भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) : मानव की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन अर्थशास्त्र में किया जाता है।
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था –
क्या उत्पादन करना है, कितना उत्पादन करना है, उसे किस कीमत पर बेचना है। यह सब जिस अर्थव्यवस्था में बाजार द्वारा तय किया जाता है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाती है। इसमें सरकार की कोई आर्थिक भूमिका नहीं होती। 1776 ई. में एडम स्मिथ की किताब ‘वेल्थ ऑफ नेशन’ प्रकाशित हुई। इसे ही पूँजीवाद का उद्गम स्त्रोत माना जाता है।
राज्य अर्थव्यवस्था –
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की लोकप्रियता के विरुद्ध इस अर्थव्यवस्था की उत्पत्ति हुई। इसमें उत्पादन, आपूर्ति व कीमतों का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है। इसे केंद्रीकृत नियोजित अर्थव्यवस्था कहते हैं। जो गैर-बाजारी अर्थव्यवस्था होती है। इस अर्थव्यवस्था की दो शैली देखने को मिलती हैं। सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था कहा गया। जबकि 1985 ई. से पूर्व चीन की अर्थव्यवस्था को साम्यवादी अर्थव्यवस्था कहा गया। समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के संसाधनों पर सामूहिक नियंत्रण की बात सम्मिलित थी। इस अर्थव्यवस्था को चलाने में सरकार की अहम भूमिका थी। जबकि साम्यवादी अर्थव्यवस्था में सभी संपत्तियां व श्रमसंसाधन सरकार के नियंत्रण में थीं। सर्वप्रथम कार्ल मार्क्स ने राज्य अर्थव्यवस्था सिद्धांत दिया।
मिश्रित अर्थव्यवस्था –
यह राज्य अर्थव्यवस्था और पूँजीवादी का मिश्रित रूप है।
इसमें दोनों अर्थव्यवस्थाओं के कुछ-कुछ लक्षण देखने को मिलते हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उपनिवेशवाद से आजाद हुए बहुत से देशों ने इस व्यवस्था को अपनाया।
भारत ने भी इसी व्यवस्था को अपनाया। केंस के अनुसार पूंजीवादी को समाजवादी को ओर कदम बढ़ाने चाहिए।
प्रो. लांज के अनुसार समाजवादी अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी की ओर कुछ कदम बढ़ाने चाहिए।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र
मानवों के वे क्रियाकलाप जो आय के सृजन में सहायक होते हैं, आर्थिक क्रिया की संज्ञा दी जाती है। किसी देश की आर्थिक क्रियाकलापों के अंतर्गत व्यापारिक व घरेलू क्षेत्र, सरकार द्वारा दुर्लभ संसाधनो के प्रयोग, वस्तुओं व सेवाओं के उपभोग, उत्पादन का वितरण आते हैं। इन आर्थिक गतिविधियों को तीन श्रेणियों प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है। प्राथमिक क्षेत्र में भूमि, जल, वनस्पति, खनिज, कृषि जैसे प्राकृतिक संसाधन आते हैं। प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करने वाले क्षेत्र द्वितीयक की श्रेणी में आते हैं। द्वितीयक क्षेत्र में विनिर्माण कार्य होता है। इसके अंतर्गत लोहा व इस्पात उद्योग, वाहन, वस्त्र उद्योग, इलेक्ट्रानिक्स इत्यादि आते हैं। तृतीयक क्षेत्र में शिक्षा, चिकित्सा, बीमा, बैंकिंग, पर्यटन इत्यादि आते हैं।
आर्थिक संवृद्धि –
किसी अर्थव्यवस्था में किसी समयावधि में होने वाली वास्तविक आय को आर्थिक संवृद्धि कहा जाता है।
सकल घरेलू उत्पाद, सकल राष्ट्रीय उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो रही हो। तो कहा जा सकता है कि आर्थिक संवृद्धि हो रही है।
किसी देश की आर्थिक संवृद्धि का सबसे बेहतरीन मापदण्ड ‘प्रति व्यक्ति वास्तविक आय‘ है।
आर्थिक विकास –
इसकी धारणा आर्थिक संवृद्धि की धारणा से अधिक व्यापक है। यह सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक सभी परिवर्तनों से संबंधित है। जीवन की गुणवत्ता में सुधार होने पर ही आर्थिक विकास कहा जाएगा। इसमें शिक्षा, साक्षरता दर, पोषण का स्तर, जीवन की प्रत्याशा, प्रति व्यक्ति उपभोग वस्तु, स्वास्थ्य सेवाएं सम्मिलित हैं। अर्थात मानव विकास ही आर्थिक विकास है।
आर्थिक विकास की माप –
विभिन्न देशों के आर्थिक विकास की माप के लिए पाँच दृष्टिकोण अधिक प्रचलित हैं।
- आधारभूत आवश्यकता प्रत्यागम
- जीवन की भौतिक गुणवत्ता निर्देशांक प्रत्यागम
- क्रय शक्ति समता विधि
- निवल आर्थिक कल्याण
- मानव विकास सूचकांक
राष्ट्रीय आय –
दादा भाई नौरोजी ने भारत की राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय की गणना का प्रयास सबसे पहले 1867-68 ई. में किया था। उनके अनुसार साल 1868 में प्रति व्यक्ति आय 20 रुपये थी। आजादी के बाद 1949 ई. में भारत सरकार द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय आय समिति के अध्यक्ष पी. सी. महालनोबिस थे। इस समिति के अन्य सदस्य डॉ. आर. गाडगिल और वी. के. आर. वी. राव थे। भारत में राष्ट्रीय आय के आंकलन व प्रकाशन हेतु केंद्रीय सांख्यिकी संगठन उत्तरदायी है। यह सांख्यिकी विभाग के अंतर्गत आता है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन की स्थापना मई 1951 ई. में हुई थी। राष्ट्रीय आय लेखांकन का जन्मदाता साइमन कुजनेट्स को माना जाता है।
घरेलू उत्पाद –
किसी राज्य की आर्थिक सीमा के अंतर्गत रहने वाले निवासियों व गैर निवासियों द्वारा अर्जित की गई आय घरेलू उत्पाद कहलाती है। ध्यान रहे इसमें निवासियों व गैर निवासियों का योग सम्मिलित है।
राष्ट्रीय उत्पाद –
किसी देश की आर्थिक सीमा के अंतर्गत या बाहर निवासियों द्वारा अर्जित आय को राष्ट्रीय उत्पाद या सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।
सकल घरेलू उत्पाद –
किसी देश की घरेलू सीमा के अंतर्गत रहने वाले निवासी व गैर निवासी उत्पादकों द्वारा 1 साल में उत्पादित सभी वस्तुओं व सेवाओं का अंतिम मौद्रिक मूल्य सकल घरेलू उत्पाद कहलाता है। सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product – GDP) में दर्ज की गई वार्षिक वृद्धि ही किसी देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि होती है।
सकल राष्ट्रीय उत्पाद –
सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product – GDP) में विदेशों से होने वाली आय को जोड़ने पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product – GNP) प्राप्त होता है।
निवल धारणा –
सकल मूल्य में से ह्रास को घटाने पर निवल धारणा प्राप्त होती है। Net Concept.
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद –
सकल राष्ट्रीय उत्पाद में से मूल्य कटौती को घटाने के बाद बची आय को शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। Net National Product – NNP.
भारतीय अर्थव्यवस्था संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य –
- भारत में वित्त वर्ष 1 अप्रैल से शुरु होकर 31 मार्च को समाप्त होता है।
- भारत में मूल्य कटौती की दर का निर्धारण केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
- इंडिया में पूँजी निर्माण संबंधी आँकड़े सी. एस. ओ. द्वारा तैयार किये जाते हैं।