सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Suryakant Tripathi Nirala) : मुक्त छन्द के प्रवर्तक एवं छायावादी कविता के मुख्य आधार स्तंभ माने जाने वाले निराला जी का जन्म 1897 ई. में  बंगाल के मेदिनीपुर मे हुआ था। इनके पिता का नाम प. रामसहाय त्रिपाठी था, जो महिषादल राज्य कोष के संरक्षक थे। इन्हें बचपन से ही घुड़सवारी, कुश्ती व खेती करने का शौक था।

इनके बचपन में ही इनके माता पिता का देहांत हो गया। दो संतान उत्पत्ति के बाद इनकी पत्नी का भी देहांत हो गया। इनका पारिवारिक जीवन अत्यंत कष्टमय रहा। अपने उदार स्वभाव के कारण इन्हें बार-बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। आर्थिक अभावों के बीच ही इनकी पुत्री सरोज का देहांद हो गया। इसी घटना से व्यथित होकर इन्होंने ‘सरोज-स्मृति’ नामक कविता लिखी। निराला जी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद जी से अत्यंत प्रभावित थे। इनमें छायावादी, रहस्यवादी औऱ प्रगतिवादी विचारधाराओं का समन्वय पाया गया। 15 अक्टूबर 1961 को सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का देहांत हो गया।

‘निराला’ का साहित्यिक परिचय –

हिंदी साहित्य में कबीरदास जी के बाद किसी फक्कड़ व निर्भीक कवि का जन्म हुआ तो वे थे निराला जी। निराला जी के अंदर कबीर जैसी निर्भीकता, सूफियों सा सादापन, सूर-तुलसी की प्रतिभा और प्रसाद जी की सौंदर्य चेतना थी। ये एक ऐसे विद्रोही कवि थे। इन्होंने अपने युग की काव्य परंपरा के प्रति प्रबल विद्रोह का भाव लेकर काव्य रचना की। जिसके कारण इन्हें तात्कालिक कवियों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। जिन्होंने अपनी निर्भीकता से रुढ़ियों को तोड़ डाला। इन्होंने काव्य के क्षेत्र में अपने नवीन प्रयोगों से युगान्तरकारी परिवर्तन हुए। इन्हें हिन्दी और बांग्ला का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने संस्कृत व हिन्दी साहित्य का भी अध्ययन किया। भारतीय दर्शन में इनकी पर्याप्त रुचि थी। इन्होंने हिन्दी में मुक्त छन्दों की शुरुआत की।

सम्पादन कार्य

निराला जी ने ‘समन्वय’ और ‘मतवाला’ पत्रिकाओं का संपादन किया। समन्वय का प्रकाशन रामकृष्ण मिशन, कलकत्ता द्वारा किया जाता था। इसके बाद इनका परिचय महावीर प्रसाद द्विवेदी जी से हुआ। जिनके सहयोग से इन्होंने ‘मतवाला’ नामक पत्रिका का संपादन किया। इसके तीन साल बाद इन्होंने लखनऊ से संपादित होने वाली ‘गंगा पुस्तक माला’ का संपादन किया। इसके अतिरिक्त इन्होंने सुधा नामक पत्रिका का भी संपादकीय लिखना प्रारंभ किया। बाद में ये लखनऊ छोड़कर इलाहाबाद चले गए। इन्होंने अपना शेष जीवन इलाहाबाद में ही काव्य साधना करते हुए व्यतीत किया।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएं –

निराला जी बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा से संपन्न थे। इन्होंने कविता, उपन्यास, निबन्ध, कहानी, आलोचना, और संस्मरण लिखे। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं –

अनामिका –

अनामिका में संग्रहीत रचनाएं निराला जी के कलात्मक स्वभाव की परिचायक हैं।

परिमल –

इस रचना में अन्याय व शोषण के प्रति तीव्र विद्रोह और निम्न वर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति प्रकट की गई है।

गीतिका –

श्रंगार की मूल भावना के साथ रचित गीतिका के बहुत से गीतों में मधुरता के साथ अत्मनिवेदन के भाव को भी व्यक्त किया है। इसके अतिरिक्त इस रचना में प्रकृति वर्णन और देशप्रेम की भावना का भी चित्रण किया गया है।

राम की शक्ति पूजा –

इसमें कवि का ओज, पौरुष व छन्द-सौष्ठव प्रकट होता है।

सरोज स्मृति –

यह हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ शोक गीत है। जिसकी रचना निराला जी ने अपनी पुत्री सरोज के निधन पर की थी। जिसकी मृत्य हो गई थी।

निराली जी की अन्य रचनाएं –

  • अर्चना
  • आराधना
  • कुकुरमुत्ता
  • अपरा
  • अणिमा
  • नए पत्ते
  • बेला

गद्य रचनाएं –

  • लिली
  • अप्सरा
  • चतुरी चमार
  • अलका
  • प्रभावती
  • निरुपमा

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय (Agyeya ka Jeevan Parichay) : प्रयोगवादी विचारधारा के प्रवर्तक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जन्म मार्च 1911 ई. में हुआ था। इनके पिता भी विद्वान थे। अज्ञेय जी का बचपन अपने पिता के साथ कश्मीर, बिहार और मद्रास में व्यतीत हुआ। इन्होंने अपनी शिक्षा मद्रास व लाहौर में प्राप्त की। इन्होंने बी.एस.सी. पास करने के बाद अंग्रेजी से एम.ए. किया। इसी दौरान क्रांतिकारी आंदोलन में सहयोगी होने के कारण ये फरार हो गए। 1930 ई. में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। ये 4 साल जेल में और 2 साल बाद नजरबन्द रहे। इन्होंने किसान आंदोलन में भी हिस्सा लिया। इन्होंने कुछ वर्ष आकाशवाणी में कार्य किया। 1943 से 1946 के बीच ये सेना में भी रहे। अज्ञेय जी ने अपने जीवन काल में कई बार विदेश की यात्रा की। 4 अप्रैल 1987 ई. में अज्ञेय जी का निधन हो गया।

सम्पादक के रूप में –

अज्ञेय जी ने सैनिक, विशाल भारत, नया प्रतीक, साप्ताहिक दिनमान, और अंग्रेजी त्रैमासिक ‘वाक्’ का सम्पादन किया। 1943 ई. में इन्होंने ‘तार सप्तक’ नामक एक काव्य संग्रह का सम्पादन व प्रकाशन किया। यह सात कवियों की रचनाओं का संकलन था। यह काव्य संकलन तात्कालिक काव्य परंपराओं के विपरीत एक नवीन रुप में सामने आया। इनके अतिरिक्त अज्ञेय जी ने अन्य ग्रंथों का भी सम्पादन किया। जैसे – आधुनिक हिन्दी साहित्य (निबन्ध संग्रह), नए एकांकी आदि।

साहित्यिक व्यक्तित्व –

अज्ञेय जी किशोरावस्था से ही काव्य रचना और साहित्य में रुचि लेने लगे। परम्परागत मान्यताओं का परित्याग करने के लिए इनकी आलोचना की गई। साथ ही इनपर पाश्चात्य काव्य-शिल्प की नकल का भी आरोप लगाया गया। लेकिन इन्होंने अपना प्रयोग जारी रखा। इनके द्वारा शुरु किया गया यह नया प्रयोग, प्रयोगवादी काव्य के नाम से जाना गया। जो कि आज ‘नई कविता’ की एक सशक्त काव्यधारा के रूप में परिवर्तित हो चुका है।

अज्ञेय की रचनाएं –

सच्चिदानन्द अज्ञेय जी ने गद्य व पद्य दोनों क्षेत्रों में रचनाएं कींं। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं –

काव्य रचनाएं –

  • किनती नावों में कितनी बार
  • चिन्ता
  • पूर्वा
  • सुनहले शैवाल
  • भग्नदूत
  • पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ
  • आँगन के पार द्वार
  • हरी घास का क्षणभर
  • बावरा अहेरी
  • इंद्रधनुष रौंदे हुए ये
  • अरी ओ करुणा प्रभामय
  • इत्यलम्
  • Prison Days and other Poems

उपन्यास –

  • शेखर : एक जीवनी
  • नदी के द्वीप

कहानी संग्रह –

शरणार्थी, परम्परा, कोठरी की बात, जयदोल, विपथगा।

भ्रमण वृत्तांत –

अरे, यायावर रहेगा याद।

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