विज्ञान : वरदान या अभिषाप

विज्ञान : वरदान या अभिषाप (Vigyan Vardan Ya Abhishap) – विज्ञान के वरदान, विज्ञान का सदुपयोग, विज्ञान के लाभ और हानियाँ, विज्ञान और मानव कल्याण, विज्ञान वरदान भी और अभिशाप भी, विज्ञान और आधुनिकता, विज्ञान के बढ़ते कदम, विज्ञान की देन, विज्ञान के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ।

रूपरेखा –

(1) – प्रस्तावना, (2) विज्ञान वरदान के रूप में – संचार के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में, परिहवन के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र में, उद्योग के क्षेत्र में, कृषि के क्षेत्र में, आम रहन-सहन में। (3) – विज्ञान एक अभिशाप के रूप में। (4) – उपसंहार।

प्रस्तावना –

विज्ञान ने जहाँ एक ओर मानव जीवन को बहुत सी सहूलियतें प्रदान की हैं। वहीं दूसरी ओर विनाश के साधनों को भी विकसित किया है। ऐसी स्थिति में यह विचारणीय हो जाता है कि आखिर विज्ञान मानव कल्याण में किस हद तक उपयोगी है। आझ विज्ञान  को वरदान माना जाए या अभिशाप के रूप में देखा जाए।

विज्ञान : वरदान के रूप में –

आज विज्ञान ने मानव जीवन के हर क्षेत्र के लिए उपयोगी वस्तुओं को सृजित किया है। जिसके कारण आज मानव का जीवन वेहद आसान लगने लगा है। आज बड़े-बड़े कार्य जिनमें महीनों या सालों लगते थे। विज्ञान के आविष्कारों के चलते बेहद कम समय और कम लोगों को लगाकर आसनी से संपन्न किये जा सकते हैं।

परिवहन के क्षेत्र में विज्ञान –

विज्ञान के आविष्कारों ने जैसे परिवहन के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। पहले जहाँ लोग घोड़े, गधे, बैलगाड़ी इत्यादि के माध्यम से परिवहन करते थे। जिनमें बहुत अधिक समय लगता था। आज सड़क, रेल, जहाज और हवाई जहाज के माध्यम से बेहद कम समय में हम ये सभी कार्य संपन्न कर सकते हैं। पहले के समय में लंबी यात्राओं में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। ये विज्ञान की ही देन है कि आज मानव पृथ्वी ही नहीं अपितु चांद पर भी कदम रख चुका है।

संचार के क्षेत्र में –

संचार व्यवस्था किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था की भी नींव होती है। प्राचीन काल से ही युद्धनीति में भी इसका अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान था। लेकिन तब संचार का संचालन घोड़ों के माध्यम से किया जाता था। लेकिन वर्तमान में टेलीग्राफ, टेलीफोन, ईमेल, फैक्स, टैलेक्स, मोबाइन फोन, इंटरनेट जैसी आधुनिक सुविधाओं के माध्यम से क्षण भर में सूचनाओं का आदान प्रदान किया जा सकता है। वहीं रेडियो और टेलिविजन के माध्यम से किसी भू सूचना को पल भर में दुनिया भर में प्रसारित किया जा सकता है। क्योंकि देश या राष्ट्र पर आयी किसी भी मुसीबत के समय संचार व्यवस्था का मजबूत होता अत्यंत आवश्यक है। इनकी अनदेखी से एक क्षेत्र के आपातकाल में होने से दूसरे स्थानों तक मदद या सतर्कता हेतु सूचना पहुँचाना पहुँचायी जा सकती है।

चिकित्सा के क्षेत्र में –

चिकित्सा के क्षेत्र में तो विज्ञान वरदान सिद्ध हुआ है। प्रचीनकाल में जहाँ लोगो सही चिकित्सा सुविधा न मिलने के कारण जान से हाथ धोने पड़ते थे। वहीं आज विज्ञान के चिकित्सा क्षेत्र को इतना विकसित कर दिया है कि आज लगभग हर बीमारी का निदान व इलाज संभव हो पाया है। आज तमाम तरह के मानव विकारों से राहत दिलाने के इक्यूपमेंट्स उपलब्ध हैं।

कृषि के क्षेत्र में –

कृषि के क्षेत्र में तो विज्ञान ने जैसे क्रांति ही ला दी हो। दुनिया भर में पहले कृषि कार्य बैलों व मानव श्रम के माध्यम से ही होती थी। वहीं आज कृषि कार्यों के विभिन्न चरणों को सुलभ बनाने के लिए तमाम तरह के यंत्र उपलब्ध हैं। जिनसे कृषि कार्य न केवल सरल व सुलभ हुआ है। बल्कि उत्पादन का अधिशेष प्राप्त करना भी संभव हो पाया है। आज कृषि की बुआई से लेकर कटाई यहाँ तक कि उत्पादन के वहन तक के कार्यों में विज्ञान के उपकरणों का प्रयोग किया जा रहा है।

उद्योग के क्षेत्र में विज्ञान –

आज विभिन्न प्रकार के उद्योगों का कार्य पूर्ण व आंशिक रूप से वैज्ञानकि आविष्कारों के माध्यम से किया जा रहा है। आज इनमें विभिन्न प्रकार की मशीनों व उपकरणों का प्रयोग किया जा रहा है। जिससे पहले की अपेक्षा उत्पादन में भारी मात्रा में वृद्धि दर्ज की गई है।

दैनिक जीवन में विज्ञान की देन –

आज के दैनिक जीवन में प्रयोग किये जाने वाले बल्ब, फोन, मोटरसाइकिल, टीवी, फ्रिज, पंखा, कूलर, एसी से लेकर हर सामान्य व प्रमुख वस्तु विज्ञान की ही देन है। इन सभी के उपयोग से मानव जीवन बेहद सरल व सुलभ सा हो गया है। आज किसी भी चीज के लिए हमें महीनों या सालों तर इंतजार नहीं करना पड़ता। आज हम हर पल देश-दुनिया से जुड़ाव महसूस करते हैं। इन सभी के प्रयोग से समय व धन दोनों की बचत होती है।

विज्ञान : एक अभिशाप के रूप में

जहाँ एक ओर विज्ञान हमारे लिए वरदान साबित हुआ। वहीं दूसरी ओर इसके विध्वंसकारी आविष्कारों के कारण इसे अभिशाप भी माना जाता है। परमुणा हथियार इसके सबसे विध्वंशक व विनाशकारी आविष्कारों में में आते हैं। विज्ञान ने मनुष्य के हाथों में अपार शक्ति तो दे दी लेकिन उसके प्रयोग का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया। विज्ञान प्रदत्त इन शक्तियों का प्रयोग आज रचनात्मक कार्यों के साथ विनाशकारी कार्यों के लिए भी किया जा रहा है।

उपसंहार –

विज्ञान का वास्तविक उद्देश्य मानव हित व मानव कल्याण करना है। यदि विज्ञान अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति में सफल नहीं हुआ तो आवश्यकता है कि मानव इसका परित्याग कर दे।

अगर मैं प्रधानमंत्री होता

अगर मैं प्रधानमंत्री होता | Agar Mai Pradhanmantri Hota Essay in Hindi

  • गाली गलौज करने वालों को जेल भेजने का प्रावधान करता
  • हर किसी को मूलभूत सुविधा
  • कानूनों का सभी के लिए समान प्रवर्तन
  • महंगाई को खत्म
  • बेरोजगारी को समाप्त
  • महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान
  • महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि
  • जनता पर बोझिल टैक्स को समाप्त
  • जनता की मर्जी के विरुद्ध चालान समाप्त
  • लोकतंत्र को मजबूत
  • हर विभाग में हेल्पलाइन
  • जनता के हाथ में वास्तविक शक्ति
  • हिंसा को समाप्त
  • व्यक्ति के गुणों व योग्यता के आधार पर उसे लाभ
  • सभी को गुणवत्ता वाली मुफ्त शिक्षा
  • सभी को अच्छी चिकित्सा सुविधा
  • किसानों के शोषण को खत्म करता
  • लुटेरे बिचौलियों द्वारा अंधी लूट को समाप्त करता
  • पानी बर्बाद करने वालों पर चालान करता
  • शराबियों की लफंगई पर प्रतिबंध लगाता
  • हर विभाग में फीडबैक की व्यवस्था करता
  • धर्म और राजनीति का प्रथक्करण

गाली गलौज करने वालों को जेल भेजता –

यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो मेरा सबसे पहला काम यही होता। क्योंकि ये आज की महिलाओं की सबसे आम और अनदेखी समस्या है। ये ऐसी समस्या है जिस ओर यद्यपि कोई ध्यान नहीं दे रहा। तथापि इसको बढ़ावा दे रहा और स्वयं लिप्त हो रहा है। आज आप गली, नुक्कड़, सड़क, मोहल्ला, बाजार, बस, ट्रेन कहीं भी देख लो। न सिर्फ अनपढ़, न सिर्फ गरीब, न सिर्फ युवा बल्कि 7 साल के बालक से लेकर 70 साल के बुड्ढे तक और एक सड़कछाप आवारा लड़के, मजदूर सब्जी वाले से लेकर Well Educated परिवार के लोग तक बात-बात पर माँ-बहन की गंदी गालियाँ बकते हैं। इनको जरा भी शर्म नहीं कि पास में किसी की माँ/बहन/बेटी जा रही हो। उससे भी शर्म की बात है कि पूरे देश में न पुलिस, न प्रशासन, न कोई एनजीओ औऱ न ही कोई संगठन इस ओर ध्यान दे रहे हैं।

हर किसी को मूलभूत सुविधा

आज के देश में एक बहुत बड़ी आबादी को जीवन की मूलभूत सुविधाएं ही प्राप्त नहीं हैं। ऐसे में यह वर्ग अपना सारा जीवन दो वक्त की रोटी कमाने में ही बर्बाद कर देता है। इस प्रकार देश की एक बड़ी नागरिक जनसंख्या देश के विकास में योगदान देने से चूक जाती है।

कानूनों का सभी के लिए समान प्रवर्तन

‘कानून सभी के लिए समान है’ यह एक कहावत मात्र बनकर रह गई है। इसकी जमीनी हकीकत आज सभी के सामने है। आज कानूनों का उल्लंघन करके भी प्रभावशाली धनवान या राजनीतिक लोग कानून से बच जाते हैं। वहीं एक आम आदमी एक गलती करके भी सारे जीवन कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाता रहता है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो सभी के लिए समान कानून व्यवस्था को वास्तविक तौर पर लागू करता। जिससे देश का हर नगरिक ‘भारत का नागरिक होने पर गर्व करता’।

महंगाई को खत्म करता

महंगाई देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। लेकिन यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो इसे एक महीने में ही खत्म कर देता। कोई भी प्रधानमंत्री कर सकता है, अगर करना चाहे तो। बड़ा आसान काम है। यह महंगाई मानव निर्मित है। 800 साल पहले एक बिल्कुल अनपढ़ व्यक्ति यह कारनामा भारत में कर चुका है। बस मूल्य निर्धारण विधि लागू करके। महंगाई को लोग बढ़ती जनसंख्या से जोड़कर देखते हैं। लेकिन इसका जनसंख्या वृद्धि से नाममात्र का लेना देना है।

सामान्य भाषा में समझिये कि हर साल सिर्फ 2% जनसंख्या बढ़ती है। फिर भी आम वस्तुओं के दाम 2-3 साल में ही आसमान कैसे छूने लगते हैं। जब्कि देश का सबसे बड़ा उत्पादक (किसान) तो कभी किसी वस्तु के दाम इतने नहीं बढ़ाता। महंगाई को समाप्त करने के लिए सिर्फ एक कानून लाने की आवश्यकता है। जिसमें मात्र इतना सा प्रावधान हो कि कोई भी माल जिसकी कीमत 1 जनवरी 2023 को 100 रुपये है 31 दिसंबर 2023 तक उसी रेट में बेच सकता है। उसके अगले साल भी सिर्फ उसमें 5% तक ही कीमतों में वृद्धि कर सकता है। इस प्रकार बड़ी आसानी से महंगाई को कंट्रोल किया जा सकता है। लेकिन महंगाई को समाप्त नहीं किया जाता क्योंकि उससे आम जनता को छोड़कर सबको ही फायदा है।

बेरोजगारी को समाप्त करता

आज देश के शिक्षित युवाओं की यह सबसे बड़ी समस्या है। आज देश का नौजबान उच्च शिक्षा पाकर भी सड़कों की धूल छान रहा है। जीवन एक अहम दायरा वह नौकरी ढूंढने में ही बर्बाद कर देता है। सालों तक चक्कर काटने के बाद भी आज युवा एक एक नौकरी के लिए तरस रहा है। करोड़ों की आबादी वाले राज्यों का चुनाव कराकर एक महीनें में परिणाम घोषित कर दिये जाते हैं। लेकिन युवाओं को नौकरी के लिए सालों तक भटकना पड़ता है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो देश के सभी रिक्त पदों पर निश्चित समयावधि के अंदर भर्ती करता। यदि फिर भी युवा बेरोजगार रह जाते तो उनके लिए नए पदों का सृजन करता।

महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान देता

देश में महिला सुरक्षा के लिए तमाम कार्य किये गए हैं। लेकिन आज महिला सुरक्षा की वास्तविकता हम सभी के सामने है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो इस समस्या को ऐसे समाप्त करता कि मेरे कार्यकाल के बाद भी कोई महिलाओं की सुरक्षा में सेंधमारी नहीं कर पाता।

महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि करता

यूं तो आज हर क्षेत्र में महिलाएं प्रतिभाग कर रही हैं और देश का नाम रौशन कर रही हैं। लेकिन यह संख्या 0.001% से भी कम है। आज भी देश की इस आधी आवादी को समाज में पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है। यहाँ तक कि उसका जीवनसाथी चुनने तक का अधिकार उसे नहीं। आज भी देश में 90% से अधिक शादियाँ लड़की अपने पिता की पसंद से करती हैं। आज कोर्ट में तमाम वैवाहिक समले लंबित हैं। यह देश की आधी आबादी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से दूर ले जाने की सदियों पुरानी प्रथा है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो इस दिशा में नए परिवर्तन लाता।

जनता पर बोझिल टैक्स को समाप्त करता

आज देश की आम जनता टैक्स के बोझ के तले इस कदर दबी जा रही है कि सुबह उठने से लेकर रात सोने तब वह टैक्स भरती है। यह टैक्स शुरु होता है सुबह की चाय से भी पहले मंजन करने से ही शुरु हो जाता है। पेस्ट पर टैक्स, टूथ ब्रश पर टैक्स। फिर चाय बनाओ तो गैस पर टैक्स, लाइटर पर टैक्स, चायपत्ती पर टैक्स, चीनी पर टैक्स, दूध पर टैक्स, बिस्कुट पर टैक्स, नमकीन पर टैक्स। फिर नहाने जाओ तो साबुन पर टैक्स, डिटर्जेंट पर टैक्स, शैम्पू पर टैक्स। चप्पल पर टैक्स, पैंट-शर्ट पर टैक्स, जूतों पर टैक्स, कच्छे-बनयान तक पर टैक्स। इसके अतिरिक्त मोबाइल फोन, ईयरफोन, चार्जर, रिचार्ज, सिमकार्ड, रेल किराया, बस किराया, पानी की बोतल पर टैक्स। दिन रात जनता इस भयंकर टैक्स के चक्रव्यूह में ऐसे पिस रही है कि घर चलाना मुश्किल पड़ रहा है। यह मैं प्रधानमंत्री होता तो जनता को इस दोहरे टैक्स से मुक्ति कर देता।

जनता की मर्जी के विरुद्ध चालान समाप्त कर देता

आज कर देश का हर नागरिक अपनी गाड़ी का चालान कटवाने से डरता है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो आम जनता से ये चालान बसूलना बंद करा देता। यदि मुझे वास्तव में जनता की सुरक्षा की फिक्र होती तो मैं देश की सड़कों को गड्ढामुक्त करने का प्रयास करता। क्योंकि आज भी सड़क दुर्घटना में जितनी मौतें होती हैं उनका कारण खराब सड़कें हैं। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो यह कार्य अवश्य करता।

लोकतंत्र को मजबूत करता

लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था जिसमें राज्य की समस्त शक्ति का अंतिम केंद्र जनता (We The People of India) है। लेकिन इसके उलट सबसे बुरी स्थिति में आज देश की आम जनता ही है। यह हर साल आने वाली World Happiness Index से सिद्ध होता है। हम आबादी में तो विश्व में दूसरे स्थान पर हैं लेकिन खुशहानी में बद से बद्तर स्थिति में हैं। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो वास्तविक शक्ति जनता में सुदृढ़ करता। जिससे लोकतंत्र रूपी व्यवस्था सदियों तक सुदृढ़ रह सकती। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो यह कार्य अवश्य करता।

हर विभाग में हेल्पलाइन जारी करता

आज देश के तमाम विभागों के अधिकारियों के जनता चक्कर काट काट कर परेशान होती है। जिसका जो कार्य है उसी के लिए उसे रिश्वत देनी पड़ती है। जिसकी शिकायत दायर करने वाले तक उसी रिश्वत में पहले से हिस्सा लिये बैठे होते हैं। ऐसी स्थित में शोषित नागरिक कहाँ जाए। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो ऐसे सभी विभागों की शिकायत के लिए एक स्पेशल हेल्पलाइन नम्बर जारी करता। जिसमें निश्चित समयावधि में लोगों की समस्या का निस्तारण कर सकता।

जनता के हाथ में वास्तविक शक्ति देता

संविधान के अनुसार लोकतंत्र में शक्ति का अंतिम स्त्रोत जनता है। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल उलट है। आज लोकतंत्र का मजाक बनकर रह गया है। जो जनप्रतिनिधि जनता की सेवा का प्रण लेते हैं। वही आगे चलकर जनता का शोषण करते हैं। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो यह कार्य अवश्य करता।

हिंसा को समाप्त करता –

सभ्य व शिक्षित समाज में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। लेकिन आज जरा-जरा सी बात पर लोग हाथापाई पर उतर आते हैं। आये दिन सड़क दुर्घटनाओं में यह आम बात है। जिस कारण हर साल बहुत से केस दर्ज किये जाते हैं। इस पर प्रतिबंध लगाना अति आवश्यक है। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो यह कार्य अवश्य करता।

व्यक्ति के गुणों व योग्यता के आधार पर उसे लाभ पहुँचाता

आज किसी भी सरकार सेवा में सिर्फ डिग्री देखी जाती है। इसके सिवाय पैसा खिलाकर जालसाजी करके भी लोग नौकरियां पा रहे हैं। इसके स्थान पर मानव मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। इसी कारण आज हर विभाग में भ्रष्टाचार भढ़ता जा रहा है।

सभी को गुणवत्ता वाली मुफ्त शिक्षा प्रदान करता –

आज गुणवत्ता वाली शिक्षा के क्षेत्र में भारत दुनिया के अन्य देशों से बहुत पिछड़ा हुआ है। आज भी देश में साक्षरत दर 74 प्रतिशत है। मतलब अभी तर भारत में 26 प्रतिशत अशिक्षित हैं। भारत की आजादी के 74 वर्ष बाद भी यह आंकड़ा 74 प्रतिशत पर ही पहुँच पाया। यह 74 प्रतिशत भी सिर्फ शिक्षित हैं। क्योंकि अभी देश में सिर्फ साक्षरता दर 100 प्रतिशत पाने की ही कोशिश की जा रही है। उसके बाद कहीं यहाँ शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाएगा। अभी तो सिर्फ शिक्षित करने पर ही ध्यान है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो अपने कार्यकाल से पूर्व ही मैं देश में यह आंकड़ा 100 प्रतिशत पा लेता। उसके बाद गुणवत्ता वाली शिक्षा की ओर प्रयास करता।

सभी को गुणवत्ता वाली चिकित्सा –

आज के समय में देश अधिकांश अस्पताल कारोबार का अड्डा मात्र बन चुके हैं। जिसका प्रभाव सरकारी अस्पतालों पर पड़ता है। आज देश का एक आम आदमी अच्छे अस्पतालों में अपना इलाज नहीं करा सकता। यदि कोई गरीब ज्यादा सीरियस है तो भी वह महंगे अस्पतालों में नहीं जा सकता। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो देश में सभी के लिए मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था का प्रावधान करता।

किसानों के शोषण को खत्म करता

देश का सबसे बड़ा उत्पादक वर्ग कृषक आज विकास के पायदान पर सबसे नीचे है। आज किसानों का बीज खरीदने से लेकर उसकी फसल खरीदने वाले तक सभी शोषण कर रहे हैं। किसान महंगे दामों पर बीज, खाद, कीटनाशक, डीजल, कृषि यंत्र खरीदता है। उसके बाद फसल तैयार होने पर फसल की कीमत के लिए भी इंतजार करता रहता है।

लुटेरे बिचौलियों की अंधी लूट को समाप्त करता

किसान दिन रात खेतों में काम करता है तब जाकर वह 5 रुपये किलो आलू बेच पाता है। वही आलू मंडी में बैठा मोटा दलाल 10 रुपये किलो बेचता है। बाद में ठेले वाला वही आलू 15 रुपये में आम आदमी को बेचता है। इन सभी के ऊपर उसी 5 रुपये वाले आलू का चिप्स बनाकर ये कंपनियाँ 250-300 रुपये किलो बेचती हैं। यह तो एक फसल का उदाहरण था। इसी प्रकार किसान के हर उत्पाद को सस्ते में खरीद कर दलाल और बिचौलिये उनका शोषण कर रहे हैं। यदि मैं प्रधानमंत्री होता इस व्यवस्था में मूल्य निर्धारण विधि लागू करके किसानों के शोषण को समाप्त करता।

पानी बर्बाद करने वालों पर चालान करता

‘जल ही जीवन है’ लेकिन देश में यह सब ड्रामा सिर्फ विश्व जल दिवस जैसै कार्यक्रमों में ही गाया जाता है। बाकी आप हर रोज देख लो लोग कितना पानी बर्बाद करते हैं। अनपढ़ से लेकर उच्च शिक्षित लोगों तक को आप हर रोज कहीं सड़क पर बानी बहाते तो कभी गाड़ी साफ करने के नाम पर पानी बर्बाद करते देखेंगे। जब्कि सबको पता है कि पीने योग्य पानी पृथ्वी के कुल जल का 1 प्रतिशत से भी कम उपलब्ध है।

शराबियों की लफंगई पर प्रतिबंध लगाता

शराब की दुकानों के बाहर ही लोग शराब गटक लेते हैं। यहाँ शराबियों की भीड़ हमेशा ही लगी रहती है। ऐसे रास्तों से महिलाओं को गुजरने में भी डर लगता है। यह मैं प्रधानमंत्री होता तो यह नियम बनाता कि कोई भी व्यक्ति घर या आवास के बाहर शराब पीकर लफंगई नहीं करेगा।

हर विभाग में फीडबैक की व्यवस्था करता

आज-कल देखा गया है कि एक बार पद मिल जाये फिल 60 साल तक देश लूटने का जैसे सर्टिफिकेट मिल गया। आज बहुत से अधिकारी अपने अधिकारों का गलत फायदा उठा रहे हैं। उन पर किसी प्रकार का जनता का कोई अंकुश नहीं है। वे आम जनता का शोषण करते हैं। क्योंकि उनकी सेवा की जनता से किसी प्रकार की फीडबैक का कोई प्रावधान नहीं है। जिससे पता चल सके कि उक्त अधिकारी का जनता से कैसा रवैया है। इसलिए यह आवश्यक है कि हर विभाग और हर अधिकारी के कार्यक्षेत्र से संबंधित जनता से उसके बारे में फीडबैक ली जाए। ये जनता तय करे कि कौनसा अधिकारी उस क्षेत्र में निष्पक्षता से सेवा देने में सक्षम है।

धर्म और राजनीति का प्रथक्करण –

आज कर के नेताओं ने धर्म को राजनीति की कुर्सी पाने का धंधा बना लिया है। पहल लेते हैं खादी का कुर्ता और काम करते हैं धर्म के ठेकेदारों का। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि राजनीति से धर्म को पृथक किया जाए। यह तय कर दिया जाए कि आप नेता बनेंगे या किसी धर्म के ठेकेदार। या तो पार्लियामेंट को चुनें या मंदिर/मस्जिद/गिरिजाघर/गुरुद्वारा चुनें। यदि आप नेता बनते हैं तो किसी भी धर्म के बारे में एक शब्द न बोलें। सिर्फ विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ें।

हाँ आपको व्यक्तिगत तौर पर अपना धर्म निभाने की पूर्ण स्वतंत्रता होगी। जिसके लिए आप अपने घर पर जिनता अधिक समय चाहें धर्म का पालन कर सकते हैं (Off Camera)। उसी प्रकार धर्म का चोगा पहन कर राजनीतिक रोटियां सेकने वाले धंधेबाजों पर फिर प्रतिबंध लगाऊंगा। यह आप वास्तविक धर्म का पालन करना चाहतें हैं। तो सिर्फ धार्मिक कार्य करें और दक्षिणा पर जीवन यापन करें। किसी भी प्रकार की राजनीति से दूर रहें। हाँ आपको आपके व्यक्तिगत राजनीकित अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा। लेकिन चोगा धर्म का पहलकर उसे राजनीति का धंधा बनाने पर तो प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो यह कार्य अवश्य करता।

– नीरज वर्मा, नई दिल्ली

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