सैय्यद वंश : खिज्र खाँ, मुबारकशाह, मुहम्मदशाह,आलमशाह

सैय्यद वंश

सैय्यद वंश दिल्ली सल्तनत पर स्थापित चौथा राजवंश था। यह दिल्ली सल्तनत के पांच राजवंशों गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैय्यद वंश, लोदी वंश में से एक है। इस लेख में सैय्यद वंश की जानकारी दी गई है। इसने दिल्ली सल्तनत पर 1414 ई. से 1451 ई. तक 37 वर्ष शासन किया। सैय्यद वंश के कुल चार शासक हुए। इस वंश की स्थापना तैमूर के सूबेदार खिज्र खाँ ने की। इस काल में न तो साम्राज्य विस्तार हुआ और न ही प्रशासनिक सुधार।

खिज्र खाँ (1414-21 ई.)

खिज्र खाँ मुल्तान के सूबेदार मलिक सुलेमान का पुत्र था। पिता की मृत्यु के बाद इसे मुल्तान का गवर्नर नियुक्त किया गया था। फिरोजशाह के काल में मुल्तान की जागीर इसी को पास थी। परंतु फिरोज तुगलक की मृत्यु के बाद अव्यवस्था फैल गई। तब मल्लू इकबाल के भाई सारंग खाँ ने इसे बंदी बना लिया। परंतु ये उसकी कैद से निकलने में सफल रहा। 1398 ई. में तैमूर के भारत पर आक्रमण में इसने उसकी सहायता की थी। आक्रमण के बाद तैमूर बापस समरकंद चला गया। जाते वक्त वह खिज्र खाँ को दीपालपुर, मुल्तान व लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर गया। तैमूर ने इसे रैयत ए आला की उपाधि दी थी।

1414 ई. में इसने दौलत खाँ लोदी को पराजित कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। बुखारा के शेख जलालुद्दीन ने इसे सैय्यद कहकर पुकारा था। इसीलिए इसके द्वारा स्थापित वंश सैय्यद वंश कहलाया। इसने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। बल्कि वह तैमूर के प्रतिनिधि के तौर पर कार्य करता रहा। यह तैमूर के उत्तराधिकारी शाहरुख को भारत से निरंतर राजस्व भेजता रहा। इसने खुतबे में भी शाहरुख का ही नाम पड़वाया। इसने सिक्कों पर तुगलक शासकों के ही नाम रहने दिये। इसने मिलक तोफा (मलिक उस शर्क) को  ताजुलमुल्क की उपाधि देकर अपना वजीर नियुक्त किया।

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मुबारकशाह (1421-34 ई.)

मुबारकशाह सैय्यद वंश का अगला शासक बना। यह खिज्र खाँ का पुत्र था। खिज्र खाँ ने अपनी मृत्यु शैया पर इसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। शासक बनने के बाद इसने शाह की उपाधि धारण की। इसने अपने नाम का सिक्का चलवाया और खुतबा पढ़वाया। यह सैय्यद शासकों में सबसे योग्य था। सरवर उल मुल्क को इसने अपना वजीर नियुक्त किया। जो कि हिंदू धर्म से परिवर्तित एक मुसलमान था। इस समय उत्तर पश्चिम सीमा पर बसी खोखर जनजाति ने विद्रोह किया। इसे दबाने के लिए मुबारकशाह ने अफगान सरदार बहलोल लोदी को भेजा। परंतु ये खोखर नेता जसरथ से जा मिला। फरवरी 1434 ई. में वजीर सरवर उल मुल्क ने मुबारकशाह की हत्या शहर का निरीक्षण करते वक्त कर दी।

याहिया बिन सरहिंदी अहमद –

मुबारकशाह ने सरहिंदी अहमद को आश्रय प्रदान किया था। सरहिंदी अहमद की रचना तारीख-ए-मुबारकशाही उसके इसी आश्रयदाता को समर्पित है। इस पुस्तक में खिज्र खाँ को सैय्यद (पैगम्बर मुहम्मद का वंशज) बताया गया है।

मुहम्मदशाह (1434-45 ई.)

मुहम्मदशाह सैय्यद वंश का तीसरा शासक बना।

इसने बहलोल लोदी को पुत्र कहकर पुकारा।

इसी ने बहलोल लोदी को खानेखाना (खान-ए-जहाँ) की उपाधि दी।

मुहम्मदशाह पूरी तरह से बहलोल लोदी पर ही निर्भर हो गया।

आलमशाह (1445-51 ई.)

अलाउद्दीन आलमशाह सैय्यद वंश का अंतिम शासक था।

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वजीर हमीद खाँ से इसका विवाद हो गया।

हमीद खाँ ने बहलोल लोदी को शासक बनने के लिए आमंत्रित किया।

आलमशाह बदायूँ भाग गया। इस तरह दिल्ली सल्तनत पर बहलोल लोदी का अधिकार हो गया।

1476 ई. में अपनी मृत्यु तक आलमशाह बदायूं में ही रहा।

इसके बाद जौनपुर के शासक हुसैनशाह शर्की ने बदायूँ को अपने शासन में मिला लिया।

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