भारत का उच्चतम न्यायालय (Supreme Court)

भारत का उच्चतम न्यायालय (Supreme Court)

भारत का उच्चतम न्यायालय ( Supreme Court of India) – मुख्य न्यायाधीश, न्यायधीशों की संख्या व सूची, तदर्थ न्यायाधीश, नियुक्ति, चयन, अर्हताएं, विवाद, सेवानिवृत्ति, पदावधि, महाभियोग एवं महाभियोग की प्रक्रिया…

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय भारतीय न्यायपालिका का शीर्ष है। उच्चतम न्यायालय की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत की गई है।

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या –

मूल संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय में 1 मुख्य न्यायाधीश और 7 अन्य न्यायाधीश होते थे। 1956 में अन्य न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 10 कर दी। तत्पश्चात 1960 ई. में 13, 1977 ई. में 17 कर दी गई। इसके बाद 1986 ई. में अन्य न्यायाधीशों की संख्या 30 कर दी गई। इसके बाद साल 2019 में अन्य न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 33 कर दी गई। इस तरह वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में 1 मुख्य न्यायाधीश और 33 अन्य न्यायाधीश हैं। अर्थात वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 34 (33+1) है। न्यायाधीशों की संख्या विहित करने की शक्ति संसद के पास है।

उच्चतम न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश –

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में गणपूर्ति की स्थित न होने पर मुख्य न्यायाधीश किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश से बैठक में उपस्थित रहने की अपील कर सकता है। यह राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से होगा। यह अनुरोध लिखित रूप में किया जएगा। इसके लिए मुख्य न्यायाधीश से पहले परामर्श करना आवश्यक है (अनुच्छेद-127)। जिस न्यायाधीश को निमंत्रित किया गया है वह सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश होने के लिए अर्ह होना चाहिए।

सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति –

उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से भी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने हेतु अपील की जा सकती है। इसके लिए भी राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति होना चाहिए। जिस न्यायाधीश से अपील की जा रही है वह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए अर्ह होना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति –

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का हर न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। अन्य न्याधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करेगा। राष्ट्रपति यह कार्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही करेगा।

मुख्य न्यायाधीश का चयन –

प्रारंभ में वरिष्ठता के अनुसार ही मुख्य न्यायाधीश का चयन किया जाता था। यह व्यवस्था साल 1973 तक निर्विवाद रूप से चलती रही। हालांकि 1956 में भारत के विधि आयोग ने इस पर अपनी असहमति व्यक्त की। विधि आयोग ने कहा कि आंख मूंदकर वरिष्ठता के अनुसार नियुक्ति की परंपरा ठीक नहीं। इसके स्थान पर न्यायमूर्ति के गुण व योग्यताओं पर विचार किया जाना चाहिए। सिर्फ ज्येष्ठता को ही नियुक्ति का आधार नहीं बनाना चाहिए। हालांकि विधि आयोग के इस प्रतिवेदन पर सरकार ने कोई अमल नहीं किया और वही व्यवस्था बनाए रखी।

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केशवानन्द भारती विवाद – 1973

परंतु बहुचर्चित केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य विवाह के निर्णय के कुछ घंटों बाद ही न्या. ए. एन. रे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया। जब्कि उस वक्त तीन अन्य न्यायाधीश उनसे ज्येष्ठ थे। इन तीनों न्यायाधीशों ने तुरंत अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। बहुत से एसोसिएशन, वकीलों व सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने इसका विरोध किया और कहा कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रहार हुआ है।

बंदी प्रत्यक्षीकरण मामाला –

तीन साल बाद 1976 ई. में सर्वोच्च न्यायालय ने बंदी प्रत्यक्षीकरण पर अपनी राय प्रकट की। 5 न्यायधीशों की पीठ में अकेले न्या. एच. आर. खन्ना ने अन्य से विसम्मत निर्णय दिया। उन्होंने अपना मत दिया कि आपातकाल के दौरान भी प्राणों का अधिकार विद्यमान रहता है। सरकार को उनका फैसला रास नहीं आया। इसका खामियाजा उन्हें मुख्य न्यायाधीश के पद से वंचित होकर चुकाना पड़ा। उनकी ज्येष्ठता की अनदेखी कर सरकार ने उनसे कनिष्ठ न्या. एम. यू. बेग को मुख्य न्यायधीश बना दिया।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की अर्हताएं –

  • – भारत का नागरिक हो।
  • – राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता हो।
  • – किसी उच्च न्यायालय में कम से कम 5 वर्ष न्यायाधीश रहा हो। या
  • – किसी उच्च न्यायालय में कम से कम 10 वर्ष अधिवक्ता रहा हो।

न्यायाधीश की पदावधि –

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश के सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष निर्धारित की गई है। हालांकि इस पद के लिए निम्नतम आयु सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है। न्यायाधीश जब चाहे राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र संबोधित कर सकता है। साथ ही राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत द्वारा पारित समावेदन के माध्यम से भी न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को केवल दो आधारों (असमर्थता, व साबित कदाचार) पर ही पद से हटाया जा सकता है।

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महाभियोग –

संविधान के अनुच्छेद-124(4) के अनुसार न्यायाधीश को साबित कदाचार व असमर्थता के आधार पर ही पद से हटाया जा सकता है। संसद ने इसके लिए न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 अधिनियमित किया।

महाभियोग की प्रक्रिया –

इसके लिए न्यायाधीश को हटाने के उद्देश्य से राष्ट्रपति को समावेदन दिया जाता है। समावेदन लोकसभा से आने पर इस पर कम से कम 100 सदस्यों के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं। समावेदन यदि राज्यसभा से आया है तो इस पर कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए। लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति ऐसे लोगों से परामर्श कर सकते हैं जो इसके लिए उक्त हों। यह प्रस्ताव ग्रहण कर लिया जाता है तो तीन लोगों की समिति गठित की जाएगी। इस समिति में एक हाई कोर्ट का मुख्य या अन्य न्यायाधीश होगा। एक उच्च न्यायालयों में से किसी का मुख्य न्यायाधीश होगा।

एक व्यक्ति कोई पारंगत विधिवेत्ता होगा। यदि समिति न्यायाधीश को असमर्थ या कदाचार का दोषी पाती है, तो न्यायाधीश को हटाए जाने के प्रस्ताव और समिति के प्रतिवेदन पर उस सदन में विचार किया जाएगा जहाँ वह लंबित हो। यह प्रस्ताव दोनों सदनों की कुल संख्या के बहुमत और उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पास होना चाहिए। इस प्रकार पारित समावेदन को अंत में राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश देता है।

उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायाधीशों की सूची –

मुख्य न्यायाधीशकार्यकाल(से)कार्यकाल(तक)
हीरालाल जे. कानिया26 जनवरी 19506 नवंबर 1951
एम. पतंजलि शास्त्री7 नवंबर 19513 जनवरी 1954
महर चंद महाजान4 जनवरी 195422 दिसंबर 1954
बी. के. मुखर्जी23 दिसंबर 195431 जनवरी 1956
एस. आर. दास1 फरवरी 195630 सितंबर 1959
भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा1 अक्टूबर 195931 जनवरी 1964
पी. बी. गजेंद्र गडकर1 फरवरी 196415 मार्च 1966
ए. के. सरकार16 मार्च 196629 जून 1966
के. सुब्बाराव30 जून 196611 अप्रैल 1967
के. एन. वांचू12 अप्रैल 196724 फरवरी 1968
एम. हिदायतुल्ला25 फरवरी 196816 दिसंबर 1970
आई. सी. शाह17 दिसंबर 197021 जनवरी 1971
एस. एम. सीकरी22 जनवरी 197125 अप्रैल 1973
ए. एन. रे26 अप्रैल 197327 जनवरी 1977
एम. एच. बेग28 जनवरी 197721 फरवरी 1978
वाई. वी. चंद्रचूड़22 फरवरी 197811 जुलाई 1985
पी. एन. भगवती12 जुलाई 198520 दिसंबर 1986
आर. एस. पाठक21 दिसंबर 198618 जून 1989
ई. एस. वेंकटरमैया19 जून 198917 दिसंबर 1989
एस. मुखर्जी18 दिसंबर 198925 सितंबर 1990
रंगनाथ मिश्र26 सितंबर 199024 नवंबर 1991
के. एन. सिंह25 नवंबर 199112 दिसंबर 1991
एम. एच. कानिया13 दिसंबर 199117 नवंबर 1992
आई. एम. शर्मा18 नवंबर 199211 फरवरी 1993
एम. एन. वेंकट चलैया12 फरवरी 199324 अक्टूबर 1994
ए. एम. अहमदी25 अक्टूबर 199424 मार्च 1997
जे. एस. वर्मा25 मार्च 199717 जनवरी 1997
एम. एम. पंछी18 जनवरी 19989 अक्टूबर 1998
ए. एस. आनंद10 अक्टूबर 199831 अक्टूबर 2001
एस. पी. भरुचा1 नवंबर 20015 मई 2002
बी. एन. कृपाल6 मई 20027 नवंबर 2002
जी. बी. पटनायक8 नवंबर 200218 दिसंबर 2002
वी. एन. खरे19 दिसंबर 20021 मई 2004
एस. राजेंद्र बाबू2 मई 200431 मई 2004
आर. सी. लाहोटी1 जून 200431 अक्टूबर 2005
वाई. के. सब्बरवाल1 नवंबर 200514 जनवरी 2007
के. जी. बालकृष्णन14 जनवरी 200712 मई 2010
एस. एच. कपाड़िया12 मई 201028 सितंबर 2012
अल्तमस कबीर29 सितंबर 201219 जुलाई 2013
पालानीसामी सदाशिव19 जुलाई 201326 अप्रैल 2014
राजेंद्र मल लोढ़ा27 अप्रैल 201427 सितंबर 2014
एच. एल. दत्तू28 सितंबर 20142 दिसंबर 2015
तीरथ सिंह ठाकुर3 दिसंबर 20153 जनवरी 2017
जगदीश सिंह खेहर4 जनवरी 201727 अगस्त 2017
दीपक मिश्रा28 अगस्त 20172 अक्टूबर 2018
रंजन गोगोई2 अक्टूबर 201817 नवंबर 2019
शरद अरविंद बोबड़े18 नवंबर 2019 से23 अप्रैल 2021
एन. वी. रमना24 अप्रैल 2021 से27 अगस्त 2022
यू. यू. ललित28 अगस्त 2022 से9 नवंबर 2022
धनञ्जय Y. चंद्रचूड़9 नवम्बर 2022वर्तमान
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