राजस्थान के राजकीय प्रतीक – राजकीय पशु, पक्षी, वृक्ष, पुष्प इत्यादि

राजस्थान के राजकीय प्रतीक - राजकीय पशु, पक्षी, वृक्ष इत्यादि

राजस्थान के राजकीय प्रतीक – राजकीय पशु, पक्षी, वृक्ष, पुष्प इत्यादि (Rajasthan state symbols animal bird tree flower etc) – राजस्थान सामान्य ज्ञान की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

राजस्थान का राजकीय पशु

  • चिंकारा (जंगली) और ऊँट (पालतू)

राजस्थान के राजकीय पशु

राज्य ने अपने राजकीय पशुओं को जंगली व पालतू दो श्रेणियों में घोषित किया है। इन दोनों ही पशुओं का शरीर राजस्थान की शुष्क व रेतीली जलवायु के अनुकूल है। ये दोनों ही जीव कम पानी वाले क्षेत्रों में भी काम चला सकते हैं।

राजस्थान का राजकीय पशु – चिंकारा

  • नाम – चिंकारा (Indian Gazelle)
  • वैज्ञानिक नाम – गजेला बेनेट्टी

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चिंकारा छोटे हिरण की एक प्रजाति है। इसे राजस्थान सरकार ने साल 1981 में राजस्थान के राजकीय पशु के रूप में इसे घोषित किया था। एन्टीलोप प्रजाति से संबंधित यह एक छोटा मृग है। आवश्यकता पड़ने पर यह कई दिनों तक बिना पानी के रह सकता है। यह ओस की बूंदें चाटकर भी अपना काम चला सकता है।

42 इंच की ऊँचाई वाले इस मृग का बजन 22-25 किलोग्राम होता है। इसकी आयु 12-15 वर्ष की होती है। इसके छल्लेदार मजबूद 2 सींग होते हैं। नर के सींग करीब 12 इंच के होते हैं, वहीं मादा के सींग इसके आधे लम्बे होते हैं। यह सींग स्थाई होते हैं और कभी नहीं झड़ते। इसकी नाक से आँख तक दोनों ओर सफेद लकीरें होती हैं। इनके प्रजनन की कोई निश्चित ऋतु नहीं होती। मादा चिंकारा का गर्भकाल साढ़े पांच माह का होता है। राजस्थान के जयपुर का नाहर अभ्यारण्य चिंकारा के लिए प्रसिद्ध है।

राजस्थान का राजकीय पशु : ऊँट

  • जगत – एनिमेलिया
  • संघ कार्डेटा
  • वर्ग – स्तनधारी
  • गण – आर्टियोडैकटिला
  • वंश समूह – कैमलिनि
  • जाति – कैमेलस
  • कुल – कैमलिडाए

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राजस्थान सरकार ने 30 जून 2014 को ऊँट को राजस्थान के राजकीय पशु (पालतू) का दर्जा प्रदान किया। इसकी घोषणा 19 सितंबर 2014 को बीकानेर में की गई। दरअसल राजस्थान में ऊँटों की संख्या तेजी से गिर रही है। इसी वजह सर सरकार ने चिंकारा के साथ इसे भी राजकीय पशु के रूप में घोषित किया। अब ऊँट मारने वालों को कम से कम 1 साल की सजा काटनी पड़ेगी। दरअसल साल 2007 की गणना के अनुसार राजस्थान में ऊँटों की संख्या 4.22 लाख थी। जो साल 2014 की गणना में 2 लाख से भी कम रह गई। इसी कारण राजस्थान सरकार को यह कदम उठाना पड़ा।

ऊँट को रेगिस्तान के जहाज के उपनाम से भी जाना जाता है। इसका कारण है इसके चौंड़े व गद्देदार पाँव। विश्व भर में दो प्रकार के ऊँट पाए जाते हैं। पहला एक कूबड़ वाला (ड्रोमेडरी) ऊँट, और दूसरा दो कूबड़ वाला (बैक्ट्रीयन) ऊँट। हमारे देश में सामान्यः एक कूबड़ वाले ऊँट ही पाए जाते हैं। जो इसे रेगिस्तान की रेत में चलने में सुलभ बनाते हैं। इसके अतिरिक्त यह हरी घास ले करकर कटीली झाड़ियां और पेंड़ पौधों की पत्तियाँ भी खा सकता है। इनकी स्मरण शक्ति काफी तेज होती है, ये सैकड़ो किलोमीटर से भी अपने घर बापस आ सकते हैं।

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राजस्थान का बाड़मेंर सर्वाधिक ऊँटों वाला जिला है। वहीं प्रतापगढ़ राजस्थान का सबसे कम ऊँटों वाला जिला है। राजस्थान की रेबारी जाति ऊँट पालन के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान में बीकानेरी, गोमठ, सिंधी, नाचना, जैसलमेरी, कच्छी, अलवरी इत्यादि ऊँट की प्रमुख नस्लें हैं। राजस्थान के लोकदेवता पाबूजी को ऊँटों का देवता कहा जाता है। ऊँट की खाल से बनाए जाने वाले ठण्डे जलपात्र को ‘कॉपी’ कहा जाता है। वहीं ऊँटों की खाल पर की गई कलाकारी को ‘उस्ता कला’ कहा जाता है।

एक ऊंटनी मात्र 4 वर्ष की आयु में ही परिवक्व हो जाती है। ऊंटनी के दूध की भारत की एकमात्र डेयरी बीकानेर में स्थित है। ऊंटनी के दूध में भरपूर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। इसके दूध में क्षयरोग दूर करने की क्षमता होती है। एक ऊंटनी सामान्यतः 3.5-4.5 लीटर दूध देती है। इसके दूध में वैक्टीरियारोधी गुण पाये जाते हैं।

इसका दुग्धकाल 10-14 माह होता है। ऊंटनी के गर्भकाल का समय 390 दिन होता है। जन्म के समय ऊँट का भार 35-40 किलोग्राम होता है। नर शिशु अपेक्षाकृत भारी होता है। वयस्क होने पर ऊँट का भार 450-750 किलोग्राम होता है। राजस्थान के एक ऊँट श्रंगार गीत तो ‘गोरबंद’ को नाम से जाना जाता है। ऊँट के बारे में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह ‘दुनिया का एकमात्र जानवर है जो तैर नहीं सकता’।

राजस्थान का राजकीय पक्षी (राजस्थान के राजकीय प्रतीक)

  • नाम – ‘गोडावण’ (ग्रेड इंडियन बस्टर्ड)
  • वैज्ञानिक नाम – Ardeotis Nigriceps
  • फैमिली – Otididae
  • किंगडम – Animalia
  • उपनाम – सोहन चिड़िया, गुरायिन शर्मीला पक्षी, हुकना

राजस्थान का राजकीय पक्षी Indian great bustard

राजस्थान सरकार ने 1981 ई. में ग्रेड इंडियन वस्टर्ड को राज्य के राजकीय पशु के रुप में घोषित किया था। यह सर्वाहारी पक्षी है, यह बेर के फल, अनाजों के साथ कीटों का भी भक्षण करता है। इसके साथ ही ये सांप, बिच्छू, छिपकली इत्यादि को भी खा जाता है। ये राजस्थान में जैसलमेर के मरु उद्यान, अजमेर के शोकलिया क्षेत्र व सोरसन (बारां) में पाया जाता है। भारत में यह राजस्थान के साथ सीमावर्ती पाकिस्तान के शुष्क व अर्द्ध शुष्क गास के मैदानों में भी पाया जाता है। यह उड़ने वाले पक्षियों में सबसे भारी पक्षी है।

वर्तमान में इस पक्षी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है। अब इसकी संख्या बहुत कम बची है। इसे संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड डाटा बुक में गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है। इसे भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में रखा गया है। राजस्थान सरकार ने इसके संरक्षण हेतु परियोजना का वाक्यांश ‘मेरी उड़ान न रोकें’ रखा है। राज्य के राष्ट्रीय मरु उद्यान में इसके प्रजनन हेतु सुरक्षा के समुचित प्रबंध किये गए हैं।

राजस्थान का राजकीय वृक्ष : खेजड़ी

  • नाम – खेजड़ी (शमी वृक्ष)
  • वैज्ञानिक नाम – Prosopis Cineraria (प्रोसोपिस सिनेरेरिया)
  • वर्ग – माग्नोल्योफीता
  • कुल – फाबाकेऐ
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राजस्थान का राजकीय वृक्ष खेजड़ी

राजस्थान सरकार ने 31 अक्टूबर 1983 को ‘खेजड़ी’ को अपना राजकीय वृक्ष घोषित किया। इसे ‘रेगिस्तान का कल्पवृक्ष’ कहा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस वृक्ष की आयु 5000 साल होती है। राजस्थान के अजमेर के मांगलियावास गाँव में 1000 वर्ष पुराने खेजड़ी के दो पेंड़ मिले हैं। हाल हके 30-35 वर्षों में खेजड़ी के वृक्षों की संख्या आधी रह गई है। इसमें जलवायु परिवर्तन की अहम भूमिका है। इसके अतिरिक्त एक जड़छेदक कीट सेलोस्टोर्ना स्काब्रेटोर (कोलियोप्टेरा सिरेम्बाइसिडी) भी इसे नष्ट करने में लगा है। इसके अतिरिक्त कवक या फफूंद व दीमक भी इसे नष्ट कर रहे हैं। स्थानीय भाषा में इसे सीमलों के नाम से जाना जाता है।

इसकी पत्तियों को ‘लूम’ कहा जाता है, जो चारे के रूप में जानवरों को खिलाई जाती हैं। इस वृक्ष पर लगने वाले फलों को ‘सारंगी’ कहा जाता है। ये फल सुखाकर सब्जी के रूप में बनाकर खाए जाने हैं। यह फल सूखकर मेवा बनता है, जिसे ‘खोखा’ कहा जाता है। इसका फूल ‘मींझर’ के नाम से जाना जाता है।

5 जून 1988 को विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर खेजड़ी वृक्ष पर 60 पैसे का डाक टिकट जारी किया गया। यह वृक्ष धार्मिक महत्व की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। राजस्थान में लोकदेवता गोगाजी और झुंझार बाबा के मंदिर इस वृक्ष के नीचे स्थापित किये जाते हैं। हिन्दू धर्म में इस वृक्ष की पूजा भी की जाती है। दशहरा (विजयदशमी) के दिन खेजड़ी वृक्ष की पूजा की जाती है।

खेजड़ी वृक्ष को अन्य भाषाओं में अन्य नामों से भी जाना जाता है। जैसे सिन्धी में छोकड़ा, हरियाणवी में जांटी, तमिल में पेयमेय, कन्नड़ में बन्ना-बन्नी। वहीं इसका व्यापारिक नाम ‘कांडी’ है। 1899 के दुर्भिक्ष के दौरान राजस्थान के लोगों ने इसकी छाल खाकर काम चलाया था। जेठ की भयंकर गर्मी में भी इस वृक्ष की पत्तियां हरी रहती हैं। यह पेंड़ भयंकर गर्मी की लू से लेकर पाला पड़ने तक की परिस्थिति में सामंजस्य बिठा लेता है।

इसे राजकीय वृक्ष घोषित किये जाने के पांच वर्ष पूर्व 1978 से ही हर साल 12 सितंबर को खेजड़ी दिवस के रूप में मनाया जाता है। सेलेस्ट्रेना कामक कीड़ा और ग्लाइकोट्रमा नामक कवक इस पेंड़ को नुकसान पहुँचाते हैं। 1730 ई. में खेजड़ी गाँव (जोधपुर) में खेजड़ी के वृक्षों को बचाने के लिए अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में 363 लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी। इसी की समृति में हर साल यहाँ विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला लगता है।

खेजड़ी के पेंड़ नागौर जिले में सर्वाधिक पाये जाते हैं। राजस्थान के अतिरिक्त यह वृक्ष पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र व कर्नाटक में भी पाया जाता है। भारत के बाहर यह प्रजाति अरब, अफगानिस्तान में भी पायी जाती है। यह पेंड़ मरुस्थलीकरण को रोकने का गुण रखता है। साल 1994 में ‘अमृता देवी वन्यजीव पुरस्कार’ की शुरुवात की गई। यह पुरस्कार पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में प्रदान किया जाता है। वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान है।

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महाभारत से संबंध – वनवास के बाद जब पाण्डव 1 वर्ष के अज्ञातवास के लिए प्रस्थान किये थे। तब उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्रों को छोकड़ा के पेंड़ पर ही छिपाया था।

राजस्थान का राज्य पुष्प – रोहिड़ा (राजस्थान के राजकीय प्रतीक)

  • नाम – रोहिड़ा
  • वैज्ञानिक नाम – टिकोमेला अनुडुलेटा

राजस्थान का राजकीय पुष्प रोहिड़ा

राज्य सरकार ने 21 अक्टूबर 1983 को इसे राजकीय पुष्प के रूप में घोषित किया था। इसे मरुस्थल का सागवान, मारवाड़ टीक इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। इसे राजस्थान की मरुशोभा भी कहा जाता है। यह राजस्थान के अजमेर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, नागौर, झुनझुन, सीकर, पाली, चूर इत्यादि के क्षेत्रों में पाया जाता है। राजस्थान के राजकीय प्रतीक : ‘पुष्प – रोहिड़ा’।

राजस्थान का राजकीय खेल : बास्केटबॉल’

राजस्थान का राजकीय खेल बास्केटबॉल

राजस्थान के राजकीय प्रतीक : ‘खेल – बास्केटबॉल’

1948 ई. में राजस्थान सरकार ने बास्केलबाल को राजस्थान का राजकीय खेल घोषित किया था। इस खेल की दोनों टीमों में 5-5 खिलाड़ी होते हैं। ‘International Basketball Federation (FIBA)’ इस खेल की सबसे बड़ी वैश्विक संस्था है।

राजस्थान का राजकीय नृत्य : ‘घूमर’

राजस्थान के राजकीय प्रतीक : ‘नृत्य – घूमर’

घूमर राजस्थान का राजकीय परंपरागत लोकनृत्य है। यह केवल स्त्रियों के द्वारा किया जाता है। इसमें स्त्रियां एक बड़ा सा घेरा बनाकर अन्दर-बाहर की ओर जाते हुए नाचती हैं। यह मुख्य रूप से विशेष अवसरों यथा विवाह, त्योहार या समारोह इत्यादि के अवसर पर किया जाता है।

राजस्थान का राजकीय गीत ‘केसरिया बालम’

राजस्थान के राजकीय प्रतीक : ‘गीत – केसरिया बालम’

यह गीत मारू का गौना (ढोला) से संबंधित है। इसे सबसे पहले उदयपुर की मांगी बाई द्वारा गाया गया था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह गीत सर्वप्रथम बीकानेर की अल्ला जिल्ला बाई ने गाया था। यह गीत मांड गायकी में गाया जाता है। अल्लाबाई ने इसे सर्वप्रथम बीकानेर महाराजा गंगासिंह के दरबार में गाया था।

जिलेवार शुभंकर – राजस्थान के राजकीय प्रतीक

राजस्थान सरकार ने साल 2015 में हर जिले का एक वन्यजीव घोषित किया। ऐसा करने वाला राजस्थान भारत का पहला राज्य है। यह वन्यजीवों कें सरक्षण की ओर उठाया गया एक अनोखा कदम है। इसके तहत राजस्थान के हर जिले को एक वन्यजीव के संरक्षण की जिम्मेदारी प्रदान की गई। इस प्रयोग के तहत जीवों की 33 प्रजातियों को संरक्षित किया गया है।

जिलावन्यजीव
अजमेरखड़मौर
अलवरसांभर
बांसवाड़ाजलपीपी
बांरामगरमच्छ
बाड़मेरमरु लोमड़ी
भरतपुरसारस
भीलबाड़ामोर
बीकानेरभट्टतीतर
बूंदीसुर्खाब
चित्तौड़गढ़चौसिंगा
चुरुकाला हिरण
दौंसाखरगोश
धोलपुरइंडियन स्क्रीमर
डुंगरपुरजंगील धोक
हनुमानगढ़छोटा किलकिला
झुंझुनूकाला तीतर
जयपुरचीतल
जैसलमेरगोडावन
जालौरभालू
झालावाड़गगरोरनी तोता
जोधपुरकुरंजा
करौलीघड़ियाल
कोटाऊदबिलाव
नागौरराजहंस
पालीतेंदुआ
राजसमंदभेड़िया
प्रतापगढ़उड़न गिलहरी
सवाई माधोपुरबाघ
श्रीगंगानगरचिंकारा
सीकरशाहीन
सिरोहीजंगली मुर्गी
टोंकहंस
उदयपुरबिज्जू
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