मुगल वंश (Mughal Dynasty)

मुगल वंश

भारत में ‘मुगल वंश (Mughal Dynasty)’ की स्थापना 1526 ई. में बाबर ने की थी। मंगोलों की ही एक शाखा से संबंधित होने के कारण ये मुगल कहलाए। 1 नवंबर 1858 ई. को मुगल साम्राज्य का अंत ‘भारत शासन अधिनियम – 1858’ द्वारा हो गया। अर्थात भारत में मुगल साम्राज्य 332 साल स्थापित रहा।

मुगल वंश के शासकों को दो भागों (पूर्व मुगल और उत्तर मुगल) में बाँटकर अध्ययन किया जाता है। पूर्व मुगलों में बाबर, हुमायूं, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ व औरंगजेब का नाम आता है। इन्होंने मुगलों की सत्ता और प्रतिष्ठा को खूब बढ़ाया। इनके विपरीत उत्तर मुगल (बहादुरशाह प्रथम से बहादुरशाह जफर तक) शासक इसकी प्रतिष्ठा बढ़ाने में अक्षम रहे।

मुगल वंश के शासक –

  • बाबर ( 1526 – 1530 ई. )
  • हुमायूं ( 1530 – 1940 ई. और 1555 – 1556 ई. )
  • अकबर ( 1556 – 1605 ई. )
  • जहाँगीर ( 1605 – 1627 ई. )
  • शाहजहाँ ( 1627 – 1658 ई. ) 
  • औरंगजेब ( 1658 – 1707 ई. )
  • बहादुर शाह प्रथम ( 1707 – 1712 ई. )
  • जहाँदारशाह ( 1712 – 1713 ई. )
  • फर्रुखशियर ( 1713 – 1719 ई. )
  • रफी उद दरजात ( फरवरी 1719 – जून 1719 ई. )
  • रफी उद्दौला ( जून 1719 – सितंबर 1719 ई. )
  • मुहम्मदशाह/रौशन अख्तर (1719-48 ई.)
  • अहमदशाह ( 1748 – 1754 ई. )
  • आलमगीर द्वितीय ( 1754 – 1758 ई. )
  • शाहजहाँ तृतीय ( 1758 – 1759 ई. )
  • शाहआलम द्वितीय ( 1759 – 1806 ई. )
  • मुहम्मद अकबर द्वितीय ( 1806 – 1837 ई. )
  • बहादुर शाह द्वितीय जफर (1837 – 1858 ई. )

पूर्व मुगल शासक –

पूर्व मुगल शासकों में 6 मुगलों बाबर, हुमायूं, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, व औरंगजैब का नाम आता है।

बाबर (1526-30 ई.)

पिता की मृत्यु के बाद मात्र 11 वर्ष की अवस्था में बाबर फरगना का शासक बना। 1526 ई. में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को हराकर इसने भारत में एक नए राजवंश मुगल वंश की नींव रखी। भारत में पद-पादशाही की स्थापना भी बाबर ने ही की। इसके बाद खानवा, चंदेरी और घाघरा की लड़ाई में जीत हासिल की। बाबर की मृत्यु 26 दिसंबर 1530 को आगरा में हो गई। पहले उसे आगरा के आरामबाग में, उसके बाद काबुल में दफनाया गया। इसने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक ए बाबरी’ तुर्की भाषा में लिखी। बाद में अब्दुल रहीम खान खाना ने फारसी में इसका अनुबाद किया। अपनी उदारता के लिए बाबर को कलंदर की उपाधि मिली थी।

बाबर की विजयें –

  • पानीपत की पहली लड़ाई ( 21 अप्रैल 1526 )
  • खानवा का युद्ध ( 17 मार्च 1527 )
  • चंदेरी की लड़ाई (29 जनवरी 1528 )
  • घाघरा का युद्ध (6 मई 1529 )

बाबर से सबसे पहले दिल्ली के शासक इब्राहीम लोदी को हराया। बाबर ने इसे अनुभवहीन शासक कहा। बाबर इस विजय का श्रेय अपने तीरंदाजों को देता है। इसमें बाबर ने तोपखाने और तुगलमा पद्यति का प्रयोग किया। अब्राहीम लोदी इस युद्ध में मारा गया। युद्ध स्थल पर मारा जाने वाला मध्यकालीन इतिहास का इब्राहीम लोदी पहला शासक था। इब्राहीम का मित्र ग्वालियर का राजा विक्रमजीत भी इस युद्ध में मारा गया। मेवाड़ के राणा सांगा को खानवा के युद्ध में हरा कर बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की।

हुमायूँ (1530-40 ई.) (1555-56 ई.)

यह बाबर का ज्येष्ठ पुत्र था। पिता की मृत्यु के बाद इसने अपने भाइयों में साम्राज्य का बंटवारा कर दिया। जून 1539 ई. में यह चौसा के युद्ध में शेरखाँ से बुरी तरह पराजित हुआ। हुमायूं गंगा नदी में कूद गया, भिश्ती ने इसकी जान बचाई। मई 1540 में हुमायूं पुनः शेरखां से पराजित हुआ। इसके बाद ये निर्वासित जीवन जीने पर विवश हो गया। जून 1555 ई. में सरहिंद के युद्ध में हुमायूं ने अफगानों को बुरी तरह पराजित कर दिया। इस तरह एक बार फिर सत्ता मुगलों के हाथ में आ गई। इसके बाद जनवरी 1556 ई. में हुमायूं की मौत हो गई।

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अकबर (1556 – 1605 ई.)

15 अक्टूबर 1542 ई. को अकबर का जन्म अमरकोट में राजा वीरसाल के महल में हुआ था। पिता हुमायूं की मृत्यु के दौरान ये पंजाब के सिकंदर सूर से युद्ध कर रहा था। 14 फरवरी 1556 को अकबर का राज्याभिषेक बैरम खां की देखरेख में हुआ। 1556 से 1560 के बीच अकबर बैरम खां के संरक्षण में रहा। अकबर ने 1562 ई. में दास प्रथा को समाप्त किया। 1564 ई. में जजिया कर समाप्त किया। गुजरात विजय की स्मृति में बुलंद दरबाजा बनवाया। अकबर के समय पहला विद्रोह 1564 में उजबेगों ने किया। 1576 ई. में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को हराया। 1601 ई. में असीरगढ़ पर आक्रमण अकबर की अंतिम विजय थी। 25 अक्टूबर 1605 को पेचिश के कारण अकबर की मृत्यु हो गई।

जहांगीर (1605-27 ई.)

जहांगीर के बचपन का नाम सलीम था। इसका जन्म सलीम चिश्ती की कुटिया में 30 अगस्त 1569 ई. को हुआ था। अकबर की मृत्यु के बाद 3 नवंबर 1605 को आगरा किले में सलीम का राज्याभिषेक हुआ। यह जहाँगीर के नाम से भारत का शासक बना। शासक बनने के बाद इसने न्याय की जंजीर स्थापित की। 1623 ई. में शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) ने विद्रोह कर दिया। महावत खाँ ने इस विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिक निभाई। बाद में 1626 ई. में महाबात खाँ ने विद्रोह कर दिया। 28 अक्टूबर 1627 को जहाँगीर की मृत्यु हो गई। इसे रावी नदी के तट पर शाहदरा (लाहौर) में दफनाया गया।

शाहजहाँ (1627-58 ई.)

शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 ई. को लाहौर में हुआ था। इसके बचपन का नाम खुर्रम था। 1612 ई. में इसका विवाह आसफखाँ की बेटी अर्जुमंद बानो बेगम (मुमताज महल। से हुआ। मुमताज महल से शाहजहाँ की 14 संतानें पैदा हुई। परंतु इन 14 में से 7 ही जीवित बची। पिता जहाँगीर की मृत्यु के समय यह दक्षिण में था।

24 जनवरी 1628 को शहजादा खुर्रम शाहजहां के नाम से भारत का शासक बना। 1630-32 में दक्कन व गुजरात में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। शाहजहाँ ने 1633 ई. में अहमदनगर पर आक्रमण कर साम्राज्य में मिला लिया। सितंबर 1657 ई. में शाहजहाँ के बीमार पड़ते ही पुत्रों में उत्तराधिकार की लड़ाई शुरु हो गई। शासक के जीवित रहते उत्तराधिकार के लिए हुआ यह पहला युद्ध था। इस युद्ध में औरंगजेब को जीत हासिल हुई। 1658 ई. में औरंगजेब ने शाहजहाँ से सिंहासन हड़प लिया और इन्हें कैद कर लिया। 1666 ई. में शाहजहाँ की मृत्यु हो गई। सबसे बड़ी पुत्री जहाँआरा ने इनकी मृत्यु तक सेवा की।

औरंगजेब (1658-1707 ई.)

औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 ई. को दोहद (उज्जैन) में हुआ था। पिता शाहजहाँ को गद्दी से उतार कर जुलाई 1658 ई. में भारत का शासक बना। इसके बाद दाराशिकोह व शाहशुजा को परास्त कर जून 1659 ई. में पुनः राज्याभिषेक कराया। शासन के 11वें वर्ष झरोखा दर्शन की प्रथा को बंद कर दिया। 12वें वर्ष तुलादान की प्रथा को बंद कर दिया। 1679 ई. में जजिया कर लगाया। 1682 ई. में यह शहजादे अकबर का पीछा करता हुआ दक्षिण पहुँचा। इसके बाद इसे उत्तर में आने का मौका ही नहीं मिला। सितंबर 1686 ई. में बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। अक्टूबर 1687 ई. में गोलकुण्डा को मगुल साम्राज्य में मिला लिया। 3 मार्च 1707 ई. को अहमदनगर के निकट औरंगजेब की मृत्यु हो गई।

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उत्तर मुगल शासक –

औरंगजेब के बाद के मुगल वंश के शासक उत्तर मुगल कहलाए। ये पूर्व मुगलों की भांति प्रसिद्ध नहीं थे। ये विरासत में मिले विस्तृत मुगल साम्राज्य को बढ़ाना तो दूर स्थिर भी न रख सके। इनके कारण मुगलों की प्रतिष्ठा जाती रही। धीरे धीरे मुगल साम्राज्य का पतन हो गया।

बहादुरशाह प्रथम (1707-12 ई.)

औरंगजेब के बाद बहादुरशाह 65 वर्ष की अवस्था में भारत का शासक बना। इसे ही ‘शाहआलम प्रथम’ के नाम से भी जाना जाता है। इसने जजिया कर को समाप्त कर दिया। 27 फरवरी 1712 ई. को बहादुरशाह की मृत्यु हो गई। सिडनी ओवन के अनुसार ‘यह अंतिम मुगल शासक था जिसके बारे में कुछ अच्छा कहा जा सकता है।’ इसके बाद भी मुगल वंश लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक चला। परंतु पूर्व मुगलों की अपेक्षा प्रतिष्ठा में तेजी से कमी आती गई।

जहाँदारशाह (1712-13 ई.)

इसके शासनकाल में शासन का प्रमुख वजीर जुल्फिकार खाँ बन गया। इसने जयसिंह को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया और मिर्जा राजा की उपाधि दी। मारवाड़ के अजीतसिंह को महाराजा की उपाधि देकर गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया गया। जहाँदार शाह के भतीजे फर्रुखशियर ने गद्दी पर दावा किया। सैय्यद बंधुओं (अब्दुल्ला खाँ और हुसैन अली खाँ) की सहायता से जहांदारशाह के विरुद्ध युद्ध किया। इसने जहाँदारशाह को पराजित कर बंदी बना लिया। बाद में उसकी हत्या कर दी गई।

  • जहाँदारशाह ने जजिया कर को समाप्त किया।
  • दक्कन की चौथ व सरदेशमुखी मराठों को सौंप दी।
  • यह लालकुंवर नामक एक वैश्या के प्रति अधिक आसक्त था।

फर्रुखशियर (1713-19 ई.)

सैय्यद बंधुओं की सहायता से शासक बनने वाला पहला मुगल था। जोधपुर के राजा अजीतसिंह ने अपनी पुत्री का विवाह फर्रुखशियर से किया। अब्दुल्ला खाँ को वजीर नियुक्त किया। हुसैन अली को मीरबख्शी व अमीर-उल-उमरा नियुक्त किया गया। सैय्यद बंधुओं की बढ़ती शक्ति से फर्रुखशियर ईर्ष्या करने लगा। 1719 ई. में सैय्यद बंधुओं ने पेशवा बालाजी विश्वनाथ से सैन्य सहायता मांगी। फर्रुखशियर को अपदस्थ कर अंधा बना दिया गया। इसके कुछ दिन बाद उसकी हत्या कर दी गई। किसी अमीर द्वारा मुगल बादशाह की हत्या का यह पहला उदाहरण है।

  • जजिया कर को समाप्त किया।
  • जयसिंह को सवाई की उपाधि दी।
  • 1716 ई में बंदाबहादुर को दिल्ली में फाँसी दी गई।
  • 1717 ई. में अंग्रेजों को व्यापार में छूट हेतु ‘शाही फरमान‘ जारी किया।
  • जुल्फिकार खाँ की हत्या करवा दी गई।

रफी उद् दरजात (फरवरी-जून 1719 ई.)

यह भी सैय्यद बंधुओं की सहायता से शासक बना। मुगलों में इसका शासनकाल सबसे कम रहा। क्षयरोग (टी0 बी0) से इसकी मौत हो गई। इसके काल में निकूसियर का विद्रोह हुआ। इसने आगरे के दुर्ग पर अधिकार कर स्वयं को शासक घोषित कर लिया।

रफी उद् दौला (जून-सितंबर 1719 ई.)

जून 1719 ई. में रफी उद् दरजात शाहजहाँ द्वितीय की उपाधि के साथ शासक बना। यह अफीम का शौकीन था। पेचिश के कारण इसकी मृत्यु हो गई। इसके समय अजीतसिंह अपनी विधवा पुत्री को मुगल हरम से बापस ले गया। उसने बापस हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया।

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मुहम्मदशाह/रौशन अख्तर (1719-48 ई.)

यह मुगल वंश का अत्यधिक विलासी शासक था। इसी कारण इसे रंगीला बादशाह कहा जाता है। यह बहादुरशाह का पौत्र था। इसके शासनकाल में सैय्यद बंधुओं का अंत हुआ। सैय्यद बंधुओं के पतन के बाद मुहम्मद अमीन खाँ को मुगलों का वजीर नियुक्त किया गया। इसी ने बादशाह को सैय्यद बंधुओं के चुंगल से छुड़ाने में अहम योगदान दिया था।

  •  इसी के समय निजामुलमुल्क ने हैदराबाद राज्य की नींव डाली।
  • सआदत खाँ ने अवध में अपने राज्य को स्वतंत्र कर लिया।
  • इसी के शासनकाल में बिहार, बंगाल, व उड़ीसा ने स्वतंत्रता पा ली।
  • राजपूताना क्षेत्र ने भी मुगलों की सत्ता को अस्वीकार कर दिया।
  • 1739 ई. में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण इसी के शासनकाल में किया।

अहमदशाह (1748-54 ई.)

यह मुहम्मदशाह का इकलौता पुत्र था। यह उसके बाद मुगल बादशाह बना। ये एक नर्तकी की संतान था। इसके समय मुगल अर्थव्यवस्था चरमरा गई। इसके शासनकाल की महत्वपूर्ण घटना 1748 ई. का अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण थी। अहमदशाह ने इमादुलमुल्क को वजीर बनाया। इमादुलमुल्क ने ही अहमदशाह को गद्दी से हटाकर कैद में डाल दिया।

आलमगीर द्वितीय (1754-58 ई.)

इसके बचपन का नाम अजीदुद्दीन था।

अहमदशाह अब्दाली इसके समय दिल्ली तक आ गया।

इसके समय प्लासी की लड़ाई हुई।

बाद में इमादुलमुल्क ने गाजीउद्दीन के माध्यम से इसकी भी हत्या करवा दी।

इसके बाद एक ही समय में दो अलग-अलग स्थानों पर दो शासक बने।

शाहजहाँ तृतीय (1758-59 ई.)

यह कामबख्श का पौत्र था। जिसे इमादुलमुल्क ने शाहजहाँ तृतीय के नाम से दिल्ली का शासक बना दिया था। क्योंकि आलमगीर द्वितीय की मृत्यु के समय उसका पुत्र अलीगौहर बिहार में था। हालांकि पिता की मृत्यु के बाद उसने बिहार में ही स्वयं को मुगल बादशाह घोषित कि लिया था।

शाहआलम द्वितीय (1759-1806 ई.)

इसके बचपन का नाम ‘अलीगौहर‘ था। पिता की मृत्यु के समय यह बिहार में था।

बिहार में ही इसने स्वयं को मुगल बादशाह घोषित कर लिया।

पानीपत की तीसरी लड़ाई और बक्सर का युद्ध इसी के शासनकाल में लड़ा गया।

1788 ई. में गुलाम कादिर ने इसे अंधा बना दिया।

दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार इसी के शासनकाल में हो गया।

शाहआलम को अंग्रेजों का पेंशनभोगी बनना पड़ा।

1806 ई. में इसकी हत्या कर दी गई।

अकबर द्वितीय (1806-37 ई.)

अकबर द्वितीय ने राममोहन राय को अपनी पेंशन बढ़ाने की सिफारिश करने ब्रिटेन के राजा के पास भेजा।

उनके इस कार्य के लिए अकबर द्वितीय ने राममोहन राय को ‘राजा की उपाधि’ दी।

इसी के शासनकाल में साल 1835 में मुगलों के सिक्के बन्द हो गए।

बहादुरशाह द्वितीय/जफर (1837-58 ई.)

यह मुगल वंश का अंतिम शासक था। 1857 की क्रांति के बाद इन्हें अंग्रेजों ने बंदी बना लिया।

1 नवंबर 1858′ के महारानी विक्टोरिया के घोषणापत्र द्वारा मुगल वंश का अंत हो गया।

बहादुरशाह जफर को निर्वासित कर रंगून भेज दिया गया। 1862 ई. में रंगून में ही इनकी मृत्यु हो गई।

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