अगर मैं प्रधानमंत्री होता

अगर मैं प्रधानमंत्री होता | Agar Mai Pradhanmantri Hota Essay in Hindi

  • गाली गलौज करने वालों को जेल भेजने का प्रावधान करता
  • हर किसी को मूलभूत सुविधा
  • कानूनों का सभी के लिए समान प्रवर्तन
  • महंगाई को खत्म
  • बेरोजगारी को समाप्त
  • महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान
  • महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि
  • जनता पर बोझिल टैक्स को समाप्त
  • जनता की मर्जी के विरुद्ध चालान समाप्त
  • लोकतंत्र को मजबूत
  • हर विभाग में हेल्पलाइन
  • जनता के हाथ में वास्तविक शक्ति
  • हिंसा को समाप्त
  • व्यक्ति के गुणों व योग्यता के आधार पर उसे लाभ
  • सभी को गुणवत्ता वाली मुफ्त शिक्षा
  • सभी को अच्छी चिकित्सा सुविधा
  • किसानों के शोषण को खत्म करता
  • लुटेरे बिचौलियों द्वारा अंधी लूट को समाप्त करता
  • पानी बर्बाद करने वालों पर चालान करता
  • शराबियों की लफंगई पर प्रतिबंध लगाता
  • हर विभाग में फीडबैक की व्यवस्था करता
  • धर्म और राजनीति का प्रथक्करण

गाली गलौज करने वालों को जेल भेजता –

यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो मेरा सबसे पहला काम यही होता। क्योंकि ये आज की महिलाओं की सबसे आम और अनदेखी समस्या है। ये ऐसी समस्या है जिस ओर यद्यपि कोई ध्यान नहीं दे रहा। तथापि इसको बढ़ावा दे रहा और स्वयं लिप्त हो रहा है। आज आप गली, नुक्कड़, सड़क, मोहल्ला, बाजार, बस, ट्रेन कहीं भी देख लो। न सिर्फ अनपढ़, न सिर्फ गरीब, न सिर्फ युवा बल्कि 7 साल के बालक से लेकर 70 साल के बुड्ढे तक और एक सड़कछाप आवारा लड़के, मजदूर सब्जी वाले से लेकर Well Educated परिवार के लोग तक बात-बात पर माँ-बहन की गंदी गालियाँ बकते हैं। इनको जरा भी शर्म नहीं कि पास में किसी की माँ/बहन/बेटी जा रही हो। उससे भी शर्म की बात है कि पूरे देश में न पुलिस, न प्रशासन, न कोई एनजीओ औऱ न ही कोई संगठन इस ओर ध्यान दे रहे हैं।

हर किसी को मूलभूत सुविधा

आज के देश में एक बहुत बड़ी आबादी को जीवन की मूलभूत सुविधाएं ही प्राप्त नहीं हैं। ऐसे में यह वर्ग अपना सारा जीवन दो वक्त की रोटी कमाने में ही बर्बाद कर देता है। इस प्रकार देश की एक बड़ी नागरिक जनसंख्या देश के विकास में योगदान देने से चूक जाती है।

कानूनों का सभी के लिए समान प्रवर्तन

‘कानून सभी के लिए समान है’ यह एक कहावत मात्र बनकर रह गई है। इसकी जमीनी हकीकत आज सभी के सामने है। आज कानूनों का उल्लंघन करके भी प्रभावशाली धनवान या राजनीतिक लोग कानून से बच जाते हैं। वहीं एक आम आदमी एक गलती करके भी सारे जीवन कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाता रहता है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो सभी के लिए समान कानून व्यवस्था को वास्तविक तौर पर लागू करता। जिससे देश का हर नगरिक ‘भारत का नागरिक होने पर गर्व करता’।

महंगाई को खत्म करता

महंगाई देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। लेकिन यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो इसे एक महीने में ही खत्म कर देता। कोई भी प्रधानमंत्री कर सकता है, अगर करना चाहे तो। बड़ा आसान काम है। यह महंगाई मानव निर्मित है। 800 साल पहले एक बिल्कुल अनपढ़ व्यक्ति यह कारनामा भारत में कर चुका है। बस मूल्य निर्धारण विधि लागू करके। महंगाई को लोग बढ़ती जनसंख्या से जोड़कर देखते हैं। लेकिन इसका जनसंख्या वृद्धि से नाममात्र का लेना देना है।

सामान्य भाषा में समझिये कि हर साल सिर्फ 2% जनसंख्या बढ़ती है। फिर भी आम वस्तुओं के दाम 2-3 साल में ही आसमान कैसे छूने लगते हैं। जब्कि देश का सबसे बड़ा उत्पादक (किसान) तो कभी किसी वस्तु के दाम इतने नहीं बढ़ाता। महंगाई को समाप्त करने के लिए सिर्फ एक कानून लाने की आवश्यकता है। जिसमें मात्र इतना सा प्रावधान हो कि कोई भी माल जिसकी कीमत 1 जनवरी 2023 को 100 रुपये है 31 दिसंबर 2023 तक उसी रेट में बेच सकता है। उसके अगले साल भी सिर्फ उसमें 5% तक ही कीमतों में वृद्धि कर सकता है। इस प्रकार बड़ी आसानी से महंगाई को कंट्रोल किया जा सकता है। लेकिन महंगाई को समाप्त नहीं किया जाता क्योंकि उससे आम जनता को छोड़कर सबको ही फायदा है।

बेरोजगारी को समाप्त करता

आज देश के शिक्षित युवाओं की यह सबसे बड़ी समस्या है। आज देश का नौजबान उच्च शिक्षा पाकर भी सड़कों की धूल छान रहा है। जीवन एक अहम दायरा वह नौकरी ढूंढने में ही बर्बाद कर देता है। सालों तक चक्कर काटने के बाद भी आज युवा एक एक नौकरी के लिए तरस रहा है। करोड़ों की आबादी वाले राज्यों का चुनाव कराकर एक महीनें में परिणाम घोषित कर दिये जाते हैं। लेकिन युवाओं को नौकरी के लिए सालों तक भटकना पड़ता है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो देश के सभी रिक्त पदों पर निश्चित समयावधि के अंदर भर्ती करता। यदि फिर भी युवा बेरोजगार रह जाते तो उनके लिए नए पदों का सृजन करता।

महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान देता

देश में महिला सुरक्षा के लिए तमाम कार्य किये गए हैं। लेकिन आज महिला सुरक्षा की वास्तविकता हम सभी के सामने है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो इस समस्या को ऐसे समाप्त करता कि मेरे कार्यकाल के बाद भी कोई महिलाओं की सुरक्षा में सेंधमारी नहीं कर पाता।

महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि करता

यूं तो आज हर क्षेत्र में महिलाएं प्रतिभाग कर रही हैं और देश का नाम रौशन कर रही हैं। लेकिन यह संख्या 0.001% से भी कम है। आज भी देश की इस आधी आवादी को समाज में पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है। यहाँ तक कि उसका जीवनसाथी चुनने तक का अधिकार उसे नहीं। आज भी देश में 90% से अधिक शादियाँ लड़की अपने पिता की पसंद से करती हैं। आज कोर्ट में तमाम वैवाहिक समले लंबित हैं। यह देश की आधी आबादी को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से दूर ले जाने की सदियों पुरानी प्रथा है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो इस दिशा में नए परिवर्तन लाता।

जनता पर बोझिल टैक्स को समाप्त करता

आज देश की आम जनता टैक्स के बोझ के तले इस कदर दबी जा रही है कि सुबह उठने से लेकर रात सोने तब वह टैक्स भरती है। यह टैक्स शुरु होता है सुबह की चाय से भी पहले मंजन करने से ही शुरु हो जाता है। पेस्ट पर टैक्स, टूथ ब्रश पर टैक्स। फिर चाय बनाओ तो गैस पर टैक्स, लाइटर पर टैक्स, चायपत्ती पर टैक्स, चीनी पर टैक्स, दूध पर टैक्स, बिस्कुट पर टैक्स, नमकीन पर टैक्स। फिर नहाने जाओ तो साबुन पर टैक्स, डिटर्जेंट पर टैक्स, शैम्पू पर टैक्स। चप्पल पर टैक्स, पैंट-शर्ट पर टैक्स, जूतों पर टैक्स, कच्छे-बनयान तक पर टैक्स। इसके अतिरिक्त मोबाइल फोन, ईयरफोन, चार्जर, रिचार्ज, सिमकार्ड, रेल किराया, बस किराया, पानी की बोतल पर टैक्स। दिन रात जनता इस भयंकर टैक्स के चक्रव्यूह में ऐसे पिस रही है कि घर चलाना मुश्किल पड़ रहा है। यह मैं प्रधानमंत्री होता तो जनता को इस दोहरे टैक्स से मुक्ति कर देता।

जनता की मर्जी के विरुद्ध चालान समाप्त कर देता

आज कर देश का हर नागरिक अपनी गाड़ी का चालान कटवाने से डरता है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो आम जनता से ये चालान बसूलना बंद करा देता। यदि मुझे वास्तव में जनता की सुरक्षा की फिक्र होती तो मैं देश की सड़कों को गड्ढामुक्त करने का प्रयास करता। क्योंकि आज भी सड़क दुर्घटना में जितनी मौतें होती हैं उनका कारण खराब सड़कें हैं। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो यह कार्य अवश्य करता।

लोकतंत्र को मजबूत करता

लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था जिसमें राज्य की समस्त शक्ति का अंतिम केंद्र जनता (We The People of India) है। लेकिन इसके उलट सबसे बुरी स्थिति में आज देश की आम जनता ही है। यह हर साल आने वाली World Happiness Index से सिद्ध होता है। हम आबादी में तो विश्व में दूसरे स्थान पर हैं लेकिन खुशहानी में बद से बद्तर स्थिति में हैं। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो वास्तविक शक्ति जनता में सुदृढ़ करता। जिससे लोकतंत्र रूपी व्यवस्था सदियों तक सुदृढ़ रह सकती। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो यह कार्य अवश्य करता।

हर विभाग में हेल्पलाइन जारी करता

आज देश के तमाम विभागों के अधिकारियों के जनता चक्कर काट काट कर परेशान होती है। जिसका जो कार्य है उसी के लिए उसे रिश्वत देनी पड़ती है। जिसकी शिकायत दायर करने वाले तक उसी रिश्वत में पहले से हिस्सा लिये बैठे होते हैं। ऐसी स्थित में शोषित नागरिक कहाँ जाए। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो ऐसे सभी विभागों की शिकायत के लिए एक स्पेशल हेल्पलाइन नम्बर जारी करता। जिसमें निश्चित समयावधि में लोगों की समस्या का निस्तारण कर सकता।

जनता के हाथ में वास्तविक शक्ति देता

संविधान के अनुसार लोकतंत्र में शक्ति का अंतिम स्त्रोत जनता है। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल उलट है। आज लोकतंत्र का मजाक बनकर रह गया है। जो जनप्रतिनिधि जनता की सेवा का प्रण लेते हैं। वही आगे चलकर जनता का शोषण करते हैं। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो यह कार्य अवश्य करता।

हिंसा को समाप्त करता –

सभ्य व शिक्षित समाज में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। लेकिन आज जरा-जरा सी बात पर लोग हाथापाई पर उतर आते हैं। आये दिन सड़क दुर्घटनाओं में यह आम बात है। जिस कारण हर साल बहुत से केस दर्ज किये जाते हैं। इस पर प्रतिबंध लगाना अति आवश्यक है। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो यह कार्य अवश्य करता।

व्यक्ति के गुणों व योग्यता के आधार पर उसे लाभ पहुँचाता

आज किसी भी सरकार सेवा में सिर्फ डिग्री देखी जाती है। इसके सिवाय पैसा खिलाकर जालसाजी करके भी लोग नौकरियां पा रहे हैं। इसके स्थान पर मानव मूल्यों का कोई स्थान नहीं है। इसी कारण आज हर विभाग में भ्रष्टाचार भढ़ता जा रहा है।

सभी को गुणवत्ता वाली मुफ्त शिक्षा प्रदान करता –

आज गुणवत्ता वाली शिक्षा के क्षेत्र में भारत दुनिया के अन्य देशों से बहुत पिछड़ा हुआ है। आज भी देश में साक्षरत दर 74 प्रतिशत है। मतलब अभी तर भारत में 26 प्रतिशत अशिक्षित हैं। भारत की आजादी के 74 वर्ष बाद भी यह आंकड़ा 74 प्रतिशत पर ही पहुँच पाया। यह 74 प्रतिशत भी सिर्फ शिक्षित हैं। क्योंकि अभी देश में सिर्फ साक्षरता दर 100 प्रतिशत पाने की ही कोशिश की जा रही है। उसके बाद कहीं यहाँ शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाएगा। अभी तो सिर्फ शिक्षित करने पर ही ध्यान है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो अपने कार्यकाल से पूर्व ही मैं देश में यह आंकड़ा 100 प्रतिशत पा लेता। उसके बाद गुणवत्ता वाली शिक्षा की ओर प्रयास करता।

सभी को गुणवत्ता वाली चिकित्सा –

आज के समय में देश अधिकांश अस्पताल कारोबार का अड्डा मात्र बन चुके हैं। जिसका प्रभाव सरकारी अस्पतालों पर पड़ता है। आज देश का एक आम आदमी अच्छे अस्पतालों में अपना इलाज नहीं करा सकता। यदि कोई गरीब ज्यादा सीरियस है तो भी वह महंगे अस्पतालों में नहीं जा सकता। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो देश में सभी के लिए मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था का प्रावधान करता।

किसानों के शोषण को खत्म करता

देश का सबसे बड़ा उत्पादक वर्ग कृषक आज विकास के पायदान पर सबसे नीचे है। आज किसानों का बीज खरीदने से लेकर उसकी फसल खरीदने वाले तक सभी शोषण कर रहे हैं। किसान महंगे दामों पर बीज, खाद, कीटनाशक, डीजल, कृषि यंत्र खरीदता है। उसके बाद फसल तैयार होने पर फसल की कीमत के लिए भी इंतजार करता रहता है।

लुटेरे बिचौलियों की अंधी लूट को समाप्त करता

किसान दिन रात खेतों में काम करता है तब जाकर वह 5 रुपये किलो आलू बेच पाता है। वही आलू मंडी में बैठा मोटा दलाल 10 रुपये किलो बेचता है। बाद में ठेले वाला वही आलू 15 रुपये में आम आदमी को बेचता है। इन सभी के ऊपर उसी 5 रुपये वाले आलू का चिप्स बनाकर ये कंपनियाँ 250-300 रुपये किलो बेचती हैं। यह तो एक फसल का उदाहरण था। इसी प्रकार किसान के हर उत्पाद को सस्ते में खरीद कर दलाल और बिचौलिये उनका शोषण कर रहे हैं। यदि मैं प्रधानमंत्री होता इस व्यवस्था में मूल्य निर्धारण विधि लागू करके किसानों के शोषण को समाप्त करता।

पानी बर्बाद करने वालों पर चालान करता

‘जल ही जीवन है’ लेकिन देश में यह सब ड्रामा सिर्फ विश्व जल दिवस जैसै कार्यक्रमों में ही गाया जाता है। बाकी आप हर रोज देख लो लोग कितना पानी बर्बाद करते हैं। अनपढ़ से लेकर उच्च शिक्षित लोगों तक को आप हर रोज कहीं सड़क पर बानी बहाते तो कभी गाड़ी साफ करने के नाम पर पानी बर्बाद करते देखेंगे। जब्कि सबको पता है कि पीने योग्य पानी पृथ्वी के कुल जल का 1 प्रतिशत से भी कम उपलब्ध है।

शराबियों की लफंगई पर प्रतिबंध लगाता

शराब की दुकानों के बाहर ही लोग शराब गटक लेते हैं। यहाँ शराबियों की भीड़ हमेशा ही लगी रहती है। ऐसे रास्तों से महिलाओं को गुजरने में भी डर लगता है। यह मैं प्रधानमंत्री होता तो यह नियम बनाता कि कोई भी व्यक्ति घर या आवास के बाहर शराब पीकर लफंगई नहीं करेगा।

हर विभाग में फीडबैक की व्यवस्था करता

आज-कल देखा गया है कि एक बार पद मिल जाये फिल 60 साल तक देश लूटने का जैसे सर्टिफिकेट मिल गया। आज बहुत से अधिकारी अपने अधिकारों का गलत फायदा उठा रहे हैं। उन पर किसी प्रकार का जनता का कोई अंकुश नहीं है। वे आम जनता का शोषण करते हैं। क्योंकि उनकी सेवा की जनता से किसी प्रकार की फीडबैक का कोई प्रावधान नहीं है। जिससे पता चल सके कि उक्त अधिकारी का जनता से कैसा रवैया है। इसलिए यह आवश्यक है कि हर विभाग और हर अधिकारी के कार्यक्षेत्र से संबंधित जनता से उसके बारे में फीडबैक ली जाए। ये जनता तय करे कि कौनसा अधिकारी उस क्षेत्र में निष्पक्षता से सेवा देने में सक्षम है।

धर्म और राजनीति का प्रथक्करण –

आज कर के नेताओं ने धर्म को राजनीति की कुर्सी पाने का धंधा बना लिया है। पहल लेते हैं खादी का कुर्ता और काम करते हैं धर्म के ठेकेदारों का। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि राजनीति से धर्म को पृथक किया जाए। यह तय कर दिया जाए कि आप नेता बनेंगे या किसी धर्म के ठेकेदार। या तो पार्लियामेंट को चुनें या मंदिर/मस्जिद/गिरिजाघर/गुरुद्वारा चुनें। यदि आप नेता बनते हैं तो किसी भी धर्म के बारे में एक शब्द न बोलें। सिर्फ विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ें।

हाँ आपको व्यक्तिगत तौर पर अपना धर्म निभाने की पूर्ण स्वतंत्रता होगी। जिसके लिए आप अपने घर पर जिनता अधिक समय चाहें धर्म का पालन कर सकते हैं (Off Camera)। उसी प्रकार धर्म का चोगा पहन कर राजनीतिक रोटियां सेकने वाले धंधेबाजों पर फिर प्रतिबंध लगाऊंगा। यह आप वास्तविक धर्म का पालन करना चाहतें हैं। तो सिर्फ धार्मिक कार्य करें और दक्षिणा पर जीवन यापन करें। किसी भी प्रकार की राजनीति से दूर रहें। हाँ आपको आपके व्यक्तिगत राजनीकित अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा। लेकिन चोगा धर्म का पहलकर उसे राजनीति का धंधा बनाने पर तो प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो यह कार्य अवश्य करता।

– नीरज वर्मा, नई दिल्ली

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जातिवाद पर निबंध ( An Essay On Casteism )

जातिवाद पर निबंध ( An Essay On Casteism ) :- भारतीय समाज में जातिवाद सालों, दशकों या सदियों नहीं बल्कि हजारों सालों से पनप रहा है।

भारत में जातिवाद संबंधी कुछ तथ्य व उसकी सार्थकता –

प्रारंभ में व्यक्ति की जाति जन्म के स्थान पर उसके कर्म के आधार पर हुआ करती थी। पिता से पुत्र उसी पेशे को अपनाता था तो वही सर नेम उसे भी प्राप्त होता था। यह प्रक्रिया सदियों तक चलती रही और इस तरह जातियों का विकास हुआ। लेकिन वर्तमान स्थिति उसके बिल्कुल विपरीत है। आज कोई भी व्यक्ति अपनी जाति से इतर पेशे को अपना रहा है। कोई अपनी जाति के आधार पर पेशा चुनने के लिए बाध्य नहीं है।

पण्डित

पण्डित संस्कृत भाषा का शब्द है। इसका अर्थ होता है – ‘ज्ञानी, विद्वान या ज्ञानवान’। प्रारंभ में वेदों, पुराणों, उपनिषद् व अन्य ब्राह्मण ग्रंथों का अध्ययन करने वालों को पण्डित कहा जाता था। अर्थात ‘पण्डित कोई जाति नहीं‘ बल्कि विद्वानों की एक श्रेणी है। वह व्यक्ति जो अपने ज्ञान के आधार पर स्वयंसिद्धि प्राप्त करता था, पण्डित कहलाता था।

तब ज्ञान के मूल स्त्रोत वेद हुआ करते थे। अर्थात् जो चारो वेदों का अध्ययन कर लेता था वह चतुर्वेदी कहलाता था। आगे चलकर ये शब्द विकृत होकर चौबे हो गया। तीन वेदों का ज्ञान प्राप्त करने वाला त्रिवेदी या त्रिपाठी कहलाता था। दो वेदों का अध्ययन करने वाला द्विवेदी कहलाता था। जो वक्त से साथ विखंडित होकर दुबे कहलाने लगा। वे लोग जो सिर्फ एक वेद का ही ज्ञान प्राप्त कर सके वेदी कहलाए।

इन सभी में समानता ये थी कि ये सभी वेदों का ज्ञान प्राप्त कर पंडित कहलाए। प्रारंभ में वे लोग ही ये उपाधि धारण किया करते थे जिन्होंने स्वयं ज्ञान की प्राप्ति की। परंतु यह उपाधि पीढ़ी दर पीढ़ी कबसे प्रचलन में आने लगी इसकी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। अतः तब पण्डित होने के लिए चतुर्वेदी/त्रिवेदी/द्विवेदी/वेदी होना आवश्यक था। परंतु बिना वेदों के ज्ञान के पिता से मिली चतुर्वेदी/त्रिवेदी/द्विवेदी/वेदी की उपाधि आपको चतुर्वेदी/त्रिवेदी/द्विवेदी/वेदी तो बना देगी परंतु ‘पण्डित’ नहीं।

उपाध्याय –

आजीविका के लिए अध्यापन का कार्य करने वाले को ऋग्वेद में उपाध्याय कहा गया है। यदि वर्तमान समय में इस तथ्य की सार्थकता पर विचार करें। तो पायेंगे कि वर्तमान में हर शिक्षक आजीविका हेतु ही अध्यापन के कार्य में संलग्न है। क्या आप किसी अध्यापक को जानते हैं जो शिक्षक की सरकारी नौकरी करके सरकार से वेतन न लेता हो ? क्या ऋग्वेद के आधार पर हर जाति के शिक्षक को आज उपाध्याय की संज्ञा दी जाएगी ?

चमार –

ये एक तद्भव शब्द है, इसका तत्सम शब्द ‘चर्मकार’ है। चर्म अर्थात चमड़ा एवं चर्मकार अर्थात् चमड़े का कार्य करने वाला। अर्थात् प्रारंभ में उन लोगों को चर्मकार कहा जाता था। जो चमड़े का कार्य जैसे – जूता बनाना, बेल्ट बनाना, ढोलक मढ़ना, चमड़े का कवच बनाना इत्यादि करते थे। प्रारंभ में प्रायः पिता का पेशा ही पुत्र भी चुनता था। अतः वह भी चमार ही कहलाता था। परंतु वर्तमान में इसकी सार्थकता पर विचार करें। वह व्यक्ति जिसकी साल पुष्तों ने चर्म का कार्य नहीं किया, वह भी आज चमार ही कहलाता है। वर्तमान में यदि वह शिक्षक का भी कार्य कर रहा हो, तो उपाध्याय नहीं चर्मकार ही कहलाएगा। आखिर क्यों ?

कुम्हार –

तत्सम शब्द कुम्भकार जो आगे चलकर कुम्हार हो गया। कुंभ अर्थात घड़ा और कुंभकार अर्थाक घड़े बनाने वाला। वर्तमान में स्टील, शीशे, प्लास्टिक के ग्लास व कटोरी आने के बाद कुम्हारों का कार्य ही खत्म होने की कगार पर है। जातिवाद पर निबंध ।

राजपूत –

राजपूत शब्द संस्कृत के शब्द राजपुत्र का तद्भव है। राजपूत अर्थात राजा का पुत्र, प्रारंभ में राजशी जीवन में रहने वाले राजा के पुत्रों को राजपूत कहा जाता था। परंतु वर्तमान में भारत से राजवंश की समाप्ति हो चुकी है। यहाँ तक कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 के तहत किसी भी राजशाही उपाधि को धारण करने तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

ये तो सिर्फ कुछ उदारहण थे। इसी प्रकार से आज बहुत सी जातियां हैं जिन्होंने सालों से जाति आधारित पेशा नहीं अपनाया। फिर भी वे सभी किसी न किसी विशेष जाति का प्रतिनिधित्व करती हैं। जब्कि संविधान में धर्म, जाति, लिंग, मूलवंश व जन्मस्थान के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न करने का नियम बनाया गया है। जातिवाद पर निबंध ।

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