‘भूगोल सामान्य ज्ञान’ शीर्षक के इस लेख में भूगोल की महत्वपूर्ण जानकारी को साझा किया गया है। भौगोलिक तत्वों का क्रमबद्ध अध्ययन सर्वप्रथम ‘हिकेटियस’ ने अपनी पुस्तक जस पीरियोडस (पृथ्वी का वर्णन) में किया।
भूगोल की परिभाषाएं –
आर्थर होम्स के अनुसार, ”भूगोल में पृथ्वी के उस भाग का अध्ययन किया जाता है, जो मानव के रहने का स्थान है।”
कार्ल रिटर के अनुसार भूगोल की परिभाषा –
”भूगोल वह विज्ञान है, जिसमें पृथ्वी को स्वतंत्र ग्रह के रुप में मान्यता देते हुए उसके समस्त लक्षणों, घटनाओं व उनके अंतः संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
स्ट्रैबो के अनुसार भूगोल की परिभाषा –
”भूगोल एक ऐसा स्वतंत्र विषय है जिसका उद्देश्य लोगों को विश्व, आकाशीय पिण्डों, स्थल, महासागरों, जीव-जंतुओं, वनस्पति, फलों व भू-धरातल के क्षेत्रों में देखी जाने वाली प्रत्येक अन्य वस्तु का ज्ञान प्राप्त करना है।”
कलैडियस व टालेमी के अनुसार भूगोल की परिभाषा –
”भूगोल पृथ्वी की झलक को स्वर्ग में देखने वाला आभामय विज्ञान है”।
हिकेटियस | भूगोल का जनक |
अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट | वर्तमान भूगोल का जनक |
पोलीडोनियम | भौतिक भूगोल का जनक |
इरॉटास्थनीज | ज्यॉग्रफी शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया |
इरॉटास्थनीज | व्यवस्थित भूगोल का जनक |
कार्ल ओ सावर | सास्कृतिक भूगोल का जनक |
थेल्स व एनेक्सीमेंडर | गणितीय भूगोल का संस्थापक |
अनेक्सीमेंडर | विश्व मानचित्र का निर्माता |
मार्टिन बैहम | विश्व ग्लोब का निर्माता |
स्ट्रैबो | भौगोलिक विश्वकोश का रचनाकार |
जॉर्ज लेमेंतेयर | महाबिस्फोट सिद्धांत |
ब्रह्माण की उत्पत्ति के सिद्धांत –
- महाबिस्फोट सिद्धांत (Big-Bang Theory) – ऐब जॉर्ज लेमेंतेयर
- दोलन सिद्धांत – डॉ. एलन संडेजा
- स्फीति सिद्धांत – एलन गुथ
- साम्यावस्था या सतत सृष्टि या स्थिर अवस्था संकल्पना सिद्धांत – थॉसम गोल्ड व हर्मन बॉडी
ब्रह्मांड (COSMOS) –
ब्रह्मांड (COSMOS) का सबसे पहले क्रमबद्ध अध्ययन मिश्र-यूनानी परंपरा के विख्यात खगोलशास्त्री क्लाडियस टॉलेमी (140ई।) ने किया। इन्होंने जियोसेंट्रिक अवधारणा दी। इनके अनुसार पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में है, सूर्य व अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा कर रहे हैं। 1543 ई. में कॉपरनिकस ने बताया कि ब्रह्मांड के केंद्र में पृथ्वी नहीं सूर्य है। दरअसल ब्रह्मांड को लेकर उनकी कल्पना सौर परिवार तक ही सीमित थी। उनकी यह अवधारणा हेलियोसेंट्रिक कहलाई। 1805 ई. में ब्रिटिश खगोलशास्त्री हरशेल ने दूरबीन की सहायता से बताया कि सौर परिवार आकाश गंगा का एक अंश मात्र है। 1925 ई. में अमेरिकी खगोलशास्त्री एडविन पी. हबल ने ब्रह्मांड का व्यास 250 करोड़ प्रकाश वर्ष बताया।
आकाशगंगा किसे कहते हैं ?
असंख्या तारों के विशाल पुंज को आकाशगंगा कहा जाता है। ब्रह्मांड में अनुमानतः 100 अरब आकाशगंगाएं हैं। आकाशगंगा के केंद्र को बल्ज कहा जाता है। यहाँ तारों का संकेंद्रण सर्वाधिक होता है। हमारी आकाशगंगा को मंदाकिनी कहा जाता है, यह सर्पिलाकरा है। इसका व्यास एक लाख प्रकाशवर्ष है। मिल्की वे रात को दिखने वाले तारों का समूह है जो हमारी आकाशगंगा का हिस्सा है। हमारी आकाशगंगा के सबसे चमकीले व शीतल तारों का समूह ऑरिन नेबुला है। हमारे आकाशगंगा के सबसे निकट की आकाशगंगा एंड्रोमेडा है। यह हमारी आकाशगंगा से 2.2 मिलियन प्रकाशवर्ष की दूरी पर है। सूर्य का निकटतम तारा प्रॉक्सिमा सैंचुरी है। यह सूर्य से 4.3 प्रकाशवर्ष दूर है।
तारे का जीवनचक्र –
आकाशगंगा के घूर्णन से ब्रह्मांड में उपस्थित गैसों का मेघ प्रभावित होता है। परस्पर गुरुत्वाकर्षण के कारण उनके केंद्र में नाभिकीय संलयन प्रक्रिया प्रारंभ होती है। इससे हाइड्रोजन हीलियम में परिवर्तित होना प्रारंभ होता है। इसी से तारे का निर्माण हो जाता है। जब तारे के केंद्र का हाइड्रोजन समाप्त हो जाता है तो केंद्रीय भाग संकुचित व गर्म हो जाता है। यद्यपि बाहरी परत में हाइड्रोजन का हीलियम में परिवर्तित होना जारी रहता है। धीरे-धीरे तारा ठण्डा होकर लाल दिखने लगता है। जिसे रक्त दानव कहते हैं। अब हीलियम कार्बन में और कार्बन भारी पदार्थ जैसे लोहा में परिवर्तित होने लगता है। इसके फलस्वरूप तारे में तीव्र विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा कहते हैं।
यदि तारे का द्रव्यमान 1.4 Ms (चंद्रशेखर सीमा) से कम होता है तो वह अपनी नाभिकीय ऊर्जा को खोकर श्वेत वामन में बदल जाता है। इसे जीवाश्म तारा भी कहते हैं। श्वेत वामन ठण्डा होकर काला वामन में परिवर्तित हो जाता है। असीमित घनत्व के द्रव्ययुक्त पिण्ड को ब्लैक होल कहते हैं। ब्लैकहोल से किसी भी द्रव्य यहाँ तक कि प्रकाश का भी पलायन नहीं हो सकता। ब्लैक होल की संकल्पना जॉन व्हीलर ने दी। दो या अधिक ब्लैक होल का समूह रॉग ब्लैक होल कहलाता है।
महाद्वीप
पृथ्वी पर भूखंड की सबसे विस्तृत इकाई को महाद्वीप कहा जाता है। पृथ्वी पर कुल सात महाद्वीप अवस्थित हैं –
महासागर किसे कहते हैं ?
पृथ्वी पर जल की सबसे विस्तृत इकाई को महासागर के रूप में जाना जाता है। पृथ्वी पर अवस्थित महासागर प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, आर्कटिक महासागर, व अंटार्कटिका महासागर हैं। प्रशांत महासागर पृथ्वी का सबसे विस्तृत महासागर है इसका क्षेत्रफल पृथ्वी के संपूर्ण स्थल भाग से भी अधिक है।
महासागरों की गर्म जलधाराएं
जलधारा | महासागर |
प्रशांत महासागर | क्यूरोसियो की जलधारा |
प्रशांत महासागर | उत्तरी प्रशांत जलप्रवाह |
प्रशांत महासागर | उत्तर विषुवतरेखीय जलधारा |
प्रशांत महासागर | अलास्का की जलधारा |
प्रशांत महासागर | एलनीनो जलधारा |
प्रशांत महासागर | दक्षिण विषुवतीय जलधारा |
प्रशांत महासागर | पूर्वी ऑस्ट्रेलिया की जलधारा |
प्रशांत महासागर | विपरीत विषुवतरेखीय जलधारा |
प्रशांत महासागर | सुशीमा की जलधारा |
अटलांटिक महासागर | गल्फ स्ट्रीम |
अटलांटिक महासागर | फ्लोरिडा जलधारा |
अटलांटिक महासागर | ब्राजील जलधारा |
अटलांटिक महासागर | इसमिंजर की जलधारा |
अटलांटिक महासागर | उत्तर विषुवतरेखीय जलधारा |
अटलांटिक महासागर | दक्षिण विषुवतरेखीय जलधारा |
अटलांटिक महासागर | विपरीत विषुवतरेखीय (गिनी की) जलधारा |
हिंद महासागर | अगुलहास की जलधारा |
हिंद महासागर | मोजाम्बिक की जलधारा |
हिंद महासागर | दक्षिण विषुवतीय रेखीय जलधारा |
महासागरों की ठंडी जलधाराएं
जलधारा | महासागर |
प्रशांत महासागर | कैलिफोर्निया की जलधारा |
प्रशांत महासागर | अंटार्कटिका की जलधारा |
प्रशांत महासागर | क्यूराइल विषुवतरेखील जलधारा |
प्रशांत महासागर | पेरुवियन या हम्बोल्ट की जलधारा |
अटलांटिक महासागर | बेंगुला की जलधारा |
अटलांटिक महासागर | कनारी जलधारा |
अटलांटिक महासागर | लेब्राडोर की जलधारा |
अटलांटिक महासागर | फॉकलैंड की जलधारा |
अटलांटिक महासागर | अंटार्कटिका की जलधारा |
अटलांटिक महासागर | पूर्वी ग्रीनलैंड की जलधारा |
हिंद महासागर | पश्चिम ऑस्ट्रेलिया की जलधारा |
ज्वार भाटा –
सूर्य व चंद्रमा की आकर्षण शक्ति के मेल से समुद्र के जल के ऊपर उठकर आगे बढ़ने को ज्वार और नीचे गिरकर पीछे हटने को भाटा कहते हैं। सूर्य की तुलना चांद के पथ्वी के अधिक पास होने के कारण ज्वार-भाटा में चंद्रमा की आकर्षण शक्ति सूर्य से दोगुनी होती है। पूर्णिमा और अमावस्या के दिन उच्च ज्वार उत्पन्न होता है।
हमारे तारे(सूर्य) के चारो ओर चक्कर लगाने वाले ग्रह, क्षुद्रग्रहों, उल्काओं, धूमकेतुओं व अन्य समस्त पिंडों को संयुक्त रूप से सौरमण्डल कहा जाता है।
वर्तमान में सौरमंडल में कितने ग्रह हैं – आठ (बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरु, शनि, अरुण, वरुण)
24 अगस्त 2006 से यम/प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से हटा दिया गया।
पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना घूर्णन या परिभ्रमण (Rotation) और सूर्य के परितः चक्कर लगाना परिक्रमण (Revolution) कहलाता है। 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के सबसे करीब और 4 जुलाई को सबसे दूर होती है।
सूर्यग्रहण –
सूर्य व पृथ्वी के बीच चंद्रमा का आ जाना सूर्य ग्रहण कहलाता है। यह हमेशा अमावस्था के दिन ही देखने को मिलता है।
चंद्रग्रहण –
सूर्य व चंद्रमा के बीच पृथ्वी का आ जाना चंद्रग्रहण कहलाता है। यह हमेशा पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है।
अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा –
180 डिग्री पूर्वी या पश्चिमी देशांतर को अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के नाम से जाना जाता है। इसी रेखा से तिथि का निर्धारण होता है।
पृथ्वी की बाह्य संरचना –
पृथ्वी की बाहरी संरचना को चार प्रमुख भागों – स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल, व जैवमंडल में विभाजित किया गया है। पृथ्वी के 71% भाग पर जलमंडल और 29% भाग पर स्थलमंडल का विस्तार है। पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में 61% और दक्षिणी गोलार्द्ध में 81% क्षेत्र पर जलमंडल का विस्तार है।
पर्वतों के प्रकार –
उत्पत्ति के अनुसार पर्वतों के चार प्रकार ब्लॉक पर्वत, अवशिष्ट पर्वत, वलित पर्वत, व संचित पर्वत हैं।
अन्तरपर्वतीय पठार, पर्वतपदीय पठार, महाद्वीपीय पठार, तटीय पठार, व गुम्बदाकार पठार।
चट्टानों के प्रकार –
चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं- आग्नेय चट्टानें, अवसादी चट्टानें व कायान्तरित चट्टानें। लैकोलिथ, लैपोलिथ, बैथोलिथ, फैकोलिथ, सिल, डाइक, व स्टॉक आग्नेय चट्टानों के उदाहरण हैं।
वनों के प्रकार –
- उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन
- उष्ण कटिबंधीय अर्द्ध पतझड़ वन
- विषुवत रेखीय वन
- पर्वतीय वन
- टैगा वन
- टुड्रा वन
कृषि क्षेत्र में हुई क्रांतियाँ –
भारत में हरित क्रांति की शुरुवात 1967-68 ई. में हुई। इसका श्रेय डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन को जाता है। इसके बाद 1983-84 ई. में द्वितीय हरित क्रांति हुई। भारत में हुई हरित क्रांति से सर्वाधिक प्रभाव गेहूँ व चालव की खेती पर पड़ा। लेकिन चावल की तुलना में गेहूँ के उत्पादन में अधिक वृद्धि हुई। तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना सन् 1986 ई. में हुई।
- हरित क्रांति – खाद्यान्न उत्पादन
- श्वेत क्रांति – दुग्ध उत्पादन
- नीली क्रांति – मत्स्य उत्पादन
- पीली क्रांति – तिलहन उत्पादन
- गुलाबी क्रांति – झींगा मछली उत्पादन
- रजत क्रांति – अण्डा उत्पादन
- भूरी क्रांति – उर्वरक उत्पादन
- सुनहरी क्रांति – फल उत्पादन
- कृष्ण क्रांति – बायोडीजल उत्पादन
- लाल क्रांति – टमाटर व मांस उत्पादन
- बादामी क्रांति – मसाला उत्पादन
- अमृत क्रांति – नदी जोड़ो परियोजना
ऋतुओं के आधार पर फसलों का वर्गीकरण –
- रबी की फसल – इनमें गेहूँ, सरसों, जौं, चना, मटर, आलू व राई की फसल आती हैं। ये अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती हैं। इन्हें मार्च-अप्रैल में काट लिया जाता है।
प्रमुख वनस्पतियां
वनस्पति | क्षेत्र |
हैलोफाइट | नमकयुक्त भूमि में होने वाली वनस्पति |
ट्रोपोफाइट | उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली वनस्पति व घास |
हाइग्रोफाइट | दलदली व भूमध्यरेखीय उष्ण आर्द्रता वाली वनस्पति |
हाइड्रोफाइट | जल प्लावित क्षेत्रों में होने वाली वनस्पति |
मेसोफाइट | शीतोष्ण कटिबंध क्षेत्र में होने वाली वनस्पति |
लिथोफाइट | कड़ी चट्टानों में उगने वाली वनस्पति |
जीरोफाइट | उष्णकटिबंधीय मरुस्थलीय क्षेत्रों में होने वाली वनस्पति |
क्रायोफाइट | टुड्रा व शीत प्रमुख क्षेत्रों पर होने वाली वनस्पति |
पृथ्वी की आंतरिक संरचना –
पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन तीन भागों भू-पर्पटी, मेंटल, क्रस्ट/कोर में विभाजित कर किया जाता है। इन भागों के सीमा क्षेत्र को असंबद्धता के रूप में जाना जाता है –
- कोनोराड असंबद्धता – ऊपरी व निचली भूपर्पटी/क्रस्ट के बीच के सीमा क्षेत्र को कोनोराड असंबद्धता के नाम से जाना जाता है।
- मोहविसिक असंबद्धता – भूपर्पटी/क्रस्ट व मेंटल के बीच के सीमाक्षेत्र को मोहविसिक असंबद्धता के नाम से जाना जाता है।
- रेपेटी असंबद्धता – ऊपरी व निचले मेंटल के बीच के सीमाक्षेत्र को रेपेटी असंबद्धता के रूप में जाना जता है।
- गुटेनबर्ग विशार्ट असंबद्धता – निचले मेंटल व ऊपरी क्रोड़/कोर/क्रस्ट के बीच के सीमाक्षेत्र को गुटेनबर्ग विशार्ट असंबद्धता के नाम से जाना जाता है।
- लेहमैन असंबद्धता – बाह्य व आंतरिक कोर के बीच के सीमाक्षेत्र को लेहमैन असंबद्धता के रूप में जाना जाता है।
ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं – सक्रिय ज्वालामुखी, शांत ज्वालामुखी, व सुषुप्त ज्वालामुखी। ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में एक भी ज्वालामुखी नहीं है।
वायुमंडल की संरचना –
वायुमंडल को निम्न परतों में बाँटा गया है –
- बाह्य मंडल (Exosphere) – पृथ्वी की सतह से 640 किसी. से अधिक ऊँचाई का क्षेत्र।
- आयन मंडल (Ionosphere) – 60 से 640 किमी. तक।
- ओजोन मंडल (Ozonosphere) – 32 से 60 किमी. तक।
- समताप मंडल (Stratosphere) – 18 से 32 किमी. तक।
- क्षोभमंडल (Troposphere) – विषुवत रेखा पर 8 किमी. तक और ध्रुवों पर 18 किमी तक।
पृथ्वी के वायुमंडल में पायी जाने वाली प्रमुख गैसें – नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाईऑक्साइड, ओजोन, व जलवाष्प हैं।
भारत के उद्योग
लौह-इस्पात उद्योग, एल्युमिनियम उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, जूट उद्योग, सीमेन्ट उद्योग, कागज उद्योग, मोटरगाड़ी उद्योग इत्यादि भारत के प्रमुख उद्योग हैं।
भारत में लौह इस्पात उद्योग –
लौह इस्पात उद्योग अन्य सभी उद्योगों का आधार है। भारत में लौह इस्पात उद्योग की आधारशिला को डेढ़ सौ साल होने वाले हैं। भारत में पहला लौह इस्पात कारखाना 1874 ई. में कुल्टी (आसनसोल, पश्चिम बंगाल में बंगाल आयरन वर्क्स के रूप में स्थापित किया गया था। बाद में फंड के अभाव में कंपनी बंद हो गई। बंगाल सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया। इसका नाम बराकर आयरन वर्क्स कर दिया गया। 1907 ई. में जमशेदजी टाटा द्वारा देश में बड़े पैमाने का कारखाना तात्कालिक बिहार के साकची में खोला गया। यह स्वर्णरेखा नदी घाटी में अवस्थित था। स्टील कॉर्पोरेशन ऑफ बंगाल की स्थापना 1937 ई. में बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) में की गई।
भिलाई इस्पात संयंत्र –
सोवियत संघ के सहयोग से दूसरी पंचवर्षीय योजना काल में इसकी स्थापना 1955 ई. में तात्कालिक मध्यप्रदेश के भिलाई में की गई।
हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड –
दूसरी पंचवर्षीय योजना काल में इसकी स्थापना पश्चिमी जर्मनी के सहयोग से ओडिशा के राउलकेला में की गई।
हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड –
इसकी स्थापना ब्रिटेन के सहयोग से साल 1956 ई. में पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में दूसरी पंचवर्षीय योजना काल में की गई।
बोकारो स्टील प्लांट –
1968 ई. में तृतीय पंचवर्षीय योजना काल में इसकी स्थापना तात्कालिक बिहार के बोकारो में सोवियत संघ के सहयोग से की गई।
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया –
भिलाई, बोकारो, राउलकेला, दुर्गापुर, बर्नपुर, सलेम एवं विश्वेश्वरैया लौह इस्पात कारखाना 24 जनवरी 1973 को एक साथ मिला दिया गया। इनके संचालन की जिम्मेदारी स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया को दी गई।
कृषि संबंधी शब्दावली
शब्द | तात्पर्य या संबंधित |
एपीकल्चर | मधुमक्खी पालन |
पिसीकल्चर | मत्स्यपालन |
फ्लोरीकल्चर | फूलों का उत्पादन |
पॉमीकल्चर | फलों का उत्पादन |
ओलेरीकल्चर | सब्जियों की खेती |
विटीकल्चर | अंगूर की खेती |
वर्मीकल्चर | केंचुआ पालन |
सेरीकल्चर | रेशमी कीट पालना |
हॉर्टीकल्चर | बागवानी |
एरोपोर्टिक | हवा में पौधों को उगाना |
हाइड्रोपोनिक्स | जल में पौधे उगाना (मृदारहित कृषि करना) |
हरित क्रांति | खाद्यान्न उत्पादन |
श्वेत क्रांति | दुग्ध उत्पादन |
सुनहरी क्रांति | फलों का उत्पादन |
नीली क्रांति | मत्स्य/मछली उत्पादन |
रजत क्रांति | अंडा उत्पादन |
भूरी क्रांति | उर्वरक उत्पादन |
पीली क्रांति | तिलहन उत्पादन |
कृष्ण क्रांति | बायोडीजल उत्पादन |
लाल क्रांति | मांस व टमाटर उत्पादन |
गुलाबी क्रांति | झींगा मछली उत्पादन |
बादामी क्रांति | मसाला उत्पादन |
अमृत क्रांति | नदी जोड़ो योजना |
पवन
पवनें तीन प्रकार की होती हैं – प्रचलित पवनें, मौसमी पवने, व स्थानीय पवनें।
- पछुवा पवनें, व्यापारिक पवनें, व ध्रुवीय पवनें प्रचलित पवनों के उदाहरण हैं।
- मानसूनी पवनें, समुद्री समीर व, स्थल समीर मौसमी पवनों के उदाहरण हैं।
- स्थानीय पवनें – फॉन, हरमट्टन, नारवेस्टर, जेट प्रवाह, चिनुक, शामल, सिरॉको, ब्लैक रोलर, सिमूम, ब्रिक फील्डर।
आर्द्रता –
वायु में उपस्थित जलवाष्प को वायुमंडल की आर्द्रता कहा जाता है। किसी ताप पर वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा व उसी ताप पर वायु की जलधारण करने की क्षमता के अनुपात को सापेक्षिक आर्द्रता कहा जाता है।
विश्व की प्रमुख जनजातियां
जनजाति | क्षेत्र | जनजाति | क्षेत्र |
पिग्मी | कांगो बेसिन | बोरो | ब्राजील |
माओरी | न्यूजीलैंड | वेद्दास | श्रीलंका |
हैदा | अमेरिका | सेमांग | मलेशिया |
बद्दू | अरब | आइनू | जापान |
यूकाधिर | साइबेरिया | तार्तार | साइबेरिया |
नीग्रो | मध्य अफ्रीका | खिरगीज | मध्य अफ्रीका |
इकांथा | दक्षिणी अफ्रीका | याकू | टुड्रा प्रदेश |
पपुआंस | न्यूगिनी | एस्किमों | ग्रीनलैंड, कनाडा |
मसाई | पूर्वी अफ्रीका (केन्या) | जुलू | नेटाल प्रांत (दक्षिण अफ्रीका) |
बुशमैन | कालाहारी मरुस्थल (बोत्सवाना) | रेड इंडियन | उत्तरी अमेरिका (कनाडा) |
भारत के खनिज संसाधन
‘ जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ‘ और ‘ भारतीय खान ब्यूरो ‘ भारत में खनिजों के सर्वेक्षण और विकास के लिए निर्मित संस्थाएं हैं। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का मुख्यालय कोलकाता में है। भारतीय खान ब्यूरो का मुख्यालय नागपुर में है। भारत में पेट्रोलियम , लौह-अयस्क , मैंगनीज , हीरा , सोना , ताँबा , जस्ता , यूरेनियम , कोयला , बाक्साइट इत्यादि खनिज पाये जाते हैं। भूगोल सामान्य ज्ञान ।
- पेट्रोलियम
- लौह-अयस्क
- मैंगनीज
- हीरा
- सोना
- चाँदी
- ताँबा
- जस्ता
- यूरेनियम
- थोरियम
- कोयला
- बाक्साइट
- अभ्रक
- मैग्नेजाइट
- सीसा
- टिन
- टंगस्टन
- लिग्नाइट
- क्रोमाइट
लौह अयस्क –
लौह अयस्क के संचित भंडार की दृष्टि से भारत विश्व में शीर्ष पर है। कर्नाटक , छत्तीसगढ़ और ओडिशा भारत के शीर्ष लौह अयस्क उत्पादक राज्य हैं। भारत में लौह अयस्क उत्पादन स्थल –
- कर्नाटक – चिकमंगलूर , बेलोरी , चीतल दुर्ग
- छत्तीसगढ़ – बस्तर , रायपुर , दुर्ग , बिलासपुर , रायगढ़
- ओडिशा – सोनाई , मयूरभंज , क्योंझर
- झारखंड – सिंहभूम , हजारीबाग , धनबाद , पलामू
- मध्यप्रदेश – जबलपुर
- तमिलनाडु – तिरुचिरापल्ली ,सलेम ।
- महाराष्ट्र – रत्नागिरि , चांदा ।
- गोवा।
भारत में पेट्रोलियम उद्योग –
असम ( डिगबोई , सूरमा घाटी ) , अंकलेश्वर व खम्भात ( गुजरात ) , बॉम्बे हाई ( महाराष्ट्र ) भारत में पेट्रोलियम के प्राप्ति स्थल हैं प्राप्ति स्थल हैं। भारत में पेट्रोलियम का पहला कुआँ साल 1960 में अंकलेश्वर में खोदा गया था , इसका नाम वसुधारा था । बॉम्बे हाई में तेल की खोज 1965 ई. में की गई । 1974 ई. में ONGC ने यहाँ से तेल के उत्पादन की शुरुवात की । यह मुम्बई से 176 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में अवस्थित है । यहाँ पर तेल निकालने के लिए जो प्लेटफॉर्म बनाया गया है उसका नाम सागर सम्राट है ।
भारत में कोयला उद्योग –
भारत में कोयला प्राप्ति स्थल झारखंड , छत्तीसगढ़, ओडिशा , जम्मू-कश्मीर , पश्चिम बंगाल , महाराष्ट्र , तेलंगाना , असम , मेघालय , नागालैंड , अरुणाचल प्रदेश में हैं । एंथ्रेसाइट सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता का कोयला होता है।
- झारखंड – सिंहभूमि , धनबाद , गिरिडीह
- छत्तीसगढ़ – रायगढ़
- पश्चिम बंगाल – रानीगंज , आसनसोल
- ओडिशा – तलचर , देसगढ़
- महाराष्ट्र – चांदा
- तेलंगाना – सिंगरेनी
- असम – माकूप , लखीमपुर
- अरुणाचल प्रदेश – नामरूप, नामचिक
बाक्साइट –
बॉक्साइट के मामले में भारत आत्मनिर्भर है। भारत मेें बाक्साइट का सर्वाधिक उत्पादन ओडिशा में होता है। देश में बाक्साइट के कुल उत्पादन का 42 प्रतिशत ओडिशा में होता है। ओडिशा , झारखंड , राजस्थान, महाराष्ट्र , बिहार , आंध्र प्रदेश भारत में बाक्साइट उत्पादन वाले राज्य हैं। भूगोल ।
भारत में ताँबा उद्योग –
भारत में ताँबा झारखंड , राजस्थान , महाराष्ट्र , कर्नाटक, आंध्र प्रदेश , मध्यप्रदेश में पाया जाता है। राज्यवार इसके प्राप्ति स्थलों की सूची –
- झारखंड – सिंहभूम, हजारीबाग
- राजस्थान – खेतड़ी , भूलवाड़ा , झुंनझुनू , सिरोही , अलवर
- महाराष्ट्र – कोल्हापुर
- कर्नाटक – चीतल दुर्ग, हासन , रायचूर
- आंध्र प्रदेश – अग्नि गुण्डल
- मध्य प्रदेश – बालाघाट ।
जनजातियों के आवास –
- इग्लू (Igloo) – इसे एस्कीमी प्रजाति द्वारा बनाया जाता है। यह बर्फ का बना हुआ अर्द्धगोलाकार घर है। यह प्रजाति टुड्रा प्रदेश में पायी जाती है।
- युर्त (Yurt) – मध्य एशिया के स्टेपी क्षेत्र में पायी जाने वाली खिरगीज, कज्जाक, कालमुख प्रजातियों द्वारा बनाए जाते हैं। इनका निर्माण जानवरों की खाल से किया जाता है। ये एक प्रकार के अस्थाई वास स्थल हैं।
- क्राल (Kral) – ये अफ्रीका के वान्टु एवं नेटाल व काफिर के जुलू प्रजातियों द्वारा बनाए जाते हैं। इनका निर्माण घास से किया जाता है।
- ऑल (Aul) – ये यूरोप के काकेशस पर्वतीय व मरुस्थलीय क्षेत्रों में पायी जाने वाली प्रजाति का तम्बूनुमा आवास है। इनका निर्माण लकड़ी के ऊपर चमड़े को मढ़कर वृत्ताकार ढांचे पर किया जाता है।
- तिपि (Tipi) – इसका निर्माण रेड इंडियन प्रजाति द्वारा किया जाता है। यह तम्बूनुमा आवास होते हैं। यह प्रजाति अमेरिका के रॉकी पर्वत के पूर्वी भागों में निवास करती है। इसका निर्माण मुख्यतः बिसन बैल के चमड़े से किया जाता है।
- इज्बा (Izba) – इसका निर्माण तिकोनी रंगीन दीवारों से किया जाता है। यह उत्तरी रूस के ग्रामीण क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
विश्व की प्रमुख जलसंधियां –
- बेरिंग जलसंधि (अलास्का – रूस) – यह बेरिंग सागर और चुकसी सागर को जोड़ती है।
- डेविस जलसंधि (ग्रीनलैंड – कनाडा) – बेफिन खाड़ी को अटलांटिक महासागर से जोड़ती है।
- जिब्राल्टर जलसंधि (स्पेन – मोरक्को ) – यह भूमध्यसागर को अटलांटिक महासागर से जोड़ती है।
- मलक्का जलसंधि (इंडोनेशिया – मलेशिया) – यह अण्डमान सागर और दक्षिण चीन सागर को जोड़ती है।
- डोवर जलसंधि (इंग्लैंड – फ्रांस ) – यह उत्तरी सागर को इंग्लिश चैनल से जोड़ती है।
- पाक जलसंधि ((भारत – श्रीलंका) – यह मन्नार की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी को जोड़ती है।
- मैगलन जलसंधि ( चिली ) – यह प्रशांत महासागर को दक्षिणी अटलांटिक महासागर से जोड़ती है।
- डेनमार्क जलसंधि (आइसलैंड – ग्रीनलैंड ) – यह उत्तरी अटलांटिक महासागर को आर्कटिक महासागर से जोड़ती है।
- कोरिया जलसंधि ( कोरिया – जापान ) – यह जापान सागर को पूर्वी चीन सागर से जोड़ती है।
- लुजोन जलसंधि (ताइवान – फिलीपींस) – यह दक्षिण चीन सागर और फिलीपींस सागर को जोड़ती है।
भारत के जैवमण्डल आरक्षित स्थान –
वर्तमान में भारत में कुल 18 जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र (BioSphere Reserves) हैं।
- नीलगिरि (1986 में)
- नोकरेक (1988 में)
- नंदा देवी (1988 में)
- ग्रेट निकोबार (1989 में)
- मन्नार की खाड़ी (1989 में)
- मानस (1989 में)
- सुंदरवन (1989 में)
- दिहांग-दिबांग (1998 ई. में)
- डिब्रू-सैखोवा (1997 में)
- पंचमढ़ी (1999 में)
- सिमिलीपाल (1994 में)
- कंचनजंगा (2000 में)
- अगस्त्यमलाई (2001 में)
- अचानकमार-अमरकंटक (2005 में)
- कच्छ (2008 मे)
- शीत रेगिस्तान (2009 में)
- सेशाचलम पहाड़िया (2010 में)
- पन्ना (2011 में)
भारत में कितने टाइगर रिजर्व हैं – (53)
- बांदीपुरा, कर्नाटक (1973-74 ई.)
- जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान, उत्तराखण्ड (1973-74)
- कान्हा, मध्यप्रदेश (1973-74 ई.)
- मानस, असम (1973-74 ई.)
- मेलघाट, महाराष्ट्र (1973-74 ई.)
- पलामू, झारखण्ड (1973-74 ई.)
- रणथम्भौर, राजस्थान (1973-74 ई.)
- सिमिलिपाल, उड़ीसा (1973-74 ई.)
- सुंदरवन, असम (1973-74 ई.)
- पेरियार, केरल (1978-79 ई.)
- सरिस्का, राजस्थान (1978-79 ई.)
- बक्सा, प. बंगाल (1982-83 ई.)
- इंद्रावती, छत्तीसगढ़ (1982-83 ई.)
- नमदाफा, अरुणाचल प्रदेश (1982-83 ई.)
- दुधवा, उत्तर प्रदेश (1982-83 ई.)
- नागार्जुन सागर श्रीशैलम, आंध्रप्रदेश (1982-83 ई.)
- कलाकड़-मुंदनथुराई, तमिलनाडु (1988-89 ई.)
- बाल्मीकि, बिहार (1989-90 ई.)
- पेंच, मध्यप्रदेश (1992-93 ई.)
- तडोबा-अंधारी, महाराष्ट्र (1993-94 ई.)
- बांधवगढ़, मध्यप्रदेश (1993-94 ई.)
- पन्ना, मध्यप्रदेश (1994-95 ई.)
- डम्पा, मिजोरम (1994-95 ई.)
- भद्रा, कर्नाटक (1998-99 ई.)
- पेंच, महाराष्ट्र (1998-99 ई.)
- पक्के, अरुणाचल प्रदेश (1999-2000 ई.)
- नामेरी, असम (1999-2000 ई.)
- सतपुड़ा, मध्यप्रदेश (1999-2000 ई.)
- अनामलाई, तमिलनाडु (2008-09 ई.)
- उदंती-सीतानदी, छत्तीसगढ़ (2008-09 ई.)
- सतकोसिया, उड़ीसा (2008-09 ई.)
- काजीरंगा, असम (2008-09 ई.)
- अचानकमार (2008-09 ई.)
- दांदेली-अंशी (काली), कर्नाटक (2008-09 ई.)
- संजय दुबरी, मध्यप्रदेश (2008-09 ई.)
- मदुमलाई, तमिलनाडु (2008-09 ई.)
- नागरहोल, कर्नाटक (2008-09 ई.)
- परम्बिकुलम, केरल (2008-09 ई.)
- सह्याद्रि, महाराष्ट्र (2009-10 ई.)
- बिलगिरी रंगनाथ मंदिर, कर्नाटक (2010-11 ई.)
- कवल, तेलंगाना (2012-12 ई.)
- सत्यमंगलम, तमिलनाडु (2013-14 ई.)
- मुकुंदरा हिल्स, राजस्थान (2013-14 ई.)
- नवेगांव-नागजीरा, महाराष्ट्र (2013-14 ई.)
- अमराबाद, तेलंगाना (2014 में)
- पीलीभीत टाइगर रिजर्व, उत्तर प्रदेश (2014)
- बोर टाइगर रिजर्व, महाराष्ट्र (2014 में)
- राजाजी, उत्तराखण्ड (2015)
- ओरंग, असम (2016)
- कमलांग, अरुणाचल प्रदेश (2016)
- श्रीविल्लीपुथुर मेघमलाई, तमिलनाडु (2021)
- रामगढ़ विषधारी, राजस्थान (2021)
- गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान, छत्तीसगढ़ (2022)