मुगल वंश (Mughal Dynasty)

भारत में ‘मुगल वंश (Mughal Dynasty)’ की स्थापना 1526 ई. में बाबर ने की थी। मंगोलों की ही एक शाखा से संबंधित होने के कारण ये मुगल कहलाए। 1 नवंबर 1858 ई. को मुगल साम्राज्य का अंत ‘भारत शासन अधिनियम – 1858’ द्वारा हो गया। अर्थात भारत में मुगल साम्राज्य 332 साल स्थापित रहा।

मुगल वंश के शासकों को दो भागों (पूर्व मुगल और उत्तर मुगल) में बाँटकर अध्ययन किया जाता है। पूर्व मुगलों में बाबर, हुमायूं, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ व औरंगजेब का नाम आता है। इन्होंने मुगलों की सत्ता और प्रतिष्ठा को खूब बढ़ाया। इनके विपरीत उत्तर मुगल (बहादुरशाह प्रथम से बहादुरशाह जफर तक) शासक इसकी प्रतिष्ठा बढ़ाने में अक्षम रहे।

मुगल वंश के शासक –

  • बाबर ( 1526 – 1530 ई. )
  • हुमायूं ( 1530 – 1940 ई. और 1555 – 1556 ई. )
  • अकबर ( 1556 – 1605 ई. )
  • जहाँगीर ( 1605 – 1627 ई. )
  • शाहजहाँ ( 1627 – 1658 ई. ) 
  • औरंगजेब ( 1658 – 1707 ई. )
  • बहादुर शाह प्रथम ( 1707 – 1712 ई. )
  • जहाँदारशाह ( 1712 – 1713 ई. )
  • फर्रुखशियर ( 1713 – 1719 ई. )
  • रफी उद दरजात ( फरवरी 1719 – जून 1719 ई. )
  • रफी उद्दौला ( जून 1719 – सितंबर 1719 ई. )
  • मुहम्मदशाह/रौशन अख्तर (1719-48 ई.)
  • अहमदशाह ( 1748 – 1754 ई. )
  • आलमगीर द्वितीय ( 1754 – 1758 ई. )
  • शाहजहाँ तृतीय ( 1758 – 1759 ई. )
  • शाहआलम द्वितीय ( 1759 – 1806 ई. )
  • मुहम्मद अकबर द्वितीय ( 1806 – 1837 ई. )
  • बहादुर शाह द्वितीय जफर (1837 – 1858 ई. )

पूर्व मुगल शासक –

पूर्व मुगल शासकों में 6 मुगलों बाबर, हुमायूं, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, व औरंगजैब का नाम आता है।

बाबर (1526-30 ई.)

पिता की मृत्यु के बाद मात्र 11 वर्ष की अवस्था में बाबर फरगना का शासक बना। 1526 ई. में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को हराकर इसने भारत में एक नए राजवंश मुगल वंश की नींव रखी। भारत में पद-पादशाही की स्थापना भी बाबर ने ही की। इसके बाद खानवा, चंदेरी और घाघरा की लड़ाई में जीत हासिल की। बाबर की मृत्यु 26 दिसंबर 1530 को आगरा में हो गई। पहले उसे आगरा के आरामबाग में, उसके बाद काबुल में दफनाया गया। इसने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक ए बाबरी’ तुर्की भाषा में लिखी। बाद में अब्दुल रहीम खान खाना ने फारसी में इसका अनुबाद किया। अपनी उदारता के लिए बाबर को कलंदर की उपाधि मिली थी।

बाबर की विजयें –

  • पानीपत की पहली लड़ाई ( 21 अप्रैल 1526 )
  • खानवा का युद्ध ( 17 मार्च 1527 )
  • चंदेरी की लड़ाई (29 जनवरी 1528 )
  • घाघरा का युद्ध (6 मई 1529 )

बाबर से सबसे पहले दिल्ली के शासक इब्राहीम लोदी को हराया। बाबर ने इसे अनुभवहीन शासक कहा। बाबर इस विजय का श्रेय अपने तीरंदाजों को देता है। इसमें बाबर ने तोपखाने और तुगलमा पद्यति का प्रयोग किया। अब्राहीम लोदी इस युद्ध में मारा गया। युद्ध स्थल पर मारा जाने वाला मध्यकालीन इतिहास का इब्राहीम लोदी पहला शासक था। इब्राहीम का मित्र ग्वालियर का राजा विक्रमजीत भी इस युद्ध में मारा गया। मेवाड़ के राणा सांगा को खानवा के युद्ध में हरा कर बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की।

हुमायूँ (1530-40 ई.) (1555-56 ई.)

यह बाबर का ज्येष्ठ पुत्र था। पिता की मृत्यु के बाद इसने अपने भाइयों में साम्राज्य का बंटवारा कर दिया। जून 1539 ई. में यह चौसा के युद्ध में शेरखाँ से बुरी तरह पराजित हुआ। हुमायूं गंगा नदी में कूद गया, भिश्ती ने इसकी जान बचाई। मई 1540 में हुमायूं पुनः शेरखां से पराजित हुआ। इसके बाद ये निर्वासित जीवन जीने पर विवश हो गया। जून 1555 ई. में सरहिंद के युद्ध में हुमायूं ने अफगानों को बुरी तरह पराजित कर दिया। इस तरह एक बार फिर सत्ता मुगलों के हाथ में आ गई। इसके बाद जनवरी 1556 ई. में हुमायूं की मौत हो गई।

अकबर (1556 – 1605 ई.)

15 अक्टूबर 1542 ई. को अकबर का जन्म अमरकोट में राजा वीरसाल के महल में हुआ था। पिता हुमायूं की मृत्यु के दौरान ये पंजाब के सिकंदर सूर से युद्ध कर रहा था। 14 फरवरी 1556 को अकबर का राज्याभिषेक बैरम खां की देखरेख में हुआ। 1556 से 1560 के बीच अकबर बैरम खां के संरक्षण में रहा। अकबर ने 1562 ई. में दास प्रथा को समाप्त किया। 1564 ई. में जजिया कर समाप्त किया। गुजरात विजय की स्मृति में बुलंद दरबाजा बनवाया। अकबर के समय पहला विद्रोह 1564 में उजबेगों ने किया। 1576 ई. में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को हराया। 1601 ई. में असीरगढ़ पर आक्रमण अकबर की अंतिम विजय थी। 25 अक्टूबर 1605 को पेचिश के कारण अकबर की मृत्यु हो गई।

जहांगीर (1605-27 ई.)

जहांगीर के बचपन का नाम सलीम था। इसका जन्म सलीम चिश्ती की कुटिया में 30 अगस्त 1569 ई. को हुआ था। अकबर की मृत्यु के बाद 3 नवंबर 1605 को आगरा किले में सलीम का राज्याभिषेक हुआ। यह जहाँगीर के नाम से भारत का शासक बना। शासक बनने के बाद इसने न्याय की जंजीर स्थापित की। 1623 ई. में शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) ने विद्रोह कर दिया। महावत खाँ ने इस विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिक निभाई। बाद में 1626 ई. में महाबात खाँ ने विद्रोह कर दिया। 28 अक्टूबर 1627 को जहाँगीर की मृत्यु हो गई। इसे रावी नदी के तट पर शाहदरा (लाहौर) में दफनाया गया।

शाहजहाँ (1627-58 ई.)

शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 ई. को लाहौर में हुआ था। इसके बचपन का नाम खुर्रम था। 1612 ई. में इसका विवाह आसफखाँ की बेटी अर्जुमंद बानो बेगम (मुमताज महल। से हुआ। मुमताज महल से शाहजहाँ की 14 संतानें पैदा हुई। परंतु इन 14 में से 7 ही जीवित बची। पिता जहाँगीर की मृत्यु के समय यह दक्षिण में था।

24 जनवरी 1628 को शहजादा खुर्रम शाहजहां के नाम से भारत का शासक बना। 1630-32 में दक्कन व गुजरात में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। शाहजहाँ ने 1633 ई. में अहमदनगर पर आक्रमण कर साम्राज्य में मिला लिया। सितंबर 1657 ई. में शाहजहाँ के बीमार पड़ते ही पुत्रों में उत्तराधिकार की लड़ाई शुरु हो गई। शासक के जीवित रहते उत्तराधिकार के लिए हुआ यह पहला युद्ध था। इस युद्ध में औरंगजेब को जीत हासिल हुई। 1658 ई. में औरंगजेब ने शाहजहाँ से सिंहासन हड़प लिया और इन्हें कैद कर लिया। 1666 ई. में शाहजहाँ की मृत्यु हो गई। सबसे बड़ी पुत्री जहाँआरा ने इनकी मृत्यु तक सेवा की।

औरंगजेब (1658-1707 ई.)

औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 ई. को दोहद (उज्जैन) में हुआ था। पिता शाहजहाँ को गद्दी से उतार कर जुलाई 1658 ई. में भारत का शासक बना। इसके बाद दाराशिकोह व शाहशुजा को परास्त कर जून 1659 ई. में पुनः राज्याभिषेक कराया। शासन के 11वें वर्ष झरोखा दर्शन की प्रथा को बंद कर दिया। 12वें वर्ष तुलादान की प्रथा को बंद कर दिया। 1679 ई. में जजिया कर लगाया। 1682 ई. में यह शहजादे अकबर का पीछा करता हुआ दक्षिण पहुँचा। इसके बाद इसे उत्तर में आने का मौका ही नहीं मिला। सितंबर 1686 ई. में बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। अक्टूबर 1687 ई. में गोलकुण्डा को मगुल साम्राज्य में मिला लिया। 3 मार्च 1707 ई. को अहमदनगर के निकट औरंगजेब की मृत्यु हो गई।

उत्तर मुगल शासक –

औरंगजेब के बाद के मुगल वंश के शासक उत्तर मुगल कहलाए। ये पूर्व मुगलों की भांति प्रसिद्ध नहीं थे। ये विरासत में मिले विस्तृत मुगल साम्राज्य को बढ़ाना तो दूर स्थिर भी न रख सके। इनके कारण मुगलों की प्रतिष्ठा जाती रही। धीरे धीरे मुगल साम्राज्य का पतन हो गया।

बहादुरशाह प्रथम (1707-12 ई.)

औरंगजेब के बाद बहादुरशाह 65 वर्ष की अवस्था में भारत का शासक बना। इसे ही ‘शाहआलम प्रथम’ के नाम से भी जाना जाता है। इसने जजिया कर को समाप्त कर दिया। 27 फरवरी 1712 ई. को बहादुरशाह की मृत्यु हो गई। सिडनी ओवन के अनुसार ‘यह अंतिम मुगल शासक था जिसके बारे में कुछ अच्छा कहा जा सकता है।’ इसके बाद भी मुगल वंश लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक चला। परंतु पूर्व मुगलों की अपेक्षा प्रतिष्ठा में तेजी से कमी आती गई।

जहाँदारशाह (1712-13 ई.)

इसके शासनकाल में शासन का प्रमुख वजीर जुल्फिकार खाँ बन गया। इसने जयसिंह को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया और मिर्जा राजा की उपाधि दी। मारवाड़ के अजीतसिंह को महाराजा की उपाधि देकर गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया गया। जहाँदार शाह के भतीजे फर्रुखशियर ने गद्दी पर दावा किया। सैय्यद बंधुओं (अब्दुल्ला खाँ और हुसैन अली खाँ) की सहायता से जहांदारशाह के विरुद्ध युद्ध किया। इसने जहाँदारशाह को पराजित कर बंदी बना लिया। बाद में उसकी हत्या कर दी गई।

  • जहाँदारशाह ने जजिया कर को समाप्त किया।
  • दक्कन की चौथ व सरदेशमुखी मराठों को सौंप दी।
  • यह लालकुंवर नामक एक वैश्या के प्रति अधिक आसक्त था।

फर्रुखशियर (1713-19 ई.)

सैय्यद बंधुओं की सहायता से शासक बनने वाला पहला मुगल था। जोधपुर के राजा अजीतसिंह ने अपनी पुत्री का विवाह फर्रुखशियर से किया। अब्दुल्ला खाँ को वजीर नियुक्त किया। हुसैन अली को मीरबख्शी व अमीर-उल-उमरा नियुक्त किया गया। सैय्यद बंधुओं की बढ़ती शक्ति से फर्रुखशियर ईर्ष्या करने लगा। 1719 ई. में सैय्यद बंधुओं ने पेशवा बालाजी विश्वनाथ से सैन्य सहायता मांगी। फर्रुखशियर को अपदस्थ कर अंधा बना दिया गया। इसके कुछ दिन बाद उसकी हत्या कर दी गई। किसी अमीर द्वारा मुगल बादशाह की हत्या का यह पहला उदाहरण है।

  • जजिया कर को समाप्त किया।
  • जयसिंह को सवाई की उपाधि दी।
  • 1716 ई में बंदाबहादुर को दिल्ली में फाँसी दी गई।
  • 1717 ई. में अंग्रेजों को व्यापार में छूट हेतु ‘शाही फरमान‘ जारी किया।
  • जुल्फिकार खाँ की हत्या करवा दी गई।

रफी उद् दरजात (फरवरी-जून 1719 ई.)

यह भी सैय्यद बंधुओं की सहायता से शासक बना। मुगलों में इसका शासनकाल सबसे कम रहा। क्षयरोग (टी0 बी0) से इसकी मौत हो गई। इसके काल में निकूसियर का विद्रोह हुआ। इसने आगरे के दुर्ग पर अधिकार कर स्वयं को शासक घोषित कर लिया।

रफी उद् दौला (जून-सितंबर 1719 ई.)

जून 1719 ई. में रफी उद् दरजात शाहजहाँ द्वितीय की उपाधि के साथ शासक बना। यह अफीम का शौकीन था। पेचिश के कारण इसकी मृत्यु हो गई। इसके समय अजीतसिंह अपनी विधवा पुत्री को मुगल हरम से बापस ले गया। उसने बापस हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया।

मुहम्मदशाह/रौशन अख्तर (1719-48 ई.)

यह मुगल वंश का अत्यधिक विलासी शासक था। इसी कारण इसे रंगीला बादशाह कहा जाता है। यह बहादुरशाह का पौत्र था। इसके शासनकाल में सैय्यद बंधुओं का अंत हुआ। सैय्यद बंधुओं के पतन के बाद मुहम्मद अमीन खाँ को मुगलों का वजीर नियुक्त किया गया। इसी ने बादशाह को सैय्यद बंधुओं के चुंगल से छुड़ाने में अहम योगदान दिया था।

  •  इसी के समय निजामुलमुल्क ने हैदराबाद राज्य की नींव डाली।
  • सआदत खाँ ने अवध में अपने राज्य को स्वतंत्र कर लिया।
  • इसी के शासनकाल में बिहार, बंगाल, व उड़ीसा ने स्वतंत्रता पा ली।
  • राजपूताना क्षेत्र ने भी मुगलों की सत्ता को अस्वीकार कर दिया।
  • 1739 ई. में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण इसी के शासनकाल में किया।

अहमदशाह (1748-54 ई.)

यह मुहम्मदशाह का इकलौता पुत्र था। यह उसके बाद मुगल बादशाह बना। ये एक नर्तकी की संतान था। इसके समय मुगल अर्थव्यवस्था चरमरा गई। इसके शासनकाल की महत्वपूर्ण घटना 1748 ई. का अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण थी। अहमदशाह ने इमादुलमुल्क को वजीर बनाया। इमादुलमुल्क ने ही अहमदशाह को गद्दी से हटाकर कैद में डाल दिया।

आलमगीर द्वितीय (1754-58 ई.)

इसके बचपन का नाम अजीदुद्दीन था।

अहमदशाह अब्दाली इसके समय दिल्ली तक आ गया।

इसके समय प्लासी की लड़ाई हुई।

बाद में इमादुलमुल्क ने गाजीउद्दीन के माध्यम से इसकी भी हत्या करवा दी।

इसके बाद एक ही समय में दो अलग-अलग स्थानों पर दो शासक बने।

शाहजहाँ तृतीय (1758-59 ई.)

यह कामबख्श का पौत्र था। जिसे इमादुलमुल्क ने शाहजहाँ तृतीय के नाम से दिल्ली का शासक बना दिया था। क्योंकि आलमगीर द्वितीय की मृत्यु के समय उसका पुत्र अलीगौहर बिहार में था। हालांकि पिता की मृत्यु के बाद उसने बिहार में ही स्वयं को मुगल बादशाह घोषित कि लिया था।

शाहआलम द्वितीय (1759-1806 ई.)

इसके बचपन का नाम ‘अलीगौहर‘ था। पिता की मृत्यु के समय यह बिहार में था।

बिहार में ही इसने स्वयं को मुगल बादशाह घोषित कर लिया।

पानीपत की तीसरी लड़ाई और बक्सर का युद्ध इसी के शासनकाल में लड़ा गया।

1788 ई. में गुलाम कादिर ने इसे अंधा बना दिया।

दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार इसी के शासनकाल में हो गया।

शाहआलम को अंग्रेजों का पेंशनभोगी बनना पड़ा।

1806 ई. में इसकी हत्या कर दी गई।

अकबर द्वितीय (1806-37 ई.)

अकबर द्वितीय ने राममोहन राय को अपनी पेंशन बढ़ाने की सिफारिश करने ब्रिटेन के राजा के पास भेजा।

उनके इस कार्य के लिए अकबर द्वितीय ने राममोहन राय को ‘राजा की उपाधि’ दी।

इसी के शासनकाल में साल 1835 में मुगलों के सिक्के बन्द हो गए।

बहादुरशाह द्वितीय/जफर (1837-58 ई.)

यह मुगल वंश का अंतिम शासक था। 1857 की क्रांति के बाद इन्हें अंग्रेजों ने बंदी बना लिया।

1 नवंबर 1858′ के महारानी विक्टोरिया के घोषणापत्र द्वारा मुगल वंश का अंत हो गया।

बहादुरशाह जफर को निर्वासित कर रंगून भेज दिया गया। 1862 ई. में रंगून में ही इनकी मृत्यु हो गई।

अशोक महान (Ashoka The Great)

‘अशोक महान (Ashoka The Great)’ शीर्षक के इस लेख में मौर्य वंश के शासक अशोक महान के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। प्राचीन भारत के इतिहास में अशोक मौर्य को ही महान की संज्ञा दी गई है। यह बिंदुसार व सुभद्रांगी का पुत्र था। डी.आर. भण्डाकर ने केवल अभिलेखों के आधार पर ही अशोक का इतिहास लिखने का प्रयास किया। अशोक पहला भारतीय शासक था जिसने अभिलेखों के माध्यम से प्रजा को सीधे संबोधित किया।

अशोक का राज्याभिषेक –

273 ई. पू. बिंदुसार की मृत्यु के बाद अशोक शासक बना। सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या कर राज्य पाया। सत्ता के लिए इसका प्रमुख प्रतिद्वंदी इसका भाई सुमीम था। इसके बाद 269 ई. पू. अशोक का विधिवत राज्याभिषेक हुआ।

अशोक के नाम व उपाधियां –

प्रियदर्शी अशोक की सबसे प्रचलित उपाधि थी। इसके अतिरिक्त अशोक की अन्य उपाधियां निम्नलिखित हैं –

  • विष्णुपुराण में अशोक को अशोकवर्द्धन कहा गया है।
  • मास्की अभिलेख में इसे बुद्ध शाक्य कहा गया है।
  • भाब्रू लेख में मगधाधिराज कहा गया है।
  • प्रियदर्शी – दीपवंश, भाब्रू लेख, कांधार अभिलेख में।
  • देवानांपिय – 12वां और 13वां शिलालेख।
  • देवनांप्रिय प्रियदर्शी – रुम्मिनदेई, गिरनार लेख, निगिलवां।
  • इसके अशोक नाम का उल्लेख – मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर, व उडेगोलन लघुशिलालेखों में मिलता है।

अशोक की पत्नियां व संतान-

महादेवी अशोक की पहली पत्नी थी। महेंद्र व संघमित्रा इसी से उत्पन्न अशोक की संतानें थीं। अशोक की एक पत्नी कारुवाकी थी। इससे उत्पन्न संतान तीवर था। पद्मावती कुणाल की माँ थी। अशोक के एक पुत्र जालौक का जिक्र राजतरिंगिणी में हुआ है। अशोक की पुत्री चारुमती रुम्मिनदेई यात्रा में अशोक के साथ थी।

कलिंग युद्ध (261 ई. पू.)

शासक बनने के बाद अशोक ने एक युद्ध कलिंग के साथ किया। यह युद्ध अशोक के राज्याभिषेक के 9वें वर्ष (8 वर्ष बाद) लड़ा गया। इस युद्ध का उल्लेख अशोक के 13वें शिलालेख में हुआ है। इस युद्ध के भीषण रक्तपात व हिंसा से अशोक का मन अशांत हो गया। इसी के बाद अशोक ने भौतिक विजय के स्थान पर धम्म विजय की नीति अपनाई। परंतु अशोक ने कलिंग पर अधिकार बनाए रखा।

धर्म परिवर्तन –

इस भयानक हिंसा व रक्तपात के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया। पहले अशोक ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। बौद्ध धर्म में अशोक को दीक्षित किसने किया इस बारे में भी विद्वान एकमत नहीं हैं। इस कार्य के लिए न्यूग्रोथ, मोगलिपुत्रतिस्स, बालपंडित, व उपागुप्त के नाम प्रमुख है।

अशोक का धम्म

संस्कृत भाषा के धर्म को ही प्राकृत में धम्म की संज्ञा दी गई है। अभिलेखों व धम्म के कारण ही अशोक भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है। फ्लीट ने अशोक के धम्म को राजधर्म कहा है। सेनार्ट ने इसे पूर्णतः बौद्ध धर्म कहा है। वहीं मैकफेल ने इसे बौद्ध धर्म से प्रभावित हिंदू धर्म कहा है। सिद्धपुर, जटिंगरामेश्वर, व ब्रह्मगिरि लेख में अशोक के धम्म का सारांश दिया है। अशोक ने अपने 13वें शिलालेख में धम्म विजय की बात कही है।

अभिलेखों की लिपि –

अशोक के अभिलेखों में कुल चार लिपियों का प्रयोग किया गया है। ये चार लिपियां खरोष्ठी, ब्राह्मी, यूनानी, व अरामाइक हैं। अशोक के स्तंभलेख व गुहालेखों में सिर्फ ब्राह्मी लिपि का प्रयोग हुआ है। शहवाजगढ़ी और मानसेहरा अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं। लघमान व तक्षशिला अभिलेख अरामाइक लिपि में हैं। शरेकुना व कन्धहार अभिलेखों में यूनानी व अरामाइक दोनों लिपियों का प्रयोग हुआ है।

अशोक के अभिलेख

सर्वप्रथम 1750 ई. में टी. फैंथेलर ने अशोक के अभिलेखों को खोजा। इन्होंने सर्वप्रथम दिल्ली-मेरठ अभिलेख को खोजा। अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेफ ने साल 1837 ई. में पढ़ा। इन्होंने दिल्ली-टोपरा अभिलेख को पढ़ा था। इस समय अलेक्जेंडर कनिंघम इनके सहायक थे। प्रिंसेप कलकत्ता टकसाल के अधिकारी व एशियाटिक सोसाइटी के सचिव थे। अशोक का काल मुख्य रूप से अभिलेखों के लिए जाना जाता है। इसके अभिलेख जनसाधारण की भाषा प्राकृत में थे। इन शिलालेखों में अशोक के शासनकाल के 8वें वर्ष से 27वें वर्ष तक की जानकारी मिलती है। ब्राह्मी लिपि का सबसे पहले उद्वाचन जेम्स प्रिंसेप ने ही किया। परंतु इन्होंने प्रियदर्शी का समीकरण लंका के राजा तिस्स से किया। सर्वप्रथम टर्नर ने प्रियदर्शी का समीकरण अशोक से स्थापित किया। ‘चापड़’ ही एकमात्र लेखक है जिसका नाम अशोक के अभिलेखों में मिलता है। अशोक के अभिलेखों को तीन भागों शिलालेख, गुहालेख, व स्तंभलेख में बाँटा गया है। अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत (आम जन की भाषा) थी। अशोक के अभिलेख प्राचीन राजमार्गों के किनारे मिले हैं।

अशोक के शिलालेख –

अशोक के शिलालेखों को दो भागों दीर्घ शिलालेख और लघु शिलालेख में बाँटा गया है। अशोक के शिलालेखों में उसके शासक के 8वें से 27वें वर्ष की घटनाओं का वर्णन है।

दीर्घ शिलालेख –

धौली व जौगड़ अभिलेखों को दो पृथक कलिंग प्रज्ञापन के नाम से जाना जाता है। अशोक के दीर्घ शिलालेख 14 हैं जो 8 अलग अलग स्थानों से प्राप्त हुए हैं। ये 8 स्थान निम्नलिखित हैं –

  • मानरेहरा – पेशावर (पाकिस्तान)
  • शहवाजगढ़ी – हाजरा जिला (पाकिस्तान)
  • धौली/तोसलीओडिशा के पुरी में
  • कालसीउत्तराखंड के देहादून में
  • गिरनारगुजरात के जूनागढ़ में – सभी दीर्घ शिलालेखों में ये सबसे सुरक्षित अवस्था में है।
  • सोपारामहाराष्ट्र के ठाणे में
  • जौगड़ – गंजाम जिला (ओडिशा)
  • एरगुडी – जिला कुर्नूल (आंध्रप्रदेश) – इसमें लिपि की दिशा दाएं से बाएं है।
14 दीर्घ शिलालेख –

अशोक के 14 दीर्घ शिलालेखों के विवरण निम्नलिखित हैं –

1. प्रथम शिलालेख में पशु वध निषेध की आज्ञा दी गई है। इस लेख को गिरनार संस्करण भी कहा जाता है।

2. इसमें अशोक ने अपने पड़ोसी राज्यों में भी मानव व पशु चिकित्सा के प्रबंध की बात कही है।

3. तीसरे लेख में प्रादेशिक, रज्जुक, व युक्त अधिकारियों का जिक्र मिलता है। अशोक ने शासनकाल के 12वें वर्ष घोषणा की कि ये अधिकारी हर 5 साल में जनता के बीच जाएं।

4. धम्म नीति के कारण धर्म का शासन बढ़ा है।

5. पांचवें शिलालेख में धम्म महामात्रों की नियुक्ति की जानाकरी प्राप्त होती है। अशोक ने शासनकाल के 13वें वर्ष धम्ममहामात्रों की नियुक्ति की।

6 इसमें प्रतिवेदकों को प्रजा के बारे में समस्त जानकारी देने का आदेश दिया है।

7. किसी भी सम्प्रदाय के लोग कहीं भी निवास कर सकते हैं

8. आठवें शिलालेख में धम्म यात्राओं का उल्लेख किया गया है। अशोक ने शासनकाल के 9 वर्ष बाद (10वें वर्ष) धम्म यात्राओं को आरंभ किया। सबसे पहले बोधगया गया। अशोक ने कुल 256 रातें धम्म यात्रा में बिताईं।

9. इसमें धम्म मंगल को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया है। इसमें लोगों को दासों व सेवकों से शिष्ट व्यवहार करने की आज्ञा दी गई है।

10. दसवें शिलालेख में यश व कीर्ति की निंदा की गई है। इसमें धम्मनीति को श्रेष्ठ बताया गया है।

11. ग्यारहवें शिलालेख में धम्मदान को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

12. अशोक का बारहवां लेख धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।

13. तेरहवें लेख में कलिंग युद्ध की जानकारी मिलती है। इसमें अशोक ने धम्मविजय को सर्वश्रेष्ठ बताया।

14. इसमें अशोक आगे भी लेख लिखवाने की बात कहता है।

लघु शिलालेख –

अशोक के लघु शिलालेख मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, बिहार, कर्नाटक, व राजस्थान से प्राप्त हुए हैं। गुर्जरा लेख मध्यप्रदेश के दंतिया जिले में है। बिहार के सहसाराम, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में, व राजस्थान के जयपुर में लघु शिलालेख मिले हैं। मास्की लेख कर्नाटक के रायचूर जिले में अवस्थित है। इसकी खोज वीडन ने की थी। ब्रह्मगिरि लेख कर्नाटक के चित्तलदुर्ग जिले में अवस्थित है। नेत्तुर व उडेगोलम लेख कर्नाटक के बेलारी जिले में स्थित हैं।

गुहालेख –

अशोक कालीन गुहालेख बराबर पहाड़ियों (गया, बिहार), नागार्जुन पहाड़ियों, रामगढ़ गुहा, व सीतामढ़ी गुहा से मिलते हैं। ये सभी गुहा लेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में हैं। बराबर की गुफाएं शैलकृत वास्तुकला का सबसे प्राचीन उदारहण हैं। यहाँ पर कुल चार गुफाओं का निर्माण किया गया है। सुदामा की गुफा, लोमश ऋषि गुफा, विश्व झोपड़ी गुफा, और कर्ण चौपड़। लोमश ऋषि की गुफा बराबर की पहाड़ियों की सबसे प्रसिद्ध गुफा है। इसमें हाथियों को स्तूप की पूजा करते दर्शाया गया है। मंदिर वैश्यावृत्ति का प्राचीनतम साक्ष्य रामगढ़ गुहालेख से प्राप्त होता है।

स्तंभ लेख –

अशोक के स्तंभलेखों को भी दो भागों वृहत्त स्तंभलेख व लघु स्तंभलेखों में विभाजित किया गया है।

वृहत्त स्तंभलेख –

इसके अंतर्गत कुल सात स्तंभलेख आते हैं।

1. प्रथम स्तंभलेख में अशोक ने धम्म के अनुसार शासन करने की बात कही है।

2. दूसरे स्तंभलेख में अशोक ने कहा ‘धम्म क्या है’। फिर इसी में धम्म के बारे में बताया भी है।

3. तीसरे स्तंभलेख में अशोक ने उन पांच पापों का जिक्र किया है। जो धम्म के मार्ग में बाधक है।

4. चौथा स्तंभलेख रज्जुकों के कार्यों को समर्पित है। इसी में अशोक रज्जुकों की तुलना धाय माँ से करता है।

5. इसमें अशोक ने पशु वध निषेध व कैदियों की मुक्ति के प्रावधान की बात कही है। इसमें दंड समता व व्यवहार समता की बात कही।

6. इसमें जनता के हित व सुखों की बात कही गई है। अशोक ने सभी सम्प्रदायों के सम्मान की भी बात कही।

7.  इसमें प्रजा के हित में किए गए कार्यों का उल्लेख है। लोकनिर्माण जैसे सरायों, कुओं, व सड़कों के किनारे वृक्ष लगवाने की बात कही।

लघु स्तंभलेख –

इन पर अशोक महान की ‘राजकीय घोषणाएं’ अंकित हैं। अशोक महान के लघु स्तंभलेख सारनाथ, साँची, रुम्मिनदेई, कौशाम्बी, व निग्लीवा से प्राप्त हुए हैं। अशोक महान की पत्नी कारुवाकी का नाम प्रयाग स्तंभलेख में मिलता है।

अशोक के अभिलेखों में उसकी सिर्फ एक पत्नी कारुवाकी व उससे उत्पन्न पुत्र तीवर का जिक्र हुआ है।

कौशाम्बी-प्रयाग स्तंभलेख को साम्राज्ञी का अभिलेख भी कहा जाता है।

अशोक की लुम्बिनी यात्रा का वर्णन रुम्मिनदेई/लुम्बिनी लेख में मिलता है।

इसी मे मौर्यकालीन कर व्यवस्था की भी जानकारी प्राप्त होती है।

इसीलिए इसे आर्थिक अभिलेख की संज्ञा दी गई है।

बुद्ध के जन्मस्थान लुम्बिनी में कर को घटाकर 1/8 किया जाना इसी लेख में वर्णित है।

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