भूकंप (EarthQuake)

‘भूकंप (EarthQuake)’ पृथ्वी के भू-पटल पर होने वाला आकस्मिक कम्पन है।

भूकंप आने के कारण –

भूकम्प आने का कारण प्राकृतिक व मानवजनित दोनों ही हो सकता है। इसके प्राकृतिक कारणों में ज्वालामुखी विस्फोट, प्लेट विवर्तनिक स्थिरता, वलन व भ्रंश प्लूटोनिक घटनाएं। इसके अतिरिक्त भूगर्भिक गैसों का फैलाव भी इसका कारण हो सकता है। इसके मानवजनित कारणों में सड़कों, बांधों, विशाल जलाशयों का निर्माण। इसके अतिरिक्त परमाणु परीक्षणों के बाद भी भूकंप के झटके महसूस किये जा सकते हैं।

भूकंप आने के संकेत –

भूकंप आने से पहले वातावरण में रेडॉन गैस की मात्रा बढ़ जाती है। किसी स्थान या क्षेत्र विशेष में इस तरह वातावरण में रेडॉन का बढ़ना भूकंप आने की संभावना को व्यक्त करता है। जहाँ से भूकंप तरंगें उत्पन्न होती हैं, उसे भूकंप मूल (Focus) कहा जाता है। जिस जगह भूकंप तरंगों को सर्वप्रथम महसूस किया जाता है उसे भूकंप केंद्र (Epi Centre) कहा जाता है।

भूकंपीय तरंगें –

भूकम्प के दौरान कई प्रकार की भूकंपीय तरंगें उत्पन्न होती हैं। इन भूकंपीय तरंगों की तीन भागों में बांटा गया है।

प्राथमिक तरंगें (Primary or Longitudinal Waves) –

प्राइमरी तरंगों को ‘P तरंगें‘ भी कहा जाता है। तीनों भूकंपीय तरंगों में इनकी गति सर्वाधिक होती है। ये अनुदैर्ध्य तरंगें हैं जिनका संचरण ध्वनि तरंगों की भांति होता है। ये ठोस और तरल दोनो ही माध्यमों में संचरण कर सकती हैं। परंतु ठोस की तुलना में तरल माध्यम में इनकी गति मंद हो जाती है।

अनुप्रस्थ या गौण तरंगें (Secondary or Transverse Waves) –

सेकेंडरी तरंगों को ‘S तरंगों‘ के नाम से भी जाना जाता है। ये प्रकाश तरंगों की भांति संचरण करती हैं। ये सिर्फ ठोस माध्यम में ही संचरण कर सकती हैं। तरल माध्यम में इन तरंगों का लोप हो जाता है।

धरातलीय तरंगें (Surface or Long Period Waves) –

लांग पीरियड तरंगों को ‘L तरंगों‘ के नाम से भी जाना जाता है। ये पृथ्वी की ऊपरी सतह पर ही संचरण करती हैं। इनकी गति सबसे मंद होती है। ये तरंगें सबसे देर में पहुंचती हैं। परंतु इनका प्रभाव अन्य सभी भूकंपीय तरंगों से अधिक विनाशकारी होता है। ये सर्वाधिक प्रभावशाली तरंगें हैं। ये सबसे लम्बा मार्ग तय करती हैं।

भूकंपलेखी (Seismograph) –

भूकंप की तीव्रता सीस्मोग्राफ से मापी जाती है। भूकंप लेखी के कुल तीन स्केल होते हैं।

रॉसी-रेफल स्केल – इसमें 1 से 11 तक मापक होते हैं।

मरकेली स्केल – इसमें कुल 12 मापक तय किये गए हैं।

रिएक्टर स्केल –

इसका अविष्कार साल 1934 ई. में चार्ल्स एफ. रिएक्टर ने किया था।

भूकंप की तीव्रता मापने का यह एक गणितीय स्केल है। इसमें 0 से 9 तक के अंक दिए गए हैं।

इसकी प्रत्येक अगली इकाई पिछली इकाई से 10 गुना अधिक प्रभावशाली होती है।

अर्थात रिएक्टर स्केल पर 5 तीव्रता का भूकंप 4 तीव्रता के भूकंप से 10 गुना अधिक प्रभावशाली होगा।

समभूकंपीय रेखा –

समान भूकंपीय तीव्रता को मिलाने वाली रेखाओं को समभूकंपीय रेखा कहा जाता है।

इन्हें भूकंप समाघात रेखा या Isoseismal  Lines के नाम से भी जाना जाता है।

भूकंपो का विश्व वितरण –

विश्व में आने वाले भूकंपों में करीब 66 प्रतिशत भूकंप प्रशांत महासागरीय तटीय पेटी में ही आते हैं।

इस क्षेत्र के अंतर्गत जापान, फिलिपींस, न्यूजीलैंड, चिली, कैलिफोर्निया, अलास्का इत्यादि क्षेत्र आते हैं।

– भूकंप (EarthQuake) लेख समाप्त।

ज्वालामुखी (Volcano)

‘ज्वालामुखी (Volcano)’ पृथ्वी की ऊपरी सतह पर होने वाला वह छिद्र है जिसमें से लावा, जलवाष्प, राख, व गैसें निकलती हैं। इसे Volcano व आग्नेयगिरि के नाम से भी जाना जाता है। सिल, डाइक, लैकोलिथ, फैकोलिथ, बैथोलिथ, लोपोलिथ, स्टॉक, शीट ज्वालामुखी उद्गार से बनने वाली प्रमुख आक्रतियां हैं। पीलियन तुल्य ज्वालामुखी सर्वाधिक विनाशकारी होते हैं।

ज्वालामुखी क्रिया –

पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा व गैस के उत्पन्न होने से लेकर उसके उद्गार होने, फैलने व शीतल होने तक की समस्त प्रक्रिया शामिल हैं। ज्वालामुखी उद्गार के समय सर्वाधिक मात्रा में निकलने वाली गैस जलवाष्प है।

ज्वालामुखी उद्गार में निकलने वाली गैसें –

  • जलवाष्प
  • कार्बन डाईऑक्साइड
  • सल्फर डाईऑक्साइड
  • हाइड्रोजन सल्फाइड
  • हाइड्रोजन
  • कार्बन मोनोऑक्साइड
  • हाइड्रोजन क्लोराइड
  • हाइड्रोजन फ्लोराइड
  • हीलियम

मैग्मा व लावा –

ज्वालामुखी उद्गार के समय भूमि के आंतरिक भाग में अवस्थित तरल पदार्थ को मैग्मा कहते हैं। उद्गार के माध्यम से जब यह पृथ्वी की सतह पर फैल जाता है तब यह लावा कहलाता है। ताजा निकले हुए लावा का तापमान 600-1200 डिग्री सेल्सियस होता है। धरातल पर ठंडा होने के बाद यह आग्नेय चट्टान का रूप लेता है। सिलिका के आधार पर लावा दो प्रकार (बेसिक व अम्लीय) का होता है। सिलिका की अधिक मात्रा के कारण मैग्मा अधिक चिपचिपा व अम्लीय होता है।

सक्रियता के आधार पर –

सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं। सक्रिय (Active) ज्वालामुखी, मृत/शांत (Extinct) ज्वालामुखी, व सुषुप्त (Dormant) ज्वालामुखी।

सक्रिय ज्वालामुखी –

ऐसे ज्वालामुखी जिनमें उद्गार सदैव होता रहता है वे सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते हैं। वर्तमान समय में पृथ्वी पर ऐसे सैकड़ों ज्वालामुखी हैं जिनमें सदैव उद्गार होता रहता है। स्ट्रांबोली (भूमध्यसागर का प्रकाश स्तंभ) ज्वालामुखी लिपारी द्वीप पर अवस्थित है। कोटोपैक्सी (इक्वाडोर) विश्व का सबसे ऊँचा सक्रिय ज्वालामुखी है। माउंट एलब्रुस अंटार्कटिका महाद्वीप का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। भारत में अंडमान-निकोबार के बैरेन द्वीप पर सक्रिय ज्वालामुखी अवस्थित है। विसुवियम (नेपल्स) भी इटली में अवस्थित सक्रिय ज्वालामुखी है।

सुषुप्त ज्वालामुखी –

वे ज्वालामुखी जिनमें सालों से उद्गार नहीं हुआ। परंतु इनमें कभी भी उद्गार हो सकता है। विसुवियस (इटली), क्राकाताओ (इंडोनेशिया), फ्यूजीयामा (जापान), नारकोंडम द्वीप (अंडमान-निकोबार) सुषुप्त ज्वालामुखी के प्रमुख उदाहरण हैं।

शांत या मृत ज्वालामुखी –

ये वे ज्वालामुखी हैं जिनमें सालों से कोई उद्गार नहीं हुआ और न ही निकट भविष्य में उद्गार की कोई संभावना है।

किलिमंजारो (तंजानिया), चिम्बाराजो (इक्वाडोर) पोपा (म्यांमार), देमबन्द (म्यांमार), कोहसुल्तान (ईरान), एकांकागुआ (एंडीज पर्वत) इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

विश्व के प्रमुख ज्वालामुखी

विश्व के कुछ प्रमुख ज्वालामुखी निम्नलिखित हैं –

किलायु-

कुलायू संसार का सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखी है। यह अमेरिका के हवाई द्वीप पर स्थित है।

माउंट एटना –

यह एक सक्रिय ज्वालामुखी है। यह इटली के सिसली द्वीप के पूर्वी तट पर 1190 वर्गकिमी. क्षेत्र पर अवस्थित है। इसकी सर्वोच्च ऊँचाई 3350 मीटर है।

स्ट्रांबोली –

यह भूमध्यसागर में सिसली द्वीप के उत्तर में लिपारी द्वीप पर अवस्थित है। यह एक सक्रिय ज्वालामुखी है। इससे सदैव प्रज्जवलित गैसें निकलती रहती हैं। इससे आस-पास का क्षेत्र सदैव प्रकाशमान रहता है। इसी कारण इसे ‘भूमध्यसागर का प्रकाश स्तंभ’ कहा जाता है।

मौना लोआ –

मौना लोआ एक सक्रिय ज्वालामुखी है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के हवाई द्वीप के लगभग आधे हिस्से पर विस्तृत है।

इसका पहला उद्गार साल 1843 ई. में हुआ। इसकी लम्बाई 120 किलोमीटर है।

माउंट सेंट हेलेंस –

माउंट सेंट हेलेंस एक ज्वालामुखी पर्वत है। इसे ‘द् फ्यूजी ऑफ अमेरिका’ के नाम से भी जाना जाता है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के स्केमानिया काउंटी में अवस्थित है। इसका नामकरण एलीन फिट्जरबर्ट (ब्रिटिश) ने किया।

– ज्वालामुखी (Volcano) लेख समाप्त।

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