भारतीय इतिहास की लड़ाइयां

‘भारतीय इतिहास की लड़ाइयां’ शीर्षक के इस लेख में भारत में हुई प्रमुख लड़ाइयों व युद्धों को संकलित किया गया है। भारतीय इतिहास में हुई प्रमुख लड़ाइयां व युद्ध, उनकी तिथि, शासक व उनसे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी –

हाइडेस्पीज का युद्ध (326 ई. पू.)

इसे झेलम (वितस्ता) का युद्ध भी कहा जाता है। यह युद्ध यूनानी शासक सिकंदर महान और भारत के पश्चिमोत्तर राज्य पुरु (वर्तमान पंजाब का क्षेत्र) के शासक पोरस के बीच लड़ा गया था। पुरु राज्य झेलम व चिनाव नदियों के बीच अवस्थित था। इस युद्ध में पोरस की हार हुई और सिकंदर विजयी हुआ।

कलिंग का युद्ध (261 ई. पू.)

यह युद्ध मगध नरेश अशोक और कलिंग के बीच हुआ था। इस युद्ध में भीषण रक्तपात हुआ। इससे प्रभावित होकर अशोक के मन से हिंसा का भाव समाप्त हो गया। अशोक ने भविष्य में युद्ध न करने का फैसला किया। इस युद्ध का उल्लेख अशोक के 13वें शिलालेख में हुआ है।

सिंध पर अरब आक्रमण (712 ई.)

अरब आक्रमणकारी मो. बिन कासिम ने 712 ई. में सिंध पर आक्रमण कर दिया। इससे पहले भी दो अन्य मुस्लिम आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण कर चुके थे, परंतु उन्हें सफलता प्राप्त न हुई। अरबों को पहली बार सफलता मो. बिन कासिम के नेतृत्व में हासिल हुई। अरब आक्रमण के समय सिंध पर दाहिर का शासन था। सिंध पर अरब आक्रमण के दौरान कश्मीर का शासक ललितादित्य मुक्तिपीड था। पूर्व में नागभट्ट प्रथम का और दक्षिण में पुलकेशिन व राष्ट्रकूटों का साम्राज्य था।

तराइन की पहली लड़ाई (1191 ई.)

यह लड़ाई पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच हुई। इसमें पृथ्वीराज विजयी हुआ और मो. गोरी की हार हुई और वह घायल हो गया।

तराइन की दूसरी लड़ाई (1192 ई.)

तराइन का दूसरा युद्ध मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ। इसमें मो. गोरी विजय हुआ और पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। मिनहाज उस सिराज के अनुसार युद्ध के तुरंत बाद पृथ्वीराज की हत्या कर दी गई थी। हसन निजामी के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने गोरी की अधीनता स्वीकार कर ली। यही मत मान्य भी है क्योंकि पृथ्वीराज के सिक्कों पर गोरी का नाम पाया गया।

चंदावर की लड़ाई (1194 ई.)

यह लड़ाई मोहम्मद गोरी और कन्नौज के शासक जयचंद (गहड़वाल) के बीच हुई थी। इस लड़ाई में मो. गोरी की विजय और जयचंद की मौत हुई।

तराइन की तीसरी लड़ाई (जनवरी 1216 ई.)

यह लड़ाई इल्तुतमिश और यल्दौज के बीच हुई। इसमें यल्दौज की हार और इल्तुतमिश की जीत हुई।

पानीपत का पहला युद्ध (21 अप्रैल 1526 ई.)

पानीपत की पहली लड़ाई बाबर और इब्राहीम लोदी के बीच हुई थी। इस युद्ध में इब्राहीम लोदी की हार हुई और वह मारा गया। युद्ध भूमि में मरने वाला यह दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था। बाबर ने भारत में एक नए राजवंश मुगल वंश की नींव डाली। पानीपत वर्तमान हरियाणा में अवस्थित है। बाबर ने इस जीत का श्रेय अपने तीरंदाजों को दिया।

खानवा का युद्ध (1527 ई.)

खानवा की लड़ाई बाबर और मेवाड़ के राणा सांगा (संग्राम सिंह) के बीच हुई थी। पानीपत की जीत के बाद भी बाबर को राणा सांगा का भय था। सांगा को 18 युद्धों का अनुभव था। बाबर जानता था कि राणा सांगा के होते हुए वह ज्यादा दिन तक भारत में राज्य नहीं कर सकता। परंतु इस लड़ाई में भी बाबर की जीत हुई और राणा सांगा को पराजय का मुख देखना पड़ा।

चंदेरी की लड़ाई (1528 ई.)

यह लड़ाई चंदेरी के शानक मेदिनीराय और बाबर के बीच हुई। इसमें बाबर को जीत हासिल हुई। शेरशाह सूरी भी इस युद्ध में बाबर के साथ था।

घाघरा का युद्ध (1529 ई.)

घाघरा नदी के तट पर होने वाला यह मध्यकालीन भारत का ऐसा पहला युद्ध था जो जल व थल दोनों पर लड़ा गया। यह युद्ध बाबर और महमूद लोदी के बीच हुआ। इसमें बाबर ने महमूद लोदी के नेतृत्व वाली अफगानी सेना को पराजित किया।

चौसा का युद्ध (1539 ई.)

गंगा व कर्मनाशा नदियों के बीच अवस्थित इस स्थान पर 1539 ई. में शेरशाह सूरी और हुमायूँ के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में शेरशाह सूरी ने हुमाय़ूँ को पराजित कर दिया।

कन्नोज की लड़ाई या बिलग्राम का युद्ध (1940 ई.)

बिलग्राम की लड़ाई में शेरशाह सूरी ने एक बार फिर हुमायूँ को पराजित किया। इसके बाद हुमायूँ को भारत छोड़कर निर्वासित जीवन व्यतीत करना पड़ा। इस लड़ाई के बाद शेरशाह ने पादशाह की उपाधि धारण की।

पानीपत की दूसरी लड़ाई (5 नवंबर 1556 ई.)

पानीपत का दूसरा युद्ध अकबर और हेमू (हेमचंद्र विक्रमादित्य) के बीच हुआ। इस लड़ाई में हेमू की आँख में तीर लगने से वह घायल हो गया और मारा गया। हेमू जौनपुर के शासक आदिलशाह का एक मंत्री था। इसने 22 लड़ाइयाँ लड़ी थी और एक भी बार नहीं हारा। इससे खुश होकर इसे विक्रमजीत की उपाधि प्राप्त हुई थी। मुगल सूबेदार को हराकर इसने दिल्ली पर भी अधिकार कर लिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। आरिफ कन्दहारी इस लड़ाई का प्रत्यतक्षदर्शी था।

तालीकोटा का युद्ध (23 जनवरी 1565 ई.)

तालीकोटा के युद्ध को बन्नीहट्टी की लड़ाई या रक्षसी तगड़ी के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। विजयनगर साम्राज्य की बढ़ती ताकत से भयभीत होकर दक्षिण भारत के अन्य राज्यों ने एक संघ बना लिया। इस युद्ध में एक ओर विजयनगर साम्राज्य और दूसरी ओर अहमदनगर, बीजापुर, बीदर, व गोलकुण्डा की संयुक्त सेना थी। गोलकुंडा से शत्रुता के कारण बरार इस संघ में शामिल नहीं हुआ। इस लड़ाई के समय विजयनगर का शासक सदाशिव राय था। इस युद्ध में विजयनगर की हार हुई और बुरी तरह लूटा गया।

हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून 1576 ई.)

इसे गोगुन्दा की लड़ाईखमनौर के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। यह युद्ध अकबर और मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप के बीच हुआ। इस युद्ध में अकबर स्वयं युद्धभूमि में नहीं गया था। मुगल सेना का नेतृत्व आसफ खाँ व मानसिंह ने किया। इसमें महाराणाप्रताप की हार हुई। इतिहासकार बदायूंनी भी इस युद्ध में एक सैनिक की तरह शामिल हुआ था।

भातवाड़ी (मारवाड़ी) की लड़ाई (1624 ई.)

यह लड़ाई मुगलोंअहमदनगर के बीच हुआ। इस लड़ाई में मुगलों की ओर से महावत खाँ, परवेज, व बीजापुर की सेना ने भाग लिया। शाहजी और मलिक अम्बर अहमदनगर को ओर से लड़े। इस लड़ाई में अहमदनगर की विजय हुई और मुगलों को हार का मुह देखना पड़ा।

धरमट का युद्ध (15 अप्रैल 1658 ई.) –

यह लड़ाई शाहजहाँ के उत्तराधिकारियों के बीच हुआ था। इसमें एक ओर औरंगजेब व मुराद बख्श की संयुक्त सेना थी। दूसरी ओर कासिम खां व जसवंत सिंह के नेतृत्व में शाही सेना थी। इस लड़ाई में शाही सेना को हार का सामना करना पड़ा।

सामूगढ़ की लड़ाई (29 मई 1658) –

यह युद्ध औरंगजेब व मुराद की संयुक्त सेवा व दाराशिकोह के नेतृत्व में शाही सेना के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में दाराशिकोह की हार हुई। इसके बाद औरंगजेब ने मुराद को भी बंदी बना लिया और उसकी हत्या करवा दी।

देवराय का युद्ध (अप्रैल 1659 ई.) –

देवराय की लड़ाई औरंगजेब और दाराशिकोह के बीच अजमेर के निकट देवराय की घाटी में लड़ी गई थी। इसमें अंतिम रूप से दाराशिकोह की पराजय हुई।

जजाऊ का युद्ध (18 जून 1707 ई.)

औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को अहमदनगर में हो गई। उनके पुत्रों में उत्तराधिकार की लड़ाई न हो इसलिए औरंगजेब ने वसीयत कर अपने पुत्रों में साम्राज्य का बंटबारा कर दिया था। परंतु उत्तराधिकार का युद्ध शुरु हो गया। जजाऊ की लड़ाई में बहादुरशाह ने आजम को पराजित किया और उसे मार डाला। साथ ही आजम के दो पुत्र भी इस लड़ाई में मारे गए।

बीजापुर की लड़ाई (जनवरी 1709 ई.)

यह भी औरंगजेब के पुत्रों में हुई उत्तराधिकार की लड़ाई का हिस्सा था। यह युद्ध बहादुर शाह और कामबख्श के बीच हुआ। इस युद्ध में कामबख्श और उसका पुत्र मारा गया। बहादुर शाह को इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई।

करनाल की लड़ाई (24 फरवरी 1739 ई.)

करनाल की लड़ाई मुगल बादशाह मुहम्मदशाह और ईरान के नादिरशाह के बीच हुआ। इसमें मुहम्मद शाह के साथ निजामुल्मुल्क, खानेदौरान, व कमरुद्दीन भी थे। यह युद्ध मात्र तीन घंटे चला। खाने दौराने इस युद्ध में मारा गया। निजामुलमुल्क की मध्यस्थता के चलते नादिरशाह और मुहम्मदशाह के बीच समझौते के साथ युद्ध समाप्त हुआ। इससे खुश होकर मुहम्मदशाह ने खानेदौरान की मृत्यु से खाली हुआ मीरबख्शी का पद निजामुल्मुल्क को दे दिया।

बाद में सआदत खाँ ने नादिरशाह से मुलाकात कर दिल्ली पर आक्रमण करने को कहा। 20 मार्च 1739 को नादिरशाह ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। नादिरशाह दिल्ली में 57 दिनों तक रुका और जाते वक्त कोहिनूर, मयूर सिंहासन (तख्त ए ताऊस) व अपार सम्पदा अपने साथ ले गया।

प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-48 ई.)

बारनैट के नेतृत्व में 1746 ई. में इस लड़ाई की पहल अंग्रेजों ने की। अंग्रेजों की नौसेना ने कुछ फ्रांसीसी जलपोत पकड़ लिए। यह आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध का विस्तार मात्र था। 1748 में यूरोप में हुई ए ला शापेल की संधि से आस्ट्रिया के उत्तराधिकार का युद्ध समाप्त हो गया। इसी के साथ कर्नाटक का प्रथम युद्ध भी समाप्त हो गया।

सेंट थोमे का युद्ध (1748 ई.)

सेंट थोमे की लड़ाई फ्रांसीसियोंबंगाल के नवाब अनवरुद्दीन की सेना के बीच लड़ी गई। इसमें फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व कैप्टन पैराडाइज ने और नवाब की सेना का नेतृत्व महफूज खाँ ने किया। इसमें फ्रांसीसी सेना ने नवाब की सेना को पराजित कर दिया।

प्लासी का युद्ध (23 जून 1757 ई.)

प्लासी की लड़ाई में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व राबर्ट क्लाइव ने किया। अंग्रेजी सेना में 21 हजार भारतीय सैनिक शामिल थे। बंगाल के नवाब सिराज उद्दौला की ओर से मीर मदान, मोहनलाल व कुछ फ्रांसीसी सैनिकों ने भाग लिया। प्लासी की लड़ाई में नवाब की हार हुई और वह भागकर मुर्शिदाबाद पहुँचा। यहां मीरजाफर के पुत्र मीरन ने उसकी हत्या करवा दी। इस लड़ाई की जीत से ‘बंगाल में अंग्रेजी सत्ता की नींव’ पड़ी। क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बना दिया गया। अंग्रेजों की सहायतार्थ मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया। नवाब के प्रधान सेनापति मीरजाफर की गद्दारी ने बंगाल की सत्ता पर अंग्रेजों का अधिकार करवा दिया।

वांडीवाश का युद्ध (22 जनवरी 1760 ई.)

यह अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के बीच निर्णायक लड़ाई थी। इसमें अंग्रेजी सेना का नेतृत्व सर आयरकूट और फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व काउंट लाली कर रहा था। इस लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई। इस लड़ाई का समापन पेरिस की संधि (1763) से हुआ। इस संधि के तहत फ्रांसीसियों को उनके सभी भारतीय कारखाने बापस कर दिए गए। परंतु अब वे न तो इनकी किलेबंदी कर सकते थे और न ही सैनिक वहाँ डेरा डाल सकते थे।

पानीपत की तीसरी लड़ाई (14 जनवरी 1761 ई.)

यह लड़ाई अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली और मराठों के बीच हुआ। इस समय मराठा साम्राज्य का नेतृत्व बालाजी बाजीवराव के हाथों में था। अब्दाली ने मराठों से बदला देने के लिए जनवरी 1761 में भारत पर आक्रमण किया। इसमें मराठों की पूर्णतः हार हुई। इस लड़ाई में जाट, राजपूत व सिखों ने भी मराठों का साथ नहीं दिया। इस हार से मराठों की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंची। बालाजी वाजीराव इस हार को सहन न कर सका और 1761 में उसकी मृत्यु हो गई। काशीराम पंडित इस लड़ाई के प्रत्यतक्षदर्शी थे। 20 मार्च 1761 को दिल्ली से बापस जाते हुए अब्दाली ने मुगल शासक शाहआलम द्वितीय को पुनः शासक बनाया। साथ ही इमादुल मुल्क को वजीर और नबीजुद्दौला को मीरबख्श बनाया। अब्दाली ने भारत पर अपना सातवां और अंतिम आक्रमण मार्च 1767 ई. में किया।

बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764 ई.)

इस लड़ाई के समय बंगाल का नबाव मीरजाफर था। यह लड़ाई बिहार के बक्सर में 22 अक्टूबर 1764 को हुआ। इसमें अंग्रेजी सेना का नेतृत्व हेक्टर मुनरो ने किया। दूसरी ओर मीर कासिम, मुगल शासक शाहआलम द्वितीय और अवध के नबाव शुजाउद्दौला की संयुक्त सेनाएं थीं।  इस लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई। मीर कासिम दिल्ली भाग गया। शुजाउद्दौला और आहआलम द्वितीय ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस लड़ाई में विजय के बाद भारत में अंग्रेजों की सत्ता स्थाई रूप से कायम हो गई।

भारत चीन युद्ध (1962 ई.)

चीनी सेना ने 8 सिंतबर 1962 को थागला पहाड़ी पर हमला किया और भारतीयों को पीछे हटा दिया। परंतु भारत ने इसे छोटी घटना समझकर ध्यान नहीं दिया। एक सप्ताह बाद चीन ने फिर नार्थ ईस्टर्न फ्रंटियर एजेंसी (वर्तमान अरुणाचल प्रदेश) क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। 9 नवंबर 1962 को नेहरु जी ने अमेरिका व इंग्लैंड सरकार को दो पत्र लिखकर सैन्य सहायता की मांग की। 21 नवंबर 1962 को चीन ने अपनी ओर से युद्ध विराम की घोषणा कर दी।

भारत में समाचार पत्रों का इतिहास

‘भारत में समाचार पत्रों का इतिहास’ शीर्षक के इस लेख में समाचार पत्रों के इतिहास की जानकारी दी गई है। भारत में प्रेस की स्थापना का श्रेय पुर्तगालियों को दिया जाता है। वर्ष 1684 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में ‘पहली प्रिंटिंग प्रेस’ बम्बई में स्थापित की। इसके बाद ‘समाचारपत्र व पत्रिकाएं’ छपना प्रारंभ हुईं। विलियम वोल्ट्स ने साल 1766 ई. में आधुनिक भारतीय प्रेस की शुरुवात की। परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी ने इन्हें बापस ब्रिटेन भेज दिया।

बंगाल गजट –

इसके बाद जेम्स आगस्टस हिक्की ने 1780 ई. में  बंगाल गजट नामक प्रथम समाचार पत्र स्थापित किया।

यह भारत में प्रकाशित पहला समाचार पत्र था। इसका नाम ‘द् बंगाल गजट’ या ‘कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर’ था।

यह अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित किया जाता था। यह एक साप्ताहिक अखबार था।

साल 1782 ई. में इसे बंद कर दिया गया।

प्रारंभिक समाचार पत्र –

‘इंडिया गजट’ भारत में प्रकाशित दूसरा समाचार पत्र था। इसे नवंबर 1780 ई. में प्रकाशित किया गया। प्रारंभिक काल के समाचार पत्र एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे। तब इनमें प्रतिस्पर्द्धा की भावना व्याप्त न थी। ये पत्र आज की भांति दैनिक न होकर साप्ताहिक या पाक्षिक हुआ करते थे। गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा साल 1816 ई. में प्रकाशित ‘बंगाल गजट’ किसी भारतीय द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित पहला समाचार पत्र था।

जेम्स सिल्क बर्मिंघम –

प्रेस के इतिहास में बर्मिंघम का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन्होंने प्रेस को जनता का प्रतिबिंब बनाया और प्रेस में सत्तापक्ष के विरुद्ध आलोचनात्मक दृष्टिकोण की भावना भरी। इन्होंने साल 1818 ई. में कलकत्ता जरनल का संपादन किया।

मराठा व केसरी –

साल 1881 ई. में आगरकर ने मराठा का अंग्रेजी भाषा में बम्बई से प्रकाशन प्रारंभ किया। इसी साल केलकर ने बम्बई से मराठी भाषा में केसरी का प्रकाशन प्रारंभ किया। इसके बाद इन दोनों समाचार पत्रों का प्रकाशन बालगंगाधर तिलक के हाथों में चला गया।

राजा राममोहन राय –

राष्ट्रीय प्रेस की स्थापना का श्रेय राजा राममोहन राय को ही जाता है। इन्होंने साल 1821 ई. में बांगला में संवाद कौमुदी का प्रकाशन किया। इसके बाद साल 1822 ई. में फारसी भाषा में मिरात उल अखबार का प्रकाशन किया। अखबार को इन्होंने समाज सुधार, धार्मिक समस्याओं व दार्शनिक विचारों का भी माध्यम बना दिया।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर –

साल 1859 ई. में ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘सोम प्रकाश‘ का प्रकाशन प्रारंभ किया। इस समाचार पत्र के माध्यम से इन्होंने नील आंदोलन में किसानों के हितों का जोरदार समर्थन किया। सोमप्रकाश की स्थापना के कुछ समय बाद इन्होंने हिंदू पैट्रियाट को भी ले लिया। क्रिस्टोदास पाल इस समाचार पत्र के सम्पादक थे। जिन्हें ‘भारतीय पत्रिकारिता का राजकुमार’ कहा जाता है।

वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट –

ईश्वरचंद्र विद्यासागर के सोमप्रकाश के विरुद्ध ही लार्ड लिटन ने ‘वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट – 1878’ पारित किया। मोतीलाल घोष ने अपनी बांग्ला भाषा की पत्रिका अमृतबाजार को इस एक्ट से बचाने के लिए 1878 में अंग्रेजी साप्ताहिक में परिवर्तित कर लिया।

ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित समाचर एजेंसियां –

भारतीयों के अतिरिक्त ब्रिटिश सरकार ने भी कुल चार समाचार एजेंसियों की स्थापना की।

ब्रिटिश सरकार द्वारा सर्वप्रथम साल 1860 ई. में ‘रायटर‘ नामक एजेंसी की स्थापना की गई।

इसके बाद साल 1905 ई. में एसोसिएट प्रेस ऑफ इंडिया की स्थापना की।

साल 1927 ई. में फ्री प्रेस न्यूज सर्विस की स्थापना की।

साल 1934 ई. में यूनाइटेड प्रेस ऑफ इंडिया की स्थापना की।

प्रेस संबंधी अधिनियम –

प्रारंभ में प्रेस संबंधी नियमों का अभाव था। अर्थात् ये प्रशासकों की दया पर निर्भर करते था। जो अंग्रेजी समाचार पत्र उनके विरुद्ध जाते थे, उनके सम्पादक को बापस ब्रिटेन भेज दिया जाता था। परंतु भारतीयों के साथ ऐसा नहीं कर सकते थे। बाद में ‘समाचारपत्र व पत्रिकाएं’ बड़ी मात्रा में छपने लगीं। इसलिए भारतीयों पर नियंत्रण रखने हेतु प्रेस संबंधी अधिनियमों को लाया गया। इसकी शुरुवात लार्ड वेलेजली के समय हुई। समाचारपत्र व पत्रिकाएं ।

  • समाचार पत्रों का पत्रेक्षण अधिनियम – 1799
  • अनुज्ञप्ति अधिनियम – 1823
  • अनुज्ञप्ति अधिनियम – 1857
  • पंजीकरण अधिनियम – 1867
  • देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम – 1878
  • समाचार पत्र अधिनियम – 1908
  • भारतीय समाचार पत्र अधिनियम – 1910
  • भारतीय समाचार पत्र (संकटकालीन शक्तियां) अधिनियम – 1931
  • समाचारपत्र (आपत्तिजनक विषय) अधिनियम – 1951

चार्ल्स मेटकॉफ –

कार्यवाहक गवर्नर चार्ल्स मेटकॉफ को भारतीय समाचार पत्रों के मुक्तिदाता के रूप में जाना जाता है। इन्होंने प्रेस संबंधी अनुज्ञप्ति अधिनियम – 1823 के नियमों को रद्द कर दिया।

समाचार पत्र व पत्रिकाएं

समाचार पत्र/पत्रिकाएंप्रकाशन वर्षप्रकाशक/संपादकभाषा/विवरण
बंगाल गजट1780 ई.जेम्स ऑगस्टस हिक्कीअंग्रेजी
इंडियन गजट1780 ई.बर्नार्ड मेसिंक व पीटर रीडअंग्रेजी
कलकत्ता गजट1784 ई.सरकारी सहायता सेअंग्रेजी
ओरिएंटल एडवर्टाइजर1784 ई.सरकारी सहायताअंग्रेजी
बंगाल जरनल1785 ई.थॉमस जॉन्सअंग्रेजी
मद्रास कुरियन1785 ई.रिचर्ड जॉनसन, हग बॉयडअंग्रेजी
बम्बई कुरियन1790 ई.ल्यूक एशबर्नरअंग्रेजी
एशियाटिक मिरर1794 ई.हार्ल्स के. ब्रुसअंग्रेजी
इंडिया हेराल्ड1795 ई.हम्परेजअंग्रेजी
मद्रास गजट1795 ई.आर. विलियमअंग्रेजी
द् टेलीग्राफ1796 ई.हॉल मेकेनलीअंग्रेजी
कलकत्ता मॉर्निंग पोस्ट1798 ई.आर्चीबाल्डअंग्रेजी
मिशनरी हेराल्ड1801 ई.टी. आर्मस्ट्रांगअंग्रेजी
द् समाचार प्रेस1812 ई.फर्दून जी मर्दबानगुजराती
बंगाल गजट1816 ई.गंगाधर भट्टाचार्यअंग्रेजी
दिग्दर्शन1818 ई.जे. सी. मार्शमैनबंगला
फ्रेंड ऑफ इंडिया1818 ई.जे. सी. मार्समैनअंग्रेजी
समाचार दर्पण1919 ई.जे. सी. मार्समैनबंगला
उदंड मार्तंड1826 ई.जुगल किशोरहिंदी
बम्बई दर्पण1832 ई.बाल शास्त्रीमराठी
द् टाइम्स ऑफ इंडिया1838 ई.टाइम्स ऑफ इंडिया प्रेसअंग्रेजी
न्यू इंडिया1848 ई.ऐनी बेसेंटअंग्रेजी
हिंदू पैट्रियाट1855 ई.हरिश्चंद्र मुखर्जीअंग्रेजी
लाहौर क्रॉनिकल1849 ई.मुंशी मो. अजीमअंग्रेजी
सोम प्रकाश1859 ई.ईश्वचंद्र विद्यासागरबंगला
नेशनल रिफार्मर1860 ई.प्रकाशक - केनोक्लास्ट(लंदन)
संपादक - जोसेफ बैंकर
अंग्रेजी
बंगाली1862 ई.सुरेंद्रनाथ बनर्जीबंगला
गुजरात मित्र1863 ई.प्रवीणकांत वी. रेशमवालागुजराती
नेटिव ओपीनियन1864 ई.वी. एन. मांडलिकअंग्रेजी
पायनियर1865 ई.जुलियन राबिन्सनअंग्रेजी
ज्ञान प्रदायनी1866 ई.नवीनचंद्र रायहिंदी
अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट1866 ई.सर सैयद अहमद खांअंग्रेजी-उर्दू
कविवचन सुधा1867 ई.भारतेंदु हरिशचंदहिंदी
मेल1867 ई.टी. ए. सुब्रम्ण्यमअंग्रेजी
अमृत बाजार पत्रिका1868 ई.मोतीलाल घोषबंगला
हरिश्चंद्र मैगजीन1872 ई.भारतेंदु हरिश्चंद्रहिंदी
मुस्लिम क्रॉनिकल1873 ई.-अंग्रजी
बिहार हेराल्ड1874 ई.-अंग्रेजी
स्टेट्समैन1875 ई.के. रंग हैरीअंग्रेजी
द् ट्रिब्यून1877 ई.सरदयाल सिंह मजीठियाअंग्रेजी
हिंदी प्रदीप1877 ई.बालकृष्ण भट्टहिंदी
अवध पंच1877 ई.मो. सज्जाद हुसैनउर्दू
द् हिंदू1878 ई.वीर राघवाचारीअंग्रेजी
बंगाली1879 ई.सुरेंद्रनाथ बनर्जीअंग्रेजी
सुरभि1880 ई.जोगेंद्रनाथ बोसबंगला
स्वदेश मित्रन1880 ई.सी. एस. नरसिम्हनतमिल
केसरी1881 ई.दे केसरी मराठा ट्रस्टमराठी
द् ट्रिब्यून1881 ई.आर. माधवन नायरअंग्रेजी
बंगवासी1881 ई.जोगेंद्र बोसबंगला
आवर कार्नर1883 ई.औरिक बेसेंटअंग्रेजी
एडवोकेट1886 ई.ए. सी. मजूमदार,
बिशन नारायण दर
अंग्रेजी
दीपिका1887 ई.पादरी विक्टर जेडनरिबेलिमलयालम
कैपिटल1888 ई.दिनेश बहलअंग्रेजी
इंडिया1890 ई.दादाभाई नौरोजीअंग्रेजी
मलयाला मनोरमा1890 ई.के. एम. मैथ्यूमलयालम
मद्रास लॉ जरनल1891 ई.के. शंकर नारायणअंग्रेजी
हिंदुस्तान स्टैण्डर्ड1899 ई.सच्चिदानंद सिन्हाअंग्रेजी
द् इंडियन रिव्यू1900 ई.ए. नटेशनअंग्रेजी
कृष्ण पत्रिका1902 ई.एम. सुब्रह्मण्यम शर्मातेलुगू व अंग्रेजी
द् मालाबार हेराल्ड1905 ई.जॉन मल्मपिल्लीअंग्रेजी
दुख निवारण1906 ई. सुखबीर सिंहपंजाबी
आंध्र पत्रिका 1908 ई.सर्वपल्ली साधाकृष्णनतेलुगू
कॉमर्स1910 ई.वाडीलाल डागलीअंग्रेजी
प्रताप1910 ई.गणेश शंकर विद्यार्थीहिंदी
केरल कौमुदी1911 ई.एम. एस. मणिमलयालम
अल हिलाल1912 ई.मौलाना अबुलकलाम आजादउर्दू
अल बिलाग1913 ई.अबुल कलाम आजादउर्दू
गदर1913 ई.लाला हरदयालहिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती, गुरमुखी इत्यादि।
मद्रास स्टैंडर्ड1914 ई.ऐनी बेसेंटहिंदी
कामनवील1914 ई.ऐनीबेसेंटअंग्रेजी
न्यू इंडिया1914 ई.ऐनीबेसेंटअंग्रेजी
द् लीडर1918 ई.मदनमोहन मालवीयअंग्रेजी
द् सर्वेंट्स ऑफ इंडिया1918 ई.सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटीअंग्रेजी
द् यंग इंडिया1919 ई.महात्मा गाँधीअंग्रेजी
नवजीवन1919 ई.महात्मा गाँधीहिंदी, गुजराती
इंडिपेंडेंस1919 ई.मोतीलाल नेहरुअंग्रेजी
हिंदुस्तान टाइम्स1920 ई.के. एम. पणिक्करअंग्रेजी
मैन इन इंडिया1921 ई.सुरजीत सिंह सिन्हाअंग्रेजी
सोशलिस्ट1922 ई.एस. ए. डांगेअंग्रेजी
मिलाप1923 ई.रणवीर सिंहउर्दू
मातृभूमि1923 ई.के. पी. केशव मेननमलयालम
संदेश1923 ई.सी. एस. पटेलगुजराती
हिंदुस्तान टाइम्स1924 ई.के. एम. पणिक्करअंग्रेजी
इंडियन नेशन1930 ई.ब्रजनंदन आजादअंग्रेजी
प्रजा माता1931 ई.के. सिद्धरमनकन्नड़
देश1932 ई.अशोक कुमार सरकारबंगला
नवशक्ति1931 ई.पी. आर. बेहरेमराठी
हरिजन 1933 ई.महात्मा गाँधीअंग्रेजी, हिंदी, गुजराती
नव भारत1934 ई.रामगोपाल माहेश्वरीहिंदी
सह्याद्रि1935 ई.जे. एस. तिलकमराठी
स्वराज1936 ई.एन. वी. पारुलेकरगुजराती
इंकलाब1937 ई.खालिद अंसारीउर्दू
नेशनल हेराल्ड1938 ई.जवाहरलाल नेहरूअंग्रेजी
भारत मित्र1941 ई.बालमुकुंद गुप्तहिंदी
हिंदुस्तान1941 ई.मदनमोहन मालवीयहिंदी
हिंदुस्तान1941 ई.प्रतापनारायण मिश्रहिंदी
कामरेड1941 ई.मौलाना मुहम्मद अलीअंग्रेजी

भारत में समाचारपत्र व पत्रिकाएं – इतिहास

हमारे देश में समाचार पत्रों के इतिहास की शुरुवात यूरोरियन के भारत आगमन से मानी जाती है। 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने भारत में प्रिंटिंग प्रेस की शुरुवात की। 1557 ई. में गोवा में ईसाई मिशनरियों द्वारा पहली पुस्तक छापी गई। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1684 ई. में अपनी पहली प्रिंटिंग प्रेस बम्बई में स्थापित की। 1766 ई. में कंपनी के असंतुष्ट अधिकारी विलियम बोल्ट्स ने अपने समाचार पत्र के माध्यम से कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स की नीतियों के विरुद्ध लिखा। अतः ब्रिटिश सरकार ने इन्हें बापस बुला लिया। भारत का पहला समाचार पत्र ‘द् बंगाल गजट’ था, जो 1780 ई. में जेम्स आगस्टस हिक्की द्वारा प्रकाशित किया गया।

भारत में स्वतंत्र एवं तटस्थ पत्रकारिता की शुरुवात जेम्स हिक्की व वर्किंघम ने ‘कलकत्ता जनरल’ के प्रकाशन से की। प्रेस का आधुनिक रूप बर्किंघम की ही देन है, इन्होंने प्रेस को जनता का प्रतिबम्ब बनाया। किसी भारतीय द्वारा प्रकाशित पहला अखबार ‘बंगाल गजट’ था। ये साल 1816 में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा प्रकाशित किया गया। 1818 ई. में मार्शमैन ने बांग्ला में ‘दिग्दर्शन’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया। भारत में राष्ट्रीय प्रेस की स्थापना का श्रेय राजा राममोहन राय को जाता है।

‘समाचारपत्र व पत्रिकाएं’ लेख समाप्त।

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