रहीम के दोहे (Rahim ke Dohe) : दोहों का अपने शुद्ध रूप में होना अति आवश्यक है। आज इंटरनेट पर लोग इधर उधर से कॉपी-पेस्ट करके जानकारी डाल देते हैं। लेकिन हमने मानक पुस्तकों से ही ये दोहे उठाए हैं। इसलिए ये अपने शुद्ध व सटीक रूप में हैं –
रहीम के दोहे –
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन बिस ब्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरेउ चटकाय।
टूटे से फिरि ना जुरै, जुरै गाँठ परि जाय।।
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति सँचहिं सुजान।।
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुस चून।।
रहिमन ओछे नरन ते, तजौ बैर अरु प्रीति।
काटे-चाटे स्वान के, दुँहूँ भाँति विपरीति।
कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन।।
रहिमन प्रीति सराहिए, मिले होत रँग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून।।
टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार।।
रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ।
जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, तेही साँचे मीत।।
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़त छोह।।
दीन सबन को लखत हैं, दीनहि लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय।।
प्रीतम छबि नैननि बसी, पर छबि कहाँ समाय।
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आपु फिरि जाय।।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि।।
यों रहीम सुख होत है, बढ़त देख निज गोत।
ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि, आँखिन को सुख होत।।
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाटनवारे को लगे, ज्यों मेहँदी को रंग।।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी अठिलैहें लोग सब, बाँटि न लैहें कोय।।
जो बड़ेन को लघु कहें, नहिं रहीम घटि जाँहि।
गिरधर मुरलीधर कहे, कछु दुःख मानत नाहिं।।
समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक।
चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।।