‘अशोक महान (Ashoka The Great)’ शीर्षक के इस लेख में मौर्य वंश के शासक अशोक महान के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। प्राचीन भारत के इतिहास में अशोक मौर्य को ही महान की संज्ञा दी गई है। यह बिंदुसार व सुभद्रांगी का पुत्र था। डी.आर. भण्डाकर ने केवल अभिलेखों के आधार पर ही अशोक का इतिहास लिखने का प्रयास किया। अशोक पहला भारतीय शासक था जिसने अभिलेखों के माध्यम से प्रजा को सीधे संबोधित किया।
अशोक का राज्याभिषेक –
273 ई. पू. बिंदुसार की मृत्यु के बाद अशोक शासक बना। सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या कर राज्य पाया। सत्ता के लिए इसका प्रमुख प्रतिद्वंदी इसका भाई सुमीम था। इसके बाद 269 ई. पू. अशोक का विधिवत राज्याभिषेक हुआ।
अशोक के नाम व उपाधियां –
प्रियदर्शी अशोक की सबसे प्रचलित उपाधि थी। इसके अतिरिक्त अशोक की अन्य उपाधियां निम्नलिखित हैं –
- विष्णुपुराण में अशोक को अशोकवर्द्धन कहा गया है।
- मास्की अभिलेख में इसे बुद्ध शाक्य कहा गया है।
- भाब्रू लेख में मगधाधिराज कहा गया है।
- प्रियदर्शी – दीपवंश, भाब्रू लेख, कांधार अभिलेख में।
- देवानांपिय – 12वां और 13वां शिलालेख।
- देवनांप्रिय प्रियदर्शी – रुम्मिनदेई, गिरनार लेख, निगिलवां।
- इसके अशोक नाम का उल्लेख – मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर, व उडेगोलन लघुशिलालेखों में मिलता है।
अशोक की पत्नियां व संतान-
महादेवी अशोक की पहली पत्नी थी। महेंद्र व संघमित्रा इसी से उत्पन्न अशोक की संतानें थीं। अशोक की एक पत्नी कारुवाकी थी। इससे उत्पन्न संतान तीवर था। पद्मावती कुणाल की माँ थी। अशोक के एक पुत्र जालौक का जिक्र राजतरिंगिणी में हुआ है। अशोक की पुत्री चारुमती रुम्मिनदेई यात्रा में अशोक के साथ थी।
कलिंग युद्ध (261 ई. पू.)
शासक बनने के बाद अशोक ने एक युद्ध कलिंग के साथ किया। यह युद्ध अशोक के राज्याभिषेक के 9वें वर्ष (8 वर्ष बाद) लड़ा गया। इस युद्ध का उल्लेख अशोक के 13वें शिलालेख में हुआ है। इस युद्ध के भीषण रक्तपात व हिंसा से अशोक का मन अशांत हो गया। इसी के बाद अशोक ने भौतिक विजय के स्थान पर धम्म विजय की नीति अपनाई। परंतु अशोक ने कलिंग पर अधिकार बनाए रखा।
धर्म परिवर्तन –
इस भयानक हिंसा व रक्तपात के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया। पहले अशोक ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। बौद्ध धर्म में अशोक को दीक्षित किसने किया इस बारे में भी विद्वान एकमत नहीं हैं। इस कार्य के लिए न्यूग्रोथ, मोगलिपुत्रतिस्स, बालपंडित, व उपागुप्त के नाम प्रमुख है।
अशोक का धम्म
संस्कृत भाषा के धर्म को ही प्राकृत में धम्म की संज्ञा दी गई है। अभिलेखों व धम्म के कारण ही अशोक भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है। फ्लीट ने अशोक के धम्म को राजधर्म कहा है। सेनार्ट ने इसे पूर्णतः बौद्ध धर्म कहा है। वहीं मैकफेल ने इसे बौद्ध धर्म से प्रभावित हिंदू धर्म कहा है। सिद्धपुर, जटिंगरामेश्वर, व ब्रह्मगिरि लेख में अशोक के धम्म का सारांश दिया है। अशोक ने अपने 13वें शिलालेख में धम्म विजय की बात कही है।
अभिलेखों की लिपि –
अशोक के अभिलेखों में कुल चार लिपियों का प्रयोग किया गया है। ये चार लिपियां खरोष्ठी, ब्राह्मी, यूनानी, व अरामाइक हैं। अशोक के स्तंभलेख व गुहालेखों में सिर्फ ब्राह्मी लिपि का प्रयोग हुआ है। शहवाजगढ़ी और मानसेहरा अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं। लघमान व तक्षशिला अभिलेख अरामाइक लिपि में हैं। शरेकुना व कन्धहार अभिलेखों में यूनानी व अरामाइक दोनों लिपियों का प्रयोग हुआ है।
अशोक के अभिलेख
सर्वप्रथम 1750 ई. में टी. फैंथेलर ने अशोक के अभिलेखों को खोजा। इन्होंने सर्वप्रथम दिल्ली-मेरठ अभिलेख को खोजा। अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेफ ने साल 1837 ई. में पढ़ा। इन्होंने दिल्ली-टोपरा अभिलेख को पढ़ा था। इस समय अलेक्जेंडर कनिंघम इनके सहायक थे। प्रिंसेप कलकत्ता टकसाल के अधिकारी व एशियाटिक सोसाइटी के सचिव थे। अशोक का काल मुख्य रूप से अभिलेखों के लिए जाना जाता है। इसके अभिलेख जनसाधारण की भाषा प्राकृत में थे। इन शिलालेखों में अशोक के शासनकाल के 8वें वर्ष से 27वें वर्ष तक की जानकारी मिलती है। ब्राह्मी लिपि का सबसे पहले उद्वाचन जेम्स प्रिंसेप ने ही किया। परंतु इन्होंने प्रियदर्शी का समीकरण लंका के राजा तिस्स से किया। सर्वप्रथम टर्नर ने प्रियदर्शी का समीकरण अशोक से स्थापित किया। ‘चापड़’ ही एकमात्र लेखक है जिसका नाम अशोक के अभिलेखों में मिलता है। अशोक के अभिलेखों को तीन भागों शिलालेख, गुहालेख, व स्तंभलेख में बाँटा गया है। अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत (आम जन की भाषा) थी। अशोक के अभिलेख प्राचीन राजमार्गों के किनारे मिले हैं।
अशोक के शिलालेख –
अशोक के शिलालेखों को दो भागों दीर्घ शिलालेख और लघु शिलालेख में बाँटा गया है। अशोक के शिलालेखों में उसके शासक के 8वें से 27वें वर्ष की घटनाओं का वर्णन है।
दीर्घ शिलालेख –
धौली व जौगड़ अभिलेखों को दो पृथक कलिंग प्रज्ञापन के नाम से जाना जाता है। अशोक के दीर्घ शिलालेख 14 हैं जो 8 अलग अलग स्थानों से प्राप्त हुए हैं। ये 8 स्थान निम्नलिखित हैं –
- मानरेहरा – पेशावर (पाकिस्तान)
- शहवाजगढ़ी – हाजरा जिला (पाकिस्तान)
- धौली/तोसली – ओडिशा के पुरी में
- कालसी – उत्तराखंड के देहादून में
- गिरनार – गुजरात के जूनागढ़ में – सभी दीर्घ शिलालेखों में ये सबसे सुरक्षित अवस्था में है।
- सोपारा – महाराष्ट्र के ठाणे में
- जौगड़ – गंजाम जिला (ओडिशा)
- एरगुडी – जिला कुर्नूल (आंध्रप्रदेश) – इसमें लिपि की दिशा दाएं से बाएं है।
14 दीर्घ शिलालेख –
अशोक के 14 दीर्घ शिलालेखों के विवरण निम्नलिखित हैं –
1. प्रथम शिलालेख में पशु वध निषेध की आज्ञा दी गई है। इस लेख को गिरनार संस्करण भी कहा जाता है।
2. इसमें अशोक ने अपने पड़ोसी राज्यों में भी मानव व पशु चिकित्सा के प्रबंध की बात कही है।
3. तीसरे लेख में प्रादेशिक, रज्जुक, व युक्त अधिकारियों का जिक्र मिलता है। अशोक ने शासनकाल के 12वें वर्ष घोषणा की कि ये अधिकारी हर 5 साल में जनता के बीच जाएं।
4. धम्म नीति के कारण धर्म का शासन बढ़ा है।
5. पांचवें शिलालेख में धम्म महामात्रों की नियुक्ति की जानाकरी प्राप्त होती है। अशोक ने शासनकाल के 13वें वर्ष धम्ममहामात्रों की नियुक्ति की।
6 इसमें प्रतिवेदकों को प्रजा के बारे में समस्त जानकारी देने का आदेश दिया है।
7. किसी भी सम्प्रदाय के लोग कहीं भी निवास कर सकते हैं
8. आठवें शिलालेख में धम्म यात्राओं का उल्लेख किया गया है। अशोक ने शासनकाल के 9 वर्ष बाद (10वें वर्ष) धम्म यात्राओं को आरंभ किया। सबसे पहले बोधगया गया। अशोक ने कुल 256 रातें धम्म यात्रा में बिताईं।
9. इसमें धम्म मंगल को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया है। इसमें लोगों को दासों व सेवकों से शिष्ट व्यवहार करने की आज्ञा दी गई है।
10. दसवें शिलालेख में यश व कीर्ति की निंदा की गई है। इसमें धम्मनीति को श्रेष्ठ बताया गया है।
11. ग्यारहवें शिलालेख में धम्मदान को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
12. अशोक का बारहवां लेख धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।
13. तेरहवें लेख में कलिंग युद्ध की जानकारी मिलती है। इसमें अशोक ने धम्मविजय को सर्वश्रेष्ठ बताया।
14. इसमें अशोक आगे भी लेख लिखवाने की बात कहता है।
लघु शिलालेख –
अशोक के लघु शिलालेख मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, बिहार, कर्नाटक, व राजस्थान से प्राप्त हुए हैं। गुर्जरा लेख मध्यप्रदेश के दंतिया जिले में है। बिहार के सहसाराम, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में, व राजस्थान के जयपुर में लघु शिलालेख मिले हैं। मास्की लेख कर्नाटक के रायचूर जिले में अवस्थित है। इसकी खोज वीडन ने की थी। ब्रह्मगिरि लेख कर्नाटक के चित्तलदुर्ग जिले में अवस्थित है। नेत्तुर व उडेगोलम लेख कर्नाटक के बेलारी जिले में स्थित हैं।
गुहालेख –
अशोक कालीन गुहालेख बराबर पहाड़ियों (गया, बिहार), नागार्जुन पहाड़ियों, रामगढ़ गुहा, व सीतामढ़ी गुहा से मिलते हैं। ये सभी गुहा लेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में हैं। बराबर की गुफाएं शैलकृत वास्तुकला का सबसे प्राचीन उदारहण हैं। यहाँ पर कुल चार गुफाओं का निर्माण किया गया है। सुदामा की गुफा, लोमश ऋषि गुफा, विश्व झोपड़ी गुफा, और कर्ण चौपड़। लोमश ऋषि की गुफा बराबर की पहाड़ियों की सबसे प्रसिद्ध गुफा है। इसमें हाथियों को स्तूप की पूजा करते दर्शाया गया है। मंदिर वैश्यावृत्ति का प्राचीनतम साक्ष्य रामगढ़ गुहालेख से प्राप्त होता है।
स्तंभ लेख –
अशोक के स्तंभलेखों को भी दो भागों वृहत्त स्तंभलेख व लघु स्तंभलेखों में विभाजित किया गया है।
वृहत्त स्तंभलेख –
इसके अंतर्गत कुल सात स्तंभलेख आते हैं।
1. प्रथम स्तंभलेख में अशोक ने धम्म के अनुसार शासन करने की बात कही है।
2. दूसरे स्तंभलेख में अशोक ने कहा ‘धम्म क्या है’। फिर इसी में धम्म के बारे में बताया भी है।
3. तीसरे स्तंभलेख में अशोक ने उन पांच पापों का जिक्र किया है। जो धम्म के मार्ग में बाधक है।
4. चौथा स्तंभलेख रज्जुकों के कार्यों को समर्पित है। इसी में अशोक रज्जुकों की तुलना धाय माँ से करता है।
5. इसमें अशोक ने पशु वध निषेध व कैदियों की मुक्ति के प्रावधान की बात कही है। इसमें दंड समता व व्यवहार समता की बात कही।
6. इसमें जनता के हित व सुखों की बात कही गई है। अशोक ने सभी सम्प्रदायों के सम्मान की भी बात कही।
7. इसमें प्रजा के हित में किए गए कार्यों का उल्लेख है। लोकनिर्माण जैसे सरायों, कुओं, व सड़कों के किनारे वृक्ष लगवाने की बात कही।
लघु स्तंभलेख –
इन पर अशोक महान की ‘राजकीय घोषणाएं’ अंकित हैं। अशोक महान के लघु स्तंभलेख सारनाथ, साँची, रुम्मिनदेई, कौशाम्बी, व निग्लीवा से प्राप्त हुए हैं। अशोक महान की पत्नी कारुवाकी का नाम प्रयाग स्तंभलेख में मिलता है।
अशोक के अभिलेखों में उसकी सिर्फ एक पत्नी कारुवाकी व उससे उत्पन्न पुत्र तीवर का जिक्र हुआ है।
कौशाम्बी-प्रयाग स्तंभलेख को साम्राज्ञी का अभिलेख भी कहा जाता है।
अशोक की लुम्बिनी यात्रा का वर्णन रुम्मिनदेई/लुम्बिनी लेख में मिलता है।
इसी मे मौर्यकालीन कर व्यवस्था की भी जानकारी प्राप्त होती है।
इसीलिए इसे आर्थिक अभिलेख की संज्ञा दी गई है।
बुद्ध के जन्मस्थान लुम्बिनी में कर को घटाकर 1/8 किया जाना इसी लेख में वर्णित है।