भारत के शासक

भारत के शासक शीर्षक के इस लेख में भारत के लगभग सभी प्रमुख शासकों का जिक्र किया गया है। प्राचीनकाल के मौर्य व गुप्त वंश, मध्यकाल के दिल्ली सल्तनत के वंश और मगलकाल। इनमें चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, हर्षवर्धन, गुलाम, खिलजी, तुगलक, लोदी, व मुगल सम्मिलित हैं।

बिम्बिसार (544 – 492 ई. पू.)

बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना की। इसने 15 वर्ष की अवस्था में शासन की सत्ता संभाल ली और 52 वर्ष तक शासन किया। इसने साम्राज्य की राजधानी राजगृह या गिरिब्रज को बनाया। जैन साहित्य में इसे श्रेणक के नाम से जाना जाता है। 492 ई. पू. इसके पुत्र अजातशत्रु ने इसकी हत्या कर दी।

अजातशत्रु (492-460 ई. पू.)

पिता की हत्या कर यह मगध का शासक बना। इसने कोशल नरेश प्रसेनजित को पराजित किया और मित्रता कर ली। इसे कुणिक के नाम से जाना जाता है।

उदायिन (460-444 ई. पू.)

इसने पाटलिपुत्र नगर की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी बनाया।

शिशुनाग (412 -394 ई. पू.)

इसने अपने नाम से ही शिशिनाग वंश की स्थापना की। इसने वैशाली को अपनी राजधानी बनाया। वत्स व अवंति राज्य पर अधिकार कर मगध साम्राज्य में मिला लिया।

कालाशोक (394-366 ई. पू.)

पुराण व दिव्यावदान में इनका नाम काकवर्ण मिलता है। इसने राजधानी को वैशाली से पुनः पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया। इसी के काल में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में हुआ। बौद्ध धर्म दो भागों स्थविर व महासांघिक में बंट गया।

महापद्म नंद

इसे नंद वंश का संस्थापक माना जाता है।

धनानंद

यूनानी शासक सिकंदर महान 326 ई. पू. इसी के शासनकाल के दौरान भारत आया। आचार्य चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त ने इसी हत्या कर दी।

चंद्रगुप्त मौर्य (322-298 ई. पू.)

धनानंद को पराजित कर चंद्रगुप्त 322 ई. पू. मगध का शासक बना। इस तरह मगध की गद्दी पर एक नए राजवंश मौर्य  वंश का उदय हुआ। इसने चाणक्य को अपना प्रधानमंत्री बनाया। इसने सेल्युकस निकेटर को पराजित किया। सेल्युकस ने अपनी पुत्री हेनेला का विवाह चंद्रगुप्त से किया। सेल्युकस ने अपने राजदूत मेगस्थनीज को मौर्य दरबार में भेजा। मेगस्थनीज ने यहां रहकर इंडिका नामक अपनी पुस्तक लिखी।

बिंदुसार (298-273 ई. पू.)

इसे अमित्रघात, भद्रसार, व सिंहसेन इत्यादि नामों से जाना जाता है। सीरिया के शासक एंटियोकस प्रथम ने अपने राजदूत डाइमेकस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा। बिंदुसार ने एंटियोकस से सूखा अंजीर, अंगूरी मदिरा, व एक दार्शनिक की मांग की।

अशोक महान (273-232 ई. पू.)

273 ई. पू. बिंदुसार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अशोक राजा बना। अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक 269 ई. पू. हुआ। अशोक का नामोल्लेख मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर व उदेगोलम अभिलेखों में मिलता है। राज्याभिषेक के 8वें वर्ष इसने कलिंग पर आक्रमण किया। प्रारंभ में यह ब्राह्मण धर्म का था। बाद में बौद्ध धर्म अपना लिया। अशोक का काल मुख्य रूप से अपने अभिलोखीय साक्ष्यों के लिए माना जाता है।

श्रीगुप्त

श्रीगुप्त को गुप्त वंश का संस्थापक माना जाता है। इसने महाराज की उपाधि धारण की थी, जो कि सामंतो की होती थी। इससे अनुमान लगाया गया कि वह स्वतंत्र शासक नहीं था।

चंद्रगुप्त प्रथम (319-50 ई .)

चंद्रगुप्त प्रथम को गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। इसने अपने राज्याभिषेक की तिथि 319 ई. से एक नई संवत् गुप्त संवत् की शुरुवात की। समुद्रगुप्त को अपनी उत्तराधिकारी बनाकर इसने संन्यास ग्रहण कर लिया।

समुद्रगुप्त (350-75 ई.)

समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है। ये एक महान विजेता था। इसने आर्यावर्त तथा दक्षिणावर्त के 12-12 शासकों को पराजित किया। इसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त की विजयों की जानकारी प्राप्त होती है। इसने गरुणप्रकार, धनर्धारी प्रकार, अश्वमेघ प्रकार, वीणावादन प्रकार की मुद्राएं चलवाईं।

चंद्रगुप्त द्वितीय/विक्रमादित्य (375-415 ई.)

इसने शकों को पराजित किया। विक्रमादित्य, विक्रमांक, व परमभागवत की उपाधि धारण की। इसके दरबार में 9 विद्वानों का समूह रहता था। इनमें महाकवि कालिदास, धनवंतरि, क्षपणक व वराहमिहिर शामिल थे। इसका काल ब्राह्मण धर्म का स्वर्ण युग था। इसने नागवंश की कन्या कुबेरनागा से विवाह किया। अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय से किया। इसके शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान (399-414 ई.) भारत आया।

कुमारगुप्त प्रथम/महेंद्रादित्य (415-55 ई.)

इसके शासन की जानकारी वत्सभट्टि के मंदसौर अभिलेख से मिलती है। इसने नालंदा विश्वविद्यालय (ऑक्सफार्ड ऑफ महायान) की स्थापना की।

स्कंदगुप्त (455-67 ई.)

भारत पर प्रथम हूण आक्रमण शुखनवाज के नेतृत्व में स्कंदगुप्त के ही शासनकाल में हुआ। स्कंदगुप्त ने हूणों (मलेच्छों) के आक्रमण को विफल कर दिया। इसके काल में सुदर्शन झील का पुनरुद्धार हुआ चक्रपालि के नेतृत्व में हुआ।

हर्ष वर्धन ( 606-47 ई.)

साल 606 ई. 16 वर्ष की अवस्था में हर्षवर्धन थानेश्वर की गद्दी पर बैठा। चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा के तट पर हर्ष को पराजित किया। इसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था। अतः इसकी मृत्यु के बाद राज्य फिर विघटित हो गया।

कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-10 ई.)

भारत में तुर्की साम्राज्य का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक को माना जाता है। यह मुहम्मद गोरी का गुलाम था। 1206 ई. में इसने भारत में एक नए राजवंश गुलाम वंश की नींव डाली। इसने अपनी राजधानी लाहौर को बनाया। चौगान खेलते हुए घोड़े से गिरने के कारण इसकी मौत हो गई।

इल्तुतमिश (1210-36 ई.)

इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का दास व दामाद था। इसने दिल्ली को सल्तनत की राजधानी बनाया। इसने सुल्तान के पद को वंशानुगत बनाया। इसने एक संगठन तुर्कान ए चहलगानी का गठन किया। इसने चाँदी का टंका व ताँबे का जीतल चलाया। इसने इक्ता व्यवस्था की शुरुवात की।

रजिया सुल्तान (1236-40 ई.)

इल्तुतमिश ने अपने जीवनकाल में ही रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। फिर भी उस वक्त के अमीर एक स्त्री का शासन वर्दास्त न कर सके। वे रजिया के विरुद्ध षणयंत्र रचने लगे। 13 अक्टूबर 1240 को डाकुओं द्वारा रजिया की हत्या कर दी गई। इसके बाद नासिरुद्दी महमूद शासक बना।

बलबन (1266-87 ई.)

बलबन इल्तुतमिश द्वारा बनाए गए संगठन तुर्क ए चहलगानी का सदस्य था। अतः इसने सबसे पहले इसी दल का दमन किया। इसने रक्त व लौह की नीति को अपनाया। इसने कहा राजत्व का निरंकुश होना आवश्यक है। इसने सुल्तान के पद को दैवीय बताया। इसने खुद को अफरासियाब का वंशज बताया। सिजदा (सर झुकाना) व पाबोस (पैस चूमना) की प्रथा की शुरुवात की। ईरानी त्योहार नौरोज की शुरुवात की। बलबन के बाद उसका पौत्र कैकुबाद शासक बना।

जलालुद्दीन खिलजी (1290-96 ई.)

जलालुद्दीन ने 1290 ई. में सुल्तान बनकर एक नए राजवंश खिलजी वंश की नींव डाली। कैकुबाद द्वारा बनवाए गए किलोखरी महल में इसका राज्यारोहण हुआ। अलाउद्दीन के नेतृत्व में दक्षिण भारत पर पहला आक्रमण इसी के काल में हुआ। अलाउद्दीन खिलनी ने देवगिरि के शासक रामचंद्र देव पर आक्रमण किया। इसी काल में 2000 मंगोल इस्लाम अपनाकर मंगोलपुरी में बस गए। 19 जुलाई 1296 को भतीजे अलाउद्दीन द्वारा जलालुद्दीन की हत्या करवा दी गई।

अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.)

इसने शासक बनते ही सबसे पहले जलालुद्दीन के पूरे परिवार का कत्ल करवा दिया। दिल्ली में बलबन के लालमहल में इसने अपना राज्याभिषेक कराया। यह एक साम्राज्यवादी शासक था। सर्वाधिक मंगोल आक्रमण इसी के काल में हुए। दीवान ए रियासत विभाग की स्थापना की। दाग और चेहरा प्रथा की शुरुवात की। इसे मुख्य रूप से इसकी सुदृढ़ बाजार व्यवस्था के लिए जाना जाता है।

मुबारकशाह खिलजी (1316-20 ई.)

यह हिंदू धर्म से परिवर्तित मुसलमान था। इसने स्वयं को खलीफा घोषित किया।

गयासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.)

सिंचाई हेतु नहर का निर्माण कराने वाला पहला सुल्तान था। इसी के काल में सर्वप्रथम दक्षिण के राज्यों को सल्तनत में मिलाया गया। निजामुद्दीन औलिया ने इसी के बारे में कहा था ‘दिल्ली अभी दूर है‘।

मुहम्मद बिन तुगलक (1325-51 ई.)

यह सल्तनत काल का सबसे विद्वान व शिक्षित शासक था। ये अरबी, फारसी, दर्शनशास्त्र, खगोल विज्ञान, गणित, तर्कशास्त्र व चिकित्सा विज्ञान में निपुण था। 1333 ई. में इसी के काल में अफ्रीकी देश मोरक्को का निवासी इब्नबतूता भारत आया था। मु. तुगलक ने सल्तनत की राजधानी दिल्ली से दौलताबाद(देवगिरि) स्थानांतरित की। शासक ने कुछ प्रयोग किये जो विफल रहे। राजधानी परिवर्तन, सांकोतिक मुद्रा, खुरासान पर आक्रमण, कराचिल अभियान, दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि।

फिरोज तुगलक (1351-88 ई.)

यह मुहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई था। इसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगाया। इसने 23 करों को समाप्त कर शरियत के अनुसार जजिया, जकात, खुम्स, खराज को जारी रखा। इसने जौनपर, फिरोजाबाद, व हिसारफिरोजा नगरों को बसाया। इसने अपने उत्तराधिकारी पुत्र फतह खाँ का नाम सिक्कों पर खुदवाया। इसने एक दान विभाग दीवान ए खैरात की स्थापना की। एलफिंस्टन व हेनरी इलियट ने इसे ‘सल्तनत युग का अकबर’ कहा।

खिज्र खाँ (1414-21 ई.)

सैय्यद वंश के संस्थापक खिज्र खां ने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। वह खुद को तैमूर का सेवक समझता था और ‘रैयत ए आला’ की उपाधि से ही संतुष्ट रहा। इसने सिक्कों पर तुगलक शासकों का ही नाम रहने दिया।

मुबारक शाह (1421-39 ई.)-

याहिया बिन सरहिंदी अहमद ने इसी के संरक्षण में ‘तारीख ए मुबारकशाही‘ लिखी। इसने अपने नाम का खुतबा पढ़वाया और सिक्के चलवाए।

बहलोल लोदी (1451-89 ई.)

इसने दिल्ली सल्तनत पर प्रथम अफगान साम्राज्य की नींव डाली। यह अफगानों की शाहूखेल शाखा से संबंधित था। 1484 ई. में इसने जौनपुर रियासत को सल्तनत में मिला लिया। यह कभी सिंहासन पर नहीं बैठा।

सिकंदर लोदी (1489-1517 ई.)

1504 ई. में सिकंदर लोदी ने आगरा नगर की स्थापना की। 1506 ई. में आगरा को सल्तनत की राजधानी बनाया। इसने गज ए सिकंदरी की शुरुवात की। यह गुलरुखी नाम से कविताएं लिखता था। इसने मुहर्रम व ताजिये निकलना बंद कर दिया। इसने हिंदुओं पर पुनः जजिया कर लगा दिया। इसने फरहंगे सिकंदरी नाम से एक आयुर्वेदिक ग्रंथ का अनुवाद फारसी में कराया।

इब्राहीम लोदी (1517-26 ई.)

1517-18 ई. में यह राणा सांगा से घटोली के युद्ध में पराजित हुआ। 1526 ई में बाबर से हुई पानीपत की प्रथम लड़ाई में यह हारा और मारा गया। इसकी मृत्यु के साथ लोदी वंश और दिल्ली सल्तनत दोनों का अन्त हो गया। युद्ध भूमि में मरने वाला यह दिल्ली सल्तनत का पहला व एकमात्र शासक था।

बाबर (1526-30 ई.)

पिता की मृत्यु के बाद मात्र 11 वर्ष की अवस्था में बाबर फरगना की गद्दी पर बैठा। पानीपत की पहली लड़ाई में विजय प्राप्त कर इसने भारत में एक नए राजवंश मुगल वंश की नींव रखी। इसके बाद खानवा, चंदेरी और घाघरा की लड़ाई लड़ी। मंगोलों की ही एक शाखा से संबंधित होने के कारण ये मुगल कहलाए। 26 दिसंबर 1530 को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गई। पहले उसे आगरा के आरामबाग में तत्पश्चात् काबुल में दफनाया गया। इसने तुर्की में अपनी आत्मकथा ‘तुजुक ए बाबरी’ लिखी।

हुमायूँ (1530-40 ई.) (1555-56 ई.)

यह बाबर का सबसे बड़ा पुत्र था। इसने अपने भाइयों में साम्राज्य का बंटवारा कर दिया। जून 1539 ई. में यह चौसा के युद्ध में शेरखाँ से बुरी तरह पराजित हुआ। हुमाय़ूं गंगा नदी में कूद गया, भिश्ती ने इसकी जान बचाई। मई 1540 में हुमायूं पुनः शेरखां से पराजित हुआ। इसके बाद ये निर्वासित जीवन जीने पर विवश हो गया। जून 1555 ई. में सरहिंद के युद्ध में हुमायूं ने अफगानों को बुरी तरह पराजित कर दिया। इस तरह एक बार फिर सत्ता मुगलों के हाथ में आ गई। इसके बाद जनवरी 1556 ई. में हुमायूं की मौत हो गई।

शेरशाह सूरी (1540-45 ई.)

शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था। इसने तलबार से एक शेर मार दिया था। बिहार के सूबेदार बहार खाँ लोहानी ने इसे शेरखाँ की उपाधि दी। चौसा के युद्ध में हुमायूं को हराने के बाद शेरशाह की उपाधि धारण की। हुमायूं को कन्नौज के युद्ध में पराजित कर दिल्ली की गद्दी हासिल की। इस तरह इसने सूर वंश के साथ द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की। 1542 ई. में इसने मालवा पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। एक रायसीन अभियान शेरशाह के चरित्र पर कलंक है। इसने कुरान की कसम खाने के बाद भी राजा पूरनमल के साथ छल किया। इसके प्रत्यक्षदर्शी कुतुबखाँ ने शर्म से आत्महत्या कर ली। मारवाड़ अभियान (1544 ई.) के दौरान शेरशाह ने कहा ‘मैं मुठ्ठी भर बाजरे के लिए लगभग आधे हिंदुस्तान का साम्राज्य खो चुका था।’ कालिंजर अभियान (1545 ई.) शेरशाह का अंतिम अभियान था। इसी अभियान में शेरशाह की मृत्यु हो गई।

अकबर (1556 – 1605 ई.)

15 अक्टूबर 1542 ई. को अकबर का जन्म अमरकोट में राजा वीरसाल के महल में हुआ था। पिता हुमायूं की मृत्यु के दौरान ये पंजाब के सिकंदर सूर से युद्ध कर रहा था। 14 फरवरी 1556 को अकबर का राज्याभिषेक बैरम खां की देखरेख में हुआ। 1556 से 1560 के बीच अकबर बैरम खां के संरक्षण में रहा। अकबर ने 1562 ई. में दास प्रथा को समाप्त किया। 1564 ई. में जजिया कर समाप्त किया। गुजरात विजय की स्मृति में बुलंद दरबाजा बनवाया। अकबर के समय पहला विद्रोह 1564 में उजबेगों ने किया। 1576 ई. में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को हराया। 1601 ई. में असीरगढ़ पर आक्रमण अकबर की अंतिम विजय थी। 25 अक्टूबर 1605 को पेचिश के कारण अकबर की मृत्यु हो गई।

जहांगीर (1605-27 ई.)

जहांगीर के बचपन का नाम सलीम था। इसका जन्म सलीम चिश्ती की कुटिया में 30 अगस्त 1569 ई. को हुआ था। अकबर की मृत्यु के बाद 3 नवंबर 1605 को आगरा किले में सलीम का राज्याभिषेक हुआ। यह जहाँगीर के नाम से भारत का शासक बना। शासक बनने के बाद इसने न्याय की जंजीर स्थापित की। 1623 ई. में शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) ने विद्रोह कर दिया। महावत खाँ ने इस विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिक निभाई। बाद में 1626 ई. में महाबात खाँ ने विद्रोह कर दिया। 28 अक्टूबर 1627 को जहाँगीर की मृत्यु हो गई। इसे रावी नदी के तट पर शाहदरा (लाहौर) में दफनाया गया।

शाहजहाँ (1727-58 ई.)

शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 ई. को लाहौर में हुआ था। इसके बचपन का नाम खुर्रम था। 1612 ई. में इसका विवाह आसफखाँ की बेटी अर्जुमंद बानो बेगम (मुमताज महल। से हुआ। मुमताज महल से शाहजहाँ की 14 संतानें पैदा हुई। परंतु इन 14 में से 7 ही जीवित बची। पिता जहाँगीर की मृत्यु के समय यह दक्षिण में था।

24 जनवरी 1628 को शहजादा खुर्रम शाहजहां के नाम से भारत का शासक बना। 1630-32 में दक्कन व गुजरात में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। शाहजहाँ ने 1633 ई. में अहमदनगर पर आक्रमण कर साम्राज्य में मिला लिया। सितंबर 1657 ई. में शाहजहाँ के बीमार पड़ते ही पुत्रों में उत्तराधिकार की लड़ाई शुरु हो गई। शासक के जीवित रहते उत्तराधिकार के लिए हुआ यह पहला युद्ध था। इस युद्ध में औरंगजेब को जीत हासिल हुई। 1658 ई. में औरंगजेब ने शाहजहाँ से सिंहासन हड़प लिया और इन्हें कैद कर लिया। 1666 ई. में शाहजहाँ की मृत्यु हो गई। सबसे बड़ी पुत्री जहाँआरा ने इनकी मृत्यु तक सेवा की।

औरंगजेब (1658-1707 ई.)

औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 ई. को दोहद (उज्जैन) में हुआ था। पिता शाहजहाँ को गद्दी से उतार कर जुलाई 1658 ई. में भारत का शासक बना। इसके बाद दाराशिकोह व शाहशुजा को परास्त कर जून 1659 ई. में पुनः राज्याभिषेक कराया। शासन के 11वें वर्ष झरोखा दर्शन की प्रथा को बंद कर दिया। 12वें वर्ष तुलादान की प्रथा को बंद कर दिया। 1679 ई. में जजिया कर लगाया। 1682 ई. में यह शहजादे अकबर का पीछा करता हुआ दक्षिण पहुँचा। इसके बाद इसे उत्तर में आने का मौका ही नहीं मिला। सितंबर 1686 ई. में बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। अक्टूबर 1687 ई. में गोलकुण्डा को मगुल साम्राज्य में मिला लिया। 3 मार्च 1707 ई. को अहमदनगर के निकट औरंगजेब की मृत्यु हो गई।

बहादुरशाह प्रथम (1707-12 ई.)

औरंगजेब के बाद बहादुरशाह 65 वर्ष की अवस्था में भारत का शासक बना। इसने जजिया कर को समाप्त कर दिया। 27 फरवरी 1712 ई. को बहादुरशाह की मृत्यु हो गई। सिडनी ओवन के अनुसार ‘यह अंतिम मुगल शासक था जिसके बारे में कुछ अच्छा कहा जा सकता है।’ इसके बाद के मुगल वंश लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक चला। परंतु पूर्व मुगलों की अपेक्षा प्रतिष्ठा में तेजी से कमी आती गई।

भारतीय इतिहास की लड़ाइयां

‘भारतीय इतिहास की लड़ाइयां’ शीर्षक के इस लेख में भारत में हुई प्रमुख लड़ाइयों व युद्धों को संकलित किया गया है। भारतीय इतिहास में हुई प्रमुख लड़ाइयां व युद्ध, उनकी तिथि, शासक व उनसे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी –

हाइडेस्पीज का युद्ध (326 ई. पू.)

इसे झेलम (वितस्ता) का युद्ध भी कहा जाता है। यह युद्ध यूनानी शासक सिकंदर महान और भारत के पश्चिमोत्तर राज्य पुरु (वर्तमान पंजाब का क्षेत्र) के शासक पोरस के बीच लड़ा गया था। पुरु राज्य झेलम व चिनाव नदियों के बीच अवस्थित था। इस युद्ध में पोरस की हार हुई और सिकंदर विजयी हुआ।

कलिंग का युद्ध (261 ई. पू.)

यह युद्ध मगध नरेश अशोक और कलिंग के बीच हुआ था। इस युद्ध में भीषण रक्तपात हुआ। इससे प्रभावित होकर अशोक के मन से हिंसा का भाव समाप्त हो गया। अशोक ने भविष्य में युद्ध न करने का फैसला किया। इस युद्ध का उल्लेख अशोक के 13वें शिलालेख में हुआ है।

सिंध पर अरब आक्रमण (712 ई.)

अरब आक्रमणकारी मो. बिन कासिम ने 712 ई. में सिंध पर आक्रमण कर दिया। इससे पहले भी दो अन्य मुस्लिम आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण कर चुके थे, परंतु उन्हें सफलता प्राप्त न हुई। अरबों को पहली बार सफलता मो. बिन कासिम के नेतृत्व में हासिल हुई। अरब आक्रमण के समय सिंध पर दाहिर का शासन था। सिंध पर अरब आक्रमण के दौरान कश्मीर का शासक ललितादित्य मुक्तिपीड था। पूर्व में नागभट्ट प्रथम का और दक्षिण में पुलकेशिन व राष्ट्रकूटों का साम्राज्य था।

तराइन की पहली लड़ाई (1191 ई.)

यह लड़ाई पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच हुई। इसमें पृथ्वीराज विजयी हुआ और मो. गोरी की हार हुई और वह घायल हो गया।

तराइन की दूसरी लड़ाई (1192 ई.)

तराइन का दूसरा युद्ध मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ। इसमें मो. गोरी विजय हुआ और पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। मिनहाज उस सिराज के अनुसार युद्ध के तुरंत बाद पृथ्वीराज की हत्या कर दी गई थी। हसन निजामी के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने गोरी की अधीनता स्वीकार कर ली। यही मत मान्य भी है क्योंकि पृथ्वीराज के सिक्कों पर गोरी का नाम पाया गया।

चंदावर की लड़ाई (1194 ई.)

यह लड़ाई मोहम्मद गोरी और कन्नौज के शासक जयचंद (गहड़वाल) के बीच हुई थी। इस लड़ाई में मो. गोरी की विजय और जयचंद की मौत हुई।

तराइन की तीसरी लड़ाई (जनवरी 1216 ई.)

यह लड़ाई इल्तुतमिश और यल्दौज के बीच हुई। इसमें यल्दौज की हार और इल्तुतमिश की जीत हुई।

पानीपत का पहला युद्ध (21 अप्रैल 1526 ई.)

पानीपत की पहली लड़ाई बाबर और इब्राहीम लोदी के बीच हुई थी। इस युद्ध में इब्राहीम लोदी की हार हुई और वह मारा गया। युद्ध भूमि में मरने वाला यह दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था। बाबर ने भारत में एक नए राजवंश मुगल वंश की नींव डाली। पानीपत वर्तमान हरियाणा में अवस्थित है। बाबर ने इस जीत का श्रेय अपने तीरंदाजों को दिया।

खानवा का युद्ध (1527 ई.)

खानवा की लड़ाई बाबर और मेवाड़ के राणा सांगा (संग्राम सिंह) के बीच हुई थी। पानीपत की जीत के बाद भी बाबर को राणा सांगा का भय था। सांगा को 18 युद्धों का अनुभव था। बाबर जानता था कि राणा सांगा के होते हुए वह ज्यादा दिन तक भारत में राज्य नहीं कर सकता। परंतु इस लड़ाई में भी बाबर की जीत हुई और राणा सांगा को पराजय का मुख देखना पड़ा।

चंदेरी की लड़ाई (1528 ई.)

यह लड़ाई चंदेरी के शानक मेदिनीराय और बाबर के बीच हुई। इसमें बाबर को जीत हासिल हुई। शेरशाह सूरी भी इस युद्ध में बाबर के साथ था।

घाघरा का युद्ध (1529 ई.)

घाघरा नदी के तट पर होने वाला यह मध्यकालीन भारत का ऐसा पहला युद्ध था जो जल व थल दोनों पर लड़ा गया। यह युद्ध बाबर और महमूद लोदी के बीच हुआ। इसमें बाबर ने महमूद लोदी के नेतृत्व वाली अफगानी सेना को पराजित किया।

चौसा का युद्ध (1539 ई.)

गंगा व कर्मनाशा नदियों के बीच अवस्थित इस स्थान पर 1539 ई. में शेरशाह सूरी और हुमायूँ के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में शेरशाह सूरी ने हुमाय़ूँ को पराजित कर दिया।

कन्नोज की लड़ाई या बिलग्राम का युद्ध (1940 ई.)

बिलग्राम की लड़ाई में शेरशाह सूरी ने एक बार फिर हुमायूँ को पराजित किया। इसके बाद हुमायूँ को भारत छोड़कर निर्वासित जीवन व्यतीत करना पड़ा। इस लड़ाई के बाद शेरशाह ने पादशाह की उपाधि धारण की।

पानीपत की दूसरी लड़ाई (5 नवंबर 1556 ई.)

पानीपत का दूसरा युद्ध अकबर और हेमू (हेमचंद्र विक्रमादित्य) के बीच हुआ। इस लड़ाई में हेमू की आँख में तीर लगने से वह घायल हो गया और मारा गया। हेमू जौनपुर के शासक आदिलशाह का एक मंत्री था। इसने 22 लड़ाइयाँ लड़ी थी और एक भी बार नहीं हारा। इससे खुश होकर इसे विक्रमजीत की उपाधि प्राप्त हुई थी। मुगल सूबेदार को हराकर इसने दिल्ली पर भी अधिकार कर लिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। आरिफ कन्दहारी इस लड़ाई का प्रत्यतक्षदर्शी था।

तालीकोटा का युद्ध (23 जनवरी 1565 ई.)

तालीकोटा के युद्ध को बन्नीहट्टी की लड़ाई या रक्षसी तगड़ी के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। विजयनगर साम्राज्य की बढ़ती ताकत से भयभीत होकर दक्षिण भारत के अन्य राज्यों ने एक संघ बना लिया। इस युद्ध में एक ओर विजयनगर साम्राज्य और दूसरी ओर अहमदनगर, बीजापुर, बीदर, व गोलकुण्डा की संयुक्त सेना थी। गोलकुंडा से शत्रुता के कारण बरार इस संघ में शामिल नहीं हुआ। इस लड़ाई के समय विजयनगर का शासक सदाशिव राय था। इस युद्ध में विजयनगर की हार हुई और बुरी तरह लूटा गया।

हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून 1576 ई.)

इसे गोगुन्दा की लड़ाईखमनौर के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। यह युद्ध अकबर और मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप के बीच हुआ। इस युद्ध में अकबर स्वयं युद्धभूमि में नहीं गया था। मुगल सेना का नेतृत्व आसफ खाँ व मानसिंह ने किया। इसमें महाराणाप्रताप की हार हुई। इतिहासकार बदायूंनी भी इस युद्ध में एक सैनिक की तरह शामिल हुआ था।

भातवाड़ी (मारवाड़ी) की लड़ाई (1624 ई.)

यह लड़ाई मुगलोंअहमदनगर के बीच हुआ। इस लड़ाई में मुगलों की ओर से महावत खाँ, परवेज, व बीजापुर की सेना ने भाग लिया। शाहजी और मलिक अम्बर अहमदनगर को ओर से लड़े। इस लड़ाई में अहमदनगर की विजय हुई और मुगलों को हार का मुह देखना पड़ा।

धरमट का युद्ध (15 अप्रैल 1658 ई.) –

यह लड़ाई शाहजहाँ के उत्तराधिकारियों के बीच हुआ था। इसमें एक ओर औरंगजेब व मुराद बख्श की संयुक्त सेना थी। दूसरी ओर कासिम खां व जसवंत सिंह के नेतृत्व में शाही सेना थी। इस लड़ाई में शाही सेना को हार का सामना करना पड़ा।

सामूगढ़ की लड़ाई (29 मई 1658) –

यह युद्ध औरंगजेब व मुराद की संयुक्त सेवा व दाराशिकोह के नेतृत्व में शाही सेना के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में दाराशिकोह की हार हुई। इसके बाद औरंगजेब ने मुराद को भी बंदी बना लिया और उसकी हत्या करवा दी।

देवराय का युद्ध (अप्रैल 1659 ई.) –

देवराय की लड़ाई औरंगजेब और दाराशिकोह के बीच अजमेर के निकट देवराय की घाटी में लड़ी गई थी। इसमें अंतिम रूप से दाराशिकोह की पराजय हुई।

जजाऊ का युद्ध (18 जून 1707 ई.)

औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को अहमदनगर में हो गई। उनके पुत्रों में उत्तराधिकार की लड़ाई न हो इसलिए औरंगजेब ने वसीयत कर अपने पुत्रों में साम्राज्य का बंटबारा कर दिया था। परंतु उत्तराधिकार का युद्ध शुरु हो गया। जजाऊ की लड़ाई में बहादुरशाह ने आजम को पराजित किया और उसे मार डाला। साथ ही आजम के दो पुत्र भी इस लड़ाई में मारे गए।

बीजापुर की लड़ाई (जनवरी 1709 ई.)

यह भी औरंगजेब के पुत्रों में हुई उत्तराधिकार की लड़ाई का हिस्सा था। यह युद्ध बहादुर शाह और कामबख्श के बीच हुआ। इस युद्ध में कामबख्श और उसका पुत्र मारा गया। बहादुर शाह को इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई।

करनाल की लड़ाई (24 फरवरी 1739 ई.)

करनाल की लड़ाई मुगल बादशाह मुहम्मदशाह और ईरान के नादिरशाह के बीच हुआ। इसमें मुहम्मद शाह के साथ निजामुल्मुल्क, खानेदौरान, व कमरुद्दीन भी थे। यह युद्ध मात्र तीन घंटे चला। खाने दौराने इस युद्ध में मारा गया। निजामुलमुल्क की मध्यस्थता के चलते नादिरशाह और मुहम्मदशाह के बीच समझौते के साथ युद्ध समाप्त हुआ। इससे खुश होकर मुहम्मदशाह ने खानेदौरान की मृत्यु से खाली हुआ मीरबख्शी का पद निजामुल्मुल्क को दे दिया।

बाद में सआदत खाँ ने नादिरशाह से मुलाकात कर दिल्ली पर आक्रमण करने को कहा। 20 मार्च 1739 को नादिरशाह ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। नादिरशाह दिल्ली में 57 दिनों तक रुका और जाते वक्त कोहिनूर, मयूर सिंहासन (तख्त ए ताऊस) व अपार सम्पदा अपने साथ ले गया।

प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-48 ई.)

बारनैट के नेतृत्व में 1746 ई. में इस लड़ाई की पहल अंग्रेजों ने की। अंग्रेजों की नौसेना ने कुछ फ्रांसीसी जलपोत पकड़ लिए। यह आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध का विस्तार मात्र था। 1748 में यूरोप में हुई ए ला शापेल की संधि से आस्ट्रिया के उत्तराधिकार का युद्ध समाप्त हो गया। इसी के साथ कर्नाटक का प्रथम युद्ध भी समाप्त हो गया।

सेंट थोमे का युद्ध (1748 ई.)

सेंट थोमे की लड़ाई फ्रांसीसियोंबंगाल के नवाब अनवरुद्दीन की सेना के बीच लड़ी गई। इसमें फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व कैप्टन पैराडाइज ने और नवाब की सेना का नेतृत्व महफूज खाँ ने किया। इसमें फ्रांसीसी सेना ने नवाब की सेना को पराजित कर दिया।

प्लासी का युद्ध (23 जून 1757 ई.)

प्लासी की लड़ाई में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व राबर्ट क्लाइव ने किया। अंग्रेजी सेना में 21 हजार भारतीय सैनिक शामिल थे। बंगाल के नवाब सिराज उद्दौला की ओर से मीर मदान, मोहनलाल व कुछ फ्रांसीसी सैनिकों ने भाग लिया। प्लासी की लड़ाई में नवाब की हार हुई और वह भागकर मुर्शिदाबाद पहुँचा। यहां मीरजाफर के पुत्र मीरन ने उसकी हत्या करवा दी। इस लड़ाई की जीत से ‘बंगाल में अंग्रेजी सत्ता की नींव’ पड़ी। क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बना दिया गया। अंग्रेजों की सहायतार्थ मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया। नवाब के प्रधान सेनापति मीरजाफर की गद्दारी ने बंगाल की सत्ता पर अंग्रेजों का अधिकार करवा दिया।

वांडीवाश का युद्ध (22 जनवरी 1760 ई.)

यह अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के बीच निर्णायक लड़ाई थी। इसमें अंग्रेजी सेना का नेतृत्व सर आयरकूट और फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व काउंट लाली कर रहा था। इस लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई। इस लड़ाई का समापन पेरिस की संधि (1763) से हुआ। इस संधि के तहत फ्रांसीसियों को उनके सभी भारतीय कारखाने बापस कर दिए गए। परंतु अब वे न तो इनकी किलेबंदी कर सकते थे और न ही सैनिक वहाँ डेरा डाल सकते थे।

पानीपत की तीसरी लड़ाई (14 जनवरी 1761 ई.)

यह लड़ाई अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली और मराठों के बीच हुआ। इस समय मराठा साम्राज्य का नेतृत्व बालाजी बाजीवराव के हाथों में था। अब्दाली ने मराठों से बदला देने के लिए जनवरी 1761 में भारत पर आक्रमण किया। इसमें मराठों की पूर्णतः हार हुई। इस लड़ाई में जाट, राजपूत व सिखों ने भी मराठों का साथ नहीं दिया। इस हार से मराठों की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंची। बालाजी वाजीराव इस हार को सहन न कर सका और 1761 में उसकी मृत्यु हो गई। काशीराम पंडित इस लड़ाई के प्रत्यतक्षदर्शी थे। 20 मार्च 1761 को दिल्ली से बापस जाते हुए अब्दाली ने मुगल शासक शाहआलम द्वितीय को पुनः शासक बनाया। साथ ही इमादुल मुल्क को वजीर और नबीजुद्दौला को मीरबख्श बनाया। अब्दाली ने भारत पर अपना सातवां और अंतिम आक्रमण मार्च 1767 ई. में किया।

बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764 ई.)

इस लड़ाई के समय बंगाल का नबाव मीरजाफर था। यह लड़ाई बिहार के बक्सर में 22 अक्टूबर 1764 को हुआ। इसमें अंग्रेजी सेना का नेतृत्व हेक्टर मुनरो ने किया। दूसरी ओर मीर कासिम, मुगल शासक शाहआलम द्वितीय और अवध के नबाव शुजाउद्दौला की संयुक्त सेनाएं थीं।  इस लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई। मीर कासिम दिल्ली भाग गया। शुजाउद्दौला और आहआलम द्वितीय ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस लड़ाई में विजय के बाद भारत में अंग्रेजों की सत्ता स्थाई रूप से कायम हो गई।

भारत चीन युद्ध (1962 ई.)

चीनी सेना ने 8 सिंतबर 1962 को थागला पहाड़ी पर हमला किया और भारतीयों को पीछे हटा दिया। परंतु भारत ने इसे छोटी घटना समझकर ध्यान नहीं दिया। एक सप्ताह बाद चीन ने फिर नार्थ ईस्टर्न फ्रंटियर एजेंसी (वर्तमान अरुणाचल प्रदेश) क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। 9 नवंबर 1962 को नेहरु जी ने अमेरिका व इंग्लैंड सरकार को दो पत्र लिखकर सैन्य सहायता की मांग की। 21 नवंबर 1962 को चीन ने अपनी ओर से युद्ध विराम की घोषणा कर दी।

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