‘भारतीय इतिहास की लड़ाइयां’ शीर्षक के इस लेख में भारत में हुई प्रमुख लड़ाइयों व युद्धों को संकलित किया गया है। भारतीय इतिहास में हुई प्रमुख लड़ाइयां व युद्ध, उनकी तिथि, शासक व उनसे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी –
हाइडेस्पीज का युद्ध (326 ई. पू.)
इसे झेलम (वितस्ता) का युद्ध भी कहा जाता है। यह युद्ध यूनानी शासक सिकंदर महान और भारत के पश्चिमोत्तर राज्य पुरु (वर्तमान पंजाब का क्षेत्र) के शासक पोरस के बीच लड़ा गया था। पुरु राज्य झेलम व चिनाव नदियों के बीच अवस्थित था। इस युद्ध में पोरस की हार हुई और सिकंदर विजयी हुआ।
कलिंग का युद्ध (261 ई. पू.)
यह युद्ध मगध नरेश अशोक और कलिंग के बीच हुआ था। इस युद्ध में भीषण रक्तपात हुआ। इससे प्रभावित होकर अशोक के मन से हिंसा का भाव समाप्त हो गया। अशोक ने भविष्य में युद्ध न करने का फैसला किया। इस युद्ध का उल्लेख अशोक के 13वें शिलालेख में हुआ है।
सिंध पर अरब आक्रमण (712 ई.)
अरब आक्रमणकारी मो. बिन कासिम ने 712 ई. में सिंध पर आक्रमण कर दिया। इससे पहले भी दो अन्य मुस्लिम आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण कर चुके थे, परंतु उन्हें सफलता प्राप्त न हुई। अरबों को पहली बार सफलता मो. बिन कासिम के नेतृत्व में हासिल हुई। अरब आक्रमण के समय सिंध पर दाहिर का शासन था। सिंध पर अरब आक्रमण के दौरान कश्मीर का शासक ललितादित्य मुक्तिपीड था। पूर्व में नागभट्ट प्रथम का और दक्षिण में पुलकेशिन व राष्ट्रकूटों का साम्राज्य था।
तराइन की पहली लड़ाई (1191 ई.)
यह लड़ाई पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच हुई। इसमें पृथ्वीराज विजयी हुआ और मो. गोरी की हार हुई और वह घायल हो गया।
तराइन की दूसरी लड़ाई (1192 ई.)
तराइन का दूसरा युद्ध मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ। इसमें मो. गोरी विजय हुआ और पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। मिनहाज उस सिराज के अनुसार युद्ध के तुरंत बाद पृथ्वीराज की हत्या कर दी गई थी। हसन निजामी के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने गोरी की अधीनता स्वीकार कर ली। यही मत मान्य भी है क्योंकि पृथ्वीराज के सिक्कों पर गोरी का नाम पाया गया।
चंदावर की लड़ाई (1194 ई.)
यह लड़ाई मोहम्मद गोरी और कन्नौज के शासक जयचंद (गहड़वाल) के बीच हुई थी। इस लड़ाई में मो. गोरी की विजय और जयचंद की मौत हुई।
तराइन की तीसरी लड़ाई (जनवरी 1216 ई.)
यह लड़ाई इल्तुतमिश और यल्दौज के बीच हुई। इसमें यल्दौज की हार और इल्तुतमिश की जीत हुई।
पानीपत का पहला युद्ध (21 अप्रैल 1526 ई.)
पानीपत की पहली लड़ाई बाबर और इब्राहीम लोदी के बीच हुई थी। इस युद्ध में इब्राहीम लोदी की हार हुई और वह मारा गया। युद्ध भूमि में मरने वाला यह दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था। बाबर ने भारत में एक नए राजवंश मुगल वंश की नींव डाली। पानीपत वर्तमान हरियाणा में अवस्थित है। बाबर ने इस जीत का श्रेय अपने तीरंदाजों को दिया।
खानवा का युद्ध (1527 ई.)
खानवा की लड़ाई बाबर और मेवाड़ के राणा सांगा (संग्राम सिंह) के बीच हुई थी। पानीपत की जीत के बाद भी बाबर को राणा सांगा का भय था। सांगा को 18 युद्धों का अनुभव था। बाबर जानता था कि राणा सांगा के होते हुए वह ज्यादा दिन तक भारत में राज्य नहीं कर सकता। परंतु इस लड़ाई में भी बाबर की जीत हुई और राणा सांगा को पराजय का मुख देखना पड़ा।
चंदेरी की लड़ाई (1528 ई.)
यह लड़ाई चंदेरी के शानक मेदिनीराय और बाबर के बीच हुई। इसमें बाबर को जीत हासिल हुई। शेरशाह सूरी भी इस युद्ध में बाबर के साथ था।
घाघरा का युद्ध (1529 ई.)
घाघरा नदी के तट पर होने वाला यह मध्यकालीन भारत का ऐसा पहला युद्ध था जो जल व थल दोनों पर लड़ा गया। यह युद्ध बाबर और महमूद लोदी के बीच हुआ। इसमें बाबर ने महमूद लोदी के नेतृत्व वाली अफगानी सेना को पराजित किया।
चौसा का युद्ध (1539 ई.)
गंगा व कर्मनाशा नदियों के बीच अवस्थित इस स्थान पर 1539 ई. में शेरशाह सूरी और हुमायूँ के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में शेरशाह सूरी ने हुमाय़ूँ को पराजित कर दिया।
कन्नोज की लड़ाई या बिलग्राम का युद्ध (1940 ई.)
बिलग्राम की लड़ाई में शेरशाह सूरी ने एक बार फिर हुमायूँ को पराजित किया। इसके बाद हुमायूँ को भारत छोड़कर निर्वासित जीवन व्यतीत करना पड़ा। इस लड़ाई के बाद शेरशाह ने पादशाह की उपाधि धारण की।
पानीपत की दूसरी लड़ाई (5 नवंबर 1556 ई.)
पानीपत का दूसरा युद्ध अकबर और हेमू (हेमचंद्र विक्रमादित्य) के बीच हुआ। इस लड़ाई में हेमू की आँख में तीर लगने से वह घायल हो गया और मारा गया। हेमू जौनपुर के शासक आदिलशाह का एक मंत्री था। इसने 22 लड़ाइयाँ लड़ी थी और एक भी बार नहीं हारा। इससे खुश होकर इसे विक्रमजीत की उपाधि प्राप्त हुई थी। मुगल सूबेदार को हराकर इसने दिल्ली पर भी अधिकार कर लिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। आरिफ कन्दहारी इस लड़ाई का प्रत्यतक्षदर्शी था।
तालीकोटा का युद्ध (23 जनवरी 1565 ई.)
तालीकोटा के युद्ध को बन्नीहट्टी की लड़ाई या रक्षसी तगड़ी के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। विजयनगर साम्राज्य की बढ़ती ताकत से भयभीत होकर दक्षिण भारत के अन्य राज्यों ने एक संघ बना लिया। इस युद्ध में एक ओर विजयनगर साम्राज्य और दूसरी ओर अहमदनगर, बीजापुर, बीदर, व गोलकुण्डा की संयुक्त सेना थी। गोलकुंडा से शत्रुता के कारण बरार इस संघ में शामिल नहीं हुआ। इस लड़ाई के समय विजयनगर का शासक सदाशिव राय था। इस युद्ध में विजयनगर की हार हुई और बुरी तरह लूटा गया।
हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून 1576 ई.)
इसे गोगुन्दा की लड़ाई व खमनौर के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। यह युद्ध अकबर और मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप के बीच हुआ। इस युद्ध में अकबर स्वयं युद्धभूमि में नहीं गया था। मुगल सेना का नेतृत्व आसफ खाँ व मानसिंह ने किया। इसमें महाराणाप्रताप की हार हुई। इतिहासकार बदायूंनी भी इस युद्ध में एक सैनिक की तरह शामिल हुआ था।
भातवाड़ी (मारवाड़ी) की लड़ाई (1624 ई.)
यह लड़ाई मुगलों व अहमदनगर के बीच हुआ। इस लड़ाई में मुगलों की ओर से महावत खाँ, परवेज, व बीजापुर की सेना ने भाग लिया। शाहजी और मलिक अम्बर अहमदनगर को ओर से लड़े। इस लड़ाई में अहमदनगर की विजय हुई और मुगलों को हार का मुह देखना पड़ा।
धरमट का युद्ध (15 अप्रैल 1658 ई.) –
यह लड़ाई शाहजहाँ के उत्तराधिकारियों के बीच हुआ था। इसमें एक ओर औरंगजेब व मुराद बख्श की संयुक्त सेना थी। दूसरी ओर कासिम खां व जसवंत सिंह के नेतृत्व में शाही सेना थी। इस लड़ाई में शाही सेना को हार का सामना करना पड़ा।
सामूगढ़ की लड़ाई (29 मई 1658) –
यह युद्ध औरंगजेब व मुराद की संयुक्त सेवा व दाराशिकोह के नेतृत्व में शाही सेना के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में दाराशिकोह की हार हुई। इसके बाद औरंगजेब ने मुराद को भी बंदी बना लिया और उसकी हत्या करवा दी।
देवराय का युद्ध (अप्रैल 1659 ई.) –
देवराय की लड़ाई औरंगजेब और दाराशिकोह के बीच अजमेर के निकट देवराय की घाटी में लड़ी गई थी। इसमें अंतिम रूप से दाराशिकोह की पराजय हुई।
जजाऊ का युद्ध (18 जून 1707 ई.)
औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को अहमदनगर में हो गई। उनके पुत्रों में उत्तराधिकार की लड़ाई न हो इसलिए औरंगजेब ने वसीयत कर अपने पुत्रों में साम्राज्य का बंटबारा कर दिया था। परंतु उत्तराधिकार का युद्ध शुरु हो गया। जजाऊ की लड़ाई में बहादुरशाह ने आजम को पराजित किया और उसे मार डाला। साथ ही आजम के दो पुत्र भी इस लड़ाई में मारे गए।
बीजापुर की लड़ाई (जनवरी 1709 ई.)
यह भी औरंगजेब के पुत्रों में हुई उत्तराधिकार की लड़ाई का हिस्सा था। यह युद्ध बहादुर शाह और कामबख्श के बीच हुआ। इस युद्ध में कामबख्श और उसका पुत्र मारा गया। बहादुर शाह को इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई।
करनाल की लड़ाई (24 फरवरी 1739 ई.)
करनाल की लड़ाई मुगल बादशाह मुहम्मदशाह और ईरान के नादिरशाह के बीच हुआ। इसमें मुहम्मद शाह के साथ निजामुल्मुल्क, खानेदौरान, व कमरुद्दीन भी थे। यह युद्ध मात्र तीन घंटे चला। खाने दौराने इस युद्ध में मारा गया। निजामुलमुल्क की मध्यस्थता के चलते नादिरशाह और मुहम्मदशाह के बीच समझौते के साथ युद्ध समाप्त हुआ। इससे खुश होकर मुहम्मदशाह ने खानेदौरान की मृत्यु से खाली हुआ मीरबख्शी का पद निजामुल्मुल्क को दे दिया।
बाद में सआदत खाँ ने नादिरशाह से मुलाकात कर दिल्ली पर आक्रमण करने को कहा। 20 मार्च 1739 को नादिरशाह ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। नादिरशाह दिल्ली में 57 दिनों तक रुका और जाते वक्त कोहिनूर, मयूर सिंहासन (तख्त ए ताऊस) व अपार सम्पदा अपने साथ ले गया।
प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-48 ई.)
बारनैट के नेतृत्व में 1746 ई. में इस लड़ाई की पहल अंग्रेजों ने की। अंग्रेजों की नौसेना ने कुछ फ्रांसीसी जलपोत पकड़ लिए। यह आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध का विस्तार मात्र था। 1748 में यूरोप में हुई ए ला शापेल की संधि से आस्ट्रिया के उत्तराधिकार का युद्ध समाप्त हो गया। इसी के साथ कर्नाटक का प्रथम युद्ध भी समाप्त हो गया।
सेंट थोमे का युद्ध (1748 ई.)
सेंट थोमे की लड़ाई फ्रांसीसियों व बंगाल के नवाब अनवरुद्दीन की सेना के बीच लड़ी गई। इसमें फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व कैप्टन पैराडाइज ने और नवाब की सेना का नेतृत्व महफूज खाँ ने किया। इसमें फ्रांसीसी सेना ने नवाब की सेना को पराजित कर दिया।
प्लासी का युद्ध (23 जून 1757 ई.)
प्लासी की लड़ाई में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व राबर्ट क्लाइव ने किया। अंग्रेजी सेना में 21 हजार भारतीय सैनिक शामिल थे। बंगाल के नवाब सिराज उद्दौला की ओर से मीर मदान, मोहनलाल व कुछ फ्रांसीसी सैनिकों ने भाग लिया। प्लासी की लड़ाई में नवाब की हार हुई और वह भागकर मुर्शिदाबाद पहुँचा। यहां मीरजाफर के पुत्र मीरन ने उसकी हत्या करवा दी। इस लड़ाई की जीत से ‘बंगाल में अंग्रेजी सत्ता की नींव’ पड़ी। क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बना दिया गया। अंग्रेजों की सहायतार्थ मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया। नवाब के प्रधान सेनापति मीरजाफर की गद्दारी ने बंगाल की सत्ता पर अंग्रेजों का अधिकार करवा दिया।
वांडीवाश का युद्ध (22 जनवरी 1760 ई.)
यह अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के बीच निर्णायक लड़ाई थी। इसमें अंग्रेजी सेना का नेतृत्व सर आयरकूट और फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व काउंट लाली कर रहा था। इस लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई। इस लड़ाई का समापन पेरिस की संधि (1763) से हुआ। इस संधि के तहत फ्रांसीसियों को उनके सभी भारतीय कारखाने बापस कर दिए गए। परंतु अब वे न तो इनकी किलेबंदी कर सकते थे और न ही सैनिक वहाँ डेरा डाल सकते थे।
पानीपत की तीसरी लड़ाई (14 जनवरी 1761 ई.)
यह लड़ाई अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली और मराठों के बीच हुआ। इस समय मराठा साम्राज्य का नेतृत्व बालाजी बाजीवराव के हाथों में था। अब्दाली ने मराठों से बदला देने के लिए जनवरी 1761 में भारत पर आक्रमण किया। इसमें मराठों की पूर्णतः हार हुई। इस लड़ाई में जाट, राजपूत व सिखों ने भी मराठों का साथ नहीं दिया। इस हार से मराठों की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंची। बालाजी वाजीराव इस हार को सहन न कर सका और 1761 में उसकी मृत्यु हो गई। काशीराम पंडित इस लड़ाई के प्रत्यतक्षदर्शी थे। 20 मार्च 1761 को दिल्ली से बापस जाते हुए अब्दाली ने मुगल शासक शाहआलम द्वितीय को पुनः शासक बनाया। साथ ही इमादुल मुल्क को वजीर और नबीजुद्दौला को मीरबख्श बनाया। अब्दाली ने भारत पर अपना सातवां और अंतिम आक्रमण मार्च 1767 ई. में किया।
बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764 ई.)
इस लड़ाई के समय बंगाल का नबाव मीरजाफर था। यह लड़ाई बिहार के बक्सर में 22 अक्टूबर 1764 को हुआ। इसमें अंग्रेजी सेना का नेतृत्व हेक्टर मुनरो ने किया। दूसरी ओर मीर कासिम, मुगल शासक शाहआलम द्वितीय और अवध के नबाव शुजाउद्दौला की संयुक्त सेनाएं थीं। इस लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई। मीर कासिम दिल्ली भाग गया। शुजाउद्दौला और आहआलम द्वितीय ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस लड़ाई में विजय के बाद भारत में अंग्रेजों की सत्ता स्थाई रूप से कायम हो गई।
भारत चीन युद्ध (1962 ई.)
चीनी सेना ने 8 सिंतबर 1962 को थागला पहाड़ी पर हमला किया और भारतीयों को पीछे हटा दिया। परंतु भारत ने इसे छोटी घटना समझकर ध्यान नहीं दिया। एक सप्ताह बाद चीन ने फिर नार्थ ईस्टर्न फ्रंटियर एजेंसी (वर्तमान अरुणाचल प्रदेश) क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। 9 नवंबर 1962 को नेहरु जी ने अमेरिका व इंग्लैंड सरकार को दो पत्र लिखकर सैन्य सहायता की मांग की। 21 नवंबर 1962 को चीन ने अपनी ओर से युद्ध विराम की घोषणा कर दी।