उपसर्ग व प्रत्यय (Prefix and Suffix in Hindi)

उपसर्ग व प्रत्यय (Prefix and Suffix in Hindi) – हिंदी भाषा में उपसर्ग व प्रत्यय का प्रयोग कर बहुत सारे नए शब्दों की रचना हुई है। उपसर्ग व प्रत्यय विस्तृत में –

उपसर्ग

स्वतंत्र अस्तित्व न होने के बाद भी वे अन्य शब्दों के साथ मिलकर एक विशेष अर्थ प्रदान करते हैं। उपसर्ग वह शब्दांश या अव्यय है जो किसी शब्द से पहले जुड़कर विशेष अर्थ प्रदान करता है। उपसर्ग दो शब्दों ‘उप’ और ‘सर्ग’ से बना है। ‘उप’ से तात्पर्य समीप, निकट, पास से है, सर्ग अर्थात् सृष्टि करना। उपसर्ग से तात्पर्य समीप बैठकर नये अर्थ वाले शब्द की रचना करना। संस्कृत में उपसर्गों की संख्या 19 है, हिंदी में उपसर्गों की संख्या 10 है। वहीं उर्दू में उपसर्गों की संख्या 12 है।

संस्कृत के उपसर्ग – अर्थ – निर्मित शब्द

  • – (निषेध, विरोध) – असत्य, अविश्वास, असुविधा इत्यादि।
  • अति – (अधिक, ऊपर, उस पार) – अतिशय, अतिवृष्टि, अतिक्रमण,अत्यावश्यक, अत्याचार, अत्यंत, अतिशय, अतिकाल, अतिरिक्त इत्यादि।
  • अधि – (ऊपर, श्रेष्ठ, प्रधान) – अधिपति, अधिकार, अधिग्रहण, अध्यक्ष, अधिराज, अधिगुण, अधिष्ठाता इत्यादि।
  • अन् – (अभाव) – अनन्त, अनभिज्ञ, अनादि, अनर्थ, अनपेक्षित, अनाचार इत्यादि।
  • अनु – (पीछे, समान, प्रत्येक) – अनुज, अनुचर, अनुसरण, अनुक्रमण, अनुकूल, अनुक्रम, अनुग्रह, अनुशासन, अनुसंधान, अनुचित, अनुभूत, अनुदिन इत्यादि।
  • अप – (बुरा, विरोध, हीनता, दूर) – अपवाद, अपराध, अपकार, अपमान, अपकीर्ति, अपशब्द, अपयश, अपमानित, अपकर्ष, अपहरण, अपव्यय इत्यादि।
  • अभि – (ओर, निकट, सम्मुख) – अभिमान, अभिशाप, अभिलाषा, अभिमुख, अभियोग, अभिज्ञान, अभिवादन, अभिजात, अभ्यागत, अभिसार इत्यादि।
  • – (ओर, समेत, सीमा) – आमरम, आक्रमण, आचरण, आगमन, आहार, आकर्षण, आलेख, आरम्भ इत्यादि।
  • उप – (समान, निकट) – उपकार, उपयुक्त, उपमान, उपहार, उपवन, उपदेश,  उपयोग, उपनाम, उपमंत्री, उपसंहार, उपस्थिति इत्यादि।
  • निर/निर् – (निषेध, रहित, बाहर) – निर्दोष, निरपराध, निर्भय, निश्छल, निरुत्तर, निराकार, निर्जन, निर्वाह, निराकरण इत्यादि।
  • परि – (पूर्ण, चारो ओर, आस-पास) – परिक्रमा, परिवहन, पर्यावरण, परिमार्जन, परिहार, परिवर्तन, परिपूर्ण, परिणाम, परिमाण, परिजन, परिकल्पना, परिभाषा, परिग्रह, परिधान, परिचय, परितोष इत्यादि।
  • वि – (विशेष, भिन्न, अभाव) – विभिन्न, विजय, विराम, विराग, वियोग, विज्ञान, विस्मरण, विहार, विमल, विच्छिन्न,   विभाग, विनय, विकास, विकार इत्यादि।
  • स – (सहित) – सरल, सहित, सबल, सपूत, सरस इत्यादि।
  • सह (साथ) – सहमति, सहयोग, सहपाठी, सहकारी, सहचर, सहगान इत्यादि।
  • सु – (अधिक, अच्छा, सहज) – सुगम, सुलभ, सुकर्म, सुकवि, सुयश, सुमार्ग, सुशिक्षित, सुवास, सुपथ, सुडौल, सुदूर इत्यादि।

हिन्दी के उपसर्ग – अर्थ – निर्मित शब्द

  • अ – (अभाव) – अजान, अथाह, अचेत, अमोल, अगाध।
  • अन – (निषेध) – अनजान, अनमोल, अनपढ़, अनभिज्ञ, अनासक्त, अनायास, अनगिनत, अनबन, अनमेल इत्यादि।
  • अध – (आधा) – अधजलला, अधमरा, अधपका इत्यादि।
  • उन – (एक कम) – उनचास, उन्यासी, उनतालीस, उन्नीस, उनतीस, उनसठ, उनहत्तर इत्यादि।
  • औ/अव – (हीनता, निषेथ) – अवगुण/औगुन, औसर, औघट, औढर इत्यादि।
  • दु – (बुरा, हीन) – दुकान, दुबला, दुत्कार इत्यादि।
  • नि – (अभाव, निषेध, विशेष) – निडर, निहत्था, निकम्मा, निखरा, निगोड़ा, निधड़क इत्यादि।
  • बिन – (निषेध) – बिनव्याहा, बिनखाया, बिनदेखा, बिनबोया, बिनकाम, बिनचखा इत्यादि।
  • भर – (पूरा, ठीक) – भरपेट, भरपूर, भरसक इत्यादि।
  • कु-क (बुराई, हीनता) – कुपात्र, कपूत, कुढंग, कुखेत, कुघड़ी, कुकाठ इत्यादि।
  • सु-स – (श्रेष्ठता, साथ) – सुडौल, सुजान, सुपात्र, सजग, सपूत, सहित, सरस, सुघड़, सगोत्र इत्यादि।

उर्दू के उपसर्ग – अर्थ – निर्मित शब्द

  • अल – (निश्चित) – अलबत्ता, अलगरज इत्यादि।
  • कम – (हीन, थोड़ा) – कमसिन, कमउम्र, कमखयाल इत्यादि।
  • खुश – (अच्छा) – खुशमिजाज, खुशदिल, खुशहाल, खुशनसीब, खुशकिस्मत, खुशबू, खुशखबरी इत्यादि।
  • गैर – (निषेध) – गैरकानूनी, गैरहाजिर, गैरसरकारी, गैरवाजिब इत्यादि।
  • दर – (में) – दरमियान, दरकार इत्यादि।
  • ना – (अभाव) – नामुमकिन, नालायक, नादान, नाराज, नापसंद, नामुराद इत्यादि।
  • बद – (बुरा) – बदमिजाज, बद्दुआ, बद्तमीज, बदनसीब, बदगुमान, बदहजमी, बद्तर, बद्जात, बदमाश, बदनाम, बदबू, बदकिस्मत, बदकार इत्यादि।
  • बर – (पर, ऊपर, बाहर) – बरदास्त, बरखास्त, बरवक्त इत्यादि।
  • बिल – (साथ) – बिल्कुल।
  • बे – (बिना) – बेरहम, बेईमान, बेइज्जत, बेवकूफ, बेतरह इत्यादि।
  • ला – (बिना) – लापता, लावारिस, लाजवाब, लापरवाह, लाचार इत्यादि।
  • हम – (बराबर, समान) – हमउम्र, हमदर्द, हमपेशा, हमशक्ल इत्यादि

प्रत्यय

शब्द के बाद लगाया जाने वाला अक्षर या अक्षर समूह प्रत्यय के नाम से जाना जाता है। प्रत्यय दो शब्दों ‘प्रति +अय‘ से मिलकर बना है। प्रति का अर्थ है ‘साथ में’ परंतु बाद में, और अय का अर्थ है चलने वाला। अर्थात् प्रत्यय वे हैं जो शब्दों के साथ में पर बाद में चलनेवाले या लगने वाले शब्द हैं। प्रत्यय भी उपसर्गों की भांति ही अविकारी शब्दांश हैं।

प्रत्यय के भेद –

मूल रूप से प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं, कृत् प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय। क्रिया या धातु के अन्त में प्रयुक्त प्रत्यय को कृत् प्रत्यय कहते हैं। कृत् प्रत्यय के मेल से बने शब्दों को कृदन्त कहते हैं। इनसे संज्ञा व विशेषण बनते हैं। इसके विपरीत संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के अन्त में लगने वाले प्रत्यय को तद्धित प्रत्यय कहते हैं। तद्धित प्रत्यय के मेल से बनने वाले शब्दों को तद्धितान्त कहा जाता है।

शब्द (कृदन्त) – (कृत) प्रत्यय

  • प्रहार,सर्प, देव, काम –
  • गानेवाला – वाला
  • दातृ – तृ
  • मिलाप – आप
  • होनहार – हार
  • कृत्य –
  • लड़ाई – आई
  • रखैया – ऐया
  • खेवैया – वैया
  • भिड़न्त – अन्त
  • देन –
  • चटनी – नी
  • झूला –
  • मथानी – आनी
  • रेती –
  • झाड़ू –
  • कसौटी – औटी
  • बेलन –
  • बेलना – ना
  • बेलनी – नी
  • उठान – आन
  • छलिया – इया
  • टिकाऊ – आऊ
  • तैराक – आक
  • खिलाड़ी – आड़ी
  • झगड़ालू – आलू
  • बढ़िया – इया
  • कारक – अक
  • खिन्न –
  • नयन – अन
  • दर्शनीय – अनीय
  • शक्ति – ति
  • अड़ियल – इयल
  • कर्त्तव्य – तव्य
  • विद्यमान – मान
  • वेदना – अना
  • पुजापा – आपा
  • बढ़िया – इया
  • अड़ियल, मरियल – इयल
  • लड़ैत, बचैत – ऐत
  • हँसोड़ – ओड़
  • भगोड़ा – ओड़ा
  • पिअक्कड़ – अक्कड़
  • खिंचाव – आव
  • वन्दना – अना
  • भुलावा – आवा
  • निकास – आस
  • इच्छा, पूजा –
  • यज्ञ – ञ्
  • मृगया – या
  • सुहावन – वन
  • गवैया – वैया
  • मिलनसार – सार
  • पावन – आवन
  • गाता, मरता, बहता – ता
  • पावनी – आवनी
  • सजावट – आवट
  • चिल्लाहट – आहट
  • बोली, त्यागी –
  • तनु –
  • भिक्षुक – उक
  • गायक – अक
  • राखनहार – हार
  • रोवनहारा – हाला
  • समझौता, मनौती – औती
  • पिसौनी – औनी
  • बैठक –
  • बैठकी – की
  • देनगी – गी
  • भुलौवत – औवत
  • खपत –
  • चढ़ती – ती

प्रत्यय (तद्धित) – शब्द (तद्धितान्त)

  • – गौरव, लाघव, वासुदेव, मानव, कौरव, शैव, पार्थ, पाण्डव, नैश, मौन
  • अक – शिक्षक
  • आ – चूरा, भूखा
  • आई – अच्छाई, चतुराई, चौड़ाई
  • आयत – अपनायत
  • आयन – कत्यायन, रामायण, बादरायण
  • आर – सुनार, लुहार, दुधार
  • आरा – छुटकारा
  • आल – ससुराल, दयाल
  • आस – मिठास
  • आहट – कड़वाहट
  • इक – वार्षिक, तार्किक, मौखिक, लौकिक, पुष्पित
  • इत – पुष्पित, आनन्दित, फलित
  • इम – अग्रिम
  • इमा – रक्तिमा, शुक्लिमा
  • इय – क्षत्रिय
  • इया – खटिया, आढ़तिया
  • इल – तुन्दिल, तन्द्रिल
  • इष्ठ – बलिष्ठ, गरिष्ठ
  • – पक्षी, खेती, देहाती, ढोलकी, तेली, तमोली
  • ईन – कुलीन, ग्रामीण
  • ईय – राष्ट्रीय, पाणिनीय
  • ईला – रंगीला
  • उल –  पृथुल, मातुल
  • ऊ – बाजारू
  • एड़ी – भँगेड़ी
  • एय – राधेय, कौन्तेय, पौरुषेय
  • एरा – अँधेरा, ममेरा, फुफेरा, चचेरा, तहेरा
  • एल – नकेल
  • ऐल – खपरैल
  • ओला – सँपोला
  • औती – बपौती
  • – दर्शक,  बालक, ढोलक
  • की – कनकी
  • ड़ा – बछड़ा
  • ड़ी – टँगड़ी
  • चित् – कदाचित्
  • जा – भतीजा
  • टा – चोट्टा
  • ठ – कर्मठ
  • त – रंगत
  • तन –अद्यतन
  • तः – अंशतः
  • ता – बुद्धिमत्ता, मूर्खता, शत्रुता, वीरता, लघुता, जनता, एकता, मानवता
  • ती – कमती
  • त्य – पाश्चात्य
  • त्व – गुरुत्व, मनुष्यत्व, वीरत्व, लघुत्व
  • त्र – अन्यत्र
  • था – अन्यथा
  • दा – सर्वदा
  • धा – शतधा
  • निष्ठ – कर्मनिष्ठ
  • पा – बुढ़ापा
  • पन – अपनापन, लड़कपन, कालापन, कमीनापन
  • म – मध्यम
  • मान् – बुद्धिमान्, शक्तिमान्
  • मय – जलमय, दयामय, आनन्दमय, काष्ठमय
  • मी – वाग्मी
  • – माधुर्य, दैत्य, ग्राम्य, पाण्डित्य
  • – मधुर, मुखर
  • री – कोठरी
  • – वत्सल, मांसल
  • लु – निद्रालु, तन्द्रालु
  • वान् – धनवान्
  • वत् – यावत्
  • वी – मेधावी, लखनवी, मायावी
  • व्य – भ्रातृव्य
  • – कर्कश, रोमश
  • शः – क्रमशः
  • स – धमस
  • सात् – भस्मसात्, आत्मसात्
  • हा – भुतहा
  • हरा – सुनहरा
  • हारा – लकड़हारा
  • हाल – ननिहाल

विदेशी भाषाओं के शब्द व प्रत्यय –

  • – सफेदा
  • – खुशी, ईरानी, आसमानी
  • ईन – शौकीन
  • ईना – महीना, कमीना
  • नामा – इकरारनामा
  • गी -मर्दानगी
  • कार – काश्तकार, पेशकार
  • गार – मददगार, खिदमतगार
  • बान – मेजबान
  • ईचा – बागीचा
  • दान – गुलाबदान
  • आब – गुलाब
  • आना – मर्दाना, जनाना
  • आनी – जिस्मानी, रूहानी
  • इन्दा – शर्मिन्दा, कारिन्दा
  • खोर – हरामखोर
  • गीर – राहगीर
  • दार – फौजदार
  • नुमा – कुतुबनुमा
  • नशीन – पर्दानशीन
  • बर – पैगम्बर
  • बार – दरबार
  • जार – बाजार
  • बाज – नशेबाज
  • नाक – दर्दनाक
  • ची – बाबरची
  • मन्द – अक्लमन्द
  • वार – उम्मीदवार
  • आबाद – अहमदाबाद
  • गाह – ईदगाह
  • – बेगम
  • जादा – हरामजादा, शहजादा
  • गीन – गमगीन
  • अन्दाज – तीरन्दाज
  • दार – दूकानदार
  • इस्तान – तुर्किस्तान
  • साज – घड़ीसाज
  • आवेज – दस्तावेज
  • इयत – कैफियत, इंसानियत

– उपसर्ग व प्रत्यय ।

शब्द रूप व धातुरूप

शब्द रूप व धातुरूप :- राम, हरि, भानु, मैं, गम्(जाना), भू(होना), कृ(करना) आदि संज्ञा, सर्वनाम और धातु के धातुरूप इत्यादि।

शब्द रूप (संज्ञा शब्दों के रूप) –

विभक्ति, कारक व कारक चिह्न

विभक्ति कारक चिह्न
प्रथमा कर्त्ता ने
द्वितीया कर्म को
तृतीया करण के द्वारा, से
चतुर्थी सम्प्रदान के लिए, को
पंचम अपादान से (अलगाव की स्थिति)
षष्ठी संबंध का, की, के रा, री, रे, ना, नी, ने
सप्तमी अधिकरण में, पे, पर
सम्बोधन सम्बोधन हे, हो, अरे, भो

अराकारांत पुल्लिंग ‘राम‘ के शब्दरूप

अन्य अकारांत पुल्लिंग शब्दों जैसे – ईश्वर, चंद्र, सूर्य, सिंह, पुत्र इत्यादि के भी शब्द रूप इसी प्रकार से होते हैं।

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा रामः रामौ रामाः
द्वितीया रामम् रामौ रामान्
तृतीया रामेण रामाभ्याम् रामैः
चतुर्थ रामाय रामाभ्याम् रामेभ्यः
पंचम रामात् रामाभ्याम् रामेभ्यः
षष्ठी रामस्य रामयोः रामाणाम्
सप्तमी रामे रामयोः रामेषु
सम्बोधन हे राम ! हे रामौ ! हे रामाः !

इकारांत पुल्लिंग ‘हरि‘ के शब्दरूप

अन्य इकारान्त शब्दों जैसे – मुनि, गिरि, कवि, रवि, कपि, विधि इत्यादि के भी शब्द रूप हरि की ही भांति होते हैं।

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा हरिः हरी हरयः
द्वितीया हरिम् हरी हरीन्
तृतीया हरिणा हरिभ्याम् हरिभिः
चतुर्थी हरये हरिभ्याम् हरिभ्यः
पंचमी हरेः हरिभ्याम् हरिभ्यः
षष्ठी हरेः हर्योः हरीणाम्
सप्तमी हरौ हर्योः हरिषु
सम्बोधन ह हरे ! हे हरी ! हे हरयः !

उकारांत पुल्लिंग ‘भानु‘ के शब्दरूप

अन्य उकारांत शब्दों जैसे – गुरु, प्रभु, विष्णु, शत्रु, पशु इत्यादि के भी शब्दरूप भानु की ही तरह होते हैं।

विभक्ति एकवचन द्विवचचन बहुवचन
प्रथमा भानुः भानू भानवः
द्वितीया भानुम् भानू भानून्
तृतीया भानुना भानुभ्याम् भानुभिः
चतुर्थ भानवे भानुभ्याम् भानुभ्यः
पंचम भानोः भानुभ्याम् भानुभ्यः
षष्ठी भानोः भान्वोः भानूनाम्
सप्तमी भानौ भान्वोः भानुषु
सम्बोधन हे भानो ! हे भानू ! हे भानवः !

सर्वनाम शब्द ‘मैं/असद्‘ के शब्दरूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा अहम् आवाम् वयम्
द्वितीया माम्, मा आवाम्, नौ अस्मान्, नः
तृतीया मया आवाभ्याम् अस्माभिः
चतुर्था मह्यम्, मे आवाभ्याम्, नौ अस्मभ्यम्, नः
पंचम मत् आवाभ्याम् अस्मत्
षष्ठी मम, मे आवयोः, नौ अस्माकम्, नः
सप्तमी मयि आवयोः अस्मासु

नपुंसक लिंग ‘फल‘ के शब्दरूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा फलम् फले फलानि
द्वितीया फलम् फले फलानि
तृतीया फलेन फलाभ्याम् फलैः
चतुर्था फलाय फलाभ्याम् फलेभ्यः
पंचम फलात् फलाभ्याम् भलेभ्यः
षष्ठी फलस्य फलयोः फलानम्
सप्तमी फले फलयोः फलेषु
सम्बोधन हे फल ! हे फले ! हे फलानि !

इकारांत स्त्रीलिंग ‘मति‘ के शब्दरूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा मतिः मती मतयः
द्वितीया मतिम् मती मतीः
तृतीया मत्या मतिभ्याम् मतिभिः
चतुर्था मत्यै, मतये मतिभ्याम् मतिभ्यः
पंचम मत्याः, मतेः मतिभ्याम् मतिभ्यः
षष्ठी मत्याः, मतेः मत्योः मतीनाम्
सप्तमी मत्याम्, मतौ मत्योः मतिषु
सम्बोधन हे मते ! हे मती ! हे मतयः !

ईकारांत स्त्रीलिंग ‘नदी‘ के शब्दरूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा नदी नद्यौ नद्यः
द्वितीया नदीम् नद्यौ नदीः
तृतीया नद्या नदीभ्याम् नदीभिः
चतुर्था नद्यै नदीभ्याम् नदीभ्यः
पंचम नद्याः नदीभ्याम् नदीभ्यः
षष्ठी नद्याः नद्योः नदीनाम्
सप्तमी नद्याम् नद्योः नदीषु
सम्बोधन हे नदि ! हे नद्यौ ! हे नद्यः !

उकारांत नपुंसकलिंग ‘मधु‘ के शब्दरूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा मधु मधुनी मधूनी
द्वितीया मधु मधुनी मधूनि
तृतीया मधुना मधुभ्याम् मदुभिः
चतुर्था मधुने मधुभ्याम् मधुभ्यः
पंचम मधुनः मधुभ्याम् मधुभ्यः
षष्ठी मधुनः मधुनोः मधूनाम्
सप्तमी मधुनि मधुनोः मधुषु
सम्बोधन हे मधो, हे मधु ! हे मधुनी ! हे मधूनि !

सर्वनाम पुल्लिंग ‘तद् (वह)‘ के शब्दरूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा सः तौ तेः
द्वितीया तम् तौ तान्
तृतीया तेन ताभ्याम् तैः
चतुर्था तस्मै ताभ्याम् तेभ्यः
पंचम तस्मात् ताभ्याम् तेभ्यः
षष्ठी तस्य तयोः तेषाम्
सप्तमी तस्मिन् तयोः तेषु

युष्मद् (तुम) ‘ के शब्दरूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा त्वम् युवाम् यूयम्
द्वितीया त्वाम्, त्वा सुवाम्, वाम् युष्मान्, वः
तृतीया त्वया युवाभ्याम् युष्याभिः
चतुर्था तुभ्यम्, ते युवाभ्याम्, वाम् युष्मभ्यम्, वः
पंचम त्वत् युवाभ्याम् युष्मत्
षष्ठी तव, ते युवयोः, वाम् युष्माकम्, वः
सप्तमी त्वयि युवयोः युष्मासु

स्त्रीलिंग ‘तद् (वह)’ के शब्दरूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा सा ते ताः
द्वितीया ताम् ते ताः
तृतीया तया ताभ्याम् ताभिः
चतुर्था तस्यै ताभ्याम् ताभ्यः
पंचम तस्याः ताभ्याम् ताभ्यः
षष्ठी तस्याः तयोः तासाम्
सप्तमी तस्याम् तयोः तासु

तद् (वह)‘ नपुंसक लिंग के शब्दरूप

विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा तत्, तद् ते तानि
द्वितीया तत्, तद् ते तानि
तृतीया तेन ताभ्याम् तैः
चतुर्था तस्मै ताभ्याम् तेभ्यः
पंचम तस्मात् ताभ्याम् तेभ्यः
षष्ठी तस्य तयोः तेषाम्
सप्तमी तस्मिन् तयोः तेषु

गम् (जाना)‘ के धातु रूप

लट्लकार (वर्तमानकाल) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम गच्छति गच्छतः गच्छन्ति
मध्यम गच्छसि गच्छथः गच्छथ
उत्तम गच्छामि गच्छावः गच्छामः

लृट्लकार (भविष्यत् काल) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम गमिष्यति गमिष्यतः गमिष्यन्ति
मध्यम गमिष्यसि गमिष्यथः गमिष्यथ
उत्तम गमिष्यामि गमिष्यावः गमिष्यामः

लड़्लकार (भूतकाल) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम अगच्छत् अगच्छाम् अगच्छन्
मध्यम अगच्छः अगच्छम् अगच्छत
उत्तम अगच्छम् अगच्छाव अगच्छाम

लोट्लकार (आज्ञा अर्थ में) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम गच्छतु गच्छाम् गच्छन्तु
मध्यम गच्छ गच्छतम् गच्छत
उत्तम गच्छानि गच्छाव गच्छाम

विधिलिड़्लकार (‘चाहिए’ अर्थ में) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम गच्छेत् गच्छेताम् गच्छेयुः
मध्यम गच्छेः गच्छेतम् गच्छेत
उत्तम गच्छेयम् गच्छेव गच्छेम

भू (होना)‘ के धातु रूप

लट्लकार (वर्तमान काल) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम भवति भवतः भवन्ति
मध्यम भवसि भवथः भवथ
उत्तम भवामि भवावः भवामः

लृट्लकार (भविष्यत् काल) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम भविष्यति भविष्यतः भविष्यन्ति
मध्यम भविष्यसि भविष्यथः भविष्यथ
उत्तम भविष्यामि भविष्यावः भविष्यामः

लड़्लकार (भूतकाल) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम अभवत् अभवताम् अभवन्
मध्यम अभवः अभवतम् अभतव
उत्तम अभवम् अभवाव अभवाम

लोट्लकार (‘आज्ञा’ अर्थ में) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम भवतु भवताम् भवन्तु
मध्यम भव भवतम् भवत
उत्तम भवानि भवाव भवाम

विधिलिड़्लकार (‘चाहिए’ अर्थ में) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम भवेत् भवेताम् भवेयुः
मध्यम भवेः भवेतम् भवेत
उत्तम भवेयम् भवेव भवेम

कृ (करना)‘ के धातु रूप

लट्लकार (वर्तमान काल) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम करोति कुरुतः कुर्वन्ति
मध्यम करोषि कुरुथः कुरुथ
उत्तम करोमि कुर्वः कुर्मः

लृट्लकार (भविष्यकाल) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम करिष्यति करिष्यतः करिष्यन्ति
मध्यम करिष्यसि करिष्यथः करिष्यथ
उत्तम करिष्यामि करिष्यावः करिष्यामः

लड़्लकार (भूतकाल) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम अकरोत् अकुरुताम् अकुर्वन्
मध्यम अकरोः अकुरुतम् अकुरुत
उत्तम अकरवम् अकुर्व अकुर्म

लोट्लकार (‘आज्ञा’ अर्थ में) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम करोतु कुरुताम् कुर्वन्तु
मध्यम कुरु कुरुतम् कुरुत
उत्तम करणावि करवाव करवाम

विधिलिड़्लकार (‘चाहिये’ अर्थ में) –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम कुर्यात् कुर्याताम् कुर्युः
मध्यम कुर्याः कुर्यातम् कुर्यात
उत्तम कुर्याम् कुर्याव कुर्याम

पठ् (पढ़ना) के धातुरूप

लट्लकार (वर्तमान काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पठसि पठतः पठन्ति
मध्यम पठसि पठथः पठथ
उत्तम पठामि पठावः पठामः

लृट्लकार (भविष्यत् काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पठिष्यति पठिष्यतः पठिष्यन्ति
मध्यम पठिष्यसि पठिष्यथः पठिष्यथ
उत्तम पठिष्यामि पठिष्यावः मठिष्यामः

लड़्लकार (भूतमान काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम अपठत् अपठताम् अपठतन्
मध्यम अपठः अपठतम् अपठत
उत्तम अपठम् अपठाव अपठाम

लोट्लकार (‘आज्ञा’ अर्थ में)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पठतु पठताम् पठन्तु
मध्यम पठ पठतम् पठत
उत्तम पठानि पठाव पठाम

विधिलिड़्लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पठेत् पठेताम् पठेयुः
मध्यम पठेः पठेतम् पठेत
उत्तम पठेयम् पठेव पठेम

हस् (हसना) के धातु रूप

लट्लकार (वर्तमान काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम हसति हसतः हसन्ति
मध्यम हससि हसथः हसथ
उत्तम हसामि हसावः हसामः

लृट्लकार (भविष्यत् काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम हसिष्यति हसिष्यतः हसिष्यन्ति
मध्यम हसिष्यसि हसिष्यथः हसिष्यथ
उत्तम हसिष्यामि हसिष्यावः हसिष्यामः

लड़्लकार (भूतकाल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम अहसत् अहसताम् अहसन्
मध्यम अहसः अहसतम् अहसत
उत्तम अहसम् अहसाव अहसाम

लोट्लकार (‘आज्ञा’ अर्थ में)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम हसतु हसताम् हसन्तु
मध्यम हस हसतम् हसत
उत्तम हसानि हसाव हसाम

विधिलिड़्लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम सहेत् हसेताम् हसेयुः
मध्यम हसेः हसेतम् हसेत
उत्तम हसेयम् हसेव हसेम

पच् (पकाना) के धातु रूप

लट्लकार (वर्तमान काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पचति पचतः पचन्ति
मध्यम पचसि पचथः पचथ
उत्तम पचामि पचावः पचामः

लृट्लकार (भविष्यत् काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पक्ष्यति पक्ष्यतः पक्ष्यन्ति
मध्यम पक्ष्यसि पक्ष्यथः पक्ष्यथ
उत्तम पक्ष्यामि पक्ष्यावः पक्ष्यामः

लड़्लकार (भूत काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम अपचत् अपचताम् अपचन्
मध्यम अपचः अपचतम् अपचतम
उत्तम अपचम् अपचाव अपचाम

लोट्लकार (‘आज्ञा’ अर्थ में)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पचतु पचताम् पचन्तु
मध्यम पच पचतम् पचत
उत्तम पचानि पचाव पचाम

विधिलिड़्लकार (‘चाहिये’ अर्थ में)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पचेत् पचेताम् पचेयुः
मध्यम पचेः पचेतम् पचेत
उत्तम पचेयम् पचेव पचेम

दृश् (देखना) के धातु रूप

लट्लकार (वर्तमान काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पश्यति पश्यतः पश्यन्ति
मध्यम पश्यसि पश्यथः पश्यथ
उत्तम पश्यामि पश्यावः पश्यामः

लृट्लकार (भविष्यत् काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम द्रक्ष्यति द्रक्ष्यतः द्रक्ष्यन्ति
मध्यम द्रक्ष्यसि द्रक्ष्यथः द्रक्ष्यतः
उत्तम द्रक्ष्यामि द्रक्ष्यावः द्रक्ष्यामः

लड़्लकार (भूत काल)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम अपश्यत् अपस्यताम् अपश्यन्
मध्यम अपश्यः अपश्यतम् अपश्यत
उत्तम अपश्यम् अपश्याव अवश्याम

लोट्लकार (‘आज्ञा’ अर्थ में)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पश्यतु, तात् पश्यताम् पश्यन्तु
मध्यम पश्य, तात पश्यतम् पश्यत
उत्तम पश्यानि पश्याव पश्याम

शब्द रूप व धातुरूप ।

विधिलिड़्लकार (‘चाहिये’ अर्थ में)

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पश्येत् पश्येताम् पश्येयुः
मध्यम पश्येः पश्येतम् पश्येत
उत्तम पश्येयम् पश्येव पश्येम

शब्द रूप व धातुरूप ।

कृ (करना) ‘आज्ञार्थक’ लोट्लकार

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम करोतु कुरुताम् कुर्वन्तु
मध्यम कुरु कुरुतम् कुरुत
उत्तम करवाणि करवाव करवाम

शब्दरूप प्रश्न उत्तर – शब्द रूप व धातुरूप ।

1 – ‘आत्मनौ’ शब्दरूप है ‘आत्मन्’ का –

(क) – प्रथमा विभक्ति एकवचन

(ख) – द्वितीय विभक्ति एकवचन

(ग) – द्वितीय विभक्ति द्विवचन

(घ) – षष्ठी विभक्ति बहुवचन

उत्तर – (ग) – द्वितीय विभक्ति द्विवचन

2 – ‘नाम्ने’ शब्दरूप है ‘नाम’ का –

(क) – प्रथमा विभक्ति एकवचन

(ख) – चतुर्थी विभक्ति एकवचन

(ग) – द्वितीय विभक्ति द्विवचन

(घ) – षष्ठी विभक्ति बहुवचन

उत्तर – (ख) – चतुर्थ विभक्ति एकवचन

3 – ‘राजभ्यः’ शब्दरूप है ‘राजन्’ का –

(क) – प्रथमा विभक्ति एकवचन

(ख) – चतुर्थी विभक्ति एकवचन

(ग) – द्वितीय विभक्ति द्विवचन

(घ) – पञ्चमी विभक्ति बहुवचन

उत्तर – (घ) – पञ्चमी विभक्ति बहुवचन

4 – ‘जगते’ शब्दरूप है ‘जगत्’ का –

(क) – प्रथमा विभक्ति एकवचन

(ख) – चतुर्थी विभक्ति एकवचन

(ग) – द्वितीय विभक्ति द्विवचन

(घ) – षष्ठी विभक्ति बहुवचन

उत्तर – (ख) – चतुर्थी विभक्ति एकवचन

5 – ‘सरिता’ शब्दरूप है ‘सरित्’ का –

(क) – प्रथमा विभक्ति एकवचन

(ख) – द्वितीया विभक्ति एकवचन

(ग) – तृतीया विभक्ति एकवचन

(घ) – षष्ठी विभक्ति बहुवचन

उत्तर – (ग) – तृतीया विभक्ति एकवचन

6 – ‘सर्वैः’ शब्दरूप है ‘सर्व’ का –

(क) – प्रथमा विभक्ति एकवचन

(ख) – तृतीया विभक्ति बहुवचन

(ग) – चतुर्थी विभक्ति द्विवचन

(घ) – सप्तमी विभक्ति बहुवचन

उत्तर – (ख) – तृतीया विभक्ति बहुवचन

शब्द रूप व धातुरूप ।

error: Content is protected !!