मौर्य वंश (Maurya Dynasty) को भारत का पहला सुदृढ़ और व्यवस्थित साम्राज्य कहा जाता है। इसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की। चंद्रगुप्त मौर्य को ही भारत का पहला ऐतिहासिक शासक कहा जाता है। पाटलिपुत्र मौर्य साम्राज्य की राजधानी थी। इनका राजचिह्न मयूर था। मौर्य वंश के शासकों ने भारत पर 322 ई.पू. से 184 ई.पू. तक शासन किया। वृहद्रथ इस वंश का अंतिम शासक था।
मौर्य वंश के इतिहास के स्त्रोत –
मौर्य राजवंश के इतिहास को जानने के लिए बहुत से साहित्यिक व पुरातात्विक स्त्रोत हैं।
साहित्यिक स्त्रोतों में विशाखदत्त की मुद्राराक्षस, मेगास्थनीज की इंडिका, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, क्षेमेंद्र की वृहत्कथामंजरी। बौद्ध ग्रंथ दीपवंश व महावंश (सिंहली अनुश्रुतियां) व दिव्यावदान। जैन ग्रंथ कल्पसूत्र व परिशिष्टपरिवन। दो संगम साहित्य अहनारूर व परणार से भी मौर्य वंश की जनकारी मिलती है।
पुरातात्विक स्त्रोतों में अशोक के अभिलेख प्रमुख हैं। रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख (सौराष्ट्र प्रांत) में चंद्रगुप्त व अशोक दोनो का उल्लेख हुआ है। इसमें चंद्रगुप्त के नाम का उल्लेख मिलता है। साहगौरा अभिलेख संपूर्ण मौर्यकाल का एकमात्र अभिलेखीय साक्ष्य है। यह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित है। बांग्लादेश में अवस्थित महास्थान लेख।
चंद्रगुप्त मौर्य (322-298 ई. पू.)
धनानंद को पराजित कर चंद्रगुप्त 322 ई. पू. मगध का शासक बना। इसे भारत का प्रथम ऐतिहासिक शासक कहा जाता है। इस तरह मगध की गद्दी पर एक नए राजवंश मौर्य वंश का उदय हुआ। इसने चाणक्य को अपना प्रधानमंत्री बनाया। भारत को मकदूनियाई दासता से मुक्त कराया। इसने सेल्युकस निकेटर को पराजित किया। सेल्युकस ने अपनी पुत्री हेनेला का विवाह चंद्रगुप्त से किया। सेल्युकस ने अपने राजदूत मेगस्थनीज को मौर्य दरबार में भेजा। मेगस्थनीज ने यहां रहकर इंडिका नामक अपनी पुस्तक लिखी।
अन्य नाम –
विभिन्न लेखकों ने इसे भिन्न भिन्न नामों से पुकारा है।
- मेगस्थनीज, जस्टिन, स्ट्रैबो, व एरियन ने इसे सैंड्रोकोट्स कहा।
- प्लूटार्क व एपियन ने इसे एण्ड्रोकोट्स कहा है।
- वहीं फिलार्कस ने इसे सैण्ड्रोकोप्टस कहकर संबोधित किया है।
चंद्रगुप्त की जाति –
चंद्रगुप्त मौर्य की जाति के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है। ब्राह्मण साहित्य इसे शूद्र मानते हैं। बौद्ध व जैन साहित्य में इसे क्षत्रिय कहा गया है। वहीं मुद्राराक्षस में इसे वृषल व कुलहीन कहा गया है।
सिंकदर से भेंट –
चंद्रगुप्त पंजाब में सिकंदर से मिला और उसका शिविर देखा। चंद्रगुप्त की सिकंदर से इस भेंट का उल्लेख जस्टिन व प्लूटार्क ने किया है।
सुदर्शन झील –
यह सौराष्ट्र प्रांत के गिरनार (जूनागढ़) में अवस्थित है। इसका निर्माण चंद्रगुप्त के गवर्नर पुष्यगुप्त वैश्य ने कराया था।
सेल्युकस से युद्ध –
सिकंदर का सेनापति सेल्युकस निकेटर सीरिया का शासक था। 305 ई. पू. इसका चंद्रगुप्त मौर्य से युद्ध हुआ। इस युद्ध में चंद्रगुप्त की विजय हुई। इसके बाद दोनों में संधि हो गई। हिंदुकुश पर्वत को दोनों ने अपनी सीमा निर्धारित कर लिया। चंद्रगुप्त को चार राज्य काबुल, कांधार, हेरात, व मकरान तट प्राप्त हुए। सेल्युकस ने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त से करा दिया। अप्पियानस ने इस विवाह का उल्लेख किया है। सेल्युकस ने अपने राजदूत मेगस्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा। इस वक्त मेगस्थनीज आराकोसिया (कांधार) में सेल्युकस का राजदूत था। वहीं से यह भारत आया।
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु –
चंद्रगुप्त के शासनकाल के अंतिम दिनों में उसने जैन धर्म स्वीकार कर लिया था। जब मगध में भयंकर अकाल पड़ा तो चंद्रगुप्त ने अपने पुत्र सिंहसेन(बिंदुसार) के पक्ष में राज्य त्याग दिया। ये स्वयं अपने गुरु भद्रबाहु के साथ दक्षिण चला गया। वहां श्रवणवेलगोला (मैसूर) में निवास करने लगा। यहीं पर इसने संलेखना पद्यति द्वारा अपना शरीर त्याग दिया। जैन धर्म में उपवास के द्वारा देह त्यागने की प्रथा को संलेखना कहा जाता है।
बिंदुसार (298-273 ई. पू.)
यह चंद्रगुप्त और दुर्धरा (धनानंद की पुत्री) का पुत्र था। इसे अमित्रघात, भद्रसार, व सिंहसेन इत्यादि नामों से जाना जाता है। इसे वायुपुराण में भद्रसार व अन्य पुराणों में वारिसार कहा गया है। वहीं यूनानी लेखक इसे अमित्रोकेडीज के नाम से संबोधित करते हैं। जब यह पैदा हुआ तो इसके मस्तक पर बिंदु था। इसीलिए इसका नाम बिंदुसार पड़ा। यह सीजेरियन (सर्जरी) तकनीक से पैदा होने वाला पहला शासक था। चाणक्य इसके प्रधानमंत्री थे।
विद्रोह –
इसी के समय तक्षशिला की जनता ने विद्रोह किया। इस समय तक्षशिला का गवर्नर सुसीम था।
यह विद्रोह को नहीं रोक सका।
फिर बिंदुसार ने अवंति (उज्जैन) के गवर्नर अशोक को विद्रोह का दमन करने यहाँ भेजा।
इसमें अशोक को सफलता प्राप्त हुई।
विदेशी शासकों से संबंध –
सीरिया के शासक एंटियोकस प्रथम ने अपने राजदूत डाइमेकस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा।
बिंदुसार ने एंटियोकस से सूखा अंजीर, अंगूरी मदिरा, व एक दार्शनिक की मांग की।
एंटियोकस ने दार्शनिक के अतिरिक्त अन्य सभी वस्तुएं भेज दीं।
दार्शनिक के संबंध में कहा कि यहाँ के कानून के अनुसार दार्शनिक का निर्यात नहीं किया जा सकता।
अशोक महान (273-232 ई. पू.)
273 ई. पू. बिंदुसार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अशोक राजा बना। अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक 269 ई. पू. हुआ। अशोक का नामोल्लेख मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर व उदेगोलम अभिलेखों में मिलता है। राज्याभिषेक के 8वें वर्ष इसने कलिंग पर आक्रमण किया। प्रारंभ में यह ब्राह्मण धर्म का था। बाद में बौद्ध धर्म अपना लिया। इसका काल मुख्य रूप से अपने अभिलोखीय साक्ष्यों के लिए जाना जाता है।
सम्राट अशोक के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए हमारी अगली पोस्ट अशोक महान देखें।
अशोक के बाद के शासक –
अशोक के शासनकाल के बाद मौर्य शासकों का स्पष्ट विवरण प्राप्त नहीं होता है। शासकों का सही क्रम भी वर्णित नहीं है।
इसके बाद संभवतः कुणाल शासक बना। यह एक दृष्टिहीन शासक था।
मौर्य वंश का एक शासक सम्प्रति हुआ। यह जैन मतावलम्बी था। सुहस्तिन ने इसे जैन धर्म में दीक्षित किया।
जालौक कश्मीर में अशोक का उत्तराधिकारी था। यह शैव था और बौद्ध धर्म का विरोधी था।
वीरसेन गांधार का शासक बना।
दशरथ देवनांप्रिय की उपाधि के साथ शासक बना। यह आजीवक मत का अनुयायी था।
वृहद्रथ
मौर्य वंश का अंतिम शासक वृहद्रथ था।
इसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने इसकी हत्या 184 ई. पू. कर दी।
- इसी के साथ मौर्य वंश का अंत और शुंग वंश की स्थापना हुई।