भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय ( Bharatendu Harishchandra ka Jivan Parichay ) : आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रवर्तक भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850 ई. में काशी में हुआ था। इनके पिता का नाम गोपालचंद्र गिरिधरदास था। जब भारतेंदु मात्र 5 वर्ष के थे, तभी इनकी माता का देहांत हो गया। इसके बाद जब ये 10 वर्ष के थे तब इनके पिता का भी देहांत हो गया। पारिवारिक उत्तरदायित्व के चलते इनकी शिक्षा विधिवत रूप से नहीं हो पायी। फिर भी इन्होंने घर पर ही तमाम भाषाओं जैसे- हिन्दी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी का अध्ययन किया। 1885 ई. में मात्र 35 वर्ष की अवस्था में ही भारतेंदु जी का  निधन हो गया।

अपने अल्प जीवन काल में हिंदी साहित्य के क्षेत्र में इनका योगदान अविस्मरणीय है। जिस कारण इनके काल को भारतेंदु युग के नाम से जाना जाता है।

साहित्यिक व्यक्तित्व –

भारत के महान कवि, निबंधकार, नाटककार, पत्रकार, सम्पादक व आलोचक भारतेंदु जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनकी प्रतिभा का सर्वाधिक विकास कविता व नाटक के क्षेत्र में हुआ। इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर ही भारत के विद्वानों ने इन्हें भारतेंदु की उपाधि दी। इन्होंने बहुत सी भारतीय भाषाओं में रचनाएं कीं। लेकिन ब्रजभाषा पर इनकी विशेष पकड़ थी। ब्रजभाषा में इनकी अधिकांश रचनाएं श्रंगारिक हैं। इनकी केवल प्रेम के विषय पर लिखित कविताओं के सात संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ये संग्रह निम्नलिखित हैं – प्रेम-माधुरी, प्रेम-मालिका, प्रेम-फुलवारी, प्रेमाश्रु-वर्षण, प्रेम-सरोवर, प्रेम-तरंग, प्रेम-प्रलाप।

युगप्रवर्तक –

भारतेंदु हरिश्चंद्र एक युग प्रवर्तक साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। इन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा के दम पे हिन्दी साहित्य के विकास में अमूल्य योगदान दिया। ये मात्र 9 वर्ष की अवस्था से ही कविताएं करने लगे थे। इनके हृदय में अपनी मात्रभाषा के लिए अगाध प्रेम था। इन्होंने हिन्दी को तत्कालीन विद्यालयों में स्थान दिलाने का प्रयास किया।

सम्पादक व प्रकाशक के रूप में –

मात्र 18 वर्ष की अवस्था में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘कवि-वचन-सुधा’ नामक पत्रिका का सम्पादन और प्रकाशन किया। इसके माध्यम से उन्होंने तत्काल कवियों का पथ प्रदर्शन भी किया। इसके पांच वर्ष बाद इन्होंने एक दूसरी पत्रिका ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ का संपादन व प्रकाशन शुरु किया। बाद में ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ का नाम बदलकर ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ कर दिया गया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएं –

भारतेंदु जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होंने कविता, नाटक, निबंध, आलोचना, व इतिहास पर अनेक पुस्तकें लिखीं। उनकी प्रसिद्ध कृतियां निम्नलिखित हैं –

नाटक –

भारतेंदु जी ने अनेक नाटकों की रचना की। जिनमें अँधेर नगरी, भारत दुर्दशा, नीलदेवी, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सत्य हरिश्चंद्र, श्रीचंद्रावली प्रमुख हैं।

उपन्यास –

चंद्रप्रभा, और पूर्णप्रकाश भारतेंदु जी के उपन्यास हैं।

काव्य कृतियाँ –

प्रेम माधुरी, प्रेम सरोवर, प्रेम मालिका, प्रेम तरंग, प्रेम प्रलाप, प्रेमाश्रु वर्षण, दानलीला, कृष्ण चरित्र आदि। ये भक्ति व दिव्य प्रेम पर आधारित रचनाएं हैं। भारतेंदु जी ने इनमें श्रीकृष्ण की विविध लीलाओं का वर्णन किया है। इनके अतिरिक्त विजयिनी, विजय पताका, भारत वीरत्व, विजय वल्लरी आदि देशप्रेम से संबंधित भारतेंदु जी की रचनाएं हैं। वहीं ‘बन्दर सभा’, और ‘बकरा विलाप’ हास्य व्यंग्य शैली की रचनाएं हैं।

इतिहास और पुरातत्व संबंधी –

कश्मीर-कुसुम, महाराष्ट्र देश का इतिहास, रामायण का समय, चरितावली, बूंदी का राजवंश, अग्रवालों की उत्पत्ति।

भारतेंदु जी का मत था कि अपनी भाषा की उन्नति के बिना देश का विकास नहीं किया जा सकता –

“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।”

तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas

तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas ka Jivan Parichay : जन्म स्थान व समय | माता-पिता | मृत्यु व रचनाएं इत्यादि | रामचरितमानस | गीतावली | दोहावली | कवितावली | विनयपत्रिका | जानकी-मंगल | पार्वती-मंगल | श्रीकृष्ण गीतावली | रामलला-नहछू | वैराग्य-संदीपनी | रामाज्ञा प्रश्न | बरवै-रामायण।

तुलसीदास का जीवन परिचय

तुलसीदास का जीवन परिचय –

तुलसी के जन्म के समय और जन्म स्थान के विषय में सभी विद्वान एकमत नहीं है। परंतु अधिकांश विद्वानों द्वारा इनके जन्म की तिथि 1532 ई. बताई गई है। वहीं कुछ विद्वान इनकी जन्म तिथि 1589 मानते हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। परंतु कुछ विद्वान इनका जन्म एटा जिले के सोरों नामक स्थान को मानते हैं। इनके बचपन का नाम रामबोला था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे।

इनका जन्म अयुक्त मूल नक्षत्र (अशुभ नक्षत्र) में हुआ था कि शिशुकाल में ही इनके माता पिता ने इन्हें त्याग दिया। पहले 5 वर्ष तक इनका लालन-पालन मुनिया नामक दासी ने किया। फिर इनका पालन पोषण गुरु नरहरिदास ने किया। इन्होंने ही तुलसी को सोरों में रामकथा सुनाई। इन्होंने संत बाबा नरहरिदास से भक्ति की शिक्षा ग्रहण की। इसके साथ ही इन्होंने काशी में  शेष सनातन जी से वेद, वेदांग, पुराण, दर्शन व इतिहास की शिक्षा प्राप्त की। राजा टोडरमल, रहीमदास और मानसिंह तुलसीदास जी के मित्र थे।

वैवाहिक जीवन और विरक्ति –

कहा जाता है कि तुलसीदास ने तीन विवाह किये थे। इनका एक विवाह दीनबन्धु पाठक की कन्या रत्नावली से हुआ। जिससे तारक नामक एक पुत्र भी उत्पन्न हुआ था। परंतु उसकी मृत्यु हो गई। ये अपनी पत्नी से अत्यंत प्रेम करते थे। एक दिन वे अपने मायके चली गईं। तब उनसे मिलते के लिए तुलसीदास रात में आँधी, बरसात में नदी पार कर उनसे मिलने उनके मायके पहुँचे। इस पर उनकी पत्नी ने इनसे कहा ‘जितना प्रेम तुम मुझसे करते हो, उतना श्रीराम से करो’ तो जीवन का उद्धार होगा। इससे वे विरक्त हो गए और काशी चले गए।

तुलसीदास का तीसरा विवाह –

इनका तीसरा विवाह कंचनपुर के लच्छमन उपाध्याय की पुत्री बुद्धिमती से हुआ था। इस विवाह में इनके पिता ने 6000 रुपये लिये थे (तुलसीचरित के अनुसार)। परंतु ये घटनाएं तुलसी के अन्तःसाक्ष्य से मेल नहीं खातीं।

रामचरित मानस की रचना –

इसके बाद इन्होंने कई तीर्थ यात्राएं कीं। अयोध्या आकर इन्होंने रामचरित मानस की रचना प्रारंभ की। जिसे पूर्ण करने में इन्हें 2 वर्ष 7 माह का समय लगा।

तुलसीदास की मृत्य व अंतिम समय –

इनकी वृद्धावस्था में शरी बहुत से रोगों से ग्रस्त हो गया। उसी समय काशी में महामारी का प्रकोप फैला। महामारी के शांत होने के कुछ समय बाद ही तुलसीदास जी का देहांत हो गया। वर्ष 1623 में असी घाट पर इनका देहांद हो गया। इनकी मृत्यु के बारे में एक दोहा प्रसिद्ध है –

“संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।

श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी जत्यो शरीर।।”

नाभादास ने इन्हें ‘कालिकाल का बाल्मीकि’ कहा। स्मिथ ने इन्हें मुगलकाल का सबसे बड़ा व्यक्ति माना है। वहीं ग्रियर्सन ने इन्हें बुद्धदेव के बाद सबसे बड़ा लोकनायक कहा।

रहीमदास के अनुसार –

‘गोद लिये हुलसी फिरै, तुलसी सो सुत होय।

तुलसीदास की कृतियाँ –

तुलसीदास जी की 12 पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। वैसे इनके नाम की अब तक करीब तीन दर्जन पुस्तकें प्राप्त हो चुकी हैं।

  • रामचरितमानस
  • गीतावली
  • दोहावली
  • कवितावली
  • विनयपत्रिका
  • जानकी-मंगल
  • पार्वती-मंगल
  • श्रीकृष्ण गीतावली
  • रामलला-नहछू
  • वैराग्य-संदीपनी
  • रामाज्ञा प्रश्न
  • बरवै-रामायण

रामचरितमानस –

रामचरितमानस तुलसीदास जी की सर्वश्रेष्ठ रचना है। यह एक काव्य ग्रंथ है। इसमें रामकथा का सात काण्डों (भागों) में वर्णन किया गया है। इसका रचनाकाल संवत् 1631 बताया गया है। इसे अवधी में लिखा गया है।

दोहावली –

दोहावली नीति, भक्ति, नाम – माहात्म्य और राममहिमा से संबंधित करीब 573 दोहों का संग्रह है।

गीतावली –

गीतावली में रामकथा को सात काण्डों में विभाजित किया गया है। यह कुल 328 पदों का संकलन है।

कवितावली –

कवितावली में कविता, सवैया, छप्पय आदि छंदों का संग्रह है।

विनयपत्रिका –

यह देवी-देवताओं की स्तुति और राम के प्रति किये गए विनय के पदों का संग्रह है।

कृष्ण गीतावली –

कृष्णगीतावली में कृष्ण महिमा का बखान किया गया है। इसकी रचना बहुत से राग-रागनियों की पांति पर की गई है। इसमें कुल 61 पद हैं।

तुलसीदास का जीवन परिचय ।

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