा |
रोजेसी | सेब, स्ट्राबेरी, नाशपाती, बादाम |
ट्राउमेटिन – यह एक डाइकार्बोक्सिलिक अम्ल है। यह घायल कोशिकाओं में होता है और घाव भरने में सहायक है।
विषाणुजनित पादप रोग –
तम्बाकू का मौजेक रोग, आलू का मौजेक रोग, केले का बंकीटाप रोग, रंग परिवर्तन विषाणुजनित पादप रोग हैं।
जीवाणुजनित पादप रोग –
धान का अंगमारी रोग, साइट्रस कैंसर, आलू का शैथिल रोग, गेहूँ का टुंडू रोग, ब्लैक आर्म ऑफ कॉटन जीवाणु जनित पादप रोग हैं।
फलों का खाने योग्य भाग
फल | खाने योग्य भाग |
---|---|
सेब | पुष्पासन |
नाशपाती | पुष्पासन |
लीची | एरिल |
नारियल | भ्रूणपोष |
नारंगी | जूसी हेयर |
आम | मध्य फलभित्ति |
पपीता | मध्य फलभित्ति |
अनन्नास | परिदलपुंज |
अंगूर | फलभित्ति, बीजाण्डासन |
अमरूद | फलभित्ति, बीजाण्डासन |
टमाटर | फलभित्ति, बीजाण्डासन |
केला | मध्य व अन्तः फलभित्ति |
शहतूत | सरीले परिदलपुंज |
गेहूं | भ्रूण व भ्रूणपोष |
चना | भ्रूण व बीजपत्र |
मूँगफली | भ्रूण व बीजपत्र |
काजू | पुष्पवृंत व बीजपत्र |
कटहल | बीज व परिदलपुंज |
पारिस्थितिकी – जीवधारियों व उनके वातावरण से पारस्परिक संबंधों का अध्ययन विज्ञान की जिस शाखा के अंतर्गत किया जाता है, उसे पारिस्थितिकी कहते हैं। जीव विज्ञान ।
पारिस्थितिक तंत्र –
कार्य व रचना के आधार पर विभिन्न जीवों व वातावरण की मिली जुली संरचना को पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र कहा जाता है। पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टांस्ले ने किया था। महासागरों को सबसे स्थाई पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। संरचना की दृष्टि से यह दो घटकों जैविक घटक व अजैविक घटक का बना होता है। जैविक घटक में उत्पादक, उपभोक्ता व, अपघटक आते हैं। वहीं अजैविक घटक में कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ, और जलवायवीय कारक जैसे – जल, वायु, ताप, प्रकाश, मृदा, आर्द्रता व खनिज तत्व आते हैं।
जैव समुदाय – एक निश्चित भौगोलिक वास क्षेत्र में निवास करने वाली विभिन्न समष्टियों को जैव समुदाय कहा जाता है।
प्रदूषण के प्रकार – जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण व, नाभिकीय प्रदूषण हैं।
जंतु जगत का वर्गीकरण
समस्त जंतु जगत को दो प्रमुख उपजगतों एककोशिकीय जीव व बहुकोशिकीय जावों में विभक्त किया गया है।
इसके बाद इन सब जीवों को 10 संघों में विभक्त किया गया है।
इनमें एककोशिकीय जीवों को एक ही संघ प्रोटोजोआ में रखा गया है।
बाकी के 9 संघों में बहुकोशिकीय जीवों को वर्गीकृत किया गया है।
- प्रोटोजोआ संघ
- पोरिफेरा संघ
- सीलेंट्रेटा संघ
- प्लैटीहेल्मिन्थीस संघ
- ऐस्केल्मिंथीस संघ
- संघ एनीलिडा
- आर्थोपोडा संघ
- इकाइनोडर्मेटा संघ
- संघ मोलस्का
- कार्डेटा संघ – इस संघ को 13 वर्गों में विभक्त किया गया है।
कार्डेटा संघ के प्रमुख वर्ग निम्नलिखित हैं –
- पक्षी वर्ग
- स्तनी वर्ग
- एम्फीबिया वर्ग
- मत्स्य वर्ग
- सरीसृप वर्ग
कोशिका विभाजन –
कोशिका विभाजन तीन प्रकार से होता है – समसूत्री विभाजन, असूत्री विभाजन व अर्द्धसूत्री विभाजन।
जंतु ऊतक –
संयोजी ऊतक, पेशी ऊतक, तंत्रिका ऊतक, उपकला ऊतक।
क्रेब चक्र – क्रेब चक्र का वर्णन सन् 1937 में हैंस क्रेब द्वारा किया गया था। इसे साइट्रिक अम्ल चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक चक्र के नाम से भी जाना जाता है।
कार्बोहाइड्रेट के प्रकार – कार्बोहाइड्रेट तीन प्रकार के होते हैं –
- डाइ सैकराइड्स – सुक्रोज, लैक्टोज व माल्टोज डाइ सैकराइड्स के उदाहरण हैं।
- मोनोसैकराइड – ग्लूकोज, ग्लैक्टोज, मैनोज, ट्राइओज मोनोसैकराइड के उदारण हैं।
- पॉली सैकराइड्स – काइटिन व स्टार्च ग्लाइकोजेन पॉली सैकराइड्स के उदाहरण हैं।
प्रोटीन क्या है ?
प्रोटीन एक जटिल कार्बनिक अम्ल हैं, ये 20 अमीनो एसिड से मिलकर बने होते हैं। प्रोटीन शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जे. बर्जेलियस ने किया था। सभी प्रोटीनों में नाइट्रोजन तत्व पाया जाता है। मानव शरीर का 15 प्रतिशत भाग प्रोटीन का ही बना होता है। मानव शरीर को 20 तरह की प्रोटीन की आवश्यकता होती है, इनमें 10 प्रकार के प्रोटीन हमारा शरीर स्वयं संश्लेषित करता है और बाकी 10 हमें भोज्य पदार्थों से प्राप्त होती हैं। बच्चों में प्रोटीन की कमी से मैरास्मस रोग व क्वाशियोर्कर रोग होते हैं।
विटामिन क्या है ?
विटामिन की खोज सन् 1911 ई. में फंक द्वारा की गई थी। यह एक प्रकार का कार्बनिक यौगिक है। विटामिन से कोई ऊर्जा प्राप्त नहीं होती परंतु ये मानव शरीर के लिए बेहद आवश्यक हैं। विटामिन B और C जल में घुलनशील बाकी वसा में घुलनशील विटामिन हैं। जीव विज्ञान ।
मलेरिया के बारे में
सर्वप्रथम मलेरिया शब्द का प्रयोग मेक्कुलाच द्वारा सन् 1827 में किया गया था। साल 1880 में लेवरन ने मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति के रक्त में मलेरिया के परजीवी (प्लाज्मोडियम) की खोज की थी। सन् 1887 में रोनाल्ड रॉस ने प्लाज्मोडियम से ही मलेरिया के होने की पुष्टि की और मच्छर को इसका वाहक सिद्ध किया। इस रोग में RBC नष्ट हो जाते हैं। जीव विज्ञान ।
पोलियो के टीके की खोज किसने की
सर्वप्रथम साल 1952 ई. में पोलियो के टीके का विकास जोनस साल्क द्वारा किया गया था। यह सुई द्वारा शरीर में इंजेक्ट करने वाला टीका था। इसके बाद 1962 में अलबर्ट साबिन द्वारा पोलियो के मुख से लेने वाले टीके को विकसित किया गया।
फफूंद द्वारा होने वाली बीमारियाँ – दमा, दाद, खाज, गंजापन, व एथलीट फुट फफूंद द्वारा होने वाली बीमारियाँ हैं।
आनुवांशिक रोग – हीमोफीलिया, वर्णांधता, डाउंस सिंड्रोम, पटाऊ सिंड्रोम, टर्नर सिंड्रोम, क्लीनेफेल्टर सिंड्रोम मनुष्य के आनुवांशिक रोग हैं।
कैंसर के प्रकार – सार्कोमास, कार्सीनोमास, लिम्फोमास, व ल्यूकीमियास कैंसर के प्रमुख प्रकार हैं। जीव विज्ञान ।
मानवों के प्रमुख रोग व उनसे प्रभावित अंग
बीमारी | प्रभावित अंग | बीमारी | प्रभावित अंग |
---|---|---|---|
मलेरिया | तिल्ला व RBC | टिटनेस | तंत्रिका तंत्र |
हैजा | आँत | पेचिस | आँत |
क्षय रोग | फेफड़े | निमोनिया | फेफड़े |
पायरिया | मसूड़े | प्लेग | फेफड़े |
टायफायड | आँत | शिफलिस | शिश्न |
गोरोनिया | मूत्रमार्ग | डिप्थीरिया | श्वांसनली |
कालीखाँसी | श्वसन तंत्र | काला ज्वर | अस्थिमज्जा |
सोने की बीमारी | मस्तिष्क | कोढ़ | त्वचा व तंत्रिका तंत्र |
एड्स | प्रतिरक्षा प्रणाली | रेबीज | तंत्रिका तंत्र |
इंन्फ्लुएंजा | संपूर्ण शरीर | चेचक | संपूर्ण शरीर |
छोटी माता | संपूर्ण शरीर | खसरा | संपूर्ण शरीर |
हर्पीज | त्वचा | ट्रेकोमा | आँख |
मेनिनजाइटिस | मस्तिष्क | हिपैटाइटिस या पीलिया | यकृत |
गलशोथ | पैराथाइराइड ग्रंथि | खाज | त्वचा |
पोलियो | गला, रीढ़, नाड़ी तंत्र | डेंगू बुखार | संपूर्ण शरीर खासकर सिर, आँख, जोड़ |
विषाणु जनित रोग –
एड्स (AIDS) – इस रोग का कारण HIV (Human Immunodeficiency Virus) है। इससे प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित होती है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट कर देता है।
पोलियो – यह पोलियो वायरस के कारण होता है। इसमें गला, रीढ़ व नाड़ी संस्थान प्रभावित होता है। इसमें बदन दर्द, ज्वर, रीढ़ की हड्डी व आंत की कोशिकाएं नष्ट हो जाती है।
हिपैटाइटीस या पीलिया – इससे प्रभावित मानव अंग यकृत है। इसमें आँख व त्वचा पीली पड़ जाती है और पेशाब भी पीली आने लगती है।
डेंगू ज्वर – इसे हड्डी तोड़ बुखार के नाम से भी जाना जाता है। यह अरबो वायरस के कारण होता है। इससे संपूर्ण शरीर, खासकर सर, आँख व जोड़ प्रभावित होते हैं। इसमें सिर, आँख, जोड़ व पेशियों में दर्द होता है।
रेबीज –
यह रैब्डो वायरस के कारण होता है। इस रोग से ‘तंत्रिका तंत्र’ प्रभावित होता है। इसमें रोगी पागल हो जाता है और जीभ बाहर निकालता है। रेबीज के टीके की खोज लुई पाश्चर ने की थी।
खसरा – यह मोर्बिली वायरस के कारण होता है। इससे संपूर्ण शरीर प्रभावित होता है। इसमें शरीर पर लाल दाने पड़ जाते हैं।
चेचक – यह वेरियोला वायरस के कारण होता है। यह संपूर्ण शरीर को प्रभावित करता है। इसमें तेज बुखार के साथ शरीर पर लाल-लाल छाले पड़ जाते हैं।
एन्फ्लुएंजा – यह मिक्सो वायरस के कारण होता है। इसमें संपूर्ण शरीर प्रभावित होता है। इसमें बेचैनी आना, छींक व गलशोथ की समस्या होती है।
छोटी माता – यह वैरिसेला वायरस के कारण होता है। इसमें संपूर्ण शरीर प्रभावित होता है। इसमें हल्के बुखार के साथ शरीर में पित्तियां पड़ जाती हैं। जीव विज्ञान
हर्पीज – यह हर्पीस वायरस के कारण होता है। इससे प्रभावित मानव अंग त्वचा है। इसमें त्वचा में सूजन हो जाती है।
गलशोथ – इसमें पैराथाइराइड ग्रंथि प्रभावित होती है। इसमें ज्वर के साथ मुँह खोलने में कठिनाई होती है।
ट्रेकोमा – इस रोग से आँख प्रभावित होती है। इसमें आँख का लाल होना व आँख में दर्द होने के लक्षण पाये जाते हैं।
मेनिनजाइटिस – इससे मस्तिष्क प्रभावित होता है। इसमें तेज बुखार आता है।
– जीव विज्ञान ।