शिवाजी और उनकी अष्टप्रधान परिषद

मराठा शिवाजी का जन्म 10 अप्रैल 1627 ई. को पूना के ‘शिवनेर किले’ में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘शाहजी भोसले’ और माता का नाम ‘जीजाबाई’ था। इनकी माता देवगिरि के यादवों के वंश से थीं। शाहजी के मित्र ‘दादा कोंडदेव’ शिवाजी के संरक्षक बने। तुकोबाई मोहिते शिवाजी की सौतेली माँ थीं, जिनका एक पुत्र व्यंकोजी (एकोजी) था। 1654 ई. में पोलीगर मे अप्पाजी से हुए युद्ध में शिवाजी के बड़े भाई शंभाजी की मृत्यु हो गई। 1640 ई. में मात्र 13 वर्ष की अवस्था में शिवाजी का विवाह साईबाई के साथ हुआ।

शिवाजी के अभियान –

शिवाजी ने अपना पहला अभियान बीजापुर के आदिलशाही राज्य के विरुद्ध प्रारंभ किया। सर्वप्रथम 1643 ई. में इन्होंने सिंहगढ़ का किला जीता। इसके बाद 1646 ई. में तोरण व रायगढ़ के किले अपने अधिकार में ले लिए। 1647 ई. में इन्होंने कोंडाना के किले को जीता। इस विजय के उपरांत बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी भोसले को बंदी बना लिया। 1647 ई. में ही इन्होंने ‘चाकर की जीत’ हासिल की। 1648 ई. में इन्होंने शाहजी को मुक्त कराने के लिए कोंडाना के किले को छोड़ दिया। 1654 ई. में बीजापुर से पुरंदर के किले को जीत लिया। 1656 ई. में जावली को एक मराठा सरदार चंद्रराव मोरे से जीता। इसी साल जुन्नार किले को जीता। यहाँ से इन्हें बेहद धन की प्राप्ति हुई।

साल 1657 ई. में पहली बार इनकी मुलाकात मुगल शासक औरंगजेब से हुई। इसी साल इन्होंने कोंकण क्षेत्र के भिवण्डी, कल्याण व माहुली किलों को जीत लिया। जनवरी 1664 ई. की सूरत की प्रथम लूट में शिवाजी को 1 करोड़ रुपये के धन की प्राप्ति हुई। सूरत की दूसरी लूट (1670 ई.) में शिवाजी को 66 लाख रुपये की संपत्ति प्राप्त हुई। 1671 ई. में इन्होंने फतेह उल्ला खां से सल्हेर के दुर्ग को जीता। 1673 ई. में बाबू खां से पन्हाला दुर्ग को जीता।

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अफजल खाँ से संघर्ष –

  • साल 1659 ई. में बीजापुर ने अफजल खाँ को शिवाजी का खात्मा करने के लिए भेजा।
  • इसने शिवाजी से मिलने हेतु वार्ता करने अपने दूत को भेजा।
  • प्रतागढ़ के जंगल में दोनों के मिलने का समय निर्धारित किया गया।
  • मिलने पर अफजल खाँ ने गले लगने के बहाने इन्हें मारना चाहा।
  • परंतु अफने बघनख से इन्होंने उसे ही मार डाला।
  • इसके बाद दोनों ओर के सैनिकों में लड़ाई शुरु हो गयी औऱ मारकाट मच गई।

शाइस्ता खाँ से संघर्ष –

दक्षिण में इनके दमन हेतु औरंगजेब ने अपने मामा शाइश्ता खाँ को नियुक्त किया। इसने बीजापुर के साथ मिलकर शिवाजी के विरुद्ध कुछ सफलता पाई। इसने शिवाजी से कई स्थलों को जीत लिया। अप्रैल 1663 ई. में शिवाजी ने पूना पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में शाइस्ता खाँ ने अपना अंगूठा व एक पुत्र खो दिया। इस हार के बाद औरंगजेब से शाइस्ता खाँ को बापस बुला लिया। औरंगजेब ने अब इसकी जगह अपने पुत्र मुअज्जम को दक्षिण भेजा।

राजा जयसिंह –

मुअज्जम के बाद औरंगजेब ने जयसिंह को असीम अधिकार देकर दक्षिण भेजा।

इसने शिवाजी को संधि करने पर मजबूर कर दिया।

पुरंदर की संधि (22 जून 1665 ई.)

पुरंदर की संधि शिवाजी और राजा जयसिंह के बीच हुई।

इस संधि के समय मनूची भी वहीं पर उपस्थित था। पुरंदर की संधि की शर्तें –

  1. शिवाजी के 35 किलों में से 23 मुगलों को देने होंगे।
  2. शिवाजी को मुगलों की ओर से युद्ध व सेवा करेंगे।
  3. इनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में 5000 का मनसब प्रदान किया जाएगा।

12 मई 1966 ई. को शिवाजी मुगल दरबार में पहुंचे। इनकी सुरक्षा की गारंटी जयसिंह के पुत्र रामसिंह ने ली।

दरबार ने इन्हें 5000 के मनसबदारों के बीच खड़ा किया गया। इससे ये क्रद्ध हो गए और नाराजगी जताई।

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फलस्वरूप इन्हें जयपुर के किले में नजरबंद कर लिया गया। यहाँ ये बीमार पड़ गए।

इसी दौरान अपने हमशक्ल हीरोजी फर्जंद को बिस्तर पर लिटा दिया। स्वयं मिठाई की टोकरियों में छिपकर भाग गए।

12 सितंबर 1666 को ये रायगढ़ किले पर बापस पहुंच गए।

वाणी डिंडोरी का युद्ध (कंचन मंचन का दर्रा) –

1670 ई. में सूरत की दूसरी लूट से बापस आ रहे शिवाजी का सामना मुगल सेना से हुआ। दाउद खाँ व इखलास खाँ मुगल सेना के नेतृत्वकर्ता थे। इस युद्ध में इन्होंने लूट के माल को मुगलों से बचा लिया।

शिवाजी का राज्याभिषेक (6 जून 1674 ई.)

शिवाजी का राज्याभिषेक 6 जून 1674 ई. को रायगढ़ में हुआ। इनका राज्याभिषेक काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगा भट्ट (विश्वेश्वर भट्ट) ने किया। हेनरी ऑक्साइडन इस मौके पर उपस्थित था। इस दौरान शिवाजी ने सोने व ताँबे कि सिक्के जारी किए। राज्याभिषेक के 11 दिन बाद 17 जून 1674 ई. को इनकी माता जीजाबाई का देहांत हो गया। इसके बाद 24 सितंबर 1674 ई. को पुनः इन्होंने राज्याभिषेक कराया। इसे निश्चलपुरी गोसाईं नामक तांत्रिक ने संपन्न कराया।

कर्नाटक अभियान (1676-78 ई.)-

यह शिवाजी का आखिरी अभियान सिद्ध हुआ। साल 1677 ई. में हुसैन खां भियाड़ा से येलबर्गा जीता। 1678 ई. में ‘जिजीं का किला’ जीता गया। जिंजी विजय शिवाजी की आखरी विजय थी।

शिवाजी के अंतिम वर्ष –

इनके अंतिम दो वर्ष बड़ी परेशानी के गुजरे। इनका पुत्र शम्भाजी पत्नी येशुबाई के साथ निकल भागा। वह दक्कन के सूबेदार दिलेरखाँ से जा मिला। एक वर्ष बाद वह मराठा साम्राज्य में बापस लौट आया। इन कारणों का शिवाजी पर बुरा असर पड़ा और वे बीमार पड़ गए। 3 अप्रैल 1680 ई. को शिवाजी की मृत्यु हो गई। इनका अंतिम संस्कार पुत्र राजाराम ने किया। इस वक्त सम्भाजी पन्हाला के किले में कैद थे। इनकी सात पत्नियों में से एक पुतलीबाई इनकी मृत्यु के साथ सती हुई थीं।

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शिवाजी की सात पत्नियां –
  1. साईबाई निम्बालकर
  2. सोयराबाई
  3. पुतलीबाई
  4. लक्ष्मीबाई
  5. गुनवन्ता बाई
  6. सगुनाबाई
  7. सकवारबाई

शिवाजी की ‘अष्टप्रधान परिषद’

शिवाजी ने अपनी प्रशासनिक व्यवस्था में सहायतार्थ आठ मंत्रियों की एक परिषद गठित की थी। आठ मंत्रियों की इस परिषद को ‘अष्टप्रधान परिषद’ के रूप में जाना जाता है। इसके सभी मंत्रियों को विभाग प्रदान किये गए थे। यह मंत्री अपने विभाग का प्रमुख होता था। परंतु इस परिषद का कोई भी पद वंशानुगत नहीं था।

  1. पेशवा (मुख्य प्रधान) – संपूर्ण राज्य के शासन की देखभाल करना इसका प्रमुख कार्य था। यह राजा की अनुपस्थिति में उसके कार्य भी करता था। सरकारी दस्तावेजों पर राजा हस्ताक्षर के बाद पेशवा के हस्ताक्षर व मोहर आवश्यक थी।
  2. मंत्री (वाकयानवीस) – दरबारी लेखक के रूप में राजा के कार्यों को लिपिबद्ध करता था। राजा की सुरक्ष व्यवस्था इसी का कार्य था। इसके अतिरिक्त गुप्तचर व सूचना विभाग की देखरेख भी यही करता था।
  3. सुमंत (दबीर) – यह साम्राज्य का विदेश मंत्री हुआ करता था।
  4. अमात्य (पंत) – यह राज्य का वित्त मंत्री था। यह राज्य की आय व व्यय से राजा को अवगत कराता था। शिवाजी के आमात्य रामचंद्र थे।
  5. सचिव – पत्राचार से संबंधित विभाग था। इसका मुख्य कार्य सरकारी दस्तावेजों को तैयार करना था।
  6. सेनापति (सर ए नौबत) – सेना संबंधी कार्य जैसे – भर्ती, संगठन व संख्याबल इत्यादि की व्यवस्था करना।
  7. न्यायाधीश – यह राजा के बाद न्याय का सर्वोच्च अधिकारी होता था। दीवानी व फौजदारी दोनो ही मामलों का न्याय हिंदू कानूनों के आधार पर किया जाता था।
  8. पंडितराव (सद्र) – यह धार्मिक मामलों में राजा का प्रमुख सलाहकार था। दान व धर्म के कार्य यही सुनिश्चित करता था।
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