जयशंकरप्रसाद का जीवन परिचय

जयशंकरप्रसाद का जीवन परिचय (Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay) : छायावादी युग के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद जी का जन्म 1890 ई. में काशी के गोवर्धन सराय मुहल्ले में एक संपन्न वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पूर्वज कानपुर या जौनपुर के निवासी थे। लेकिन गाजीपुर के सैदपुर गाँव में आकर बस गए थे। वहाँ उनका व्यापार चीनी का था। जब चीनी के व्यापार में घाटा हुआ तो इनके पूर्वज जगन साहू सैदपुर छोड़कर काशी चले आए।

इनके बचपन में ही इनके बड़े भाई और पिता की मृत्यु हो गई। अल्पावस्था में ही इन्हें घर का सारा भार वहन करना पड़ा। 20 वर्ष की अवस्था मे इनका विवाह हुआ। लेकिन 10 वर्ष बाद ही इनकी पत्नी का देहांत हो गया। फिन इन्होंने दूसरा विवाह किया। जब इनकी पत्नी को संतान होने को थी तब प्रसूति काल में माँ और बच्चे दोनों की मृत्यु हो गई। तीन साल बाद देवरिया में इन्होंने तीसरा विवाह किया। जिनसे रत्नशंकर पैदा हुए। इन्होंने विश्वविद्यालयी शिक्षा छोड़ दी। इसके बाद इन्होंने घर पर ही हिन्दी, अंग्रेजी, बांग्ला, संस्कृत आदि भाषाओं का अध्ययन किया। प्रसाद जी का सारा जीवन घर का कर्जा चुकाने में बीत गया। जीवन के अंत समय में इन्हें टी.बी. रोग हो गया। इससे पीड़ित 15 नवंबर 1937 ई. को इनकी मृत्यु हो गई।

साहित्यिक परिचय –

द्विवेदी युग से अपनी काव्य रचनाओं का प्रारंभ करने वाले जयशंकरप्रसाद जी को छायावादी काव्य का जन्मदाता और छायावादी युग का प्रवर्तक कहा जाता है। इन्हें छायावादी युग का सर्वश्रेष्ठ कवि कहा जाता है। प्रसाद जी के काव्य की प्रमुख विशेषता अन्तर्मुखी कल्पना और सूक्ष्म अनुभूतियों की अभिव्यक्ति थी। प्रेम और सौंदर्य प्रसाद जी के काव्य का प्रमुख विषय रहा है। ये आधुनिक हिंदी काव्य के सर्वप्रथम कवि थे। इन्होंने अपनी कविताओं में सूक्ष्म अनुभूतियों का रहस्यवादी चित्रण प्रारंभ किया और हिंदी काव्य जगत में एक नई क्रांति उत्पन्न कर दी। इनकी इसी क्रांति ने हिंदी जगत में एक नए युग का सूत्रपात किया। जिसे छायावादी युग के नाम से जाना जाता है।

जयशंकरप्रसाद की रचनाएं –

प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति थे। इन्होंने 67 रचनाएं प्रस्तुत कीं। प्रसाद जी की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं –

कामायनी –

प्रसाद की की प्रमुख रचना कामायनी एक महाकाव्य है। जो कि छायावादी काव्य का कीर्त स्तंभ है। प्रसाद जी ने इस महाकाव्य में मनु व श्रद्धा के माध्यम से मानव को हृदय (श्रद्धा) और बुद्धि (इड़ा) के समन्वय का संदेश दिया।

आँसू –

यह वियोग रस पर आधारित काव्य है। इसके एक-एक छन्द में दुःख और पीड़ा साकार हो उठती है।

लहर –

यह जयशंकरप्रसाद की भावात्मक कविताओं का संग्रह है।

झरना –

यह प्रसाद जी की छायावादी कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह में सौंदर्य और प्रेम की अनुभूतियों का मनोहारी रूप में वर्णन किया गया है।

चित्राधार –

यह प्रसाद जी का ब्रजभाषा में रचित काव्य संग्रह है।

जयशंकर प्रसाद के नाटक –

  • अजातशत्रु
  • चंद्रगुप्त
  • स्कन्दगुप्त
  • ध्रुवस्वामिनी
  • कामना
  • एक घूंट
  • जनमेजय का नागयज्ञ
  • राजश्री
  • प्रायश्चित
  • कल्याणी
  • विशाख
  • उर्वशी (चंपू)
  • सज्जन
  • करुणालय

उपन्यास –

  • कंकाल
  • तितली
  • इरावती (अपूर्ण रचना)

निबन्ध –

  • काव्य और कला

कहानी संग्रह –

  • इंद्रजाल
  • आँधी
  • छाया
  • आकाशदीप
  • प्रतिध्वनि

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Suryakant Tripathi Nirala) : मुक्त छन्द के प्रवर्तक एवं छायावादी कविता के मुख्य आधार स्तंभ माने जाने वाले निराला जी का जन्म 1897 ई. में  बंगाल के मेदिनीपुर मे हुआ था। इनके पिता का नाम प. रामसहाय त्रिपाठी था, जो महिषादल राज्य कोष के संरक्षक थे। इन्हें बचपन से ही घुड़सवारी, कुश्ती व खेती करने का शौक था।

इनके बचपन में ही इनके माता पिता का देहांत हो गया। दो संतान उत्पत्ति के बाद इनकी पत्नी का भी देहांत हो गया। इनका पारिवारिक जीवन अत्यंत कष्टमय रहा। अपने उदार स्वभाव के कारण इन्हें बार-बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। आर्थिक अभावों के बीच ही इनकी पुत्री सरोज का देहांद हो गया। इसी घटना से व्यथित होकर इन्होंने ‘सरोज-स्मृति’ नामक कविता लिखी। निराला जी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद जी से अत्यंत प्रभावित थे। इनमें छायावादी, रहस्यवादी औऱ प्रगतिवादी विचारधाराओं का समन्वय पाया गया। 15 अक्टूबर 1961 को सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का देहांत हो गया।

‘निराला’ का साहित्यिक परिचय –

हिंदी साहित्य में कबीरदास जी के बाद किसी फक्कड़ व निर्भीक कवि का जन्म हुआ तो वे थे निराला जी। निराला जी के अंदर कबीर जैसी निर्भीकता, सूफियों सा सादापन, सूर-तुलसी की प्रतिभा और प्रसाद जी की सौंदर्य चेतना थी। ये एक ऐसे विद्रोही कवि थे। इन्होंने अपने युग की काव्य परंपरा के प्रति प्रबल विद्रोह का भाव लेकर काव्य रचना की। जिसके कारण इन्हें तात्कालिक कवियों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। जिन्होंने अपनी निर्भीकता से रुढ़ियों को तोड़ डाला। इन्होंने काव्य के क्षेत्र में अपने नवीन प्रयोगों से युगान्तरकारी परिवर्तन हुए। इन्हें हिन्दी और बांग्ला का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने संस्कृत व हिन्दी साहित्य का भी अध्ययन किया। भारतीय दर्शन में इनकी पर्याप्त रुचि थी। इन्होंने हिन्दी में मुक्त छन्दों की शुरुआत की।

सम्पादन कार्य

निराला जी ने ‘समन्वय’ और ‘मतवाला’ पत्रिकाओं का संपादन किया। समन्वय का प्रकाशन रामकृष्ण मिशन, कलकत्ता द्वारा किया जाता था। इसके बाद इनका परिचय महावीर प्रसाद द्विवेदी जी से हुआ। जिनके सहयोग से इन्होंने ‘मतवाला’ नामक पत्रिका का संपादन किया। इसके तीन साल बाद इन्होंने लखनऊ से संपादित होने वाली ‘गंगा पुस्तक माला’ का संपादन किया। इसके अतिरिक्त इन्होंने सुधा नामक पत्रिका का भी संपादकीय लिखना प्रारंभ किया। बाद में ये लखनऊ छोड़कर इलाहाबाद चले गए। इन्होंने अपना शेष जीवन इलाहाबाद में ही काव्य साधना करते हुए व्यतीत किया।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएं –

निराला जी बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा से संपन्न थे। इन्होंने कविता, उपन्यास, निबन्ध, कहानी, आलोचना, और संस्मरण लिखे। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं –

अनामिका –

अनामिका में संग्रहीत रचनाएं निराला जी के कलात्मक स्वभाव की परिचायक हैं।

परिमल –

इस रचना में अन्याय व शोषण के प्रति तीव्र विद्रोह और निम्न वर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति प्रकट की गई है।

गीतिका –

श्रंगार की मूल भावना के साथ रचित गीतिका के बहुत से गीतों में मधुरता के साथ अत्मनिवेदन के भाव को भी व्यक्त किया है। इसके अतिरिक्त इस रचना में प्रकृति वर्णन और देशप्रेम की भावना का भी चित्रण किया गया है।

राम की शक्ति पूजा –

इसमें कवि का ओज, पौरुष व छन्द-सौष्ठव प्रकट होता है।

सरोज स्मृति –

यह हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ शोक गीत है। जिसकी रचना निराला जी ने अपनी पुत्री सरोज के निधन पर की थी। जिसकी मृत्य हो गई थी।

निराली जी की अन्य रचनाएं –

  • अर्चना
  • आराधना
  • कुकुरमुत्ता
  • अपरा
  • अणिमा
  • नए पत्ते
  • बेला

गद्य रचनाएं –

  • लिली
  • अप्सरा
  • चतुरी चमार
  • अलका
  • प्रभावती
  • निरुपमा
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