‘ब्लैक होल (Black Hole)’ या कृष्ण विविर अंतरिक्ष की वह घटना है जिससे किसी तारे का अंत होता है। आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं ब्लैकहोल के बारे में विस्तार से –
ब्लैक होल (Black Hole) की संकल्पना –
जॉन माइकल ने साल 1784 ई. में ब्लैक होल का आईडिया दिया।
ब्लैक होल शब्द का पहली बार प्रयोग 1967 ई. में अमेरिका के खलोलशास्त्री जॉन व्हीलर ने किया।
दो या दो से अधिक ब्लैक होल्स के समूह को रॉग ब्लैकहोल कहा जाता है।
ब्लैक होल (Black Hole) क्या है ?
ब्लैकहोल अंतरिक्ष का वो स्थान है जहाँ से जाकर कुछ भी बापस नहीं आता। ये बेहद शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण का क्षेत्र है जिस पर भौतिक विज्ञान का कोई नियम लागू नहीं होता। प्रकाश भी यहाँ से बापस नहीं आ सकता। ब्लैक होल के चारो तरफ एक सीमा होती है जिसे ‘क्षितिज’ कहा जाता है। जब किसी तारे पर अवस्थित सारा हाइड्रोजन समाप्त (हीलियम में परिवर्तित) हो जाता है तो वह तारा ब्लैकहोल में परिवर्तित हो जाता है। ब्लैकहोल को देखा नहीं जा सकता। क्योंकि किसी वस्तु को देखने के लिए उस पर प्रकाश तरंगों का टकराकर बापस आना अनिवार्य है।
तारे का जीवनचक्र –
आकाशगंगा के संचरण से ब्रह्माण में फैली गैसें प्रभावित होती हैं। गुरुत्वाकर्षण के कारण वे परस्पर एकत्रित होने लगती हैं। कुछ समय बाद उनके केंद्र में विद्यमान हाइड्रोजन का हीलियम में परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाना है। इस क्रिया को नाभिकीय संलयन क्रिया कहा जाता है। यही अवस्था है जब तारे का निर्माण हो जाता है। हाइड्रोजन के हीलियम में निरंतर परिवर्तित होने के कारण एक दिन तारे के केंद्र का हाइड्रोजन समाप्त हो जाता है। अब केंद्र में अवस्थित हीलिमय कार्बन व अन्य भारी पदार्थों में बदलने लगता है।
इसके फलतः तारे में भयानक विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा कहा जाता है।
अंत में तारा ब्लैकहोल में परिवर्तित होकर समाप्त हो जाता है।