कल्हण की राजतरंगिणी (Kalhan ki Rajtarangini) : लेखक, जोनराज-श्रीवर, अध्याय, भाषा, शैली, उल्लिखित, इतिहास, महत्वपूर्ण तथ्य व जानकारी…
कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी को ‘प्रथम ऐतिहासिक पुस्तक’ का दर्जा प्राप्त है। यह कश्मीर के इतिहास की एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसके लेखक कल्हण हर्ष के आश्रित कवि थे। इस पुस्तक में कुल 8 तरंग (अध्याय) के साथ 800 श्लोक हैं। इसके प्रथम तीन अध्यायों में इतिहास का सर्वेक्षण मात्र है। अध्याय 4,5,6 में कश्मीर के कार्कोट और उत्पल वंश का इतिहास दर्ज है। अध्याय 7 और 8 में लोहार वंश का इतिहास दिया गया है। यह पुस्तक जयसिंह के समय 1150 ई. में पूर्ण हुई। इसमें आदिकाल से 1150 ई. तक का इतिहास दर्ज है। यह संस्कृत भाषा में महाभारत शैली में कश्मीर में लिखी गई थी। जैनुल आब्दीन के समय इस पुस्तक का विस्तार जोनराज ने किया। इसके बाद श्रीवर ने राजतरंगिणी को आगे बढ़ाया। तत्पश्चात प्राज्ञभट्ट व सुका ने इसे आगे बढ़ाया। कल्हण जाति से ब्राह्मण था कल्हण के पिता चंपक हर्ष के मंत्री थे।
जैनुल आब्दीन ने मुल्ला अहमद से राजतरंगिणी का फारसी में अनुवाद कराया। मुगल काल में शाह मुहम्मद शाहाबादी ने राजतरंगिणी का ‘बहर-उल-अस्मार’ नाम से फारसी में अनुवाद किया।
राजतरंगिणी में उल्लिखित बातें –
कल्हण राजा को सलाह देता है कि ब्राह्मणों को प्रश्रय दें और उनसे सलाह लें।
राजतरंगिणी में कश्मीर के चार राजवंशो गोनंद वंश, कार्कोट वंश, उत्पल वंश, लोहार वंश का इतिहास वर्णित है।
राजतरंगिणी में उत्पल वंश की दो रानियाँ सुगन्था व दिद्दा का उल्लेख मिलता है।
कल्हण ने खुद से पहले के 11 इतिहासकारों का भी जिक्र किया है और इनकी कमियाँ गिनाता हैं।
कल्हण अशोक को कश्मीर का प्रथम मौर्य शासक बताता है
अशोक को कल्हण ने श्रीनगर का संस्थापक बनाया है
अशोक के उत्तराधिकारी जालौक को कल्हण शैव मत का अनुयायी और बौद्ध विरोधी बताते हैं
कल्हण ने राजतरंगिणी में 64 उपजातियों का उल्लेख किया है
इसमें सती प्रथा के अनेक उदाहरण मिलते हैं।
इसमें खूय नामक इंजीनियर (अभियांत्रिक) का उल्लेख है जिसने झेलम नदी के तट पर बांध बनाकर झीलें निकाली थीं।
कनिष्क ने कश्मीर में कनिष्कपुर नगर बसाया, यहीं पर कुण्डलवन में चौथी बौद्ध संगीति हुई
नरसिंहगुप्त बालादित्य ने मिहिरकुल को हराया
शैव मतानुयायी मिहिरकुल का इसके बाद एक वर्ष तक कश्मीर पर शासन रहा
राजतरंगिणी से गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिरभोज की उपलब्धियों की भी जानकारी मिलती है
इसमें डामर (दर्द) विद्रोह का उल्लेख है
प्रशासकों (विशेषकर कायस्थों के) अत्याचार का उल्लेख हुआ है
ललितादित्य मुक्तिपीड का कन्नौज नरेश यशोवर्मन को पराजित करना फिर दोनों में मित्रता होना और साथ में संयुक्त तिब्बत अभियान करने का उल्लेख भी मिलता है।