सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय (Agyeya ka Jeevan Parichay) : प्रयोगवादी विचारधारा के प्रवर्तक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जन्म मार्च 1911 ई. में हुआ था। इनके पिता भी विद्वान थे। अज्ञेय जी का बचपन अपने पिता के साथ कश्मीर, बिहार और मद्रास में व्यतीत हुआ। इन्होंने अपनी शिक्षा मद्रास व लाहौर में प्राप्त की। इन्होंने बी.एस.सी. पास करने के बाद अंग्रेजी से एम.ए. किया। इसी दौरान क्रांतिकारी आंदोलन में सहयोगी होने के कारण ये फरार हो गए। 1930 ई. में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। ये 4 साल जेल में और 2 साल बाद नजरबन्द रहे। इन्होंने किसान आंदोलन में भी हिस्सा लिया। इन्होंने कुछ वर्ष आकाशवाणी में कार्य किया। 1943 से 1946 के बीच ये सेना में भी रहे। अज्ञेय जी ने अपने जीवन काल में कई बार विदेश की यात्रा की। 4 अप्रैल 1987 ई. में अज्ञेय जी का निधन हो गया।

सम्पादक के रूप में –

अज्ञेय जी ने सैनिक, विशाल भारत, नया प्रतीक, साप्ताहिक दिनमान, और अंग्रेजी त्रैमासिक ‘वाक्’ का सम्पादन किया। 1943 ई. में इन्होंने ‘तार सप्तक’ नामक एक काव्य संग्रह का सम्पादन व प्रकाशन किया। यह सात कवियों की रचनाओं का संकलन था। यह काव्य संकलन तात्कालिक काव्य परंपराओं के विपरीत एक नवीन रुप में सामने आया। इनके अतिरिक्त अज्ञेय जी ने अन्य ग्रंथों का भी सम्पादन किया। जैसे – आधुनिक हिन्दी साहित्य (निबन्ध संग्रह), नए एकांकी आदि।

साहित्यिक व्यक्तित्व –

अज्ञेय जी किशोरावस्था से ही काव्य रचना और साहित्य में रुचि लेने लगे। परम्परागत मान्यताओं का परित्याग करने के लिए इनकी आलोचना की गई। साथ ही इनपर पाश्चात्य काव्य-शिल्प की नकल का भी आरोप लगाया गया। लेकिन इन्होंने अपना प्रयोग जारी रखा। इनके द्वारा शुरु किया गया यह नया प्रयोग, प्रयोगवादी काव्य के नाम से जाना गया। जो कि आज ‘नई कविता’ की एक सशक्त काव्यधारा के रूप में परिवर्तित हो चुका है।

अज्ञेय की रचनाएं –

सच्चिदानन्द अज्ञेय जी ने गद्य व पद्य दोनों क्षेत्रों में रचनाएं कींं। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं –

काव्य रचनाएं –

  • किनती नावों में कितनी बार
  • चिन्ता
  • पूर्वा
  • सुनहले शैवाल
  • भग्नदूत
  • पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ
  • आँगन के पार द्वार
  • हरी घास का क्षणभर
  • बावरा अहेरी
  • इंद्रधनुष रौंदे हुए ये
  • अरी ओ करुणा प्रभामय
  • इत्यलम्
  • Prison Days and other Poems

उपन्यास –

  • शेखर : एक जीवनी
  • नदी के द्वीप

कहानी संग्रह –

शरणार्थी, परम्परा, कोठरी की बात, जयदोल, विपथगा।

भ्रमण वृत्तांत –

अरे, यायावर रहेगा याद।

रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी

रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी ( Ramdhari Singh Dinkar ki Jivani ) : भारत के महान कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 1908 ई. में सिमरिया, बेगूसराय (बिहार) में हुआ था। इनके पिता अत्यंत साधारण किसान थे। जब दिनकर मात्र 2 पर्ष के थे तभी इनके पिता का देहांत हो गया। इनकी शिक्षा का प्रबंध इनकी माता ने किया। इन्होंने पटना विश्वविद्यालय से 1932 ई. में बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद इन्होंने एक माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य के रूप में कार्य किया। बाद में इन्होंने भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार के रूप में भी कार्य किया। ये भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। ये राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे। 24 अप्रैल 1974 को रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु हो गई। भारत सरका ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।

साहित्यिक व्यक्तित्व –

दिनकर जी की गणना आधुनिक युग के  सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाती है। अपनी राष्ट्रीय भाव की रचनाओं के माध्यम से जन मानस में चेतना लाने वाले राष्ट्रकवि दिनकर जी अपने युग के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। इन्हें प्रगतिवादी कवियों में भी सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। इनकी काव्यात्मक प्रतिभा ने इन्हें अपार लोकप्रियता दिलाई। इन्होंने प्रेम, सौंदर्स, राष्ट्र-प्रेम, लोक-कल्याण जैसे अनेक विषयों पर रचनाएं कीं। लेकिन इनकी राष्ट्र प्रेम पर की गई कविताओं ने जन मानस को सर्वाधिक प्रभावित किया। इन्हें क्रांतिकारी कवि के रूप में जाना जाता है। हाई स्कूल पास करने के बाद ही इनकी ‘प्राण भंग’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई।

रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएं –

ये मूल रूप से सामाजिक चेतना के कवि के रूप में विख्यात हैं। उनकी प्रत्येक रचना में उनके व्यक्तित्व की छाप नजर आती है। दिनकर की प्रमुख रचनाएं –

कुरुक्षेत्र –

दिनकर जी की रचना कुरुक्षेत्र में महाभारत के शांति पर्व के कथानक को आधार बनाकर वर्तमान परिस्थितयों का चित्रण किया गया है।

उर्वशी, रश्मिरथी –

ये दोनों काव्य कृतियां विचार-तत्व प्रधान कृति हैं। ये दिनकर जी के प्रसिद्ध प्रबन्ध-काव्य हैं। उर्वशी की रचना पर इन्हें 1 लाख रुपये के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

रेणुका –

यह कृति अतीत के गौरव के प्रति कवि के आदर भाव और वर्तमान की नीरसता से दुखी मन की वेदना का परिचय देती है। इनकी इसी रचना से इन्हें राष्ट्रकवि के रूप में प्रसिद्धि मिली।

हुंकार –

हुंकार में दिनकर जी ने वर्तमान दशा के प्रति आक्रोश व्यक्त किया है।

रसवन्ती –

अपनी इस रचना में दिनकर जी ने सौंदर्य का काव्यमय वर्णन किया है।

सामधेनी –

इस रचना में सामाजिक चेतना, स्वदेश-प्रेम और विश्व-वेदना से संबंधित कविताओं का संग्रह है।

संस्कृत के चार अध्याय –

दिनकर जी की गद्य रचनाओं में यह उनका विराट् ग्रंथ है। इसेक अतिरिक्त दिनकर जी ने कई समीक्षात्मक ग्रंथों की भी रचना की।

अर्द्धनारीश्वर, उजली आग, रेती के फूल इनकी अन्य गद्य रचनाएं हैं।

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