तुगलक वंश : मुहम्मद बिन तुगलक और फिरोज तुगलक

तुगलक वंश दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत स्थापित होने वाला तीसरा राजवंश था। दिल्ली सल्तनत के कुल पांच राजवंश गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैय्यद वंश, लोदी वंश हुए। इस लेख में तुगलक वंश की जानकारी दी गई है। इसकी स्थापना गियासुद्दीन तुगलक ने की थी। इब्नबतूता तुगलकों को तुर्कों की कैराना शाखा का बताता है। कैराना तुर्कों व मंगोलों की मिश्रित जाति थी। अमीर खुसरो की अंतिम रचना तुगलकनामा गियासुद्दीन को ही समर्पित है।

गियासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.)

गाजी मलिक 1320 ई. में गियासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली का सुल्तान बना। इसी के साथ दिल्ली सल्तनत पर एक नए राजवंश तुगलक वंश का उदय हुआ। अपने नाम के साथ गाजी जोड़ने वाला यह दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था। इसकी माँ एक हिंदू जाट महिला थीं। पहले यह दीपालपुर (पंजाब) का सूबेदार था। अलाउद्दीन खिलजी ने इसे उत्तर पश्चिमी सीमाओं का प्रधान रक्षक नियुक्त किया था। इसने यहाँ मंगलों के विरुद्ध कई सफल लड़ाइयां लड़ीं। शासक बनने के बाद इसने खिलजी स्त्रियों को पेंशन व सुरक्षा प्रदान की। इसने अलाउद्दीन द्वारा लागू कठोर दंड विधान को बदल दिया। डाक व्यवस्था को संगठित किया। नहरों के क्षेत्र में कार्य करने वाला यह पहला सुल्तान था। किसानों के संबंध में नीति बनाने वाला यह पहला सुल्तान था। अकाल के समय किसानों से कर नहीं लिया जाता था।

अभियान –

वारंगल पर आक्रमण कर जीत लिया। इसका नाम बदलकर सुल्तानपुर रख दिया। 1323 ई. में जौनाखाँ ने मदुरै को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। इसके बाद इसने उड़ीसा को जीता। 1324 ई. में गियासुद्दीन ने जफरखाँ के साथ मिलकर बंगाल अभियान किया। ये गयासुद्दीन का अंतिम अभियान सिद्ध हुआ। इसने बंगाल को जीतकर इसका विभाजन कर दिया। दक्षिण और पूर्वी बंगाल को सल्तनत में मिला लिया। 1324 ई. में शीरमुगल के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुआ। इसे समाना के गवर्नर सादी ने विफल कर दिया।

निजामुद्दीन औलिया से मतभेद –

गियासुद्दीन के पूर्ववर्ती शासक खुसरोशाह ने राजकोश से धन लोगों में बाँट दिया था। गियासुद्दीन को शासक बनने के बाद आर्थिक समस्या से जूझना पड़ा। तो उसने सभी को राजकोष में पैसा लौटाने को कहा। लगभग सभी ने पैसा राजकोष में जमा करा दिया। परंतु निजामुद्दीन ने खुसरो द्वारा लिया गया 5 लाख टंका नहीं लौटाया। इसी पर गियासुद्दीन का औलिया से मतभेद हो गया। इस पर गियासुद्दीन ने बंगाल अभियान से लौटने पर उन्हें सजा देने की बात कही। इसी पर औलिया ने कह दिया ‘हुनूज दिल्ली दूरस्त’ अर्थात दिल्ली अभी दूर है। यह वाक्य सच सिद्ध हुआ और गियासुद्दीन दिल्ली पहुँच ही नही सका। उसकी रास्ते में ही मृत्यु हो गई।

मृत्यु –

बंगाल विजय से लौट रहे गियासुद्दीन के स्वागत का इंतजाम पुत्र जौना खां ने अफगानपुर में किया। यह स्थान तुगलकाबाद से 8 किलोमीटर दूर था। जौना खां ने अहमद ऐयाज से लकड़ी का एक महल निर्मित कराया। स्वागत समारोह के दौरान यह महल ढह गया। इसमें दबकर गियासुद्दीन और उसके एक पुत्र महमूद की मृत्यु हो गई। बरनी के अतिरिक्त अन्य कई इतिहासकार जौनाखाँ को इसका साजिशकर्ता मानते हैं। क्योंकि महम्मद तुगलक ने शासक बनने के बाद इस राजकीय शिल्पकार अहमद ऐयाज को ख्वाया की उपाधि देकर अपना वजीर नियुक्त किया। कुछ लोग इसकी मौत का कारण निजामुद्दीन औलिया के शब्दों को मानते हैं।

मुहम्मद बिन तुगलक (1325-51 ई.)

मुहम्मद बिन तुगलक का मूल नाम जौना खाँ था। इसका राज्याभिषेक बलबन के लालभवन में हुआ। यह सल्तनत काल का सर्वाधिक शिक्षित व विद्वान शासक था। राजमुंदरी अभिलेख से इसकी विजयों की जानकारी प्राप्त होती है। राजमुन्दरी लेख में इसे दुनिया का खान कहा गया है। इसने अहमद ऐयाज को अपना वजीर नियुक्त किया। संपूर्ण सल्तनत काल में मुहम्मद तुगलक का साम्राज्य सबसे विस्तृत था। खुशरोशाह के सयम इसे अमीर ए आखूर का पद प्राप्त हुआ। तुगलक वंश और दिल्ली सल्तनत में सबसे विस्तृत साम्राज्य इसी का था।

मु. बिन तुगलक की धार्मिक नीति –

ये सभी धर्मों का सम्मान करता था। इसने कई हिंदुओं को भी प्रशासन में उच्च पदों पर नियुक्त किया। इसने एक हिंदू साईराज को अपना वजीर बनाया। भरत को गुलबर्गा का सूबेदार बनाया। ज्योतिषी रतन को राजस्व अधिकारी तदोपरांत सूबेदार बनाया। यह हिंदू त्योहार होली को भी मनाता था। माउंट आबू पर्वत पर स्थित जैन मंदिरों में दर्शन हेतु जाने वाला पहला सुल्तान बना। जैन विद्वान राजशेखर व जिनप्रभू सूरी इसके दरबार में रहते थे। सालार मसूद गाजी और मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाने वाला पहला सुल्तान यही था।

मुहम्मद बिन तुगलक के विदेशों से संबंध –

मुहम्मद बिन तुगलक ने मिश्र, ईरान, सीरिया व चीन से वैदेशिक संबंध स्थापित किए। 1341 ई. में चीन के शासक तोगन तिमूर ने अपना एक शिष्टमण्डल बौद्ध मंदिरों के दर्शनार्थ भारत भेजा। चीनी शासक ने हिमालय क्षेत्र में अवस्थित बौद्ध मंदिरों के जीर्णोद्धार की अनुमति मांगी।

मु. बिन तुगलक का दक्षिण अभियान –

1328 ई. में मुहम्मद तुगलक ने कम्पिलदेव पर आक्रमण किया। कम्पिलदेव मारा गया और स्त्रियों ने जौहर कर लिया। उसके राज्य कम्पिली को सल्तनत में मिला लिया गया। यह अभियान मलिक जादा ख्वाजा ए जहाँ के नेतृत्व में हुआ।

मंगोल आक्रमण –

1328-29 ई. में तर्माशीरीन के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुआ। तुगलक ने यूसुफ बुगरा के नेतृत्व में सेना भेजी और मंगोलों को हरा दिया।

मुहम्मद तुगलक के समय हुए विद्रोह –

तुगलक वंश और सल्तनत काल में मुहम्मद तुगलक को सबसे अधिक विद्रोहों का सामना करना पड़ा। इसके शासनकाल में बहाउद्दीन गुर्शप, किश्लूखाँ, इलियास खाँ, सोमदेव चालुक्य, कृष्ण नायक ने विद्रोह किया।

विजयनगर की स्थापना –

मुहम्मद तुगलक के शासनकाल की अत्यंत महत्वपूर्ण घटना विजयनगर की स्थापना थी। इस समय हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने दक्षिण में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की।

बहमनी राज्य की स्थापना –

तुगलक वंश के ही समय 1347 ई. में हसन गंगू ने बहमनी राज्य की स्थापना की।

तुगलक की भूलें

मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने शासनकाल में कुल पांच प्रयोग किए। भारतीय इतिहास में इन्हें तुगलक की भूलों के नाम से जाना जाता है। ये प्रयोग सांकेतिक मुद्रा, खुरासान अभियान, कराचिल अभियान, दोआब क्षेत्र में कर वृद्ध, व राजधानी परिवर्तन थे।

दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि –

दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि करना कोई खास समस्या न थी। परंतु यह कार्य गलत समय पर किया गया। उस समय वहाँ भयंकर अकाल पड़ा हुआ था। इसकी मार झेल रहे किसानों ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह का दमन कर दिया गया। इसके बाद मुहम्मद तुगलक ने इस क्षेत्र में कुछ सुधार किए। एक कृषि विभाग दीवान-ए-अमीरकोही की स्थापना की। दोआब क्षेत्र को विकास प्रखंडों में बाँटा गया। अकाल संहिता का निर्माण कराया। कृषि विकास हेतु तकावी ऋण प्रदान करने का कार्य अमीर कोही को सौंपा गया। इसके लिए राजस्व से 70 लाख टंका व्यय किये गए।

राजधानी परिवर्तन –

1327 ई. में मुहम्मद तुगलक ने सल्तनत की राजधानी दिल्ली से देवगिरि करने की योजना बनाई। साथ ही देवगिरि का नाम बदलकर दौलताबाद रख दिया। बरनी के अनुसार राज्य के केंद्र में होने के कारण तुगलक ने देवगिरि को चुना। आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव ने मंगोल हमलों से बचने के लिए राजधानी परिवर्तन करना बताया है। इब्नब्तूता बताता है कि दिल्ली के लोग सुल्तान को अपमानजनक पत्र लिखा करते थे। उन्हीं को दंड देने के लिए मुहम्मद तुगलक ने राजधानी परिवर्तन की योजना बनाई। मुहम्मद तुगलक ने दिल्ली के गणमान्यों को ही दौलताबाद जाने का आदेश दिया। तुगलक ने समस्त जनता को आदेश नहीं दिया था। सबसे पहले उसकी माँ मखदूम-ए-जहाँ को दौलताबाद भेजा गया। दिल्ली से दौलताबाद (1500 किलोमीटर) के बीच सड़क का निर्माण किया गया। इस यात्रा में लोगों को कुल 40 दिन लगते थे। एक समस्या यह हो गई कि यह प्रवास गर्मी के मौसम में किया गया।

कुछ समय बाद ही मुहम्मद तुगलक को अपनी गलती का एहसास हो गया। वो समझ गया कि जिस तरह दिल्ली से दौलताबाद को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। उसी तरह दौलताबाद से दिल्ली व उत्तर भारत को नियंत्रित करना संभव नहीं है। अतः उसने फिर से दिल्ली जाने का आदेश दे दिया।

सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन –

मुहम्मद बिन तुगलक ने 1330 ई. में सांकेतिक मुद्रा की शुरुवात की। दरअसल उस समय समस्त विश्व चाँदी की भारी कमी से जूझ रहा था। उसी समय मुहम्मद बिन तुगलक ने सांकेतिक मुद्रा चलाई और इसका मूल्य चाँदी के टंके के बराबर रख दिया। परंतु उसकी यह योजना विफल रही। सांकेतिक मुद्रा किस धातु से निर्मित थी इस बारे में सभी इतिहासकार एकमत नहीं हैं।

खुरासान अभियान –

मुहम्मद तुगलक ने मध्य व पश्चिम एशिया में राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाने की योजना बनाई। मुहम्मद बिन तुगलक ने मिश्र के अलनासिर और ट्रांसआक्सियाना के तर्माशीरीन के साथ मिलकर एक त्रिगुट का निर्माण किया। मुहम्मद तुगलक ने जल्दबाजी में 3 लाख 70 हजार की सेना तैयार कर ली। साथ ही इस सेना को राजकोष से 1 साल का अग्रमि वेतन भी दे दिया। परंतु जब आक्रमण का समय आया, तब तक मध्य एशिया की राजनीतिक गुत्थी सुलझ गई। अतः यह योजना अंजाम देने से पहले ही समाप्त हो गई। तो इस सेना को 1337 ई. में पंजाब के नगरकोट पर आक्रमण हेतु भेज दिया।

कराचिल अभियान –

1337 ई. में खुसरो मलिक के नेतृत्व में कराचिल (वर्तमान कुमायूँ) पर आक्रमण किया। इसने जिदिया नगर और कांगड़ा जीत लिया। बरनी के अनुसार यह खुरासान अभियान का ही एक हिस्सा था। वहीं फरिश्ता के अनुसार सुल्तान कराचिल नहीं चीन जीतना चाहता था।

मुहम्मद तुगलक की मृत्यु –

तगी के विद्रोह को दबाते समय मुहम्मद तुगलक की मृत्यु 20 मार्च 1351 ई. को सिंध के थट्टा में हो गई। इस समय नासिरुद्दीन चिराग देहलवी मुहम्मद तुगलक के शिविर में ही उपस्थित थे।

मुहम्मद बिन तुगलक के कार्य –

  • इब्नबतूता को दिल्ली का काजी नियुक्त किया।
  • उलेमा वर्ग को भी न्याय व्यवस्था के अंतर्गत रख दिया। अब तक ये इससे मुक्त थे।
  • सती प्रथा पर रोक लगाने वाला दिल्ली का पहला सुल्तान था।
  • 1339 ई. में मिश्र के खलीफा के वंशज गियासुद्दीन मुहम्मद को दिल्ली बुलाकर सम्मानित किया। इसके बाद इसे खलीफा का एक औपचारिक घोषणापत्र प्राप्त हुआ। इसके बाद इसने सिक्कों व खुतबों से अपना नाम हटाकर खलीफा का नाम अंकित कराया।
  • राजधानी परिवर्तन का लाभ यह हुआ कि दक्षिण में भी मुस्लिम संस्कृति का विस्तार हो गया।

फिरोज तुगलक (1351-88 ई.)

ये मु. तुगलक का चचेरा भाई था। मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के समय यह थट्टा में उसी के शिविर में था। पहले इसने शासक बनने में हिचकिचाहड़ दिखाई। परंतु तीन दिन बाद इसका राज्याभिषेक हुआ। खलीफा से इसे सैयद उस् सलातीन की उपाधि प्राप्त हुई। मुहम्मद तुगलक ने सुल्तान बनने के बाद फिरोज को अमीर-ए-हाजिब का पद दिया था। इसकी माँ हिंदू थीं। इतिहासकार इलियट व एलफिंस्टन इसे सल्तनतकाल का अकबर कहते हैं। जियाउद्दीन बरनी इसे ‘दिल्ली का आदर्श सुल्तान’ कहता है। ध्यान रहे मिनहाज उस सिराज नासिरुद्दीन महमूद को ‘दिल्ली का आदर्श सुल्तान’ कहता है।

राज्याभिषेक व शासनकाल –

मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के तीन दिन बाद इसका राज्याभिषेक सिंधु नदी के तट पर थट्टा में हुआ। इसने खान ए जहाँ मकबूल को अपना वजीर नियुक्त किया। यह मूल रूप से एक ब्राह्मण था और बाद में मुसलमान बन गया था। इसकी मृत्यु के बाद इसके पुत्र जूनाखाँ को फिरोज ने इसका पद व उपाधि दे दी। फिरोज के शासनकाल में न तो कोई मंगोल आक्रमण हुआ और न ही कोई अकाल पड़ा। फिरोज तुगलक ने राज्य का चरित्र इस्लामिक घोषित कर दिया। ऐसा करने वाला यह दिल्ली का पहला सुल्तान था।

इसके शासनकाल में गुलामों की संख्या सर्वाधिक थी। इसने गुलामों के एक अलग विभाग दीवान ए बंदगान की स्थापना की। इसने तांबे का अद्धा व चाँदी का बिख नामक सिक्का चलाया। लोगों की शिकायतों के निवारण के लिए फिरोज ने ‘दीवान ए रिसालत’ की स्थापना की। इसने फारसी भाषा में कानूनों का संग्रह फिक-ए-फिरोजशाही तैयार कराया। वृद्धावस्था पेंशन के लिए एक पेंशन विभाग दीवान ए इश्तिहाक की स्थापना की।

विद्रोह –

फिरोज तुगलक के शासनकाल में पहला विद्रोह गुजरात के सूबेदार दामगानी ने किया।

इसके बाद 1377 ई. में इटावा में विद्रोह हुआ।

फिर रुहेलखंड के शासक खड़कू ने विद्रोह किया।

खुतबा –

इसने खुतबे में गोरी और अपने सभी पूर्ववर्ती शासकों के नाम रखे।

परंतु ऐबक का नाम इसमें सम्मिलित नहीं किया।

फिरोज तुगलक के कार्य –

  • फिरोजाबाद में नक्षत्रशाला की स्थापना की।
  • इसने एक जल घड़ी (तास घड़ी) का निर्माण किया।
  • गया में एक सूर्य मंदिर का निर्माण हुआ।
  • खैराती अस्पताल (दार उल शफा) खुलवाए।
  • पार्शवनाथ मंदिर की मरम्मत फिरोज के आदेश पर हुई। यह राजगीर शिलालेख में वर्णित है।
  • इसने अपनी आत्मकथा फुतूहात-ए-फिरोजशाही नाम से लिखी।
  • व्यावसायिक शिक्षा नीति लागू करने वाला पहला सुल्तान बना।
  • रोजगार विभाग की स्थापना की।
  • दिल्ली में 1200 बाग लगवाए।
  • कुतुबमीनार की पांचवीं मंजिल का निर्माण कराया।
  • इसने दाग प्रथा को थोड़ा लचीला बनाया। उसे समाप्त नहीं किया।
  • एक अनुवाद विभाग की स्थापना की।
  • संगीत पर लिखित पुस्तक रागदर्पण का फारसी में अनुवाद इसी के काल में हुआ।
  • मजारों पर मुस्लिम स्त्रियों के जाने पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • जजिया कर को ब्राह्मणों पर भी लगाया।
  • अशोक स्तंभ को टोपरा (सहारनपुर, उत्तर प्रदेश) से दिल्ली मंगाया।
  • राज्य का चरित्र इस्लामिक घोषित किया।
  • राज्य के खर्च से हज की व्यवस्था करने वाला पहला सुल्तान बना।
  • नहरों व सरायों का निर्माण कराया।
  • दीवान ए खैरात की स्थापना की और राजस्थान के राजस्व की आय उसे दान कर दी।
  • अपने भाई जौनाखाँ की याद में जौनपुर नगर की स्थापना की।
  • इसके अतिरिक्त फिरोजाबाद, फदेहाबाद, और फिरोजपुर की स्थापना की।

फिरोज तुगलक के अभियान

1253 ई. और 1259 ई. में फिरोज ने बंगाल के विरुद्ध दो असफल अभियान किए। 1360 ई. में फिरोज ने उड़ीसा के जाजनगर पर आक्रमण किया। यहाँ का शासक भानूदेव तृतीय भाग गया। यहीं पर फिरोज ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर को लूटा। 1361 ई. में फिरोज ने कांगड़ा में स्थित नगरकोट पर हमला किया। यहाँ के ज्वालामुखी मंदिर को लूटा। मंदिर की मुख्य मूर्ति को मदीना भेज दिया। यहाँ से 1300 संस्कृत की किताबों को प्राप्त किया। उनका फारसी में अनुवाद कराया।

थट्टा अभियान –

फिरोज तुगलक का अंतिम अभियान सिंध के थट्टा पर हुआ। 1362 ई. में फिरोज ने सिंध पर आक्रमण किया।

इस अभियान के लिए फिरोज 500 नौकाओं का बेंड़ा भी साथ लेकर गया।

इस अभियान के बाद फिरोज ने भविष्य में कोई सैन्य अभियान न करने की घोषणा की।

कर व्यवस्था –

इसने 24 करों को समाप्त कर सिर्फ चार कर जजिया, जकात, खुम्स खराज को लागू किया।

इस्लाम के अनुसार खुम्स की दर 1/5 राज्य को और 4/5 सैनिकों को ही रखी।

खराज की दर 1/5 रखी।

इसने हक-ए-शर्ब (शिंचाई कर) लगाया और उसकी दर उपज का 10 प्रतिशत रखी।

इस तरह फिरोज के शासकाल में कुल 5 कर प्रचलित थे।

फिरोज के समय के विभाग –

  • दीवान-ए-खैरात – दान विभाग
  • दीवान-ए-इश्तिहाक – पेंशन विभाग
  • दीवान-ए-बंदगान – दास विभाग
  • शौहरत-ए-आम – सार्वजनिक निर्माण विभाग

फिरोजशाह के उत्तराधिकारी

फिरोज के सबसे बड़े पुत्र फतह खाँ की मृत्यु फिरोज के समय ही 1374 ई. में हो गई। इसके बाद फिरोज के दूसरे पुत्र जफर खाँ की भी मृत्यु हो गई। फिरोज ने 1387 ई. में अपनी वृद्धावस्था में शासन की समस्त शक्तियां शहजादे नासिरुद्दीन मोहम्मद को सौंप दीं। इस समय खुतबे और सिक्कों पर फिरोज और नासिरुद्दीन दोनों के नाम अंकित होने लगे। परंतु नासिरुद्दीन एक विलासी व्यक्ति साबित हुआ और इसके विरुद्ध विद्रोह हो गया। विद्रोहियों ने नासिरुद्दीन के सैनिकों का अत्याचार दिखाने के लिए वृद्ध फिरोजशाह को पालकी में बिठाकर दिल्ली में घुमाया। नासिरुद्दीन सल्तनत छोड़कर सिरमौर की पहाड़ियों में भाग गया। अब फिरोज तुगलक ने अपने बड़े पुत्र फतह खाँ के पुत्र तुगलकशाह (गियासुद्दीन तुगलक द्वितीय) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसके बाद सितंबर 1388 ई. में फिरोजशाह की मृत्यु हो गई।

गियासुद्दीन तुगलक द्वितीय (1388-89 ई.)

फिरोज के बाद उसके द्वारा घोषित उत्तराधिकारी तुगलकशाह ही गियासुद्दीन तुगलक द्वितीय के नाम से शासक बना।

अबूबक्र शाह (1389-90 ई.)

फरवरी 1389 ई. में जफर खाँ का पुत्र अबुबक्र शासक बना।

नासिरुद्दीन मोहम्मदशाह (1390-94 ई.)

अगस्त 1390 ई. में फिरोजशाह का पुत्र मुहम्मद फिर शासक बन गया।

ये पहले सिरमौर की पहाड़ियों में भाग गया था।

1394 ई. में इसकी मृत्यु हो गई।

अलाउद्दीन सिकंदरशाह (1394 ई.)

मोहम्मदशाह के बाद यह मात्र डेढ़ माह के लिए शासक बना।

नासिरुद्दीन महमूद (1394-1412 ई.)

उसके बाद सरदारों ने सिकंदरशाह के छोटे भाई नासिरुद्दीन महमूद को शासक बनाया। यह तुगलक वंश का अंतिम शासक था। साथ ही यह दिल्ली सल्तनत का अंतिम तुर्की शासक भी था। इसका वजीर मल्लू इकबाल था। इसी समय फिरोजाबाद में सल्तनत का एक अन्य शासक नसरतशाह भी बना। इन दोनों ने एक साथ शासन किया। नासिरुद्दीन महमूद के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना तैमूर लंग का आक्रमण थी। फरवरी 1413 ई. में कैथल में इसकी मृत्यु हो गई।

तैमूर का आक्रमण –

तैमूर लंग के नेतृत्व में 1398 ई. में भारत पर मंगोल आक्रमण तुगलक वंश के काल में ही हुआ। खैबर दर्रे को पार कर तैमूर भारत पहुँचा। दिल्ली का सुल्तान नासिरुद्दीन गुजरात भाग गया। तैमूर ने 15 दिनों तक दिल्ली में लूटमार की। तैमूर के आक्रमण के समय भटनेर की मुस्लिम स्त्रियों ने जौहर किया। इसके बाद अन्य स्थानों को लूटता हुआ बापस अपनी राजधानी समरकंद चला गया। बापस जाने से पहले वह खिज्र खाँ को लाहौर, मुल्तान व दीपालपुर का गवर्नर नियुक्त कर गया। सुल्तान के न होने के कारण दिल्ली भी खिज्र खाँ को ही सौंप दी। 1405 ई. में तैमूर की मृत्यु हो गई। तैमूर के जाने के बाद सुल्तान पुनः दिल्ली आ गया। अब खिज्र खाँ पंजाब व मुल्तान चला गया।

तुगलक वंश ।

अलाउद्दीन खिलजी व खिलजी वंश

दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला यह दूसरा राजवंश है। सल्तनत काल के पहले राजवंश गुलाम वंश के पतन के बाद खिलजी वंश का उदय हुआ। इस वंश के शासकों ने दिल्ली सल्तनत पर 1290 ई. से 1320 तक शासन किया। ‘दिल्ली सल्तनत’ के अंतर्गत गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैय्यद वंश, व लोदी वंश का इतिहास आता है। इस लेख में अलाउद्दीन खिलजी व खिलजी वंश की जानकारी दी गई है। खिलजी वंश की स्थापना जलालुद्दीन खिलजी ने की थी।

खिलजी –

खिलजी प्रदेश अफगानिस्तान में हेलमन्द नदी घाटी में बसा हुआ था। वहाँ के निवासियों को खिलजी कहा जाता था। मूल तुर्कों से पृथक ये तुर्कों की ही एक शाखा थे। इन्होंने प्रशासन में तुर्कों के एकाधिकार को समाप्त कर दिया। इन्होंने तुर्कों की नस्लवादी नीति के विरुद्ध भारतीय मुसलमानों को भी बड़े पद दिये। इन्होंने कुलीनता के स्थान पर प्रतिभा को महत्व दिया। खिलजी भी भारत में गोरी के साथ ही आए थे। 1191 ई. में तराइन की पहली लड़ाई में गोरी घायल हो गया था। तब उसे युद्ध भूमि से एक खिलजी अधिकारी ने ही निकाला था। खिलजी वंश के किसी भी शासक ने खलीफा से पद की वैधता प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया।

जलालुद्दीन खिलजी (1290-96 ई.)

जलालुद्दीन खिलजी 1290 ई. में 70 वर्ष की अवस्था (सर्वाधिक वृद्ध सुल्तान) में सल्तनत का शासक बना। इसका राज्याभिषेक कैकुबाद द्वारा निर्मित किलोखरी महल में कराया। परंतु इसने बलबन के सिंहासन पर बैठने से मना कर दिया। इसने मंगोलों के विरुद्ध कई सफल लड़ाइयां लड़ी थीं। कैकुबाद ने इसे आरिज ए मुमालिक का पद दिया। बाद में तीन माह तक क्यूमर्स का संरक्षक व वजीर भी रहा। प्रारंभ में दिल्ली की जनता के बीच यह इतना लोकप्रिय न हुआ। इसलिए इसने किलोखरी को ही अपनी प्रारंभिक राजधानी बनाया। एक साल बाद कोतवाल फखरुद्दीन और दिल्ली की जनता के आमंत्रित करने पर दिल्ली पहुँचा।

अन्य अधिकारी –

इसने ख्वाजा खातीर को वजीर नियुक्त किया। अपने छोटे भाई युग्नुसखा को आरिज ए मुमालिक के पद पर नियुक्त किया।

अहमद चप को अमीर ए हाजिब का पद प्रदान किया।

जलालुद्दीन खिलजी के अभियान –
  • 1290 ई. में हम्मीरदेव के रणथम्भौर किले पर आक्रमण किया। इसने झैन का किला जीत लिया, परंतु रणथम्भौर का किला नहीं जीत सका।
  • 1292 ई. में राजपूतों से मंडौर का दुर्ग जीता।
  • इसी साल हलाकू (मंगोल) के पौत्र अब्दुल्ला ने पंजाब पर आक्रमण किया।
मंगोलपुरी –

इसी के शासनकाल में चंगेज खाँ के एक वंशज उलूग ने 4000 मंगोलों के साथ इस्लाम स्वीकार कर लिया। जलालुद्दीन ने इन्हें दिल्ली में बसा लिया। इस स्थान को मंगोलपुरी के नाम से जाना जाता है।

अलाउद्दीन के अभियान –

1292 ई. में कड़ा व मानिकपुर के इक्तेदार अलाउद्दीन खिलजी ने भिलसा (मालवा क्षेत्र) की लूट की। जलालुद्दीन ने इससे खुश होकर अवध की भी इक्तेदारी अलाउद्दीन को दे दी। इसी समय अलाउद्दीन को अर्ज-ए-मुमालिक का पद दिया। इसके बाद अलाउद्दीन ने सुल्तान जलालुद्दीन से चन्देरी पर आक्रमण करने की अनुमति मांगी। परंतु वह देवगिरि पर आक्रमण करने चला गया। देवगिरि की लूट से उसे अपार सम्पदा प्राप्त हुई। सुल्तान को ग्वालियर में देवगिरि लूट की सूचना प्राप्त हुई। अलाउद्दीन ने सुल्तान से मिलने के लिए निवेदन किया। सुल्तान के अमीर-ए-हाजिब अहमद चप ने अलाउद्दीन से भेंट न करने की सलाह दी। परंतु जलालुद्दीन ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

जलालुद्दीन की मृत्यु –

जुलाई 1296 ई में जलालुद्दीन कड़ा-मानिकपुर में गंगा नदी के तट पर अलाउद्दीन से मिला। यहीं पर सलीम ने सुल्तान पर हमला कर दिया। इख्तियारुद्दीन हुद ने जलालुद्दीन का सर काट दिया। मलिक फखरुद्दीन के अतिरिक्त सुल्तान के सभी सहयोगियों को भी मार दिया गया। यहीं पर अलाउद्दीन ने स्वयं को सुल्तान घोषित कर लिया।

इब्राहिम रुकनुद्दीन (1296 ई.)

यह जलालुद्दीन का पुत्र था। कड़ा-मानिकपुर में जलालुद्दीन की मृत्यु की सूचना उसकी पत्नी को दिल्ली में प्राप्त हुई। तो उसकी पत्नी मलिका-ए-जहाँ ने अपने पुत्र रुकनुद्दीन को दिल्ली के तख्त पर बिठा दिया। कड़ा मानिकपुर से बापस आने पर अलाउद्दीन ने इसे तखत से हटा दिया और स्वयं सुल्तान बन गया।

अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.)

इसके बचपन का नाम अलीगुर्शप था। बरनी के अनुसार यह पूर्णतः अशिक्षित था। यह जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा व दामाद था। इसने कई वर्षों तक बलबन की सेवा की थी। जलालुद्दीन के समय मलिक छज्जू के विद्रोह का दमन किया। भारतीय इतिहास में इसे मुख्यतः इसके बाजार प्रबंधन व्यवस्था के लिए जाना जाता है।

अलाउद्दीन खिलजी का राज्याभिषेक –

अक्टूबर 1296 ई. में यह दिल्ली सल्तनत का शासक बना। इसने बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक कराया। इसने सिकंदर द्वितीय की उपाधि धारण की। इसके सिक्कों व सार्वजनिक प्रार्थनाओं में यही उपाधि मिलती है। लेनपूल ने इसकी विजयों के कारण इसे सल्तनत का समुद्रगुप्त कहा है। सर्वप्रथम अलाउद्दीन खिलजी ने ही भारतीय मुसलमानों को प्रशासन से जोड़ा।

पारिवारिक जीवन –

इसका पारिवारिक जीवन कलहपूर्ण था। ये अपनी पत्नी और सास (मलिका ए जहाँ) के दुर्व्यवहार से दुखी था। ये पत्नी व सास जलालुद्दीन की पुत्री व पत्नी थीं। अलाउद्दीन ने अपने ससुर जलालुद्दीन की हत्या कर शासन हड़प लिया था। इसी वजह से ये दोनों इससे घृणा करने लगी थीं।

अलाउद्दीन के चार खान –
  • सुल्तना बनने के बाद अलाउद्दीन ने संजर को अलप खाँ की उपाधि दी।
  • अलमास वेग को उलूग खां की उपाधि दी।
  • नसरत जलेसरी को नसरत खाँ की उपाधि दी।
  • यूसुफ खां को जफर खां की उपाधि दी। बरनी ने इसे युग का रुस्तम कहा।
विद्रोह –

इसके शासनकाल में कुछ विद्रोह भी हुए। सबसे पहला विद्रोह 1299 ई. में नवीन मुसलमानों (मंगोलों) ने किया। यह विद्रोह गुजरात की लूट में मिले धन को लेकर था। नसरत खाँ ने इस विद्रोह को दबा दिया। फिर भी अलाउद्दीन ने मंगोलों के साथ-साथ उनके बीबी-बच्चों को भी कठोर सजा दी। दूसरा विद्रोह अलाउद्दीन के भतीजे अकत खाँ ने किया। रणथम्भौर अभियान के दौरान इसने धोखे से अलाउद्दीन पर हमला कर दिया। अलाउद्दीन को मरा हुआ समझकर छोड़ दिया और स्वयं को सुल्तान घोषित कर लिया। दिल्ली में हरम के प्रभारी मलिक दीनार ने इसकी हत्या कर दी। इसके बाद बदायूं के इक्तेदार उमर और अवध के इक्तेदार मंगू खाँ ने विद्रोह किया। इसके बाद हाजी मौला ने विद्रोह किया।

मंगोल आक्रमण

सल्तनत काल में सर्वाधिक मंगोल आक्रमण अलाउद्दीन के ही शासनकाल में हुए। इसके समय में करीब 6 मंगोल आक्रमण हुए। इसने मंगोलों के विरुद्ध रक्त व युद्ध की नीति अपनाई।

कादर खाँ –

अलाउद्दीन के समय मंगोलों का पहला हमला 1298 ई. में कादर खाँ के नेतृत्व में हुआ। इसे जफर खां व उलूग खां ने हरा दिया।

सल्दी खाँ –

मंगोलों का दूसरा हमला सल्दी के नेतृत्व में हुआ। इसे जफर खाँ ने हराकर बंदी बना लिया। सल्दी खां को बंदी बनाकर दिल्ली लाया गया।

कुतलुग खाँ –

इसके बाद कुतलुग ख्वाजा के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुआ। यहीं ‘कीली के मैदान’ में जफर खाँ ने कुतलुग को द्वंद युद्ध की चुनौती दी। इसमें अलाउद्दीन ने जफर खाँ को अकेला छोंड़ दिया। ‘जफर खाँ मारा गया’ उसके बाद अलाउद्दीन ने कुलतुग को हरा दिया।

तार्गी –

1203 ई. में तार्गी ने दिल्ली पर आक्रमण किया। अभी अलाउद्दीन चित्तौड़ (खिज्राबाद) विजय करके लौटा था। अतः ये युद्ध करने की स्थिति में नहीं था। इसने सीरी के किले में शरण ली। यहाँ यह दो माह तक मंगोलों से घिरा रहा। अंत में मंगोल बापस चले गए। इसके बाद अलाउद्दीन ने सीरी को सल्तनत की नई राजधानी के रूप में विकसित किया। दिल्ली के चारो ओर रक्षात्मक दीवार बनवाई।

सीमा रक्षक के पद का सृजन किया। इस पद पर पहली नियुक्ति गाजी मलिक(गियासुद्दीन तुगलक) की हुई। 1305 ई. में इसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया गया। ये हर साल मंगोल क्षेत्रों पर आक्रमण कर उनमें अपना डर बनाए रखता था।

अलीबेग व तातार्क –

मंगोलों को अगला हमला अलीबेग व तातार्क के नेतृत्व में हुआ। एक हिंदू अधिकारी मलिक नायक ने इनको पराजित कर दिया। इसको पकड़कर दिल्ली लाया गया और सीरी की दीवार में जिंदी चुनवा दिया गया।

कबक, इकबालमंद, व तईबू –

इन्होंने 1306 ई. में भारत पर आक्रमण किये। इन्हें गाजी मलिक और मलिक काफूर ने हरा दिया। इसके बाद मंगोल सिंधु नदी पार करने का साहस नहीं जुटा सके। अब दिल्ली सल्तनत की सीमा व्यास नदी व लाहौर से बढ़कर सिंधु नदी तक पहुंच गई।

बाजार व्यवस्था

जियाउद्दीन बरनी की ‘तारीख ए फिरोजशाही‘ से अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है। भारतीय इतिहास में अलाउद्दी खिलजी को इसकी उन्नत बाजार व्यवस्था के प्रबंधन के लिए जाना जाता है। भारत में ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली‘ की शुरुवात अलाउद्दीन ने ही की। 1303 ई. की चित्तौड़ विजय के बाद अलाउद्दीन ने अपनी बाजार व्यवस्था लागू की। अलाउद्दीन ने बाजार (सराय ए अदल) का तीन भाग में वर्गीकरण किया। पहला अनाज मंडी, दूसरा कीमती कपड़े, तीसरा गुलाम व मवेशियों हेतु। एक बाजार का प्रमुख शहना कहलाता था।

इन तीनों शहनाओं का प्रमुख शहना ए मंडी कहलाता था। अलाउद्दीन ने पहला शहना ए मंडी मलिक कबूल को नियुक्त किया। शहना ए मंडी के कार्यालय में सभी व्यापारियों को पंजीकरण कराना होता था। ये सरकारी धन से सहायता प्राप्त बाजार थे। शहना ए मंडी न्यायिक कार्य भी करता था। दीवान ए रियासत बाजार व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी था। मलिक याकूब को पहला दीवान ए रियासत नियुक्त किया गया। अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था की सफलता का श्रेय इसी को जाता है। व्यापारियों का लाइसेंस जानी करने का कार्य परवाना नवीस करता था। माल की जमाखोरी पर भी प्रतिबंध लगाया गया। खालसा भूमि का सर्वाधिक विस्तार अलाउद्दीन के ही काल में हुआ।

अलाउद्दीन के सैन्य अभियान

अलाउद्दीन एक साम्राज्यवादी सुल्तान था। उसने अपने शासनकाल में बहुत से सैन्य अभियान किए। इसकी साम्राज्यवादी नीतियों के आधार पर ही लेनपूल ने इसे ‘सल्तनत का समुद्रगुप्त’ कहा है। विंध्याचल पर्वत को पार कर दक्षिण जाने वाला पहला सुल्तान अलाउद्दीन ही था।

  • गुजरात अभियान (1297-98 ई.)
  • रणथम्भौर अभियान (1301 ई.)
  • चित्तौड़ अभियान (1303 ई.)
  • मालवा अभियान (1305 ई.)
  • देवगिरि अभियान (1307 ई.)
  • सिवान अभियान (1308 ई.)
  • वारंगल अभियान (1309 ई.)
  • होयसल अभियान (1310 ई.)
  • पाण्ड्य अभियान (1311 ई.)
गुजरात अभियान –

1297-98 ई. में अलाउद्दीन ने उलूग खाँ व नसरत खाँ के नेतृत्व में गुजरात अभियान दल भेजा। इसी समय इन्होंने जैसलमेर जीता और सोमनाथ के मंदिर को दोबारा लूटा। गुजरात का शासक कर्णदेव था। इसकी पत्नी कमलादेवी को दिल्ली लाया गया। कर्णदेव अपनी पुत्री देवलदेवी के साथ दक्षिण में देवगिरि भाग गया। गुजरात से नसरत खाँ 1000 दीनार में (हजार दीनारी) मलिक काफूर को खरीदकर दिल्ली लाया।

रणथम्भौर अभियान –

अलाउद्दीन ने रणथम्भौर अभियान 1301 ईं में उलूग खाँ व नरसत खाँ के नेतृत्व में किया। इसी दौरान नसरत खाँ की मृत्यु हो गई। तब अलाउद्दीन अमीर खुसरो के साथ रणथम्भौर आया। यहाँ के शासक हम्मीरदेव ने मंगोल केहब को शरण दे रखी थी। इसमें हम्मीरदेव मारा गया, स्त्रियों ने जौहर कर लिया। अमीर खुसरो की तारीख ए अलाई फारसी में जौहर का पहला प्रमाण प्रस्तुत करती है।

चित्तौण अभियान –

यहाँ का शासक रतनसिंह था। जायसी कृत पद्मावती की नायिका पद्मिनी इसी की पत्नी थी। इस अभियान में रतनसिंह अपने दो सेनापतियों गोरा और बादल के साथ मारा गया। रानी पद्मिनी ने जौहर कर लिया। हालांकि अमीर खुसरो इस जौहर का उल्लेख नहीं करता है। अलाउद्दीन ने चित्तौण का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया। यहीं पर अपने पुत्र खिज्र खां को चित्तौण का शासक और अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

सिवाना विजय –

यहाँ का शासक शीतलदेव था। यह मारवाड़ क्षेत्र का सबसे शक्तिशाली दुर्ग था।

अलाउद्दीन खिलजी का दक्षिण अभियान

1303 ई. में अलाउद्दीन ने तेलंगाना पर भी आक्रमण करवाया था। इसमें काकतीय नरेश प्रतापरुद्रदेव ने इसे हरा दिया था। इसके बाद इसने अपना दक्षिण अभियान 1307 ई. में प्रारंभ किया। इसके लिए अलाउद्दीन ने मलिक काफूर (एक हिजड़ा) को प्रमुख नियुक्त किया। साथ ही ख्वाजा हाजी को इसका सहयोगी नियुक्त किया। अमीर खुसरो भी काफूर के साथ दक्षिण गए।

देवगिर पर आक्रमण –

1303 ई. में मलिक काफूर ने देवगिरि के शासक रामचंद्र देव पर आक्रमण किया।

  • कर्णदेव की पुत्री देवलदेवी को पकड़कर दिल्ली लाया गया।
  • देवलदेवी का विवाह खिज्र खाँ से करा दिया गया।
  • खिज्र खां व देवलदेवी की प्रेमकथा का वर्णन अमीर खुसरो की आशिकी में वर्णित है।
  • नवसारी जिले को छोड़कर सभी राज्य राजा रामचंद्र को बापस कर दिया गया।
  • मलिक काफूर ने दक्षिण में देवगिरि को अपना मुख्यालय बनाया।
  • मलिक काफूर ने देवगिरि पर 1312-13 ई. में पुनः आक्रमण किया।
  • यहाँ के सिंहनदेव को मार कर हरपालदेव को शासक बनाया।
वारंगल अभियान –
  • दक्षिण में तेलंगाना की राजधानी वारंगल थी इसका शासक प्रतापरुद्रदेव काकतीय वंश का था।
  • 1309 ई. में मलिक काफूर ने इस पर आक्रमण किया।
  • प्रताप रुद्रदेव ने अपनी सोने की मूर्ति बनवाई और उसमें कोहिनूर की माला डालकर मलिक काफूर को दे दी।
  • कोहिनूर का पहला साक्ष्य यहीं से मिलता है।
  • काफूर ने यह हीरा अलाउद्दीन को, अलाउद्दीन ने मुबारक खिलजी को दे दिया।
  • यहाँ से प्राप्त भारी सम्पदा के साथ काफूर दिल्ली लौटा।
होयसल अभियान –
  • वर्तमान मैसूर को मध्यकाल में होयसल के नाम से जाना जाता था।
  • इसकी राजधानी द्वारसमुद्र (वर्तमान हवेलिड) थी।
  • 1310 ई. में मलिक काफूर ने होयसल पर आक्रमण किया।
  • यहाँ का शासक वीर बल्लाल तृतीय था, इसने आत्मसमर्पण कर दिया।
पाण्ड्य राज्य पर आक्रमण –
  • अलाउद्दीन ने पाण्ड्य अभियान उस वक्त किया। जब हाल ही में यहाँ के शासक मारवर्मन कुलशेखर की मृत्यु हुई थी।
  • इस समय इसके दो पुत्रों सुंदर पाण्ड्य और वीर पाण्ड्य में सिंहासन को लेकर संघर्ष चल रहा था।
  • सुंदर पाण्ड्य ने काफूर से सहायता मांगी। 1311 ई. में काफूर ने हमला किया।
  • इसमें वीर पाण्ड्य भाग निकला।
  • आर्थिक रूप से यह काफूर का सबसे सफल आक्रमण था।
अलाउद्दीन के कार्य –
  • इसने दान दी गई भूमि, उपहार, पेंशन, इनाम इत्यादि को छीन लिया।
  • नवीन करों चरी (चराई कर), घरी (गृहकर) व करी को लागू किया।
  • गुप्तचर व्यवस्था सुदृढ़ की। बरीद (जासूसों का प्रमुख) की नियुक्ति की।
  • इसने स्वयं शराब त्याग दी और शराब, भांग, जुंआ इत्यादि पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • लगान बसूली में व्याप्त दोषों को दूर करने के उद्देश्य से ‘दीवान ए मुस्तखराज’ की स्थापना की।
  • कर की नगद अदायगी अनिवार्य की।
  • जैन कवि रामचंद्र सूरी को सम्मानित किया।
  • ग्रामीण प्रशासन में सीधा हस्तक्षेप किया।
  • इसने वैश्यावृत्ति रोकने का प्रयास किया। ऐसा करने वाला यह पहला सुल्तान था।
  • घोड़ों को दागने व सैनिकों का हुलिया लिखाने की शुरुवात सर्वप्रथम अलाउद्दीन ने ही की।

अलाउद्दीन की मृत्यु –

1316 ई. में इसकी मृत्यु जलोदर रोग से हो गई।

इसे दिल्ली की जामा मस्जिद के सामने एक कब्रगाह में दफनाया गया।

जोधपुर संस्कृत शिलालेख –

इसमें वर्णित है कि ”अलाउद्दीन के देवतुल्य शौर्य से पृथ्वी अत्याचारों से मुक्त हो गई।”

शिहाबुद्दीन उमर (1316 ई.)

अपनी मृत्यु से पूर्व अलाउद्दीन ने अपने इस पुत्र को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद 6 वर्षीय शिहाबुद्दीन शासक बना। मलिक काफूर इसका संरक्षक बना। काफूर ने शिहाबुद्दीन की माँ झल्लपाली से विवाह कर लिया। इसके बाद काफूर ने अलाउद्दीन के दो पुत्रों खिज्रखाँ व सादीखाँ को ग्वालियर के किले में अँधा बनवा दिया। इसके बाद काफूर ने मुबारक खिलजी को मारने की योजना बनाई। परंतु मुबारक खिलजी ने मलिक काफूर की ही हत्या करवा दी। इसके बाद मुबारक खिलजी स्वयं शिहाबुद्दीन का संरक्षक बन गया। इसके बाद इसने शिहाबुद्दीन को अंधा बना दिया और स्वयं शासक बन गया।

मुबारकशाह (1316-20 ई.)

इसने खुद को खलीफा घोषित किया। स्वयं को खलीफा घोषित करने वाला यह दिल्ली का एकमात्र सुल्तान था। इसने उदारता के साथ शासन प्रारंभ किया। जिस दिन शासक बना उसी दिन बहुत से कैदियों को मुक्त किया। इसने अलाउद्दीन के सभी भूमि व बाजार संबंधी नियमों को समाप्त कर दिया। इसका निजामुद्दीन औलिया से संघर्ष हो गया।

देवगिरि पर आक्रमण –

1318 ई. में देवगिरि के शासक हरपालदेव ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। असदुद्दीन को दिल्ली का प्रभारी बनाकर मुबाकरशाह खुशरोखां के साथ देवगिरि पर आक्रमण करने गया। इसने हरपालदेव को मारकर मलिक यकलखी को यहां का प्रांतपति नियुक्त किया। मुबारकशाह ने दिल्ली बापस आकर खुशरोखाँ को दक्षिण विजय के लिए भेज दिया। खुशरो ने वारंगल (तेलंगाना) अभियान किया। इसके बाद इसने माबर प्रदेश लूटा। बाद में खुसरवाशाह ने मुबारकशाह की हत्या कर दी और खुद शासक बन गया।

नासिरुद्दीन खुसरो (1320 ई.)

मुबारकशाह की हत्या कर खुशरो मलिक अब नासिरुद्दीन खुशरवशाह के नाम से शासक बना। यह गुजरात का रहने वाला हिंदू धर्म से परिवर्तित मुसलमान था। जिसे मुबारशाह ने खुसरो खां की उपाधि देकर अपना प्रधानमंत्री बनाया था। इसने खिज्रखाँ की विधवा देवलदेवी से विवाह कर लिया। इसने निजामुद्दीन औलिया को 5 लाख टंका व उपहार भेजे। इसके बदले औलिया ने खुसरो की सत्ता को स्वीकार कर लिया।

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